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राजस्थान रा जिला रो नक्शो
(आभार राजस्थान पत्रिका)

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बाल चरित्र

मंगलाचरण
नमो अलख गुरु प्रकट री, दयादृष्टि बिन अंत।
घणांं कलप रो उलट ज्या, फरे पलक रो पंथ।।

आगे एक बड़ा आछा गुणवपाना राजा व्हिया हा। वमांरा नाम दशरथजी हो। वो अयोध्या नाम री नगरी रो राज करता हा। वणांरे सब तेरा'रा सुख हा। कणी वातरो घाटो नो हो। घाटो हो, तो एक हीज हो, के वणां रे पुत्र नी व्हें'तो हो। अणी वातरी राजा रा मन में उदासी वणी रे'ती ही। वणां तीन तीन ब्याव कर लीधा, पण पुत्र एक रे भी नी व्हियो। राजा ने ने राणियां ने तो ई'रो सोच रे'तो होज, पण रैत ने भी ईंरो पूरो पूरो विचार हो। मनख वातां करता हा, के अश्या धर्मातत्मा राजा के पुत्र क्यूं नी व्हे। कोई तो के'तो, के अणा राजा शइकार मे ं एक दाण अपजाण सूँ कणीं मनख ने मार न्हाख्यो जणीं पाप शूँ पुत्र नी व्हेंटोत व्हेगा। कतराई के'ता ई राजा तो आपां ने बेटा बेटी ज्यूं पालणे भुलाय रिया है, पछै कजाणां कई व्हे'गा। कतराई केता, परमेशर अणा राजा के मूंडा आगै मौत दे दीजो, पण अणारी खोटी कानां शंभलायो मती. यूं सारा री राजा पे जीब छांटता हा। अणी तरे' शूं नराई वर्ष वीत गिया। सेवट में भगवान सारांरो हो हेलो शुण्योन, ने राजारे तीन ही राण्यां न्हाई री'। ई समचारा शुणने तो लोग हरख बावला व्हे'ज्यूं व्हे'गिया। जाणे एकरे ने एकरते तो कुंवर व्हे'गा ही ज, पण भगवान री दया शूं तीन ही राण्यां रे कुँवर जनम्यां ने फेर छोटा राजीणी रे तो एक साथे दो कुँवर जनम्या। अणा वधायां ने शुण सुण ने तो सुख रो पार ही नी रियो। अश्या प्रजा पालक धर्मात्मा राजा के पुत्र क्यूं नी व्हे, शवेट मे ं मोड़ो पालक धर्मात्मा राजा के पुत्र क्यूनी व्हे, शेवट में मोड़ो वेगो आछा रो फल आछो होज व्हें। आपाणा भी आछा भाग है, जो आपणा अन्नदाता रे चार कुँवर जनम्या, परमेशर अणांने करोड़ दियाली चरंजीव राखो, ने ई घढ़ी बधता पल बधो। धन है, वणी राजाने, जणी ऊपरे रैत रो अश्यो मोह व्हे', ने व्हे' क्यूं नी, राजा भी तो वणांने हतेली रा छाला ज्यूं अछन अछन करता हा। वणारे वास्ते आधी पाछली भी नी गणता हा। अबे तो चार ही कुंवर दनोदन म्होटा व्हेा लागा। राजा रा कुँवराँ ने बधता की देर लागै। आज देख्या जसश्या काले नी ने काले जश्या परशूं नी ने ज्यूं ज्यूं शरीर मे ं बधता, ज्यूं ज्यूं वो गुणां में भी वधता जाता हा। अबे तो चरा ही भाई घोड़ा फेरवा लागा,, ने रैत रेत सुख दुख री खबर लेवा लागा। चारां में हो महाराणी कौशल्याजी रा कुँवर राम बड़ हा, वणां शूं छोटा राणी कैकईजी रा कुँवर भरत हा, ने सबशूं छोटाणी सुमित्र्‌ाजी रे लक्ष्मण भरतजी शूं छोटा ने शत्रुध्नजी शूं बड़ा हा। महाराजा दशरथजी रे तो कदकी ही या हीज लालशा लागरी'ही के म्हारे बालक व्हे'त ो म्हूं वणी ने राजध्म आथी तरे ' शिखाय देउं। जणी शूं अबे राजा शघला भायां ने नरी तरे शूं या बात शिखावा लागा के रैत ने यूं पालणी ने यूं राखणी ने वींरो यो ही सार है, के राजा रैत के वास्ते हीज है यू राजा के'ता शिखावता, वणी बच्चे भीराजकुंवर वत्ती सममझ लेता हा, जाणे मां रा पेट शूं हीज यो प्रजा पालवा रो धर्म शीख ने आया है। वणां में भी बड़ा राजकुंवर राम तो सांची ही तारी वातां मे बड़ा हीज हा। वी बड़ा बलवंत हा पर वणारा बल री कणी ने ही जाण ही नी पड़ती ही। क्पूं के वी भारीखणा घणा हा। सुहावणा तो अश्या हा, के देखतां ही आखां ठंडी व्हे जाती ही, जणीज सूं लोग वांने रामचन्द्र के'ता हा, ने रैत रे वास्ते तो, परसेवा री जगा लोही छांटवाने त्यार रे'ता हा। झूंठ तो वणांने बोलता ही नी आवतो हो। राम तो गुणां री खान हा ही ज, पण छोटा भाई भी घणा गुणी हा। यूं तो धशरथजी रा चार ही कुंवरां री दूसरो तो कोई होड़ नीं कर शकतो हो पण बड़ाने तो सांची ही भगवान विचारने हीज बड़ा कीधा हा, ने यू्‌ं हीज एक दूसरा शूं उतार हा। भरतजी तो एक शूदा सादा सरदाहर हा, लक्ष्मणजी रो कईक आकरो सुभाव हो बी बिना वाजबी कणी री भी नी खतमा हा। एक री जगा चार परखावता हा, पण बड़ा भाई रा तो थूंक्यने भी नी उलांघता हा, ने भरत शत्रुध्न अणा दोही भायां में घणो हेत हो, ने रामचन्द्रजी रा तो शाला ही दास हा, यूं चार ही भायां में मोह देख, आछा मनख तो घणा राजी व्हेता, पण अणी शुं खोड़ील तो बिना ही वासदी बलता हा। रामचन्द्रजी रो यो विचार हो के संसार मं कोई दुकी रे'णी नी चाबे। अणांने विचारांत विचारांत या बात लाधी के मनुजी री बाँधी रीत पे नी चालवा शूं मनख दुखी व्हे' है के वी मनखां ने मनुजी रा धर्म पे नी चालवा देवा, ने चोरी-जारी-झूंठ शिखावे है, अधर्म पे चाल दूजारी लुगायांने जोरी शूं पकड़ लें जावे, ने कीने ही मार न्हाखे, बुराई सिवाय दणांने शुहावे ही नी, वी रागश बाजे है। अश्या रागशां रा राजा रो नाम रावण है। वो समुद्र रे वच्चे एक लंका नाम री नगरी में रेवे है। वठारा राग श संसार मं अधर्म फैलावत फिरे है, ई वातां राम भगवान ने नी खटती ही जीशूं रावण शूं मोड़ी वेगी लड़ाई व्हे'णी नक्कीज है। क्यूं के रागश तो नीति नी चलावा देवे, ने राम अनीति नी चलावा देवे। ईशुं साराहो भाी आवध वावणा शीखवा लागा, ने कसरतां करवा लागा। धीरे धीरे या वात नराई लोग जाण गिया। वणां दिनाँ में लोगां ने रागशां रो घमओ दुख हो। क्यूं के अधर्मी वधे जदी धर्मी दुख पावे हीज। वणी समय मंें विश्वामित्र नाम रा एक बड़ा धर्मी साधु हा। वणाँ राजपाट छोड़ ने जोग ले लीधो हो। कांकड में भगवान रो भजन करता हा, कणीं ने हीं दुख नी देता हा। पम रागशां वणाँने भी नी छोड़ था। गेले चालतां ही वणां ने तरे तरे रा दुख देवा लागा, जदी तो नराही आछा आछा मनखाँ मिल विश्वामित्र जी ने अयोध्या रा कुंवरा ने लावा ने अयोध्या मेल्या। वणी वगत में राजा लोग साधुवां रो घणो मान राखता हा, ने साधु भी अबाणु व्हे' जश्या नी व्हे'ता हा, ने विशव्‌ामित्रजी तो बड़ा नामी साधु हा। अश्या महात्मा रो आवणो शुणताँही राजा सामा पधार्या। पगां धोक दीधी, ने मेलां में वराजाया, जीमाया, ने पछे बड़ी नरमाई शूं हाथ जोड़ ने अरजी कीधी, के म्हने जो आज्ञा व्हे ' वाच चाकरी उठावुं। यो राज पाटय ज्यो कई दीखे वो शारो आप रोहीज समझवा में आवे, यू राजा रा वचन शुण विश्वामित्रजी घमआ राजी व्हे ने दियो के वाह वाह राजा अश्या हलाबोल सम्यां में थारे बिना अशी वात कूंण केवे। जश्यो थने जामता हा वश्यो ही थूं निकल्यो। तूं अश्यो क्यूं नी व्हे। वशिष्ठजी जश्या तो थारे गुरु है, ने रघु रा वंश में ज्यो थारो जन्म व्हियो है। जणी वंश में एक एक शूं वध वधता धर्मात्मा ने टणका राजा व्हिया है। आज काल रागशां, लोयाँ ने घमा तल राख्या है। वी धर्म रा वैरी है ने थे धर्म रा रखवाला हो। अणी वास्ते आपरा पाटवी कुंवर रामने म्हारे साथे करदो सो वी रागशांने मारने म्हाँरो दुख मिटा देवे। दाना राजा दशरथ या वात शुणतांही घबराया गिया। क्यूंके राजा जाणता हा के रागशां शूं वैर बांधणो शैल वात नी है। वणआं नरी देर तांई विचार में पड़ में, मुनि ने कियो के महाराज, राम तो हाल बालक है। भलां रागशां शूं वोने कई लड़तां आवे। अधर्मी रागशाँरो सुभाव ने बल म्हूं जाणू हू। आज वणांरो दिन धरे है। लका जश्यो तो गढ़ वणांरे पगाँ नीचे है, ने रावण जश्यो राजा वणाँरे साथे तप रियो है। वणा शूं वैर बांधमओ जामो भाटो उछाल ने करम माँडणो है। फेर म्हारी भी वरध आय गी' है, ने बालक जो छोटा छोटा रे'गिया है। गेले चालतां वैर वशावणी म्हूं नी चावूं हु। आपने अबकाई व्हे'तो अयोध्या रा सीमाड़ा में पधार जावो, सो वी आपने अठेदुख नी देवेगा। क्यूंके वी भी रघुवंशियो ने छेड़णी नी चावे है। या बात शुण विश्वामित्रजी ने पे'ली तो बड़ो अंचमो आयो। क्यूंके यूं सूरजवंशी राजा ने वचन शूं फिरतो वणा पे'ली पे'ल हीज देख्यो हो। आगे अणा विश्वामित्रजी राजा हरिश्चंद्र ने वचन शूं फेरवारी नरी कीधी ही, पण बेटाने ने राणी ने राणी ने वेचने आप भी भगोरे विकगियो, पण वचन शूं नी फिरयो। आज वणीज हरिशच्‌ंद्र रा वंशीने यूं के'ने फिरतो देख विश्वामित्रजी ने रीश आयगी। वणाँ कियो के हे राजा, बेटो मांगवरी रीत नी है, पण म्हें थने वणी वंश रो जाण ने बटो मांग्यो के जणीं वंश रा रैत रे वास्ते, ने धर्म रे वास्ते केवे ज्यो दे शके है। म्हें साधु कणी रा ही बाल बच्चां ने मरावां नीं हां, पण नी व्हे' जणीरे भगवान शूं अरजाश करने देवावां हांँ। थारा जश्या राजा ही जदी आपणा बड़ावां रा धर्म ने छोड़ देगा, जदी बापड़ा दूसरा कई करेगा। घणओ आछो'म्हेंतो आया ज्यं ही परा जावा ा ंगा, थें राजी रेवो। काले रावण थाणां मेलमां में भी अधर्म फैलावे तो भी वणी शुं बगाड़ी मती। म्हने रे'रे'ने यो अचंभो आवे के आज एक देंतण एक बामण रा घर में घुशी, वणी रा बेटा रावण री रघुवंशी राजा काण माने है, ने वणीरा अधर्म सुण ने भी काना में तेल घाल ने शूवमो चावै है, ने फेर वणाँने सूरजवंशी वणता लाज नी आवे ने भगवान् रो भय छोड़ रागशाँरो भय राखवा लागा है। यूं विश्वामित्रजी ने केतां देख राजा रा गुरु वशिष्ठजी कियो के ई राजा वचन शूं फिरे जस्या नी है। ्‌णां तो राजनीति री वात कीधी है, आपने यूं बैराजी नी व्हे'णो चावे। पछे वमा राजा ने भी कियो के विश्वामित्रजी बिना विचारयांही आपरा बड़ा कुंवर ने नी मांगे है, ईत ो बड़ा राजनीति वाला है, ने अश्या ही करामाती भी है। अणांरे साथे जावा में लाभ हीज है, ईशूं बिना ही विचारायं अणांरे साथै बड़ा बापू ने करदेणा चावे। जदी रादा राजी व्हे'ने महाराज कुंवार ने बुलाया, सो राम लक्ष्मण दोही भाई हाजरि व्हिया और ोदही भायां ने विश्वामित्रजी साथे लेलीधा। क्यूंके वी जाणता हा के अणाँ दोही भायं में मोह घमओ है, ने रामचन्द्र रो संकोच रो सुभाव है, सो आपांने की केवैगा नी, ने अबखाई पावेगा, ने दोही भाई व्हे'गा तो अणांरे भी ठीक, ने आपणे भी ठीक है। अबे माता पिता री आज्ञा पाय ने सारा शूं ही आशीश पाय दोही भाी मुनिराज रे साथे साथे पधारवा लागा। लोग केबा लागा के देख ोराजा रो धर्म कश्यो दोरो है के आपणा लाड़ला बेटा ने रागसां शूँ लड़बा एक साधु रे साथ कर दीधा ने फेर दोही राजकुंवरां ने भी देखो के जाणे परणवा जावे ज्यूं राजी राजी मुनिराज से साथे साथे पधार रिया है। भाी रामचन्द्र तो सदा ही प्रसन्न ही जरे बे है, पण आज तो मुखारविंद पे अनोखो हीज आनन्द झलक रियो है। जाणे यूं तो पिता सीख नी बगशेगा, ने मुनिराज रो कियो ज्यो लोपेगी नी, यूं जाण जाणे मुनि ने आप हीज केवाय ने बुलाया व्हे'ज्यूं दीखे है, ने साधु रे साथे जाणे ठेठरी ही साधु व्हे'ज्यू पधार रिया है। कणी दियो भाई ईतो साधुवां वच्चे भी वत्ता है। साधु तो सब छोड़ छोड़ ने मनने रोके है, ने ईतो सब तरे'रा सुख व्हेवा पे भी सब दूसरा रा हीज गणए है। ईतो सांस लेवो सो भी पराया रा भलारे वासते हीज लेवे है। मनख राम लक्ष्मण ने देख देख ने यूं वातां करता, नै आशीश देता के आपरा बैरियां रो नाश व्हीजो, ने आपरी ईडा पीड़ा सारी मिट जाज्‌ो। आपने परमेशर जीत दीज्यो। कतराक विश्वामित्रजी रे नख ेजाय आखां में तलायां भरने के'ता के बावजी म्हारां अन्नदाता रा कुँवरा ने कंई अबकाई पड़बा देवो मती। ई म्हाँरा प्राण है। कतराई बारला गामरा लोग यूं केता के भमावजो भलेई, पण देवा लेवो करो मती। कोई के'तो अणाँने साधु करो मती। ई अयोध्या वच्चे भी म्हारे नखे वत्ता सुखी रेवेगा। थां ही केवो नी, ई म्हारे नखे थांने राजी दीखे के उदास ? थोड़ा दिनां केड़े थां देखोगा, तो थे ओलख ही नी शको, जश्या सांतार व्हे जावेगा। यूं बाताँ के'ता शुणता दोही कुँवर ने मनि न राई छेटी पधार गियां।

आगे दो गेला फटता हा। वठे मनिराज पूछी के बापू कश्ये गेले व्हेय ने चालां। यो जीमणा हाथ कानी रोगेलो तो बार ने बारा चौईश कोश री उजाड़ रो है, ने अणी में भौ भाणो भी घमो है, ने यो डाबी हाथ कानी रो गेलौ बस्ती रो है, पण फेर पड़ैे है।

जदी दोही भाया हाथ जोड़ अरजी कीधी के वस्ती रे गेलेत ोलग आपने जक नी लेवा देवागे, ने मुरअजी तो म्हारी उजाड़ रो गेलो देखवारी है, ने शूधो गेलो है, जदी फरे अँवलाई क्यूं भुगतां, ने आपरा बालकां ने भी तो केवल अधर्म रो हीज चाबै। मुनिराज री भी याहीज मनशां ही सो जठ जीमणा हाथ रे गेल वल गिया। ज्यूं ज्यूं वणी गेले चालवा लाग ज्यूं ज्यूं वत्तो वत्तो उजाड़ आवा लागो। वनी इयां इयां कर री ही, दिने ही घूघा बोल रिया हा। कठीने फेकड्‌यां फ्यां फ्यां कर री ही, तो कठीने ही जरखडडा खोडी चाल शूं चालरिया हा, कठीने ही रींछड़ा रूंगच्या हालता थका भागता हा, कठीने म्हो म्होटा एकल शूर धरती खोदरिया हा, कठीने हां ना'र डकररिया हा, तो कठीने ही शंूंडारो ईडोणी वणाय ने मदा हाथी रट्टकां लैरिया हा। अश्या घोर वन में यूं भयंकर जनावरां ने छेटी नजीक देख दूसोर बालक व्हें'तो डिया ऊंचा चड़ जावै, पण अणां दोहीं भायां ने तो बड़ो आनन्द आयो, ने वाड़ी रा फूलां ने देख ज्यूं वणांने देखता हा, ने दोई भाई वाताँ करता के, ओहो या जगा तो आपणे जाण में ही नो ही कणी शिकारी भी अठारी कधी भाल नी दीधी। ई जानवर तो रैत ने घमओ दुख देता व्हे'गा। अठे तो लोग वशे तो दरती ने पाणी भी चोखो दीखे है। की कारण है, ज्या या अशी जगां यूं उजाड़ पड़ है।

जदी विश्वामित्रजी कियो के लाला अठे एक बलाय रेवे है। पेल्यां तो अठे नराई गाम वशता है, पण वा कतराक ने तो खायगी ने कतरा ही वणी रा भय शूं भाग ने उजड़ व्हे' गिया। अबे तो अठी ने कोई गेलार्थूं भी नी निकले, ने कोई भूल्यो भटक्यो आप जाय तो वा दीने जीवतो नी छोड़े। जी सूं अबे तो अणी गेला ने सब बलाय रो मूंडो हीज केवा लाग गिया है, ने अणीज वास्ते आज तक कणी भी थांने अठारी भाल नी दीधी। पण आज म्हूं थांने जाण वीण ने वणी बलाय रा मूंडा कतानी अणी वास्ते लायो हूं, के संसार अणी रा मूंडा में शूं बच जावे, ने यो गेला रो फेर मिट ने लोग शूधे गेले चालवा लाग जावे। अबे थांे धनुष चढ़ाय सावधान व्हे'जाणो चावे। क्यूंक वा कठाक शूं अणी गेलारी ओशान राख री'व्हे'गा, ने आपने देख्या के आई के आई है, या शुण ने तो दोई भाई घणा राजी व्हिया। पेली तो दोई भायं रो विचार हो के मुनिराज री आज्ञा व्हे' जाय, तो म्होटा ना'र नरी तो शिकार ही कर लेवां. पण बलाय री बात शुण ने तो विचारी के अणा जानवरां ने तो अयोध्या रा हरकणी सरदारन े के दांगां सो मार न्हाखगा। पण अनरथ रो मूल या बलाय आय जाय, तो गुरुजी री अतरीक चाकरी तो सध जावे, ने लोगां रो खटको भी मिट जावे।

छोटा कुँवर तो वणी बलाय ने देखवा ने घणा हीज उतावला व्हे' यिा। घड़ी घड़ी रा गुरीजने अरज करवा लागा, के वा आवेगा, कई ? वा सूती तो नी रे' जावेगा ? वणी ने कूंकर खबर पड़ेगा के मनख आया है। यूँ छोटा कुंँवर पूछात ही हा के अतराक में एक जोर री कलकी व्ही ने विश्वामित्री कियो के चतो, वा आई। अतराक में एक मगरा रा टूक ऊपर शं जाणे शांवली पांख समेट ने पड़े, ज्यूं उतरती थकी नजर आई, ने वा नजीक आय ने तीन जणा ने देख ने खड़ खड़ हंसबा लागी, के जाणे जात तो खूब आठी गोठ व्हें जायगा। पण वींने देख ने तो छोटा कुंवर रे तो चूँक बैठगी। क्यूंके रीछड़ा री खाल रो तो वणी काछकड़ो बाध राख्यो हो। मनखां री खोपड़ियां री काना में टोकर्यां लटकाय राखी ही। काजल पोत्यां व्हेट जश्यो रंग हो। गाडा रा पेड़ा सरीखी आखां फिर री ही। ताड़ रा रूंखड़ा सरीखी लंबी ही, ने माथा रा लटूर्या खजूर रा फणंगा री तांई विखर रिया हा, ने हाड़ का रा गेा पेर राख्या हा, ने चंदन री नांी डोल रे लोही चोपड़ राख्यो हो, ने ऊंडड़ा ज्यूं तापड़ री ही, जीशूं बोबा छाती पे उछल उछल ने पकटाय रिा हा। यूं वेडा रीनांई वींने कूदत देखने राम भवगान भी मुलक रिा हा। पण विश्वामित्रजी बड़ी ओशान शूं देखा रिया हा, के यां बालकां ले लगाय नी पाड़े। पण बालकां रे तो आज यो नवो ही तमाशो नजर आयो हो, सो हंस रिया हा।

जदी विश्वामित्रजी कियो के बेटा राम, अणी री नेरपाई नी राखणी चावे। या बड़ी जोरावर है, सैंकड़ा मनखां ने बालबच्चां सेती खायगी है। बड़ा बडड़ा शूरमा ्‌णी री काण माने है। पण ापां तो तीन हां नेया अकेली है, जणी शूं थूं भी ेकलो हीज अणी शूं लड़। क्यूंक धरम युद्ध ररी या हीज रीत है।

यूं गुरी री आज्ञा सुण, बड़ी भुजा और चौड़ी छाती वाला, कमल शरीखा नेत्र वाला, ने ऊंची ललाट वाला शांवला राम आगे पधार ने रांड ने चड़पाई। पण शैल में माने जसी तो वा भी कठ ही, दांत्यां देवा लागी, न कणी वगती मनकी ज्यूं बोले तो कमी वगत घूघा ज्यूं राग्यां करे, ने कणीक वगत ना'र ज्यूं गरजवा लागे।
दूसरा तो बापड़ा ईंरा, अश्या छने देखने ही छाती फाट ने मर जाता हा। पण आज तो काम सांचा क्षतिर्यां शुं पड्‌यो है, सो सारां रो ही बदलो चुकाय लेगा। राम भगवान हुमक कीधो, के थूं यूं क्यूं करे है। म्हेंतो गेले गेले चाल रिया हां। जदी म्हार ये कूं कालीृपीली क्यूं व्हे'री है। म्हां थार ोकई बिगाड्‌यो है। राम भगवान जाणता हा, के जोरवार है, तो भी है लुगाई। ्‌णी शूं नी लड़णो पड़े तो आछो ने या यूं मसझ जावे तो ठीक है। पर वातो जाणगी के डरपे है, जीशूं ललकष्य लेवे है। जदी तो वा हातां पगां ने उलाकती थकी बोली, के खावूंगा ! खावूंगा ! नी छोडू ! एक ने भी नी छोडूं। यूं बोलती थकी ने रलसक रलक जीभ काडती थकी, ओध्या रा पाटवी कुंवर पे रपटी। जदी तो राम भगवान भी एक भाट ले ने ओधीरप शूं वणी रा करम पे बायो, ने वो वणीरा करम पे जाय लागो. अणीरी झपट शूं वा समझ भी के ई अश्या-वश्या मनख नी है, जी सूं अबे तो बार वचाय ने लड़वा लागी। कणी वगत तो छुप जावे, कणी वगत पाछै शूं गरणेंटो खाय ने अचाणचूक री आय पड़े ने कणी वगत भाटा, ने रूखड़ां ने भाला वावे, ने धूलो उड़ाय, वणी मे बे'ने नजीक आय ने वार करे. राम भगवान भी वणी रा वार बचया बचय दौड़ दौड़ ने भंडूयाव गंड़कडी ने ताड़े ज्यूं ताड़ रिया हा।

यूं नरी देर व्हे'गई। जदी विश्वामित्रजी कियो के बापू अणी रांड री दया मती देखो, या जीवेगा जतरे लोगां ने दुख हीज देवेगा। थाँने पिता रो हुकम है, के मिनि रो कियो मानजो, सो अबे म्हारी केण है, के ेक ही दाण में ईने मार न्हाखो। देखां थाँरो तीर कश्योक ूधो लागै है ? थाती रे  लागणो चाबे। जदी राम भगवान धीरेक शुं लुगाई है, यूं के तीर थोड़ोक हीज खेंच ने वायो। पण वणा ंहाथां रो तीर खाली नी जावतो हो। जठे नजर पड़ती बठे ही मन जावतो ने जठे मन जावतो वठे ही तीर जावतो हो। वणांरो वो धीरेकरो ही बाण वणीरी गाडी छीतने फाड़ पेली कानी जातो पड्‌यो। राम भगवान जाणीने थोड़ीक लाग जायगा तो या डरप ने भाग जायगा। पण वा तो नी भागी ने वीं रो जीव भगा गियो। यूं वणी ने मरी देखने दयाल राम ने दया आयगी, पण विश्वामित्रजी तो घमआराजी व्हिया, ने कियो के आज संसार का दुख मिटवारो आरम्भ व्हे'गियो है।

छोटा भाी अरज कीधी के दादाजी बलाय बलाय शुणता हा पण वणीरी शिकार तो आज व्ही है। अबे चोरा-छाबरा राजी राजी रमे-खेलेगा ने आपने आशीस देवेगा। वणाँरा माँ-बाप केवेगा के थारंी अलाय बलाय तो बड़ा बापजी मिटाय दीधी अबे कोई डरपो मती। पछे मुनिराज कियो के ईंरो ताड़का नाम है, ने आपणी मंडी मे उत्पात करे, वणी मारीच नाम रा रागश री या मां है। आज चोर रे पे'ली चोर री मां मरी। यूं वातां करता करता मुनि पधार रिया हा, वठे गेला में एक शुवावणी नदी आई। वठे मुनिराज दोही भायां ने तरे तरे रा आवध शिखाया, ने एक विद्या अशी शिकाई के जीशूं भूख तरश नी लागे ने देल में बल वधे। यूं तो आवध वाववणो नराई जाणता हा। पण अणां विश्वामित्रीज ज्यूं कोई नी जाणतो हो, ने अणाँ खेवट शूं जा विद्या शीखी ही, वा आज अणां दो ही भायां ने जोगा जाण' ने शिखाय दीधी। अब ेआगे पधारतां पधारातां एक शुवावणी जग नजर आई। वणी ने देख, दोही भायां अरज कीधी, के ई रूखड़ा ने या रणियावली जगा देख ने तो ईने छोड़वारो मन नी करे। जदी मुनि कियो के आपांरी मंडी अणीज जगा है। अठे हीज मारीच, ने सुबाह नाम रा रागश आय म्हनाने दुख देवे है।

जतराक में दो मुनि रा बालक फूल तोड़ रिया हा। वणां छेटी शूं मुनि ने आवता देख, दौड़ने मंडी में खबर दीधी के गुरुजी पाछ ापधार गिया है, ने दोबालक धनुषष बाण लियां साथे है। या शुण मंडी रा साधु घमआ राजी व्हिया, के आज तो राजा दशरथ का कुंवर आपणे पामणा व्हिया है। कतराही तो फल-फूल, जल-झारी ले'ने शामा दोड़ने गिया। कतराही मंडी में बुहारी निकालवा लागा, ने कोई जल भर लाया, तो कमी शालरी बिछाय दीधी, कणी कियो राजा रा कुँवर है, अणाशूं कई राजी व्हे'गा, कण ीकियो बी तो भाव रा भूखा है। अतराक में दोही भायां सेती मुनि पधार गिया। अब े तो छेटी छेटी रा बालक, बूढ़ा लुगायां भगवान रा दर्शण करवा आवा लागा। कोई तो राम ने दुखभंजण के तो हो, कोई धर्ममरूत के'तो हो और विश्वामित्रजी री मंडी रे रात दन मेलो मंड्यो रेतो हो, या बात रागशां रेकाने भी जाय पड़ी।

जदी तो रागश सारा भेला मिल ने शल्ला कीधी के राजा तो आपां ने मा ा चावे, ने आपणा हुकम में सारां ने रे'णो चावे ने नी माने तो मार काट ने सूधा कर देणा, ने वठे लुगायां भी भेली व्हे'ती केवे है, सो आपी मुरजी व्हे'गा जणी ने पकड़़ लावांगा।

विशव्‌ामित्रीज वणा रा छल कपटां ने समझता हा, सो  दोही भायां ने समझाय दीधा के अशी वगत पे वी अचाणचूकरा आय पड़ै है, सो सावधना रे'णो चावे। वठे दोही भाई फेरी दे'ने रखवाली राखता हा, के कमई नेही कोई पापी दुष्टी दुख नी दे देये। एक दाण मुनि तो नाम-ठाम ले रिया हा। कतराही तो स्वाहा स्वाहा कर होम कर रिया हा, कतराही सांपड़ रिया हा, कतराई गौमुखी मे ं हात घाल माला फेर रिया हा, कतराई सूरजनारायण कानी हात ऊँचा कर कर अरध दे रिया हा, कतराई आलमती पालगती बाँध खोला में होत मेल नकारी अणी पे आंख ठेराय ने जाणे चतराम रा व्हे' जील री शुध बुध भूल ने परामात्मा रो ध्यान दर रिया हा। अश्याक में एका एक छोरा-छाबरा, ने लोग-लुगायां रो हाको व्हियो के कोई दौडड़ ज्यो रे कोई दौड़ ज्यो! हे दुखभंजन राम म्हांने ई रागश मारे है। रघुवंशियां री भी काण लोपै है। राम भघवान रो पतां गरीब री पुकार खमणीनी आवती ही। झट छोटा भाई ने हुकम कीधो। भाई लक्ष्मण झट जायने बापड़ा दुखियने बचायव। म्हने अशो दीखे है, केअणां टोल्यां बणाी है सो आपां दोयां  ने ही अठाशुं छेटी करदूसरी टोली शूं अणा साधूवां पै धाड़ो न्हाखेगा, ने मुख्या व्हेगा जी अठे हीज आवेगा। क्यूं के वी विश्वामित्रजी ने जाणए है। छोरा-छाबरां पे टणका धाड़ो नी न्हाखे है। जदी तो लक्ष्मण जी जोरशुं दोड़ ने यु हुकम करता थका वठी ने पधार गिया, के कोई डरयो मती यो म्हूं आय गियो हूं, ने अठी ने म्होट म्होटा रागशां झाड़ी में शूं डोक्या कर ने देख्य ाके एक शांवलो सरदार, लंबी भुजा ने चौड़ी छाती रो हाथ में नुष बाण लेने फेरो दे रियो है। जदी तो वमां कियो एक साथे अणी पे टूट पड़ो, देखां म्हारा नाो'रां। ईं ने जीवतो छोड़ मती। वूं के' ने मार मार करता सारा ही अकेला श्रीरामचन्द्र पे टूट पड्‌या। पण राम तो परसो ले ने कदका ही वाट हीज देखता हा, सो सारा ने साथे ही जीमाय दीधा ने लोग 'वाह, वाह,' करवा लाग गिया। अतराक में साधु भी डंडा, लोठ्या, चीमट्या फटकतार राम भगवान री कानी आय गिया। पम विश्वामित्रजी सारां ने हीकियो, के दखे,ो म्हारा राम रो तमाशो तो देखो। राम तो अणा बच्चे आठ गुण रागश आवे तो भी गनारे जश्या नी है। ई बापड़ा माका तो कई, पण लंका रा ठाकर ने भीयो ही ज पछाड़ेगा। अबके फेर रागशां राम पे बड़ी रीश करने हमलो कीधो पण राम भी काचा पोचा गुरु रा चेला नो हा। शैल में वर्णां ने मार ने विछाय दीधा। वणां में मारीच ने, सुबाहू नाम रा दो रागश मुखिया हा, सो सुबाह ूरे तो अग्नि बाण री दे ने राखीड़ो कर दीधो, ने मारीच रे तो ताड़की री याद आयगी तो एक म्होट तीर री दीध ोसो वो समुद्र रे पेल तीर जातो पड्‌यो। पछे दूजा तो माझी मर्यो ने धाड़ भागी, यू राम भगवान वमआ ने शैल में पूरा कर दौड़ने छोड़ा भाई री कानी पधार्या। पण छोटा भाई भी ओछा नै ही। आगे देखे तो रागसां री फौज तो विछी पड़ी ही, ने लोग लुगायां राणी सुमित्रा, ने राणी कौशसल्या री कूंख री बलिहारियां ले'ले' ने ने वाहवाही कर रिया हा। यूं रागशां ने मारो दही भाई मंडी पे पधारया।

जदी गुरुजी दोही भायां ने नखे बुलाय कांधा थेपड़या ने कियो के वाह ! वाह!! अठारा तो कांटा मिटाया, यूं ही सदा ही थांई जीत व्हियां करो। यूं अतरो म्होटो काम कर ने भी दोही भायां ने नाम घमंड नी आयो, सामी आपणी वाहवाही शुण ने लाज आवती ही। अबे तो वठे सारा ही सुख चैन शूं रेवा लागा।

एक दाण वातोबवात राजा जनक री वात चालगी' के आजा रा वगत में तो मिथिला रा राजा नजक क रे सरीखो ज्ञानीव्यानी दूसरो नी व्हे'गा। बड़ा बड़ा रिशि मुनि वणी राजा नखे ज्ञान-ध्यान शीखवा ने जायां करे है। या शुण राम भगवान ने राजा नजक शूं मिलवा री छांपर लागगी, ने घड़ी-घड़ी रा विश्वामित्रजी ने पूछवा लागा के वमआं राजा री नगरी मिथिला अठा शूं कतरीक छेटी है। आपरे तो वमआ ंराजा शूं जाण पिछाण व्हे'गा ? जतराक में कणी कियो के आज-काल तो राजा जनक रो बड़ी नगरी में बड़ो भारी मेलो भराय रियो है। वणांरे बड़ी बाई सीता रो व्याव है। जणी सूं देश देश रा राजा भले व्हे' रिया हा। अतराक में एक साधु कियो के अरे हां राजा जनक रा छोटा भा अठे आया है। वणआ आप रे ओध्या पधारवारी सुंणने एक तो कंकुपत्री दीधी, ने एक कागद, दूसरो मलिखने देगिया, ने केगिया के मुनिराज रे पाछा पधारतांई, ई कागद नजर कर दीजो, सो म्हूं तो धामा धूम में भूल गियो सो अबार वातोवात याद आयगी। यूं के ने वणी दोही कागद मुनिराज रे नजर कर दीधा।

जदी विश्वामित्रजी कियो देखां छोटां बापू वांचो अमी में कई लिख्यो है ? जबी छोटा कुंवर दोही कागद वांच रिषि ने अरज कीधी। एक में तो लिख्यो ही के आपरी वड़ी बाई सीता रो ब्याव है, सो शुब नजर कर जरूर पधारे ने नीचे सीरध्वज जनक रा दसखत हा। दूसरा में लिख्यो के आपरे सेबक कुशध्वज कागद ले' न्ने अठे हाजर व्हियो, पण अठे शुणी के आपोर पधारवी अयोध्राय रा पटवी कुँवर ने लावा ओध्या व्हियो है, सो ओध्या नाथ अवश करन ाप का हुकम शू ंापरे साथ बडा कुंवर ने सीख बगस देवेगा, सो करपा कर वणां कुंवर ने साथे लेता पधारे। अबार व्याव रा कामरी आगत व्हेवा शूं पाछो जावूं हूं, सी माफ करावे, नेजरुर पधारे। अयोध्या तो कंकुपत्री लपुगाई है हीज। नीचे दसखत् कुशध्वज रा हा। पछे छोटा कुंवर पूछी क्यूं अन्नदाता जान कठारी आवेगा ? लगन कमई मिती रा है। अश्या ज्ञानी राजा रे तो जमाी भी ज्ञानीज व्हे'गा, ने अणी में बड़ी बाई लिख्यो है सो वणआंरे छोटी पण व्हे'गा।

जदी विश्वामित्रजी कियो के हां बापू चार बायां है, वणां मे ंसीत ने उरमिला तो जनकजी रे है, ने माडंवी ने श्रुतिकीर्ती वणांरा छोटा भाई अठे कागद लेनये आपां ने बुलावा आया वणां रे है। चार ही घमी श्याणी, समझणी, रूपाली ने धरम वाली है।
छोटा कुंवर अरज कीधी क्युनी व्हे' घराणओ तो जनकीजो रो है।

फेर रिशिराज कियो के लगन री ने जानरी तो अणी में नी लिखी क्यंके राजा रे एक पुराणी महादेवजी रो धनुष है। वणी ने तोड़डेगा जीने की हसीता ने परमाय देवाग, ने अणीज शूं देश वेध रा राज भेला व्हिया है। सो थाणी मुरजी व्हे' तो आपां भी चालाँ। तमाशो देखागाँ देखाँ धनुश कूँण तोड़े है। या शुभ छोटा कुँवर अरज कीधी, धनुष तोड़बा वालो आपप शूं कश्यो छानो व्हेगा। या शुण रिषि राज मुलक ने कियो के थाँशू भी छानो थोड़ो ही व्हे'गा। वो तो आखा संसार मंे ठावो व्हे'गा। पण धनुष आपणे गियां केड़े टूटेगा। यूं के' ने थोडा साधू ने साथे ले' ने मुनिराज मिथिला नाम री जनक री नगरी कानी पधार्या। गेला में गौतम नाम रा रिषी री वऊ ही। वणी ने पति रा अपमन रो अणजाम में पाप लाग गियो हो। वा राम रा दर्शण सूं तरगी ने तरे क्यूं नीवणीरा गुण गाय करोड़ो पापी अबार भी तर रिया है। जदी वणी तो शागे वणी रूप रा दर्शम कर लीधा हा। अबे दोही भायां सेतो विशव्‌ामित्रजी जनकपुर कने पधार एक शुबावाणी वाड़ी ही वठे ही दुपेरी कीधी। वमी वगत एक हल्कारे दौड़ ने खबर दीखी के विश्वामित्र रिषिराज पधार्या है ने वणांरे साथे ओध्या रा पाटवी कुंवर ने एक छोटा कुंवर भी है, ने वणां शुवावणी वाड़ी में  दुपेरी कीधी है।

जदी तो राजी ब्हे'ने राजा मुनिराज ने लावा सामाई पधारया। राजा नेपधारता देख एक साधू विश्वामित्रजी ने अरज कीधी, राजा जनक अठे पधार रिया है। या शुण दोही भायं ने मुनि सामा मेलया, दोही भायं ने देख राजा कियो के क्यूं तकलीफ क्यूं कराई। यूं के' पेली तो बाथ  शूं बाथ भर बड़ा राजकुंवर शूं मिल्या, ने पछे छोटा शूं मिलने कियो, आज मिथिलापूरी आपरे पधारवा शूं सनाथ व्ही। म्हांरा आज आछा भाग है, के क्षत्रियां रा सूरज रा कुंवर अठे पधार दर्शण बगश्या। पण पे'ली खबर ही नी भेजाई, ने हूं की म्हे'लां में पधारवो व्हे' जातो। अठे सब आपरो हीज है, म्हेतो आपार हीज रजपूत हां। यूं राजा बड़ा मोह शूं अरज कीधी।
जदी राम भगवान फरमाई, के आप सरीखा आत्मज्ञानी राजा ण ीजगा बिराजे, वणी नगरी से सनाथ व्हेवा में कंई कसर है। नराई दिना शुं गुरु राज रा मुख शूं आपरो सुजश सुणत हा, सो ाज दर्शण कर म्हें कृतार्थ व्हिया। अबार मुनिराज आपरे नखे पधारता हीज हा, ने घर वे वठे पे'ली खबर देववावीर की जरुरीत है। पछ ैराम भगवान अर्ज कीधी, पधारजे, पण राजा आगे नी व्हिया, ने पाछ ीघवान ने अर्ज कीधी आप पधारे। पण राम भगवान भी आगे नी व्हिया, पछे छोटा बावजीरामज ने अर्ज कीधी के आप पधारे। जदी पाछी छोटा कुंवरजी बावजी अर्ज कीधी भयां या भी कधी व्हीं'जे हैं, जदी राम भगवान अर्ज कीधी के अणी गेलारा आप वाकब है, जतरा म्हें तो नी हां, ने दाना-ज्ञानियां ने आगे रे'ने बालकां ने गेलो वतावमओ चावे। जदी राजा अर्ज करी वशिष्ठजी रा शिष्य ने आगे रे'ने गेलो वतावे अश्यो आज संसार में कुण है, ने गेला तो सारा ही आप शूं हीज है। यू्‌ं के' महाराजकुंवररे भुजारे हाथ राख वणी बारणा मे आगे पधाराय ने हूं ही छोटा ने भी पधारय, पछे राजा भी पधारया। पछै मुनिराज रा दर्शन कर, धन भाग, धन भाग, आज तो नराई दिना शूं दर्शन ह्विया। आज तो व्याज सेती मूल मिल गियो। यूं के चरमआं के धोक दीधी। मुनिराज भी राजा ने ऊंचाय छाती रे लगाय खुशी पूछी, ने कियो के म्हें तो बारला साधु हां, ने मांयनुं तो साधु आप हीज आप रा मिलवा शुं म्‌ांने भी नवो नोव उपदेश मिले है। राजा कियो ई सब आप की कृपादृ,्‌टि री वातां है। यूं वातां कर सारा ही विराज गिया।
जदी विश्वामित्रजी सब वाताँ राम भगवान री राजा ने कही। जदी राजा कियो के ब्रह्म में तो गुण अवगुण सारा ही रे' है, ने अणा में गुण ही गुण है जीं शूं अणा ने सगुण ब्रह्म के'ण चावे। जदी मुनि कोय सांची वात है। अणा ने हाल तलक कणी नी ओलख्या है। के' कतो राज गुरु वशिष्ठजी, ने'के आप हीज अणाँ ने विछाण्या है। जदी कई हीज चाय करने ठावा नी' व्हे' जदी दूसरो अणाँने ओलख ही कूंकर शके।
यूं राजा ने मुनिराज री वातां रो लोग मतलब नी समझ शक्या। पछे राजा मनवार कर महे'लां रा वाग में सारां ने वराजाय, ने मूंडा आगे चकारी ौर काम काज रे वासते कामदारां ने और चाकर नोकरांने मेल शीक मांग मेह'ला में पधार गिया।

विश्वामित्रजी पूछी, क्यूं छोटा बापू मिथिलापूरी सुहाई के नी ? ने राजा नजक कश्याक दीख्या ! जद छोटा कुंवर अर्ज कीधी या नगरी तो घमी आछी लागी, अठारो तो रूंखडो ही रणियावणो लागै है, ने राजा शूं तो जाणे वातां कर्या ही करां, यूं मन करे है। सांच ही सुणता जश्या ही दीख्या। राजा तो की पण अठारो तो हर कोई बड़ो श्याणो, समझणो दीखे है। क्यूं अन्नदाता ! अणांरे सरखा हीज अणा रे साथ ेदूसरा सरदार कूण हा जी राजा नखे बैठा हा, ने वणांरे नखे म्हांरी दांीरा एक शुवावणा सरदार कूण हा ? जदी मुनरिजा कियो वी राजा नखे बैठा हा, जी राजा रा छोटा भाी कुशध्वज हा। अणांरी नगरी रो नाम संकासा है, अबरा ब्याव मे अठै आया है, ने बी थांरी दांईरा राजा रा पटावी कुंवर है, अणाररो नाम लक्ष्मीनिधि हैं। थां अणांशूं बतां नी कीधी। चालो अबार तो अणांरे भी कामरी ागत ही, फेर आछी तरे शूं सरीखा सरीखा बातां करजो। देखोनी बालक है, तो भी अणांर ाचे'रा पे कतरो धीमापणो है। यूं वातां करतां करतां नामठाम री वगत व्हे' गई, दोही भाई ने मुनि सांझरा नामठाम लेवाने विराज गिया। नामठाम लीधां केड़े दोही भाई पधारने मुनि रे पगां लागा ने मुनि आशीश दीधी। पछे ज्ञान-द्.यान रौ वातां करतां करतां नींद री वगत व्हेवा पे मुनि रे पोढ्यां पछे दोही भाी पोढ्या, ने मुनि रे अपोड़ी व्हेवा व्हेवा पे'ली दीही भाी अपोड़ी व्हे'वा पे'ली दोही भाई अपोड़ी व्हे'ने मुनिरे सब जल जारी री, ने नामठाम री सब त्यारी त्यार राखी पछे मुनि रो हुकम पाय दोही भाई भी नामठाम लेवा ने बणी दाग में पधार्या। यूं पाछली रातरा जाग प्रभात रा नित्तनेम कर मुनि नखे दोही भाई पधार रने बिराज्या होय हा। अतराक में राजा जनक रा ठावा प्रदान सुदामाजी वठे आ.ने अर्ज कीधी, के आज धनुष यज्ञ रो दिन है, सो देश परदेश रा लोग लुगाई, ने राजा देखवाने भेला व्हे'रिया है। दो घड़ी केडे राजा जनक धनुष तोड़वारी आज्ञा करेला, सो अर्ज कराी है, के दोई राजकुंवरां सेती आप भी झट पधारे। मुनिराज कियो चालो बापू, धनुष भी देखलां, ने राजा ने भी देख लां। यूं के' ने प्रधानजी रे साथे साथे खिड़की रे गेले व्हे'ने धनुष पड्‌योहो वणी चौक में पधार गिया। वठे तो मनखांरी भीड़ पड़ री'ही पण राजा जनक रो अश्यो आछो बन्दोवस्त हो के कणीने ही कई अबकाई नी ही। जथा जोग सारा ही देख सकता हा ए कानी तो रावलो हो, वठीने शुं राष्या देखतो ही। ने जनानो डोढी रे पास ही चांदण्यां ऊपर शं दूजी लुगायां देखती ही। ई जनानी मे'ल लंकाउ पागती हा ने घराउ कानीरी चांदमओ पे सेररा, ने परदेशी लोग देख रिया ङा। ऊगमणी कानी री म्होटी चांदणी पे देश देशांरा नाम नामी राजा सिंहासणां पे तरे' तरे' रा वणाव करकर ने बैठा आथमणी पागती चौक में जावा रो बड़ो बारमो हो। वणी दरावजा री चांदमओ पे साधू ब्राह्मण बैठा हा, और राजा रा भरोसा रा सरदार बैटा हा। राजारो शलेखानों भी वठीने हीज ही और फौज रा मनख पण आवध लोधां थका बठीने ऊभाहा। व्चेच बड़ो भारी एक चौक हो, ने चौकरे वच्चे एक म्होटो चौंतरो हो। वणी चौंतरा पे ेक डाकी अजगर सरीखो धनुष पड्यो हो। वो महादेवजी रो दीधो थकी पुराणओ धनुष हो। वणी री, वठे पूजन व्हियां करती ही कंकूरी टील्यां लाग री ही लच्छा नारेल ने फूल पान चढाय राह्खा हा। मनख वणी ने देख देखने वातां कर रिया हा के कणी री मां सेर सूंठ खादी है, जो ईने तोड़े। अतराक में एक दाना साधू रे लारे दो राज कुंवर लोगाँरे नजर आया। आगे आगे तो ेक मुनिराज धार रिया है, पाछे पाछै एक शांवला शुवावणा राजा रा कुंवर पधार रिया है। जणांरी चोड़ी छाती ने हाथ ीरी सूंड जशी बड़ी बड़ी भुजा, कमल री पांकढ़ी जश्या नेत्र, ऊंचो ललाट, दमक दमक कर रीहो है, और धीमी धीमी चाल शूं पधार रिया है। वणारी चालढाल शुं ही लोग जाण गिया, के ी कोई अलौकिक सरार है। बिना बणाव वणांरा तेज रे आगे सारा ही राजां रो तेज फीको दीखतो हो, ने वस्या हीज गोरा रंगरा एक कुंवर वमांरे पाछै पाछे पधार रिया हा वी धनुष री और वठारा बन्दोवस्त री सब वातां प्रधानजी ने और मुनि ने पूछ बूछ वाकब व्हे' रिया हा। वणां ने  देख लोग माहोमाह वातां करवा लागा। ई कूण है ? ई कुण है ? कणी कियो ई मुनि रा बालक है, कणी कियो नी राजा रा कुँवर है। जदीज धनुष बाण हाथां में है। कमी कियो दोई चाँद सूरज है, सो मुनि रे वेश में व्हे गिया देीखे है। कणी कियो ई तोपरमेशर हीज दीखे है, अणा शूं वत्तो रुपालो तो परमेशर भी कई व्हे शके। अतराक में राजा जनक भी सारमा पधार गिया ने मुनि रे पगां लाग नाल में व्हे'ने दोही भायां सेती मुनिराज ने एक आछा सिंहासण पे वराजाय दीधा। जदी दूजा राजा केवा लाग के देखो, राजा जनक आपांरो, बुलाय ने अपमान कर रिया है। यूं के'ने वणा प्रधानजी ने हेलो पाड़ ने कियो के कई थाणां लजोीग जनक ने यार भी खरर नी है, के अठेकूंण कूंण बैठा है। म्हें बड़ा बड़ा जोधा ने गुणी राजा हां जणांरे सामा तो नी आया ने ्‌णा कालरा दन रा छोरा रे सामा परा गिया। जो थे यूं केवो के ई सूर्यवंशी है, तो म्हें भी सूर्यवंशी हो। ई अवधदेश का कुंवर है तो म्हे भी मगधदेश रा राजा हाँ। म्हांणां सू ंई कणी वात में वत्ता है। जदी प्रधानजी कियो के या वत्ताई ओछाी  तो यो सामो अजगर शरीखो धनुष पड्‌यो है सो आज हेलो पाड़ने के'देवेगा ने मुनिराज रो आदर करणों तो रजपूत जात री धर्म है। वणां में जो धर्मी राजा वणां कियो के प्रधानजी सांची केवे है। कोरी वातां शू हीज बड़ा नी वणाय है। या तो राजा जनक रे अठे पे'ली ब्राह्मण री सभा व्ही' ही ज्यूं ही अबार रजपूतां रीा व्ही है। देखां आज याज्ञवल्क्य ज्यूं आपां में कूंण निकले है। अतराक में जनकजी सारा राजने केवायो के म्हारी कन्या रा रुपगुणी री बड़ाई शुण शुण नराई सरदारां म्हारे नखाशूं सीता ने मारीग, पण् म्हारो प्रण है, के अणी महादेवजी रा धनुष ने तोड़ेगा वो ही सीता ने परमएगा. अणीज वास्ते आप सब सरदारां ने अर्ज कराई ही ने आप सारा सरदारां जो दि नभेला व्हेवा रो थाप्यो हो वो हीज दिन आज है। अबे या कन्या वरमाला लेने उभी है ने यो धनुष भीआपेर मूंडा आगे पड्‌यो है, सो ईने तोड़वा में आवे जीशूं म्हूँ भी अणी कन्या ने दे देवूं। अतराक में सारा ही देखे तो रावला में शूं गीत गावती गावीत नरीही लुगायाँ निकली वणारे वच्चे एक कन्या हात में वरमाला लीधाँही, वणी कन्या रो अलौकिक रूप देख लोग लुगाई सारा ही देखातही रें गिया। जाणे सारां ने खुली आंख्ही नींद आयगी। थोड़ी देर शूं लोग केवा लागा अणी कन्या रे योग वर तो तीन ही लोक में हेरे तोई नी मिले। कणी कियो क्यूंनी मिले मुनि, नखलो वो शाँवलो कुंवर कणी बात में ओछो है। कई कियो धनुष टूटे जदी है। कणी कियो देखता जावो अलौकिक रूप में गुण भी अलौकिक ही व्हे'गा। कमी कियो या जोड़ी जो नी मिले तो जाणणो के विधाता भी आठ ही आंख्यां शूं आंधो है। दूजा राजा तो वो रूप देखने वेंड़ा व्हे' ज्यूं व्हे' गिया ने "म्हू धनुष तोड़ूगा," "म्हू धनुष तोड़ूगा," करता थका, पीचोपीच पड़ता थका, धवका धूम खाता खाता धनुष नखे जाय पूगा, ने एक धनुष रे हात लगावे जतरे दूजो धक्के देवे, ने वो जतरे तीज ोवणीने धकेल देवे. यूं एक ने एक धकेलवा लागा। जदी राजा नदक सारा ने समझाया ने पाछा बैठायना ने कियो। सारा में नबलो व्हें वो पे'ली धनुष ने ऊंचावे, ने वणीशूं नी ऊठे तो पछे वणीशुं वत्तो व्हे' वो ऊंचावे। यूं एक केडे उठावतजा जावे ने सारां में ही सबलो व्हे' वो सबां केड़े उठावे। यूं शुण एक दूसरा ने नबलो केवा लागा। कोई धनुष उठावा ने जावे ने सारा ही हंसे ने केवे यो नबलो चाल्यो ने सांची ही धनुष नखे तो बड़ा बड़ा सबल भी नबला हीज निकल्या। अबे तो वारां वोरी राजा जाव ने धनुष ने पूरो बल करने हलावारी करे। राता राता मूंडा पड़जावे, रसका करे, सांस भराय जाके पसीना आगे झगावोल व्हे' जावे, पण धनुष तो नाम भी नी हाले। ज्यूं खोड़ीला री वातां शूं सती रो मन नी हाले। बापड़ा राजा तो नीचा माथ कर कर पाछा नबलां री ओल में जाय बैठे। थोड़ी देर पे'ली जी मूंछां पे ताव देताहा, भुज नरखता हा, ने खेंखारा करता हा, वोज धनुष नखे गियां केड़े पाछा गगागौरी गाय वण वण ने बैठता जावता हा। यूं धीरे धीरे नबलां री ओल वधवा लागी. जदी सारा ही आपणो आपणओ जोर जमाय ने थाक गिया, जदी सारा ही राजा केवा लागा के जनक बेटी ने परणावणो ही नी चाबै है। दूज्यूं अश्यो प्रण क्यूं करता। राजा जाणे केयो धनुष टूटेगा ही नी, ने म्हारी बेटी सासेर जावेगा ही नी। कणी कियो, राजा बड़ा ज्ञानी है, यूं जाण भगवान सब कर शके है, सो भगवान हीज ईने तोड़ न्हाखेगा। यूं म्हारा जमाई भगवान ने वणाय लूंगा। कणी कियो कंई भघवान रा बाप शूं भी यो तो नी टूटे ! कणी कियो यं मती केवो, लाई नजक रो मन चूट जावेगा। आपणे तोयूं हीज के'णो के राजाजी री बेटी ने बगवान हीज परणेगा। यूं ज्ञानी राजा जनक री वी मूरख राजा रोलां करवा लागा, ने ताल्या वजाय वजाय अदना मनखां ज्यूं ठीठाडा पाड़वा लागा। यूं छालक्या पणो राजा ने आछी थोड़ी ही लागे। पण वो तो नामरा राजा हा, सांचां राजा तो धीर गम्भीर मुनि नखे विराज्यथका ने सब देख रिया हा। अतराक में प्रधानजी हेलो पाड़ने सारा ही राज ने पूछ्यो के कईअबे कोई राजा बाकी नी रियो। की कणी शूं यो धनुष नी टूटे। जतराक में सारा ही राजा बोल्या, नी टूटे, नी टूटे, कणीशुं भी नी टूटे आपने बेटी नी परणावण ीही तो पेली ही नट जाणओ चावतो। अणी धनुष ने तो अबे भगवान आय ने तोड़ेगा तो टूटेगा, जतरे आपरी कन्या ने कुंवारी राखजो। यूं राजा री वातां शुण ने सारां ने ही पूरी अखाई आई। सांची वात है, बेटी रो कुँवारी रे'णो कीने खटे। अतराक में विश्वामित्र मुनिराज बोल्यो, यू ंसारी ही उदास क्यूं व्हो हो। थै देखो नी ई वीरां रा माथा रा मौड़ दशरथ राजा रा पटावी कुँवर विराज्या है। अणारे मूँडा  आगे यूं घबरावारा री कई वात है। या सुण खोड़़ीला राजा हँसवा लागा के ई देखो साधुजी भगवा ने ठावा कर दीधा। जदीज तो राजा जनक साधुवां री संगत राखे है, के वगत पे भगवान ने लाय ऊभा राखे। कणी कियो अरे। अणी ने तो सारां रे ही पे'ली मेलणो चावे, तो कणी कियो नी भाई ईने सारां रे ही पे'ली मेलता जदी आपांणे तो मन री मन में ही रे' जाती। कणी कियो लो ! राजा ने थोड़ी देर फेर आशा बंध गी। अणी मे ंआपणो कई जावे है। कतरा ही मूंडा रे आड़ा अंगोछा दे देने हंसवा लागा ने केवा लागा, बोलो मती ाज तो व्याव रो दिन है, सो मुनिराजा रे ने जोगीराजा रे खूब भाँगाँ छणी दीखे है। कणी कियो समाधि में ागली पाछली सारी दीखे, पण मूँडा आगली नी दीखे है। यूं घणां ओछला राजा ने रोलां करता देख जनकीज तो कई नी कियो, पण लक्ष्मणजी ने कईक रीश आवा लागी। वर्णारी बड़ी बडी आँखां में राती राती रेखा फेलवा लागी। गोरो चेरो कईक गेरो गुलाबी व्हेगा लागो. भुँवारा थोड़ा थोडा शमटवा लागा ने बार बार वणा छालक्या राजा रे सामा जाणे हाथ्यां रे सामी सोनेरी रो छावो देख ज्यूं उमङ्ग शुं देखवा लागा। यूं देख मुनिराज ाजाणी छोटा बापू रो क्रोध वध जायगा तो धनुष टूटवा पेली ही अणा राजा रा माथ ाटूटच जायगा। यूं विचार मुनिराज राम भगवान ने आज्ञा कीधी, के बड़ा बापू अबे देर मतो करो। अणां दुष्टां री वात रो पड़-उत्तर हात शूं देवो, अर्थात् अणारां घमण्ड ने और सारांरा भे'म ने भी अणी धनुष रे साथ ेही तोड़ नाखो यूं गुरुजी रो हुकम शुण आँपणी वणीज धीमी चाल शूं नाला रा पगत्या उत्तर राम चौक में पधरा गिया ने धनुष रा चौंतरा रा पाँच ही पगत्या चढ़ धनुष नखे जाय ऊभा व्हिया और गुरुजी री कानी देख मनोमन नमस्कार कर झुकने धनुष ने पकड्‌यो ! ने लोग केवा लागा अर ेयो तो हाल्यो, जतरेक देखे तो ऊँवाय लीधो; ऊँवाय लीधो, केवे केवे जतरेक तो चढ़ाय लीधो, ने चढायो केवे जतरेक तो झुकाय दीधो, ने झुकायो केवे जतरेक तो वच में शूँ तोड़ ने धरती पे नाख भी दीधो। जाणए लोगां रा मन ररे हातां ताली देने राम रो काम आगे निकल गियो। जाणे धनुष पे'ली रोही टूटो पड्‌यो हो। धनुष रे टूटतां ही अश्यो जोर रो धड़ाको व्हियो, के सारा ही चमक ने उछल गिया। वा पछे तो कई हो, वाहवा, धन दन व्हेवा लाग गी'। बापड़ा राजा तो भींज्या ऊंदरा ज्यूं व्हे' गिया। डावड्‌यां वनां (वर राजा रा गीत) गावा लागी। नगारखाना-शरणायां वाजवा लागी। वणी बगत जनक राजा रा परोतजी शतानन्दजी जाने कियो सो श्री जनकन्नदिनी साीताजी श्री दशरथ राजकुंवार रे कण्ठ में वरमाला धारण कराय दीधी। श्री राम भगवान पाछा गुरुीज नखे पधार ने विराज गिया। सख्यां, गीत गावती श्रीजानकी जी ने पाछा रावला में पधाराय दीधा। अबे तो आखी मिथिलापुरी में घर घर आनन्द व्हेवा लागो, जाणे सांरा रे ही घरे व्याव मंड्यो है। बेटी रा जनम रो उच्छब, वणीने घर-वर आछो मिले जदी व्हे है, न ेवणी शूं भी वत्तो उच्चोभ वा बेटी सासरा-पीर रो जश करावे जदी व्हे। शांची ही अशी वर जोड़ी तो आज दिन तक कठेईनी मिी व्हेगा। लोग-लुगाई, बालक-बुढा सारा ही अणी जुगल जोड़ी रा वखाम कर रिया हा। अतराकम में तो परशरामजी आय गिया। ई परशरामजी जातरा बामण हा, रीश रो तो जालो हा। रजूपत जात ने तो ई बापरो मारवा वालो गणता हा, ने जमा दिनां में रजूपत भी अश्या ही छत्ती खोवण व्हे गिया हा। रैतरी रखवाली राखमो तो कठे ही रियो, पण पोते ही रैतने लूटता हा, चोरी-जारी-झूंठ ने नशाम में लागा रैता हा। राजा कई रागश व्हे'गिया हा, रैतरी दोरी कमाई ने आपमा बापरी कर बैठा हा। एक दाण ेक राजा अणांरा बाप नखा शूं वणांरे मोहरी गाय मांगी, ने परशरामजी रा बाप नट गिया। तो वणांरो माथो काट ने गाय लेलीधी। जणी दिन शूं ही परशरामजी रजपूत जात ने मारवारी ठाण लीधी ही। केवे के अकबीश दाण वणां रजपूतां ने मार्य पण राजा जनक शरीखा ने दशरथ शरीखा राजा ने ी कई नी केता हा। अणां महादेवजी शूं आवध वावणो शीख्यो हो ने महादेवजी रो इष्ट राखता हा। सो आज महादेवजी रा धनुष ने तोड़वारी शुण एक सांस दोड्या आया ने राजा जनक नखे जाय रीश में आया राजा ने गालां देता थका केवा लागा, के कणी तोड्‌यो म्हारा  गुरुो धनुष कणी तोड्‌यो म्हारा गुरुोर धनुष। यूं राजाने दबावता देख लक्ष्मणजी ने अबखाी ावा लागी। पम ज्ञानी राजा जनक ने नाम रीस नी आई। अतराक में दूजा राजां ने राजी व्हेत ादेख, छोटा  कुंवर रीश री रीश वधवा लागी, ने गुरीजी ने अर्ज कीधी, के ई बामण देवता गेले चालतां ही अणां सूधा राजा जनक ने क्यूं चरड़ रिया है। हुकम व्हे तो म्हूं भी अणांने नमस्कार कर आवूं। विश्वामित्रजी जाणता हा के परशरामजी शूधा बोलेगा नी, ने छोटा बापू ने खटेगा नी। सो दोही भायां ने साथे लेने आपही पधराने परशरामजी शूं बडी धीरप शूं मिल्या, पण परशरामजी ने तो चंडाली छूट री' ही। सो हाका कर करने के' रिया हा, के कणी तोड्यो म्हारा गुरु रो धनुष, कणी तोड़यो म्हारा गुरु रो धनुष। अरे गेल्या जनक, धनुष तोड्या ने थें थारी बेटी रो कई सुहाग चायो। अणी धनुष रो तोड़वावाल रो माथो अबार म्हूं अणी परशा शूं तोड़ नाखूंगा। झट बताव, कूंण है, म्हारा गुरु रो धनुष तोड़वावालो। जदीं तो सारा ही राजा राजी व्हे नने केवा लागा म्हाँ तो पेली ही जाणता हा के देवता ब्राह्मण रो अपराध नी करणो। पण ई रघुवंशी ने निमवंशी तो आज काल घमा ईतर गिया है। सो व्हेतां व्हेतां तो परशरामजी सरीखा शूरमा ब्राह्मण शूं ने महादेवजी जश्या देवता शूं ही नीं चूक्या। जदी अणांने तो ई कधी गनारे ई कही ? ई रजपूतां रा धर्म थोड़ा ही है। लो अबे दो खीर में हात। यूं खोड़ीला राज ने राजी व्हेता देख छोटा कुँवर बडी नरमाई शूं हात जोड़ अर्दी कीधी, के अनर्थ कई व्हियो, सो तो फरमावा में आवे। तोड़वावाल ने ही अखबाई नीं आई, ने धनुष वाला ने ही अबखाई नी आई, पण आपने अतरो कुलपाँतर क्यूं व्हे रियो है। ईी खबर नी पड़ी। भलां, परशरामजी शूं यूं रजपूत रो बालक वात कर लेवे, ने सो भी रोश री वगत में ? अणांरा नाम शूं बड़ा बड़ा शूरा रजपूताँ रा साहस सूख जाता हा। यूं शोर में जामकी री नांई लक्ष्मण जी रा वचन शुण ने परशरामजी जोर जोर शूं धरती पे पग पटकवा लागा। जाणे डील में भाव आयो व्हे ज्यूं। रातीचो आंख्या व्हेगी, ने होठ फड़क, फड़क उछलवा लागा, ने रीश शूं दांता ने पीस ने कियो, अर ेविना श्यानरा छोरा ! कई थारी मौत आयगी है, के शान्तिपात व्हे गियो है सोय ूं म्हां शूं वातां कर रियो है। थूं म्हांने ओलखे के नी म्हारी रीश सेजरो नीं है। रीश में म्हांने ओशा नीं रे है, जदी तो छोटा कुंवर मुलक ने अर्ज कीधी, सांची वात है। शान्तिपात में ने रीश में कीने ही ओशा नीं रे' है। पण ओशान रेणो बड़ाई री वात है। शायद टआपने या भी ओशान नीं व्हेगा के म्हूं कणीशूं वातां कर रियो हूं। परशरामजी तो विनाही वाशदी वलताहा ने फेर लक्ष्मणजी छेड़ दीधा, जदी तो क्रोध कर कड़क ने बोल्या, म्हां शूं ही रोलां ? बापूजी ने पूछ'ने पछे वातां करजो। आज तो राबड़ी रे ही दांत आया दीखे है। खबर है नीं, राजा तो गाडरा है ने म्हूं ना'र हूं। छोटा कुंवर अर्ज कीधी, आप साची फरमावो हो। सांची ही आपने शुध नों रेवे ह। जूद्यूं बामण रा ना'र कुंवर व्हे शके, ने राजा रा गाडरा कुंकर बण शके, पण शुध भूल जावेै जदी यूं नराई आला पाल दीखता व्हेगा। आपने कई नार रा शारा ही शेलाण आपरा डीलपे दीखे, के एक दो हीज दीखे है। म्हने तो आपरा खांधा पे चौड़ जनेव रो डोरो दीख रियो है। आपने कजाणा या कई जणायरी व्हेगा। जदी तो परशामजी केवा लागा, वाह वाह समझ गियो। थांरे मौत साथे नाचवा लाग'गी है। धनुष भी थेहींज तोड्‌यो है ? जदी तो रामभगवान आगे पधार बड़ी नरमाई शूं अर्ज कीधी, यो तो अण समझ चंचल बालक है। आपरो अपराधी तो म्हूं हूं। मुरजी व्हे जो दंड म्हने देवा में आवे। जदी परशरमाम जी किोय धनुष थें तोड्यो है, तो म्हारो मन अणी तोड्यो है। जीशूं थां दोयां ने ही आज जीवता ंनी छोडूंगा। जदी छोटा कुंवर अर्ज कीधी कोई आपरी जनेव तो तोड़ी ही नी है। ई धनुष ने मन तो टूटूं टूटूं कर रिया हा, सो हर कणी रे ही माथे आय गिया। अश्या बोदारी आपने ही अतरो सोच नी करण ो चावे। आपरे तो जनेव साजी रो। जदी तो परशरामजी कटकट्यां पीा, परशो तोक दोई भायं ये दौड़या पण विश्वामित्रजी थामने कियो, आंपा ने यूं क्रोध नी करणो चावे। साधुरो काम तो क्षमा करणओ है, क्रोध तो ओछी जातरो शेलाण है। जदी परशरामजी छोटा कुँवर रे सामा देखने कियो, के समझ्यो के अणी विश्वामित्र शूं वंचरियो है। दूज्यूं आज तो ना'रां री डाढां में आप पड्यो हो। जदी छोटा कुंवर फोराक मुलक ने कियो के पाछी ओशान आपने सदा ही कतरी देर शूं आयां करे है, के आज हीज आय गी'। जदी तो रो राम भगवान छोटा भाई ने धुरकाय, ने हुकम कीधो आपांने यूं नी के'णो चावे, ने पछे परशरामजी ने बड़ी नरमाई शूं हाथ जोडड माथो नमाय अरज कीधी, आप बड़ा हो,बालकां रा कोई अपराध व्हे तो माफ कर्यो चावे और आपरो तो काम ही यो है, के म्हे ं गेलो छोड़दां, तो ज्यूं व्हे ज्यूं, पाछा म्हंने गेले घालो, ने म्हांने भी आप यो हीज काम भलायो है, के गोल छोड़ने चाले जीने गेले कर देणो. शायद आपरा हाथ में धनुष बाण, परशोंने जनेव काधां पे देखने अणी बालक बिना विचार्यां ही कई अरज कीधी वे तो क्षमा करजे। राम भगवान रा वचन शुणतां ही परशरामजी रा हीया की आंखा खुलगी ने वमांकियो कई आप वी रजूपत हो के जी आपतो गेलो नी छोड़े ने दूजांन ने गेले चलावे। जदी तो देखांयो म्हारे नखे विष्णु रो धनुष है ईने चढ़ाय दो। क्यूं के यो अश्या रजपूत बिना नी चढ शके है। यूं केने परशरामजी वणां कने विष्णु भगवान रो धनुष हो, सो राम भगवान ने दीधो। वो तो राम भगवान रो हाथ लागतां ही शैल में ही चढ गियो. जदी तो परशरामजी राम भगवान रा नराई वखाण कीधा ने कियो के अबे म्हारे ब्रामण रे आवध ऊँचाय ने कई करणो है। दुष्टांने दंड आप घणो ही देवोगा। धन दन आजरो दिन है, के पाछा सांचा क्षत्रियां रा दर्शण आज व्हिया है। धर्मरा रखवाला आप दोई भायां ने अमजाण में जो कई केवाय गिो, वो म्हारो कसूर माफ करो, ने आपरो काम अबे आप सम्भालो। यूं केने वणारां आवध भी राम भगवान ने शूंप ने परशरामजी महेन्द्र नाम रा पर्वत ऊपरे तपस्या करवाने पधार गिया। यूं ब्राह्मण देवता ने कूंच करता देख खोड़ीलां राजा रा भी देवता कूंच कर गिा, जाणे मूंडा पे दोही आड़ी चेंठगी व्हे ज्यूं वठा शूं ऊठा व्हे ने परा गिया। राजा जनक नरी मनवार कीधी, पण वणांरी छाती तो उच्छव देखमओ नी खस सकी। आछा धर्मी राजा वठे ही व्यावरो आनन्द देखवा ने री गिया, ने केवा लागा के आपाँमा आछा दिन आग्यो जो आपणी जात में अश्या जनमवा लागा। आपांने भी चावे के अश्या री सेवा करा पण अश्या विचार वाला राजा घणा नी हा। अबे तो मिथिला रा सारा ही राम भगवान ने जमाईजी ने लक्ष्मणजी ने व्याहीजी केवा लागा। ने बड़ा आनन्द री थोला करवा लागा। रावला में श्रीजानकीजी ने बेनां, ने शायनियां, अयोध्या रा कुंवराणजी के'के ने वतलावा लागी। जदी श्रीसातजी फरमाई बेनां थें कई म्हारो नाम भूल गी' हो। जदी सारी केवा लागी, भूली तो नहीं हां, पण नवो नाम सीख्यो है, सो घोखरी हां। जदी श्रीजानकीजी फरमाई के यो नाम थांने कणी सिखायो। जदी सारी केवा लागी, महादेवजी रे धनुष सिखायो, ने म्हांने कई सिखावे आखा संसार ने सिखाय दीधो। जदी तो सीताजी वठा शूं ऊठा व्हा ने माता सुनैनाजी नखे पधारने विराज गिया। पण वठे भी या जुंगली नवो नाम धोखती थकी जाय पूगी। जदी सुनैनाजी हुमक कीधो थें सारी भेली व्हने क्यूं बालक ने कायी करो हो। अतराक में सारा राजां ने डेरे सीख दे'नं राजा जनक भी मायने पधारने हुकम कीधो ने कई व्हे रियो है। जदी सुनैनाजी अरज कीधी के सारी नवा नाम धोख धोख ने सीता े कायी कर री है। जदी ज्ञान राजा जनक सबां बैठाय ने हुकम कीधो के बेटा, संसार मं सारा ही नाम नवा हीज है। जनमतां ही नाम पड़ वो भी नवो हीज है, ने ज्यूं ज्यूं म्होटो व्हेतो जावे ज्यूं ज्यूं अवस्था परवणे और सुभाव परवाणे मनख नवा नवा नाम पड़वातो जाय है। जश्या-जश्या काम करे वश्या-वश्या नाम पड़े है। म्हूं चावूं हूं के थे भी अनसूया, सावित्री, अरून्धती, शैव्या ज्यूं आछा-आछा, नवा-नवा नाम पड़ावजो। ने श्याणी, समझणी, भारीखमा व्ही जो। जामएं लक्ष्मी, पतिव्रता अश्या-अश्या नाम पड़ावजो ने कर्कशा, छालकी, बोफी, ओदशा, चरडांदी छत्तीखोवण, कुखपावण अश्या नाम थांणा दुश्मणां रा भी पड़ो मती। पछे राणीजी ने हुकम कीधो के अणा बेनां-देनां मं घमओ मोह है या विचार विश्वामित्र मुनिराज अणां तीनां री भी सगाई अयोध्या हीज नक्की कीधी है। वणां अणां वायां ने भी देखी है और वणां बालकां ने बी देख्या है। ज्यूं अणां चार में ही हेत है, यूंही वणां दशरथजी रा चारर ही कुंवरां मे भी घओ हेत है। जीं शूं उर्मिला रो लक्ष्मणजी शूं ौर मांडवी री भरतजी शूं और श्रुतिकीर्ति री शत्रुध्नजी शूं निश्चय कीधी है। आपां रो भी यो ही विचार हो, के बायां नखे-नखे रेवे तो ठीक व्हे सो परमात्मा पूरो कीधो। अठाशूं लगन लिख ने अयोध्या भेज दीता है सो जान लेने महाराज दशरथजी झट ही पधारेगा। यूं हुमक कर बारणे पधार जान रे वास्त ेसब तरे'रो प्रबन्ध कराय दीधो। अठीने अयोध्यानाथ भी दोही भायां रो हुशल समाचार ने साथे ही साथे रागसां शूं जीतणो, धनुष तोड़णो और परशरामजी रो आवध दे' ने परो जावणो ने चार ही भायां रे व्याव री वात शुण ने घमआ राजी व्हिया। अणा मायली आपणां बालक री एक-एक बात शुण' ने ही अपार आनन्द आवे, जदी अयोध्यानाथ तो सारी साथे ही शुणी जदी तो हरष रो के'णो ही कई। अबे तो म्हाराज दशरथजी गुरु वशिष्ट और प्रधानां शूं शल्या कर जान वणाय आछा मौरत में जनकपुर कानी पधारया। वठीने शूं राजा जनक भी भाई-बेटा, उमरावां-सरदारां सेती सामा पधार मिल्या। जान ने नगरी में पधराय घमी खातिर कीधी और शुभ लगनां में चार ही भायां ने शास्त्री री रीत शुं परणाय दीधा। अणी व्याव रा जगा' जगा' वखाण व्हेवा लागा।

पछे विश्वामित्र मुनिराज महाराज दशरथजी कियो' के म्हारा मन में घणा दिनां शूं या लाग री'ही के कोी जोगी राजा रो कुंवर मिले, तो वींने म्हारी घमी मेनत शूं सीखी विद्या सिखाय, ने पछे भजन करूं, तो आपरा कुंवर ने या विद्या सिखाय अबे म्हूं नचीतो व्हे'गियो। संसार रो दुख घमओ ही मिटावेगो। यूं के'ने मुनिराज सारा शूं मिलने उत्तराखण्ड में भजन करवा पधार गिया। राजा दशरथ भी अयोध्या जावा  री नरी दाण सीख मांगी। जदी राजा जनक नरोई डायोज देने कुंवर्यां ने सीखरो मुहूरत सधाय दीधो. सीख देती वगत राजा जनक सबांने यूं उपदेश कीधो के बेटी तो पराया घर री हीज गणी जाय है। सासरो हीज बेटी रो घर है। माँ बाप तो बेटी ने सासरे मेलवाने हीज म्होटी करै है' ने माँ बाप बेटी नखा शूं कही नी मांगे है। बेटी रा घर रो पाणी भी वणांरे अर्थ नी आवे है। व्हे' शके ज्यो सामो आपणए नखा शूं देवे, पण एक वात री आशा बेटी शूं भी माँ बाप राखे है। क्यूंके बेटो तारे' तो एक कुल ने हीज तारे ने डबोवे तो भी एक कुल ने हीज डबोवे है। पण बेटी तो सासरा ने पीर रा दोही कुलां ने तार भी शके ने डबोय भी शके है। लुगाई री जात रे वासते शास्त्रां में कोई धर्म, वर्त, तीर्थ न्यारो करमओ नी कियो है। एक परिवत्र धर्म शूं ही वणी ने सारो धर्म  व्हे जावे है। वठे थांणे सासूंवां भी बड़ी आछी धर्मात्मा है। फेर अरुन्धतीजी जश्या पतिव्रता में शिरोमणि थांणे गुराणीजी है। थांणा आछा बाग है' के थें अशी जाग जावो हो। म्हारी या शिक्षा है' के बुरी संगति कधी करो मती। संगतद शूं ही गुण आवे' ने संगत शुं ही ही जावे है। जदी सबां हाथ जोड़ अर्ज कीधी के म्हें आपरी पुत्रियां हाँ, याही म्हाँने याद रेवेगा, सो म्हाँने दीवारी नाई गेलो बतावेगा। हे पिता ! आपोर उपदेश जो आप घुटकी रे लारे म्हांने पायो है, वो आपरी दया शूं ई शरीर रेवेगा, जतरे अणां शरीरां शूं नी छुटेगा। पछै सुनैनाजी भी नरी तरे' शूं समझाई, नै सारा ही मिल-भेट ने सारी कुंवर्यांने सासरे सीख दीधी। राजा जनक जान ने पुगावा नरी छेटी तक साथे पधारया। पछे महाराज दशरथजी रे घणी हट करवा शूं सबां शूं मिलने पाछा मिथिला पधार गिया ने जान अयोध्या पूगगी। अयोध्या में आनंद छाय गियो। जश्या कुंवर, वशी ही सोवती थकी कुंवराण्यां ने देख देख सब लुगायां और तीन ही माता और अरूंधतीजी घणां राजी व्हिया। यूं अयोध्या में घमआं सुख शूं दिन निकलवा लागा।
बाल चरित्र पूरो व्हियो।

 

 

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