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राजस्थान रा जिला रो नक्शो
(आभार राजस्थान पत्रिका)

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मीराँबाई


मीरा रो जीवणवृत्त
(प्रस्तुति- भूपतिराम बदरीप्रसादोत)

पृष्ढिका:-
इण धरती उपजंत रा पांच दूहा राजस्थानी धरती रो ऐड़ो चित्राम आंखां आगे ऊभी करे के जिण मांय वीरत भक्ति ने सिंगार री त्रिवेणी वहे। कांई अठैरा शूरीवर तो कांई अठैरी सतियां, कांई अठैरा भक्त को कांई अठैरा दातार अर कांईं अठैरी नेह निझरती लुगायां तो कांई अठैरा लाड-लाड़वणिया पुरुष-पटाधर, सैगं एक सूं सवाया। कलम ने करवालरा धणी साहित्यकरां रो तो केहवणकोई कांई ? उणा आपरे रगत-रूसनाई सूं ओजसवाल साहित्य रो निर्माण किनो। संसार रे किणी ई साहित्य मांय इणरो जोटो जोयो  नी मिले ! अठैरी थोड़ी पण घण उपयोगी ने निरोगी वसन्पति, ऊजणा धोरा, ऊंडा निरमला जल, रणियामणा भाखर, वेता वाहला, पीलू ने ढालू सैगां री वात ई निराली है। ए पांच दूहा इण भांत है-
केसर नह निपजै अठै, नह हीरा निपजंत।
सिट कटियां, खग सांभणा, इण धरती उपजंत।।1।।
चीतांलकी नार चक्ख, कामण घणा करंत।
पति पड़ियां सत राखणु इण धरती उपजंत।।2।।
संतां री वाणी सुगम, भगती ज्ञान भरंत।
ईसरा परमेसरा, इण धती उपजंत।।3।।
पाछी पानी  नी करी, दाता देवण दत्त।
रज रज रलियामणा, इण धरती उपजंत।।4।।
खेजड़ फोग कुमट घणा, कैर जाल वरांग।
नेह निजता मानरवा, इण धती उपजंत।।5।।

जैड़ा अठैरा वीर अैड़ा ई अठैरा भगत ने संत। एक एक सूं चढियाता । इण भगतां मांय मीरा रो नाम कैलाश जिसो ऊंचो ने धवल। मीरा रे नाम सूं आखो देश परिचित। इंयु भी केहीज सके के मीरा आंपांणी-राजस्थानरी ओलखाण। इणरा भजन अमृत रस सूं लबालब। किणी एक जात के संप्रदायने नी, पण सगली मानवजात ने प्रभावति करे। साथे साथे इणारा भजनां मांय जुग-जुगांतरां री नारी सहज कोमलता, विह्वलता ने निरमलता रे सागे, इणारी डिढता  अर प्रताड़ित-पीड़ित नारी रा दरसण हुवे। इणरा भजना मांय प्रेम रो दरियाव ऊंची हिलोलां लेवे जिण मांय बूडण सूं भवसागर तरीजे। अचंभारी वात तो आ के इणां मांय जिके बूडे वे तो तरे अर जिके कांठे बैठा रेहवे वे खरेखर बूड़े। जैपर रा राज्याश्रित हिंदी कवि बिहारी आपरी सतसई मांय इणीज भाव रो एक दूहो कह्यो है :-
या अनुरागी चित की गति समझै नहीं कोय।
ज्यों ज्यों बूडे श्याम रंग, त्यां त्यां उज्वल होय।।

कालजयमी मीरा पण श्याम-रंग मांय ऐड़ी बूड़ी के उण खुद रो उद्धार कियो ई पण साथे साथे इण रंग मांय बूडणरी प्रेरणा देयने घणाने तार दीना।

आज सूं बे-दायका पेहला मीरा रे जीवण-वृत्त संबंधी घणी भ्रांत धारणावां ही। वा कठै जलमी ? किणरे साथे उणरो ब्याव हुओ ? उणरा गुरु कुण हा ? उणरी काव्य भाषा किसी ही ? उणे कितरा पदां री रचना कीवी ? उणरी भक्ति रो स्वरूप कांई हो ? आद घणा सवालां रे जवाबां मांय विद्वान अस्पष्ट हा। पण हमें घणी शोधां सूं घणा नवा तथ्य उजागर हुआ है।

मीरा रो पितृ कुल :-
मेड़ता माथे राजकरण सूं अठैरा राठौड़ मेड़तिया कहीजिया। इणीज राजकुल मांय मीरा रो जलम व्हियो ने इणीज सारू मीरा आपरे सासरिया मांय मेड़तणी वाजती। राजपूतां मांय ओ रिवाज है के बेटी परणीजर सासरे जावे तो आपरे पितृकले सूं ओलखीजे।

राव जोधाजी वसायो ने इणारा चौथा कंवर राव दूदा मालवा रा शासक सूं मेड़ता खोस र आपरे हस्तक कीनो। धीमे धीमे उणा आजू-बाजूरा 360 गामां माथे आपरो अधिकार करने जूना मेड़ता कने नवो मेड़ता वसायो। राव दूधा घणा जोरावर अर भागशाली। इणीज राव दूधा रा चौथा कंवर रतनसी (रतनसिंघ) री इकलौती संतान मीरा ही। इण भांत मीरा राव दूदारी पोती हुई। मीरा री माता रो नाम वीर कंवरी हो अर वे झाला अल्लरी राजपूताणी हा। जदके दूजालोग माने के मीरा री माता रो नाम कुसुमकंवर हो अर वा टाक राजपूताणी ही। पण घणा विद्वान वीरकंवरी रे पण मायं आपरी राय देवे। मीरा रो जलम इणीज दंपति सूं वि.सं. 1561 मांय हुआ हो।

मीरा रो जनम स्थल:-
मीरा रे जलम स्थान ने लेय र विद्वान एक मत नी हा। कोई कुड़की माने तो कोई चौकड़ी। कोई बाजोली माने तो कोई मेड़ता। पण हमे विद्वान एकमत हुआ है अर मानण ढूका है के मीरा रो जलम मेड़ता मांय ईज हुओ। मेड़ता रे इतिहास सूं तो प्रमाणित है ईज पण हेठै लिखा कीं बारला साक्ष्य ई इण वात री साक्षी भरे :-

मीरा जनमी मेड़ते भगति करण कलि काल (मीरा री परची)
माता पिता जनमी पुर मेड़ते प्रीत लागी हरि पीहर मांही। (राघवदास री भक्तमाल)
मेड़ते जनमभूमि झूमि हरि नैन लगे (नामादास री भक्तमाल)

मीरा रो बालपण ने ब्याव :-
रतनसी तो खनवा री रणभूमि मांय खेत रह्या, पण मीरा रे ब्याव तांई उणरी माता वीरकंवरी जीवता हा। ऊगरी बाजरी रा बोकणा ई केहवे री केहवत परमाण रे राव दूदा मीरा मांय महानता रा लक्षण जोया। इणीज कारण उणआ घणआ जतन लाडकोड सूं मीरा रो पालणो-पोषणो आपरी निजरां सामी मेड़ता मांय ईज करायो। रा व दूदा परम भागवत। वे राठौड़ां री कुलदेवी चामुडारी उपासना साथे चारभुजा धारी भगवान विष्णु रा परम उपासक वणिया। उणा तो मेड़ता मांय चारुभुजा रो मिंदर ई वणायो। इण वातावरण रो असर मीरा रा बालमन माथे गहरो पड़ियो। ओईज कारण हो के बालपण सूं मीरा रो मन श्रीकृष्ण कांनी सहज रूप सूं आकृष्ट हो। वो वतो पुष्टो हुओ उण प्रचलित कथा सूं जिणमांय मेड़ता मांय बारे सू े एक जान आवरणरो वर्णन है। वर राजा घडो ़माथे सवार हो, फूटरा कपड़ा ने गैणआ-गांठा पहरियोड़ो हो, ढोल, नगारा-निसाण धुरीज रह्या हा ने चोबदार साथे चालता हा। निरा कोतल घोड़ा ई आगे चालता हा। कहवीजे है के उण टैम मीरा बाल सहज भाव सूं आपरी माने पूछीयो के म्हारो वर कुण ? माता श्रीकृष्ण री मूरत कांनी आंगली कीवी। बस, वा घड़ी ने वो पल मीरा पाछो वलङर नी जोयो। वा तो तनमन सूं सूं आपार गिरध री सेवा मांय समर्पति हुयगी। मीरा री भगती सूं राजी हुय र राव दूदा मीरा सारू एक जुदो कक्ष महलां मांय वणाय दियो, जिको श्यामकुंज रे नाम सूं प्रख्यात है। अठै ईज रात-दिन आपरे गिरधर-गोपाल री पूजा-अर्चना मांय मीरा लीन रहवती। पेहला तो मीरा व्यावरो विरोध कीनो। उण तो बालपण सूं ही श्रीकृष्णने आपरा पति स्वीकार्या हा तो दूजो सांसारिक पति कींकर स्वीकार सके ? ने मोटी वात तो आ ही के ब्याव करने माया-जांल मांय फसणो उणरो अभीष्ट कोनी हो। पछे वडीलांरे घणे दबाव सूं अर खास कर र उणा मानीता दादाजी राव दूदा जद ओ समझायो के मीरा कृष्ण तो सर्वातंरयामी है। वे तो घट घट मांय वसे। थारा मूरतिया भोजराज मांय पण ए ईज विराजे। थूं इण दीठ सूं क्यूं नी विचारे ? मीरा रा मन मांय राव दूदा री वात जमगी केहवो के पछे दूदाजी रे लाड रे वशीमूत हुयने उण हामल भर दी। इण भांत मेवाड़ाधिपति राणा सांगा (संग्रामसिंघ) रा कुंवर भोजराज साथे बारे वरस री अवस्था मांय वि.सं. 1573, आखातीजने मीरा रो ब्याव धामधूम सूं हुयगो। फेरा फतां बखत मीरा कृष्ण री मूरत साथे लेयने फेरा फरिया।

मीरा रो वैधव्य :
भोजराज मीरा रा रूप गुण अर भगती सूं घणो प्रभावित हो, पण कहवीजे के जद वो पेहली बार महलां गयो तो मीराने पर-पुरुष साथे वातां करतां सांभलियो। उणरे तो लाय लागगी जद हबीड करतां किंवाड़ खोलिया तो उण एक प्रचंड प्रकाश-पुंज जोयो। उणरी आंखां मीचीजगी अर वो सागे पगे पाछो वलियो। इण बणाव पछे भोजराज रे मन मांय मीरा कांनी वत्ती श्रद्धा जागी। उणने खातरी हुयगी के मीरा परम भगत है ने भगवान साथे घरोपो धरावे। पछे भोजराज राणा सांगी री हयाती मांय शरीर छोड़ दियो।

मीरा रो वैधव्यो घणो करूण रह्यो। पेहला तो सती हूवणू सारू मीरा माथे जोरदार दबाण घालीजियो। कांई राज-परवार रा लोग ने कांई प्रजा-जन सगलां रा व्यग्यं बाणां ने सहता थकां मीरा इण प्रस्ताव ने अस्वीकारियो अर टस सूं मस नी हुई। रूढिचुस्त लोग मीरा ऊपर गीधड़ां ज्युं टूट पड़िया। उण सैंगां रा मेहणा सह्या :-
राणा वरजे राणी वरजे वरजे सब परिवारी।
कुंवर पाटवी सोई वरजे, अर सहेल्यां सारी।।

पण वा तो अचलं। उण गायो के :-
गिरधर गास्यां सती न होस्यां, मन मोह्यो घणनामी।
पछे तो मीरा के कष्टो रो पार नी रह्यो। महाराणा रतनसिंह पछे विक्रमादित्य मेवाड़ री गादी बैठो। वो घणो क्रुर अंहकारी न दुराचारी शासक हो। मीरा री प्रभुभगती री प्रवृतियां, उणरे हिया मांय शूल ज्यूं खटकती। चरणामृत रे नाम सूं हलाहल मेलणो अर शालिग्राम रे नाम सूं साप मेलणो, उण दुराचारी सारू कांई नवाई नी हा। जठै राज सारू बाप बेटाने अर बेटो बापने मार देवे, उण काल रे मांय ऐड़ी घटनावां रो हूवणो, अचरजरी वात कोनी। चवड़े नी तो छाने ईज विरोधी री हत्या उण संघर्ष री चरम परिणति हुय सके खास कर र जद मीरा रो संत समागम कीरतन अर नरतन, राज-मरजादा री साफ उलंघण हुवे। मीरा तो गायो-
लोकलाज कुलकाण जगत री, दी बहाय जस पाणी।

मेवाड त्याग :-
भगती मांय व्यवधान आणे सूं तथा राज अर दूजा लोगां रे असह्य व्यवहार सूं आंती आयङर मेवड़ा सूं पुष्कर तीरथ हुवतां सं. 1511 मांय वीरमदेव रे तेड़े सूं तेड़ागरां साथे वीरा मेउता आयगी। अठै मीराने किणी भांत रो कष्ट नी हो। पण इंयु लागे के दुसमणा साथे निरंतर जुद्ध री स्थिति वणियोड़ी रहवणए सूं अठैई मीरा ने चाहीजे जैड़ी शांति नी मिली। जोधपुर रा मालदेव रा असह्य हुमला रे कारण, मेड़ता छोड़ङर वीरमदेव आपरे परिगह साथे अजमेर गयो परो. मीरा ई सगला रे साथे अजमेर गई।

वृदावन वास:-
पुष्कर तीर्थ करने सं. 1595 मांय वा आपरे इष्ट देव री जनमभूमि अर लीला भूमि मथुरा-वृंदावन गई। राजस्थान करतां ओ घणो लीलो प्रदेश हो। जमनाजी जिसी पुण्य सलिला रा दरसण ने इण प्रदेश री सुरम्यता, उणरो मनमोहन लीनो। घणा पदा मांय मीरा वृंदावन रो फूटरो प्राकृतिक-चित्रण कीनो है। पण अठैई वा घणी ताल नी रह सकी। फकत तीन वरसां रे वृंदावन प्रवास मांय, मीरा एकर उण टैम रा ख्यातनाम ज्ञानी भगत जीव गोसांई सूं मिलण गई। उद्धव ज्युं ज्ञान रा गरब मांय उणा कहवाड़ियों के म्हूं किणी स्त्री सूं मिलूं कोनी। मीरा उत्तर वालीयो के म्हने तो आज ईज ठाह पड़ी के ब्रज मांय श्रीकृष्ण सिवाय कोई दूजो पुरूष ई है। मीरा रे इण दार्शनिक उथला सूं जीव गोसाई रो घमंड चूर चूर हुयगो ने वे सामा पगे मिलण गया। जीव गोसाई सूं मिलण री कथा, भगत रे नाम सूं प्रचलित दंभ ने विदारे। भगती मांय तो सैंग बराबर। उठै ऊंच-नीच, नर-नारी अर वर्ण-वर्ग रो भेद कोनी रेहवे। मोटी वात तो आ के पुष्ठिमांग मांय एकला भगवान कृष्ण ईज पुरुष गिणीजे ने बीजा सगला जीव स्त्री। तोई जद जीव गोसाई कह्यो के म्हुं किणई स्त्री सूं नी मिल संकू तो मीराने आपरे स्त्रीपणा रो स्वाभिमान रो ख्लाय आयो। इण घटना रे पणे उणरो स्त्रीत्व वत्तो तेजस्वी हुओ।

मीरा रो द्वारका गमन :-
मीरा आपरे इष्टदेव री लीलाभूमि त्याग र  कर्मभूमि द्वारका कांनी पग उपाड़िया। डॉ. महेन्द्र दवे आपरे लेख मीरा की गुजरात यात्रा मांय गुजरात (द्वारका) जात्रा रो जिको मार्ग बतायो है, वो साचो कोनी। वो तो मुसलमान शाकांरो विजयमार्ग है के पछै जैन तीर्थ-यात्रियां रो जावणरो मार्ग है। ब्रजमंडल, अयोध्या, मगध अर बंगाल वगेरा तीर्थ-यात्रियां रो मारग तो मथुरा-आमेर-अजमेर-पाली-भीनमाल-सांचोर-धरणीधर (ढेमा गाम मायं आयोड़ो चावो तीरथ। ओ गुजरात मांय है।) जामनगर-द्वाराका हो। मीरा इणीज मारग सूं पद रचना करती गावती अर नाचती, श्रीहरि के द्वारका धाम गई ही। डॉ. दवे रे मारग मांय तो धरणीधर रो नाम ई कोनी जद के द्वारका पेहला अठै री छाप लगावणो जरूरी मानजतो. द्वारका मांय मीरा नव वरस रही ने अठैइज कीरतन करतां सं. 1604 रे लगेटगे, उणरा प्राण रणछोड़राय मांय विलीन हुयगा। उण टैम मीरा री ऊमर फक्त 43 वरस री ही।

नैनी ऊमर मोटा काम :-
व्यक्ति की ऊमरने उणरी कारकिरदी सूं कांई लेणा-देणा कोनी। संसार रा घणा महापुरुष ऐड़ा हुआ है, जिके साव नैनी ऊमर मां सरगां सिधारग। ा आपणा देश मांय आद शंकराचार्य अर आधुनिक जुगमाय स्वामी विवेकानंद जैड़ा घणा उदाहरण है जिके साव नैनी ऊमर मांय अदभुत काम करगा। आपणी माता-भाषारो उद्धार करणियो इटाली रो चावो विद्वान डॉ. तैस्सितोरी पण साव नैनी ऊमर मांय काम करतो करतो बीकानेर मांय पोढगो। ऐड़ा लोगां ने किणी टोला री ई जरुरत नी ही। वे एकलाईज घणा सक्षम हा। मीरा ई ऐड़ा पुरुषां मांय एकली ही ने सवाई वात तो आ ही के वा तिरिया जातरी ही। मध्यकाल मांय लुगायां री अवदशां सूं तो आंपां वाकब ई हां। पण धिन है मीरा ने। वा आपरी लगन, निष्ढा, त्याग, साहस अर भगती सूं लोक-पूज बणगी। ठेठ अंतस रे उंडाण सूं अद्भुत उणरा पद ऐड़ा तो व्यापक हुआ के मीरा देश रा सगला प्रदेशां मांय उठैरी भाषावां मांय गावीजण लागी। ऐड़ो सनमान कचाद ई कोई दूजे भक्त कविने मिलियो हुवे।

मीरा रा गुरु :-
मीरा रा शिक्षा गुरु पं. गजाधर हा। वे ईज मीराने आखर ज्ञान रे साथे साथे अध्यात्म री शिक्षा दीवी। ब्याव व्हिया पछे इण नैष्ढिक ब्राह्मण ने आपरे साते मेवाड़ लेयगी ने उठै बे हाजर वीघा पपीयत जमी बखसी। मीरा इण पंडित ने प्यासरी पदवी ई प्रदान कीवी। पेचीदी बात तो आ है के मीरा दीक्षा गुरु किया के नी ? बालरी खाल खींचणवाला विद्वान आप आप रे मतानुसार एक नी, नव गुरुवांरा नाम लेवे। इण खांचातांण रो मूल कारण ओ है के मीरा जिसी उच्चकोटिरी भक्त सूं सगला संप्रदाय आपोर सीधो संबंध बांधणो च्हावता हा ने इणीज कारण गुरुवां री संख्या वधती वधती नव तांईं पहुंची। इण गुरुवां रा नाम इण भांत है।
(1) रामनंद (2) रैदास (3)हरदिसा दरजी (रैदासी) (4) माधवपुरी (5) चैतन्य महाप्रभु (6) रघुनाथदास (7) जीव गोस्वामी (8) रुप गोस्वामी (9) विट्ठल (रैदासी- डॉ. हीरालाल महेश्वरी विष्णओई संप्रदाय रा प्रवर्तक जांभोजी ने मीरा रा दसमा गुरु थरपिया है। पण अठै वे गोत खायगा। मीराजी लियो मिलाय चरण मांय मीराजी ईश्वर रो पर्याय है नी के मीरा नाम रो सूचक। मीरा रे गुरुवां रे संबंध मांय गुजराती शोधवेत्ता अर विद्वान डॉ. मंजुलाल मजमुदार सफा लिखियो है के पोतानो संबंध श्रीकृष्ण  साथे, बारोबार सीधोज कोई पण गुरुनी दरम्यानगिरि वगर तेमणे स्थापन करी दीधो हतो। खरेखर ऊपर दरसायोडा किणीने ई मीरा गुरु बणाया हुवे उणरा पुख्ता प्रमाण कोनी मिले। इण किणी सूं मीरा गुरु-दीक्षा लीवी कोनी ओईज मानणो योग्य है। जिणरा गिरधर गोपाल ईज सर्वस्व हुवे, उणने किणी गुरी री जरूरत ई क्यूं पडे। मीरा तो तन्मय हुई ने गायो, म्हारा तो गिरधर गोपल दूसरो न कोई।

मीरा नाम:-
आपरे एक लेख मीराबाई की ऐतिहासिकता मांय डॉ. हुकुमसिंह भाटी लिख्यो है उणरे बचपन रो नाम पेमलकंवर हो।

जो ओईज मीरा रो मूल नाम हुवे तो मीरा नाम कीकर ने कद पड़ियो ? इण सवाल माथे विद्वान मून झालियोड़ा है। आंपां ओ मान र नहचो करां के पेमलकंवर रो अपर नाम ईज मीरा हो पण विद्वानं तो इणने लेय र घणो बौद्धिक विलास कर्यो है, द्राविड़ी प्राणाम कर्यो है। म्हने ओ  लागे के मीरा रे व्यक्तित्व अर कृतित्वन सूं नाम रो कोई खास लेणओ देणओ कोनी। खोटा अफाला खावण सूं कोई मतलब कोनी। आंपांने तो मीरा रे पदांरी भाषा ने उण मांय अभिव्यक्ति भक्ति रसूं सूं सराबोर मीरा रे भावां सूं मतबल है।

मीरा री निडरता:-
नारी स्वतंत्रता रा इण जुग मांय ई जद लुगायां निडर नी वण सकी तो घोर सामंती जुग मांय मीर रो निडर, साहसी अर डिढ निश्चयी हूवणो एक मायनो राखे. उण जैड़ी क्रांतिकारी अर सहन शीला नारी रो दाखलो आंपांने कठै मिलसी ? विपरीत संजोगांमांय वा सामा-चढाण चढी ने पार उतरी। अनेक भांतरा नारी प्रतिबंधां रे मध्ययुग मांय मीरा एकला हाथ जूझूणवाली हेवल-वीर ही। उणरे जीवणरो रो मुख्य उद्देश आपरा इष्टदेव कृष्ण री भगती करणो हो ने इणरे आडा आवणवाला सगला विरोधां ने वा प्रसन्न-वदन झेलती रही। एक बात फेर। मीरा मध्यकालीन सामंती व्यवस्था री पीड़ित नारी अर भक्त कवयित्री ही। मीरा ने समझण सारू उणरे पीड़ित नारी ने समझणओ घणओ जरूरी है। ने जो आंपां ओ स्वीकारां के भक्त अर कवि हुवण सारू जात-पांत, ऊंच-नीच, वर्ग-वर्ण अर मान-प्रतिष्ठा छोड़णा पड़े. तो मीरा पण एक भक्त कवयित्री ही उणरे लोक-लाज ने कुलरी परंपरा तोड़ण मांय आपत्ति क्युं ? भक्त रे वास्ते तो सैंग समान।

मीरा रा पिता रतनसी अर उणारी वीरगति :-
महाराणां सांगा ने बाबर वच्चे सन 1527 मांय खानवा रो जबरो युद्ध हुआ। नजीक रा सगा हूवण सूं राव वीरमदेव, उणरौ नैनो भाई रायमल अर मीरा रा पिता रतनसी इण युद्ध मांय भाग लीनो। वीरमदेव रो घायल हुय र बच निकलिया पण रायमल अर रतनसी वीरगति पामी। दूजे वरस सन 1528 मांय राणा सांग ई परलोकगामी व्हिया।

महाराणा विक्रमसिंह अर मीरा रे साथे उणरो दुर्व्यवहार:-
सं. 1588 मांय विक्रमादित्य महाराणा हुओ। उणरा उदंड वेवार सूं. खुशामदियांने छोड़ र सगला सरदार आप आपरे ठेकाणे परा गयां इंयु तो वो पेहला सूं ईज मीरा साथे खार खायोड़ो हो, पण अबे महाराणा वणिया पछे तो उणारी दुष्टता रो पूछणओ ई कांई ? राजाराणई हुवता थकां साधूड़ां री संगत ? इणने आपरे विधवापण रो ई ख्याल कोनी ? भाभी हुआ तो कांई घर री मरजादा तो  नी ईज ओलंगीजे ? उणे तो मीरा री पजवणी शुरु कीवी। उठे तांई के महलां रे ताला जड़ दीना।
पेहरो बिठायो, चौकी मेली तालो दियो जड़ाय।

अठताई केहवजी के एकारूं उदाबाई (मार रा नणद) ने विक्रमादित्य दोनूं मिलङर मीरा रे इष्टदेव गिरधर गोपाल री मूरत छिपाय लीवी। मरूत नी मिलण सूं मीरा तो बेहाल। आऊं झरता नेणा सूं उण आपरा गिरधर गोपाल री प्रार्थना कीवी। थोड़ी वार पछे आंखा उघाड़ी तो भगवान री मूरत सिंघासण माथे विराजियोड़ी लाधी। चरणामृत रे नाम सूं जहर मेलणो अर सालिग्राम रे नाम सूं साप मेलणो जिसा दुर्व्यवहार सूं ई मीरा हार नी मानी। वा तो सतसंगां अर भगती मांय लीन रही। उण गायो।
राणा विष रो प्यालो भेज्यो, चरणाम्रत कर पी जाणा।
कालो नाग पिटार्यां भेज्यो सालगराम पिछाणा।
मीरा गिरधर प्रेम बावली, सांवलियो वर पाणा।

थाक र विक्रमादित्य मीरा ने मारण रो प्रतय्न कियो, पण उण मांय ई निष्फलता हाथ लागी। खिझाणो घमो, पण वश चाल्यो कोनी। दृष्ट आपरी दृष्टता छोड़ता हुवेला ? वो तो आपरी कुचमाद अर कुचरणी सूं बाज नी आयो। आंती आय र मीरा मेवाड़ त्याग दीनो।

भगत मीराने सतावण रो कुफल मेवड़ा ने तुरत मिलियो। मेवाड़ चोफकेर सूं आपदावां सूं घिरीजगो। गुजरात रो बादशाह बहादुरशाह मेवाड़ माथे चढ आयो। दूजो जौहर हुओ। विक्रमादित्य मार्यो गयो। बनवीर महाराणा बणियो। उणरा वेवारां सूं तंग आयने सरदार उदैसिंघ ने महाराणओ वणायो। अठी ने अकबर चित्तौड़ माथे हल्लो करीनो ने चित्तौड़ माथे आपरो झंडो फहरायो। जयमल ने पता री वीरता ऐले गई। दूजी कांनी प्रकृति ई रीसाणी अर मेवाड़ दुष्काल रो शिकार हुओ। प्रजा ने हमे खातरी हुयगी के भक्त शिरोमणि मीराबाई रे जावण सूं ईज मेवाड़ माथे ओलाओल कष्टां री झड़ी लागगी।

मीरा ने तेड़णो:-
भजनां राची मीरा इण टैम द्वारकवासी ही। महाराणा उदैसिंघ की बामणां अर सरदारां ने मीराने तेड़ण सारू द्वारका मेलिया। पण मीरा दबाव रे वश नी हुई। अंत मांय उण क्होय के जो रणछोड़राय आज्ञा कसी तो अवश्य चालूंला। मीरा आज्ञा वेण चाली अर अठैईज समाधि मांयलीन हुयगी। हताश बामण ने सरदार गिरधर गोपाल री मूरत साथे पाछा फरिया। महाराण उण मूरत ने जनानी ड्योढी मांय पीतांबरजी रे मिंदर मांय पधराई। वा मूरत हालतांई उठै है अर उणरी सेवा-पूजा नियमित रूप सूं चाले।

मीरा रो कृतित्व
मीरा रे नाम सूं चावी रचनावांने बे भागां मांय विभाजित करीज सके। एक प्रबंधात्मक ने बीजो पदां रो संग्रह। प्रबंधात्मक रचनावां इण मुजब मानीजे।

  1. नरसीजी रो मायरो
  2. सतभामा नूं रूसणा।
  3. रूकमणी मंगल
  4. गीत गोंविद री टीका
  5. सोरठ रा पद
  6. नरसी मेहता नी हुंडी

पुष्ट प्रमाणां रे अभाव मांय ऊपरली सगली रचनावां मीरा रे लेखण सू नीकलयोड़ी रचनावां कोनी।

मीरा रा पदः-
मीरा खुद तो आपरा पदां रो संकलन कोनी कीनो ने ओईज एक मोटो कारण है के मारा रा पद जुदा जुदा रूपां मांय मिले। ऐड़ोई मानीजे के मीरा री एक सखी दासी ललिता मीरा रे पदां रो संकलन कीनो। पण दुरभागवश वोई आज उपलब्ध कोनी। डाकरो प्रत री भाषा मीरा कालीन कोनी ने इणज सारू आ ललिता सूं संकलित नी हुय सके।

मीरा रा पद कतिरा ? पदा री संख्या री दीठ सूं विद्वान संपादकां मांय मतभदे घणा। श्री हरि नरायणजी पदां री संख्या 500 बताई तो मीरा बृहत पद संग्रह मांय आ संख्या 590 होयगी। इणरी संग्राहिका डॉ. पद्मावती शबनम है। स्वामी आनंद द्वारा संपादित मीरा सुधा सिंधु मांय पदां री संख्या वधती वधती 1312 तांई पहुंची। डाकोर वाली प्रत मांय आ संख्या घटगी। इणरो संपादन श्री पशुराम चतुर्वेदी कीनो। म्हारे मतानुसार पदा री संख्या 300 सूं वत्ती कोनी। पूणे (महाराष्ट्र) री.एक. इंदिराबेन ने तो मीरा रो भाव आवे ने उण मीरा नाम सूं घणा पदां री रचना कीवी है। ए सैंग प्रगट हुओड़ा है। गुजरात मांय ई मीरा नाम री कोई भक्त हुई है। उणरा पद ई सैंग राजस्थान री मूल मीरा रे नाम चढगा।

खरेखर व्हियो कांई है के भक्तिरस सूं तरबोल मीरा रा पद इतरा तो व्यापक हुआ के मीरा नाम सूं प्रक्षिप्तां री संख्या वधती गई। हिंदी प्रदेशां मांय उणारो रूप हिंदी वणगो तो बंगाल मांय बंगाली अर महाराष्ट्र मांय मराठी।

गुरु-ग्रंथ साहब मांय मीरा रो पद :-
मीरा रा पद घणा भक्तां अर संता रे संकलन मांय लियोड़ा है। आपने अचरज तो हुवे ला पण साथे साथ हरख ई के आपणी मीरा रो एक पद (सबद) गुरु-ग्रंथ साहब माय ई वांचवा मिले। गुरुग्रंथ साहब रो पेहलो संकलन गुरु अर्जुनदेव सं. 1660 मांय गुरुद्वार रामसर मे कियो अर भाई गुरुदास इणरी प्रत तैयार कीवी। इण मांय मारू राग मांय मीरा रो एक पद  हो, जिको लारे सूं नी जाणे क्युं हड़ताल सूं भूंसीजीयो गयो। गुरुग्रंथ साहब रो दूजो संपादन भा ी बानो तैयार कीनो। इण मांय कीं पद फेर जोड़िया गया। इण संपादन मांय ई मीरा रो वोईज पह दो। पण नी जाणे क्युं धकला संस्करणा मांय सांप्रदायिक विद्वेष के किणी दूजा कारण सूं मीरा रो वो पद काढ दियो गयो। आ महातऊ वात है अर शोधरो विषय ई पण अबार आंपां इण पछड़ा मांय नी पड़ां। गुरुग्रंथ साहब रे इण दोनू सस्करणां सूं एक बात तो जरूर साबत हुवे के इण पेहला मीरा री कीरत चौमेर फेलिडयोड़ी ही। ज्यूं के दूजा सैंग प्रदेशां मांय हुओ, पंजाब मांय मीरा रे पदांरो पंजाबीकरण हुयगो। देवनागरी में मां लिप्यंतरति रूप ओ पद इण भांत है:-
सतिगुरु प्रसाद राग मारू वाणी मीराबाई।।
मन हमारो बांध्यो माई, कंवल नैन अपने गुन रहाओ।
तीखण तीर बेधि शरीर दूरि गया माई।
लाग्यो तब जान्यो नाहि, अब ना सहिओ जाई रे माई।।1।।
तंत्रमंत्र आउखद करऊ तउ पीर ना जाई।
है कोई उपकार करे कठिन दर्द री माई।।2।।
निकट हो तुम दूर नहीं बेगि मिलो आई।
मीरा गिरधर स्वामी दयाल न तन की तनप बुझाई रे माई
(आदि ग्रंथ पानो सं. 223) (1)

मीरा रे पदां री भाषा
मीरा रा सैंग पद राजस्थानी मांय है। खरी वात तो आ है के मातभाषा सिवाय किणी दूजी भाषा मांय उण पद रचिया ई कोनी। इण संबंध मांय बंगाली, गुजराती अर मराठी विद्वानां री राय जोवा जोग है। चावा भाषा वैत्रानिक बंगाली विद्वान डॉ. सुनीतिकुमार चटर्जी आपरी पोथी मांय लिखियो के मीराबाई शुद्ध मारवाड़ी मांय आपरे पदां री रचना कीव। शुद्ध राजस्थानी (मारवाड़ी) रा थोडा कवि आपरे भावां रे महत्त्व रे कारण, आखा भारत रा हुयगा, ज्युं के मीराबाई। मीरा रा पद सगला उत्तर भारत मांय इतरा तो लोकप्रिय वणिया के उणरी शुद्ध राजस्थानी (मारवाड़ी) भाषा परिवर्तित हुय। र शुद्ध हिंदी कांनी ढली। राजस्थान रा कवि हिंदी रा गिणीजण लागा। डॉ. तारापुरवाला लिखियो के राजपूताना, गुजरात ने आखो मथुरा प्रदेश (ब्रज प्रदेश) मीराने आपरी माने पण किण काल मांय वे रह्या, उण टैम री इण तीनूं प्रदेशां री भाषा एक ईर्ज ही अर वा ही पुरानी पश्चिमी राजस्थानी। इण वास्ते अचरज  नी के मीरा रा पद इण सघी भाषावां मांय मिले।

गुजरात रा घणा चावा राजनैतिक नेता अर मोटा साहित्यकार श्री के.एम. मुंशी लिखे के मीरा गुजराती तो नी ही। उणरा पद गुजराती मांय लिखियोड़ा कोनी हा। तोई बात सची लागे के मीरा रे नाम सूं पचलित पद कितरा मीरा रा है, ओ केहवणो कठण है।

जुदा जुदा प्रदेशां रा तीनू ख्यात नाम भाषा वैज्ञानिक अर साहित्यकार विद्वानां रे कथन सूं अबे ओ स्पष्ट हुवे है के मीरा फगत  आपरी मातभाषा राजस्थानी मांय ईज पदां री रचना कीवी। किणी दूजी भाषां मांय नी। हिंदी, गुजराती के दूजी भाषांवा मांय मीरा रा जिके पद मिले वे सगला के तो रूपांतरित है के प्रक्षिप्त। हिंदीवाला तो ि ण भाषा साथे घणोईज अत्याचार कीनो। राजस्थानी रो कक्को नी जाणणवाला जद मीरा माथे शोध कार्य कर्यो तो कैड़ी कैड़ी भूंडी भलां कीवी उणरा थोड़ा नमूना इण मुजब है।

1. डॉ. राशिप्रभा आपरे शोध प्रबंध मीरा की भाषा मांय लिखियो के खड़ी बोली हिंदी मे तो ने का प्रयोग होता है किंतु मीरा में नहीं हुआ है। संभव है कि छं की मात्रा में आधिक्य न होने देने के लिये मीराने ऐसे स्थलों पर ने छोड़ दिया हो। अबे इण देवीने कुण समझावे के राजस्थानी व्याकरण री प्रकृति ने उणरा नियम जुदा है। वा हिंदी कोनी ? राजस्थानी मायं ओईज ने करम कारक रो चिन्ह हुवे। हिंदीं मांय करता रो चिन्ह ने  हुवे तो राजस्थानी मांय ओईज ने करम कारक रो चिन्ह हुवे। ऐड़ीडेज भूल गुजराती व्याकरण सूं अनभिज्ञ ए विभक्ति ने लेयर हुई है, जिका संज्ञा तथा सर्वनाम रे साथे संयुक्त हुयङर उणरो अंग वण जावे। जथा-रामे रोटली खाधी। अथवा माई मेरो मोहने मन हरयो इण संबंध मांय डॉ. शशिप्रभा लिखियो के कदाच मात्रा री दीठ सूं मोहन री जग्या मोहने कर दिनो है। दूजी भाषावां नी ने जाणता थकां उण मांय आपरो धणियाप जणावणो कितरो दोरो है, इण उदाहरणां सूं ठाह पड़े।

2. मीरा रे पदां रो संपादन घणा विद्वानां कीनो है। इण मांय राजस्थान अर राजस्थान बारे रा सगला विद्वान सामेल है। संत साहित्यरा घणा मानीता विद्वान आचार्य परशुराम चतुर्वेदी ने छोडङर बीजा सगला मीरा रा आज उपलब्ध पदां री भाषा ने आदार मान र उणरो विशलेषण कीनो है। इणरे परिणाम स्वरूप मीरा रे पदां री भाषा माथे खड़ी बोली ब्रज अर गुजराती रो प्रभवा दरसायो गयो है, जके आंपां ऊपर जोल लीधो है के नामी विद्वान इण बात ने खोटी साबित कीवी है। आचार्य चतुर्वेदी डाकोर वाली प्रत ने आधर मारङर मीरा रे पदां रो संपादन कियो। राजस्थानी वर्ण माला रे आखरां री खरी ओलख नी हुवण सूं चतुर्वेदीजी अठै गोत खायगा।

इत प्रत मांय ण कार री प्रचुरता है ने आ साव अप्राकृतिक है। राजस्थानी मांय न अर ण दोनू स्वतंत्र ध्वनियां है। प्राकृत रे ज्यूं इण मांय शब्द रे प्रारंभ मांय ण कदैईनी आवै। हां तत्मस शब्दां मांय मध्य तथा अंत मांय न री जग्या ण जरूर बणे। पण इण कारण उणरे अरथ मांय समूलको परिवर्तन आवे। मन री जग्या मण हुवण सूं अरथ बदलीज जासी। मन रे परस हरि के चरण पद मांय जो आप मन री जग्या मण कर देसो तो इणरो अरथ हुवेला के हे चालीस सेरा रा मण (वजन) थूं हरि रे चरणाने स्पर्श कर। इणीज भांत मोहन संज्ञा री जग्या मोहण करणो अर नाच्यो री जग्या णाच्यो तथा नंद री जग्या णंद करणे विकृत भाषा रा प्रयोग है। वैदिक ल ध्वनि हिंदी मांय कोनी। जद के राजस्थानी, गुजराती अर मराठी मांय इण ध्वनि रो आगवो महत्त्व है। इणरे प्रयोग सूं अरथ बदल जावे। हिंदी मांय गोली रो प्रयोग बंदूक सूं छूटणवाली गोली के दवा री गोली सूं ई हुवे अर दासी रे अरथ मांय ई। जद के राजस्थानी मांय दोनूं रा अरथ जुदा जुदा। इणीज भांत श्री परशुराम चतुर्वेदी री संपादित प्रत मांय व्याकरण री भूलांई निरी है।

तत्कालीन काव्य भाषावां डींगल अर पिंगल ने आपरी रचनावां रो आधार नी  बणायङर जांभोजी के जसनाथजी ज्यु मीरा लोकभाषाने अपणाई।  खरेखर तो मीरा रे पद री भाषा रो रूप निरधारण करण सारू उणरा पूर्ववर्ती अर परवर्ती कवियांरी भाषा निजर आगे राखणी पड़सी। आपणे सोभाग सूं उणारा लिखित रूप आंपणने आज उपलब्ध है। तो इण दीठ सूं मीरा रे पदां रो संपादन करण री ताती जरूरत है।

भाषा रे ज्यूं मीरा रो काव्य विधान ई लोकोन्मुखी हो। उणरे पदां मांय गेयता है न्युं डॉ. सत्यनेद्र कह्यो. मीरा रा पद मंत्र है। रागांने देखा तो मीरा रा पद छाईस जुदी जुदी रागां मांय गावीजण रो स्पष्ट उलेल्ख है। मालकोश, सोरठ, भैरवी, मांड. डोडी, मारू देस, पीलू, महीर, खमाच ने प्रभाती इणमांय मुख्य है।

अलंकारां कांनी निजर करां तो लागे के अलंकारां सारू मीरा ने कोई प्रयास करण री जरूरत कोनी पड़ी। एतो भावावेश सूं आपोआप आयने योग्य स्थान ग्रहण कर लेता। केशव रे ज्युं उणाने ठूंसण री आवश्यकता कोनी ही। उपमा, उत्पेक्षा, रूपक, अनुप्रास अतिशयोक्ति आद अलंकार प्रचुर मात्रामांय मीरा रे काव्य मांय मिले. उणरा जिके उपमान है वे राजस्थान रे लोक ने प्रतिबिम्बित करे। उणरा पद इतरा तो सहज अर सरल के वे जन-मानस रा हार बणगा। तुलसी ज्यूं मीरा रे काव्य मांय भलांई पांडित्य नजरनी आवे, पण सैंग संप्रदायां सूं ऊपर उण मांय सहज भारतीय तत्त्व-चिंतन रा दरसण देखण जोग है।

मीरा रे काव्य मांय छंद वैविध्य ई घणो। दूहा, सोरठा, सवैया रे साथे साथे उण कुंडल, ताटक अरप सरसी छंदां मांय पद रचना कीवी।

मीरा री भक्ति
श्रद्धा भक्तिरो आधार है ने भक्ति, भक्त अ े भगवान रे भावात्मक संबंधां ने व्यक्त करे। इणीज भावात्मक संबंधां ने नारदजी प्रेमा रूपा अर अमृत स्वरूपा कह्यो है। इणने प्राप्त कर मिनखने कोई आसक्ति नी रहवे। वो पूर्ण तृत्प हुजावे। उणरे मन मांय किणी रे प्रति द्वेष रो लेशमात्र अंश ई नी रहवे। वो आत्मराम वण जावे। उणने तो भगवान ने छोडङर किणी दूजे आश्रय री जरूरत रहवे ई कोनी. इण ने ईज अनन्यता कहवे।

मीरा री भक्ति प्रेम रूपा ही। उणमांय अन्यनता है। भगवानने छोड़ङर उणने भाई, सगा, संबंधि किणी रे आश्रय री जरूरत कोनी. मात्र भगवान ईज परम आश्रय है ने इणीज वास्ते उम गायो के
म्हारा तो गिरध गोपल दूसरा ना कोई।
दूसरा ना कोई साधां सकल लोक जोई।
भाई छोड्यां बंधु छोड्या छोड्या सगा मोई।
भक्त देख राजी हुई, जगत देख रोई।
दध  मथ घृत काझ लिया दार दिया छुंया।
माई म्हूं तो सांवले रंग राची।
गाया गाया हरि निस दिन काल-व्याल री वांची।
मीरा सिरी गिरधर नागर, प्रेम रसीली जांची।

इण परम प्रेम भक्ति री इगियारे आसक्तियां मानी है। ने एक वात्सल्यने छोड़ इण सगली आसक्तियां रा दरसण मीरा रे पदां मांय दीठीजे (1) गुण कथन (2) रूपासक्ति (3) पूजासक्ति (4) स्मरणासक्ति (5) दास्यासक्ति (6) सख्यासक्ति (7) कांतासक्ति (8) वात्साल्यासक्ति (9) आत्मनिवेदनासक्ति (10) विरहासक्ति अर (11) तन्मयदासक्ति।

श्रीमद् भागवत मांय जिण जिण नवधा भक्ति रो उल्लेख है उण मांय अर नारदजी री उपर्युक्त आसक्तियां मांय तत्वतः कोई फरक कोनी।

मीरा मांय कांतासक्ति री प्रचुरता है। इणने मधुरासक्ति ई कहवे। ठौड़ ठौड़ प्रियतम, स्वामी, भव भव रा भरतार, जनम जनम रो साथी, प्रीतम, साजन, पिया आदर जिका संबोधन भगवान वास्ते मिले वे दांपत्यभाव रा सूचक है जिणमाय समर्पण, प्रेम, विहर सेवा अर मिलण री तीव्रता है। भूल सूं ईज जो कोई उण पदां मांय सांसारिकता रा दरसण करणो च्हावे तो उणने घोर निराशा ईज मिलेला। आपां जांणा हो के प्राणीमात्रा मांय रतिभाव घणो प्रबल हुवे। इणरी प्रभलता मिनख रो विनाश है। गीता रे अध्याय दोय मांय भगवान एक पछे एक इण विनाश रा कारण दरसावतां कह्यो है के :-
ध्यायतो विषयान्युंसः रागस्तेषूपजयाते।
संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोअभिजायते।।62।।
क्रोधाभ्दवति संमोहः संमोहात्वस्मृति विभ्रम।
स्मृतिभ्रंशात् बुद्धिनाशो, बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ।।63।।

(विषयां रा चिंतन करणवाला पुरूष री उण विषयां मांय आसक्ति हुये जावे। आसक्ति सू  उण विषयां री कामना उत्पन्न हुवे अर कामना मांय विघ्र पड़ण सूं क्रोध उत्पन्न हुवे। क्रोध सूं संमोह (अविवेक) उत्पन्न हुवे अर संमोह सूं स्मरण सख्ति भ्रमित हुवे। स्मरण शक्ति रे भ्रमति हुवण सूं बुद्धि रो विनाश हुवे अर बुद्धि रे नाश सूं आपरे श्रये साधन सूं चलित हुय जावे।

पण लौलिक विषय वासनावां ने भगवान मांय लीन करणो ईज मिनख। जीवण रो चरम लक्ष्य हुवणो चाहीजे। मीरा इण काम मांय सौ टका सफल हुई। पण लोग मीरा रे इण उच्च दांपत्यभाव ने नी समझ सकिया अर  ुणने मदनबावली कहङर प्राणआतंक कष्ट दीनो तो ई वा विस्वास सूं डिगी नी।

मीरा तो आपरे इष्ट गिरधर गोपाल री जनम जनम री दासी ही अर गिरधर उणरा जनम जनम रा भरतार। वा तो कादा मांय कमल ज्यूं आपरी सुवास करती रही। उण झुकणो तो जाणियो ई कोनी हो। वा आछी तरयां जाणती ही के संसार मांय मिनखरो नाम उणरे सुकार्यां सूं होवे नी के धन, धाम, संतान अर वरण-वर्ग सूं। इणीज वास्ते एक लोक दूहो आज ई राजस्थान रे लोगां के कंठ रो हार वणियोड़ो है।
नाम रहेगो काम सूं सुणो स्याणा लोग।
मीरा सुत जायो नहीं शिष्य न मुंड्यो कोय।।
उणरा भींतड़ा नी पण गीतडा अमर हुयगा अर आज चारसो वरसां पछे पण जागरमआं भक्त मंडिलायां अर साहित्यिक संगोष्ढियां मांय मीरा रो श्रद्धा युक्त स्मरण मीराने अमर वणा दियो।

मीरा रा पद
(1)
असा प्रभु जाण न दीजे हो।
तन मन धन कर वारणे हिरदै धर लीजे हो।
आव सखी मुख निरखिये, नैणां-रस पीजे हो।
जिण जिण विधि रीझे हरी, उण विध कीजे हो।
सुंदर स्याम सुहामणा, मुख देख्यां जीजे हो।
मीरा रा प्रभु गिरधरनागर, बड़भागण रिझे हो।
(2)
आंख्यां हरि दरसण री प्यासी।
मग जोतां दिन वीता सजणी, रैण पड्या दुखरासी।
कड़वा बोल लोक जग बोल्या, करसी म्हारी हासी।
मीरा हरि रे हाथ हाथ विकांणी, जनम जनम री दासी।
असा-ऐसे। जाण न दीजे-जाने न देना। वारणे-न्योछावर। हिरदै धरलीजे-हृदय में धारण कर लेना। नैणा-रस-नेत्रामृत। उण विध कीजे-उस प्रकार करे। बड़ भागण-बड़ भागिन। रीझे-रीझ जाती है।
दुखरासी-दुखराशि। हासी-हँसी-अपमान। बिकाणी-बिक गई है।

(3)
एरी ! म्हूं तो दरद-दीवाणी।
म्हारो दरद न जाणए कोई।
घायल री गत घायल जाणे, अवर न जाणे कोय।
जवरी री गत जवरी जाणे, के जिणे जंवरी होय।
सूली ऊपर सेझ अमारी सोवण किस विध होय।
गगन-मंडल पर सेझ पिया री, मिलणो किण विध होय।
दरद रे कारण वन वन भटकूं, वैद मिलिया नही कोय।
मीरा री प्रभु पीड़ मिटेली जद वैद सांवरियो होय।।
(4)
कोई कह्यो रे, प्रभु आवण री।
आवण री मन भावण री।
आप नी आवे लिख नी भेजे, बांण पड़ी ललचावण री।
ए बेउ नैण कह्यो नहीं माने, नदिया वहे ज्युं सावण री।
कांई करूं कुछ वस नी म्हारो, पांख नही उड़ जावण री।
मीरा कहे प्रभु कदङर मिलोगा, चेरी भई थांरे दामण री।

जंवरी-जौहरी। अमारी-हमारी। सोवण-सोना। सेझ-शय्या। किण विध-किस भाँति। कैसे।
आवण री-आने का। भावण री-भाने की। बांण-आदत। बेउ-दोनां। वहे-बहना। वस-बस। मिलोगा-मिलेंगे। थारे-तुम्हारे। दामण-दामन।

(5)
घड़ी चैन न आवड़े तां दरसण विण मोय।
अन्न न भावे ऊंग न आवे विरह सतावे मोय।
घायल ज्यु घूमत फिरूं म्हारो दरद न जाणे कोय।
प्राम गुमाया झूरतां रे नैण गुमाया रोय।
पंथ निहारू  डगर बहारूं ऊभी मारग जोय।
मीरा रा प्रभु कदङर मिलोगा थां मिलिया सुख होय।
(6)
चरण-रज महमा म्है जाणी।
जिण चरणा सूं गंगा प्रगटी, भगीरथ कुल ने तारी।
़जिण चरणां सूं विप्र सुदामा, हरि कंचन धाम करी।
जिण चरणां सूं अहिल्या उधरी, गौमत री महलाणी।
मीरा रा प्रभु गिरधरनागर, चरण कमल लपटाणी।
---
आवड़े-मिलती है। विण-बिना। झूरतां-कलपते। डगर-रास्ता। बुहारूं-बुहारती हूँ। थां -आप।
महलाणी-पत्नी-स्त्री। लपटाणी-लिपट गई।

(7)
छोड़ मत जाज्योजी महाराज।
महां अबला बल म्हारो गिरधर, थे म्हारा सरताज।
म्हां गुणहीण, गुणागर नागर, म्हां हिवड़ा रो साज।
जग तारण भौ भीत निवारण, थे राख्या गजराज।
हार्या जीवण सरण रावलां, कठै जावां ब्रजराज।
मीरा रा प्रभु अवर ना कोई, राखो इब तो लाज।
(8)
जरीक हरि चतिवो म्हारी ओर।
म्हां चितवां, थे चितवो नाही, दिल रा बड़ा कठोर।
म्हारी आसा चितवण थांरी, अवर न दूजी ठौड़।
थे म्हासूं कदङर मिलोला, म्हां-सी लाख करोड़।
ऊभी ठाडी अरज करूं छुं, हुयगी इब तो भोर।
मीरा कहे प्रभु हरि अविनासी, देस्यूं प्राण अंकोर।
--
जाज्योजी-चले जाना। सरताज ज्ञ् 1. शिरोमणि, 2 पति। हिवड़ा-हृदय। साज-शृंगार। भौ भीत-सांसारिक कष्ट या भय। राख्या-उद्धार किया। हारया जीवन-जीवन से हार गई। रावला-आपके। कठै-कहाँ। इब-अब।
---
अवर न दूजी ठौड़-दूसरा स्थान (शरण के लिये) नहीं है। म्हां-सी-हमारे जैसी। ठाडी-ठाढी-स्थिर। इब-अब। अंकोर-न्योछार-भेंट। देस्यूं-दूंगी।
(9)
जोगिया ने कहज्योजी आदेस।
जोगियो चतर सुजाण सजणी, ध्यावे संकर सेस।
आवूंली, म्हूं नीईज रहूंली, पीव विण परदेश।
करि करिपा प्रतिपाल म्हां ऊपरि राखो नी आपण देस।
माला मुदरा मेखला रे वाल्हा, रख्पर लूंगी हाथ।
जोगण वणि जुग ढूंढसूं रे, म्हारा रावलिया रो साथ।
सावण आवण कह गया वाल्हा, करिया कौल अनेक।
गिमता गिमता घसगी रे, म्हारी आंगलियां री रेख।
पिव कारण पीली पडी वाल्हा, जोबन बालीवेस।
मीरा रा प्रभु गिरधरनागर, तममन कीन्हो पेस।
(10)
जोगिया सूं प्रती कियां दुख होय।
प्रीत कियां सुख ना म्हारी सायर, जोगी मिंत न कोय।
रात दिवस कल ना पड़े है, थां मिलिया विण मोय।
ऐड़ी सूरत या जग मांही, फेर न जोई सोय।
मीरा रा प्रभु कदङर मिलोगा, मिलियां आणंद होय।

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आदेस-प्रणाम। चतर-चतुर। ध्यावे-प्रार्थना करते हैं, आराधना करते हैं। सेस-शेष (नाग) राखोनी-रखिये ना। मुदरा-कान मे पहिनने की योगियों की बाली, मुद्रा। मेखला-योगियों के पहिनने की करधनी। वाल्हा-प्रिय। रावलिया-तमाशा दिखाने वाला। रेख-रेखाएं। वालीवेस-वाल्यावस्था। पेस-समर्पित।
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जोगिया-योगी-योगीश्वर-श्रीकृष्ण। किंयां-करने से। सायर-सजनी। मिंत-मित्र। कोय-किसी का भी। कल-चैन। मोय-मुझे। कद-कब।

(11)
जोगी मत जा, मत जा मत जा।
पांव पडूं म्हूं चेरी थारी।
प्रेम-भगति रो पैंडो ई न्यारो हम कूं गैल बताजा।
अगर-चंदण री चिता बणावूं, अपणे हाथ जलाजा।
बल-बल भई भस री ढेरी, अपणे अंग लगाजा।
मीरा रा प्रभु गिरधरनागर, जोत में जोत मिलाजा।
(12)
थारो रूप देख्यां अटकी।
कुल कुंटुंब सजन सकल वार वार हटकी।
वीसरी नी लगन जगी मोर मुगट नट की।
म्हारो मन मगन श्याम लोग कहे भटकी।
मीरा प्रभु शरण गही, जाणे घट घट की।।
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पैंडो-पदयात्रा, मार्ग, प्रथा। गैल-रास्ता। जोत-ज्योति।
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अटकी-मुग्ध होगई। हटकी-रोकी गई। वीसरी-भूली। नटकी-नटवर गिरधर की। भटकी-रास्ते से चलित होना। घट घट की-सबकी।

(13)
दरस विण दूखण लागै नैण।
जदसूं थे बिछुड़्या प्रभु म्हारा कदी न पायो चैन।
सबदां सुणता म्हारी छाती कांपै, मीठो थांरो वैण।
विरह विथा किणसूं कहूं सजनी, वह गी करवत ऐन।
कल नी पड़े कल, हरि मग जोवत, भई छ मासी रैण।
मीरा रा प्रभु कदङर मिलोगा, दूख मेटण सुख देण।
(14)
देख बाई, हरि मन काठ दियो।
आवण कह गया अजां न आया, कर म्हांने कोल गया।
खाण-पाण सुध-बुध सब विसर्या कांई म्हां प्राण जियां।
थारो कोल विरुद जगथारो, थे कांई विसर गया।
मीरा रा प्रभु गिरधरनागर, था विण कटे हिया।
--
विण-बिना। जदसूं-जबसे। वह गई-चली। करवत ऐन-ठीक। भई छ मासी रैण-रात छ मास जितनी लंबी होगई है। सबदां-प्रीतिवचन। वैण-वचन।
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काठ-कठोर, सख्त। अजां-अभी तक। काले-प्रतिज्ञा, वचन देना। कांई म्हां प्राण जियां-अब मैं कैसे जीवित रहूं. विरूद-यश, कीर्ति।

(15)
नहि ऐड़ो जनम वारंवरा।
का जाणू कांई पुण्य प्रगटे, मानुसा अवतार।
वधत छिण छिण घटत पल पल, जात न लागे वार।
बिरछ रा ज्युं पान टूटे, फेर न लागे डार।
भौ सागर अति जोर भारी, अनंत ऊंडी धार।
राम नाम रो बांध बेड़ो, उतर परले पार।
ग्यान-चौपड़ मंडी चौहटे, सुरत पासा पार।
या दुनिया मां रची बाजी, जीत भावे हार।
साधु संत महंत ग्यानी, चलत करत पुकार।
मीरा रा प्रभु गिरधरनागर, जीणो है दिन च्यार।
(16)
नी भावे थांरो देसलडो रंग रूड़ो।
थांरे देस राणा साध नहीं छे, लोग वसे सब कूड़ो।
गहणा-गांठा म्हां सब त्याग्या, त्याग्यो कर रो चूड़ो।
काजल टीकी म्हां सब त्याग्या, त्याग्यो छे बांधण जूड़ो।
मीरा रा प्रभु गिरधरनागर, वर पायो छे पूरो।
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मानुसा अवतार-मनुष्य जनम। वधत-बढ़ता है। परले पार-उस किनारे। ग्यान चौपड़-ग्यान रूपी चौपड़ का खेला। सुरत-ध्यान (ईश्वर का)। पार-फेंक। रची बाजी-खेल की तैयारी हो गई है। भावे-अथवा। जीणो-जीना जीवन जीवन। दिन चार-(थोड़े दिन के लिये) मां-में।
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भावे-अच्छा व प्रिय लगना। देसलड़ो-देस। रंगरूड़ो-मनमोहक। साध-साधु संत, सज्जन। कूड़ोझूठे। गहणा0गांठा-हना व अन्य संपति, धन माल। चूड़ो-सौभाग्यवती स्त्रियों के हाथों मे पहिनने का हाथीदांत की चूड़ियों का गावदम सेट। पूरो-पूर्ण (पुरूषोतम)।

(17)
नींदड़ली आवे नी सगली रात, किणविध होय परभात।
चमक उठां सुपनां लख सजणी, सुध ना भूल्या जात।
तड़फ तड़फ जिवड़ो जावे, कदङर मिले दीनानाथ।
भवां बावली सुध-बुध भूली, पीव जाणे म्हारी वात।
मीरा पीड़ा सोई जाणे, मरण-जीवण जिण हाथ।

(18)
पग बांध घूघर मीरा नाची रे।
म्हां तो म्हांरा नारायण री, हुयगी आपई दीसा रे।
लोग कहे मारी भई रे बावली, राज कहे कुलनासी रे।
विष रो प्यालो राणाजी भेज्यो, पीवत मीरा हासी रे।
मीरा रा प्रभु गिरधरनागर, सहज मिले अविनासी रे।
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सगली-सारी। भवां-होने की क्रिया या भाव। पीड़ां-कष्टों को।
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आपई-अपने आप। बावली-बावरी, पागल। कुल नासी-कुल का नास करने वाली। हासी-हँसी।

(19)
पपैया रे पिव री वाणी नी बोल।
सुणि पावेली विरहणी रे, थारी रालैली पांख मरोड़।
पांच कटाऊं पपैया रे, ऊपर कालर लूण।
पिय म्हारा, म्हूं पीव रे, तूं पिव कहणु कूण।
थारा सबद सकुहामणा रे, जो पिव मेलां आज।
चांच मढाऊं थारी सोवणी रे, थूं म्हारो सिरताज।
प्रीतम कूं पाती लिख भेजूं रे, कागा थूं ले जाय।
जाय प्रीतम सूं इयुं कहजे रे, थांरी विरहणी धान न खाय।
मीरा दासी व्याकुली रे, पिव पिव करत विहाइ।
वेगि मिलो प्रभु अंतरजामी, थां विण रह्यो न जाइ।।
(20)
पायोजी म्हें तो राम रतन धन पायो।
वस्तु अमलोक दी म्हारा सतगुरु किरपा कर अपनायो।
जनम जनम री पूंजी पाई जग रो सैंग खोवायो।
खरचे नहीं खूटे, चोर ना लूटे, दिन दिन बधत सवायो।
सतरी नाव खेवटियो सतगुरु, भवसागर तरि आयो।
मीरा रा प्रभु गिरधरनागर, हरषि हरषि जस गायो।।
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सुणि पावेली-सुनली। रालैली-डालेगी। कालर-क्षारयुक्त भूमि। कहणु-कहने वाला। कूण-कौन। मेला-मिलन। सोवणी-सुहामनी, सोने की। विहाई-व्यतीत करती है। धान-अनाज।
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हरषि हरषि-खूब हर्षित होकर। गुण गायो-गुणानुवाद किया। खेवटियो-केवट।

(21)
बस्या म्हारे नैणा मां नंदलाल।
मोर-मुगट मकराक्रत कुंडलण, अरूण तिलक सोहे भाल।
मोहनी मूरत सांवली सूरत, नैणा वणिया विसाल।
अधर सुधरास मुरली राजत उर वैजंती माल।
मीरा प्रभु संतां सुखदाई, भगत-वछल गोपाल।।
(22)
भज मन चरण-कंवल अविनासी।
जेताई दीसे धरण-गगन विच ते ताई उठ जासी।
कांई व्हियो तीर्थ व्रत कीधां, कांई लियां करवत कासी।
इण देही रो गरब न करणो, माटी में मिल जासी।
यो संसार चरह री बाजी, सांझ पड्यां उठ जासी।
कांई हुवे भगवा पहर्यां, घर तज हुआं संन्यासी।
जोगी होय जुगत नी जाणी, उलट जनम फिर आसी।
अरज करूं अबला कर जोड़े, स्याम आपरी दासी।
मीरा रां प्रभु गिरधरनागर, काटो जम री फांसी।।
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वणिया-शोभायमान हैं। माल-माला। संतां-संतो को। वछल-वत्सल।
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चरण-कंवल-चरण रूपी कमल। अविनासी-जिसका विना न हो। जेताई-जितने ही। धरम-धरणी। तेताई-उतने ही। उठ जासी-उठ जायेंगे। करवत-कासी। कहा जाता है कि काशी में जाकर करवत लेने पर मुक्ति मिलती है। इण-इस। न करणा-नहीं करना चाहिये। कांई व्हियो-क्या हुआ। भगवां पहरया-संन्यासी होने से। जगुत-युक्ति। उपाय। उलट आसी-आवागमन से छुटकारा न होगा। काटो जम री फांसी-आवा-गमन से छुटकारा दो।

(23)
मन थूं परस हरि रे चरण।
सुभग सीतल संवल कोमल, त्रिविध ज्वाल हरण।
जिण जरण प्रहलाद परसे, इंदर पदवी धरण।
जिण चरण ध्रुव अटल कीने, राख अपनी सरण।
जिण चरण ब्राह्मांड भेट्यो, नख-सिख सिरी धरण।
जिण चरण प्रभु परस लीने, तरी गौतम धरण।
जिण चरण काली नागर नाथ्यो, गोप लीला करण।
जिण चरण गोवरधन धारयो, इंदर गरब हरण।
दास मीरा लाल गिरधर, अगम तारण तरण।
(24)
णाई म्हारे नैणा बाण पड़ी।
चित चढी म्हारे माधुरी मूरत, हिवड़े अणी गडी।
कद री ऊभी पंथ निहारूं अपणे भवन खड़ी।
अटक्या प्राण सांवले प्यारो, जीवण मूर जड़ी।
मीरा गिरधर हाथ विकाणी, लोक कह्यो विगड़ी।
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त्रिविध ज्वाल-दैहिक, दैविक, भौतिक। परसे-स्पर्श करने से, ध्यान करने से। अटल कीने-अटल लोक की प्राप्ति हुई। ब्रह्मांड भेट्यो- (वामन से विराट रूप धारम कर) ब्राह्मांड को नाप लिया। नख-सिख सिरी धरण-नख से शिख तक शोभा युक्त है। धरण-धरमई, पत्नी (स्त्री)। अगम तारण तरण-अगमस्य संसार रूपी सागर को पार करने के लिये (तरण) नौका बन गये। वाण-आदत। चित चढी-हृदय में बस गई।
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अणी गडी-नोक चुभ गई। मूर-मूल। जीवण मूर जड़ी-अत्यन्त प्रिय वस्तु। विकाणी-बिक गई, समर्पित होगई। विगड़ी-बिगड़ी, चरित्र भष्ट।

(25)
माई म्हां गोविंद गुण गास्यां।
चरणआम्र्‌ि त रो नेम सकारे नित उठ दरसण जास्यां।
हरि मिंदर मांय निरत करांला घूघर्या धमकास्यां।
स्याम नाम रो झाझ चलास्यां भौसागर तर जास्यां।
यो संसार बीड़ रो कांटो, गैल प्रीतम अटकास्यां।
मीरा रा प्रबु गिरधरनागर, गुण गावां सुख पाम्यां।
(26)
माई री म्हां लीनो गोविंदो मोल।
थे क्होय छाने म्हां कह्यो चवड़े, लीनो वजंता ढोल।
थे कह्यो मुहंगो, म्हां कह्यो सुहंगो, लीनो तराजां तोल।
थे कह्यो कालो, म्हां कह्यो गोरो, लीनो सांवलियो मोल।
या ई कूं सब जग जाणत है, लीनो री आंख्यां खोल।
मीरा रने प्रभु दरसण दीजो, पूरब जनम रो कौल।
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गास्यां-गाऊंगी। नेम-नियम, व्रत। सकारे-प्रातःकाल। जास्यां-जाऊंगी। घम कास्यां-बजाऊंगी। झाझ-जहाज। तर जास्यां-पार कर लूँगी। यो-यह। बीड़-बीहड़। गैल-मार्ग। गैल अटकास्यां-प्रवृत्त करूंगी।
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छाने-छिपे रूप में. चवड़े-चौड़े, सबके सामने। वजंता-बजते। या ई कूं-इसको। आंख्यां खोल-खूब सोच समझ कर। पूरब जनम रो कौल-पूर्व जन्म का वादा था।

(27)
म्हारा ओलगिया घर आया जी।
तन रो ताप मिटोय सुख पायो हिलमिल मंगल गाया जी।
घन री धुन सुणि मोर मगन भया, म्हारे आणंद आया जी।
मगन थई मिल प्रभु अपणासूं, भव रा दरद मिटाया जी।
चंदा देख कमोदणि फूले, हरख भरी मेरी काया जी।
रंग रंग सीतल भई म्हारी सजनी, हरि म्हारे महल सिधाया जी।
सब भगतां रा कारज कीना, सोई प्रभु म्हां पायाजी।
मीरा विरहण सीतल होई, दुख दुंद दूर नसाया जी।
(28)
म्हारा जनम जनमन रा साथी थांने ना विसर्यां दिन राती।
थां देख्या विण कल न पड़त है जाणे म्हारी छाती।
ऊंचा चढचढ पंथ निहारय, कलप कलप आंख्यां राती।
भो सागर जग बंधण झूठा झूठा कल रा न्याती।
पल पल थारो रूप निहारां, निरख निरख मदमाती।
मीरा रा प्रभु गिरधरनागर, हरि चरणां चित राती।

ओलगिया-प्रवासी। हरख-हर्ष। सिधाया-प्रस्थान का मंगल सूचक पर्याय। दुंद-द्वन्द्व, संघर्ष। नसाया-नष्ट किये।
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जाणे म्हारी छाती-इस दर्द को मेरा हृदय ही जातना है।
निहार्या-देखा। कलप कलप-कलपते कलपते।
राती-लाल। न्याती-जाति, संबंधी। मदमाती-मदमस्त। राती-अनुरक्ता।
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(29)
म्हारा तो गिरधर गोपला, दूसरो न कोई।
दूसरो न कोई साधां सकल लोक जोई।
जिणरे सिर मोर-मुगट, म्हारो पति सोई।
साधां संग बैठ बैठ, लोक लाज खोई।
भगत देख राजी हुई, जगत देख रोई।
छांड दीवी कुल री कांण, कांई करेला कोई।
असुवां जल सींच सींच प्रेम वेल बोई।
अब तो वात फैल गई, आणंद फल होई।
मीरां री प्रभु लगन लागी, होणी ही जो होई।
(30)
म्हारे घर आज्यो प्रीतम प्यारा थां विण ओ जग खारा।
तम मन धन सब भेंट धरूं, ओ भजण करूं म्हूं थारा।
थे गुणवंत वडा गुणसाग, म्हूं छुं औगणहारा।
म्हूं निगुणी गुण एकई नाहि, थे छो बगसण हारा।
मीरा रा प्रभु कद र मिलोगा, थां विण म्हां दुख्यारा।
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कांण-मर्यादा। कुल-खानदान। करेला-करेगा। साधां-साधों के।
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खारा-बुरा। वडा-बड़े। औगणहारा-अवगुणों की भंडार। निगुण, जिसमें कोई गुण न हो, उपकार रहित, कृतघ्र। बगसण हारा-बक्षनेवाले, क्षमाशील।

(31)
म्हारो मन राम-ईराम-रटे।
राम नाम जप लीजे प्राणी, कोटो पाप कटे।
जनम जनम रा खत जे पुरामआ, नाम ई लेत फटे।
कनक कटोरे इमरत भरियो, पीतां कूण नटे।
मीरा रा प्रभु हरि अविनासी, तन मन थारे पटे।
(32)
म्हांने चाकर राखोजी, गिरधारीलाल
महांने चाकर राखोजी।
चाकर रहसूं बाग लगासूं, नित उठ दरसण पासूं।
विंद्रावन री कुंज गली में, थारी लीला गासूं।
चाकरी में दरसण पावूं, तीनां वातां सरसी।
लीला लीला वन्न वणावूं, विचविच राखूं क्यारी।
सांवलिया रा दरसण पावूं, पहर कंसूबी साड़ी।
आधी रात प्रभु दरसण दीजो, जमनाजी रे तीरा।
मीरा रा प्रभु दिरधरनागर, हिवड़ो घमो अधीरा।
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रटे-रटता है। कोटी-करोड़ो। खत-ऋण-पत्र। कटोरे-कटोरे में। नटे-मना करता है। पटे-अधीन।
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चाकर-सेवक।चाकरी-सेवकाई। खरची-निर्वाह खर्च। जागीरी जागीर दार के कब्जे रे गाँव, जमीन। सरसी-समान, सुनंदर। तीरा किनारे (तीरा) पर। हिवड़ो-हृदय। अधीरा-अधीर।
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(33)
म्हांने लगी लगन हरि चरणां री।
दरस विणा म्हांने कांई नी भावे, जग माया सब सपणा री।
भवसागर सब जोय लीनो, फिकर नहीं म्हांने तरणा री।
मीरा रा प्रभु गिरधरनागर, आस उणी हरि चरणां री।
(34)
म्हूं तो गिरधर रे घर जावूं।
गिरध महारो साचो प्रतीम, देखंत रूप लुभाऊं।
रैण पड़े तद ही उठ जावूं, भोर हुआ उठ आवूं।
रैणादिन वांरे संग खेलूं, ज्युं त्युं वांने रिझाऊं।
जो पहरावे वोई पहरुं, जो दे वोई खावूं।
म्हारी उणरी प्रीत पुराणी, उण विण पल न रहाऊं।
जित बैठावे तित ई बैठूं, वेचे तो विक जावूं।
मीरा रा प्रभु गिरध नागर, वार वार बलि जाऊं।।
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जोय लीनो-देख लिया है। तरणा-तैरने की, पार करने की। उणी-उन्हीं।
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रैण पड़े-उठा जाऊं-रात होते ही उमने मिलने चली जाऊंगी और प्रातःकाल होते ही वहाँ से चली जाऊंगी। वास्तव में अनेक जातियों में यह एक रिवाज है। पुष्करणा और तपोनिष्ट ब्राह्मणों में यह रिवाज मर्यादा रखन हेतु आज भी प्रचलित है। वांरे-उनके। वांने-उनको। वोई-सोई। विण-बिना। जित तित-इधर उधर। वेचे-बेचे। विक-बिक।
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(35)
म्हूं तो सांवलिया रंग राची।
सज सिंगार बांध पग घुघरू, लोकलाज तज नाची।
गई कुमत लई साधु री संगत, भगत रूप भई सांची।
गातां गातां हरिगुम निदस दन, कालोतरी म्हें वांची।
उण बिण सब जग खारो लागे, अवर वात सब काची।
मीरा रा प्रभु गिरधरनागर, जोत में जोत समासी।।
(36)
म्हूं विरहण बैठूं जागूं जगत सब सोवे री आली।
विरहणी बैटी रंगमहल में, अंसुवां माला पीवे।
तारा गिण गिण रैण विहाणी, सुख री घड़ी कद आवै।
मीरा रा प्रभु गिरधरनागर, मिल र बिछुड़ नी जावे।
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कालोतरी-मृत्युपत्रिका। काची-व्यर्थ। जोत-ज्योति। समासी-समायेगी, लीन हो जायेगी।
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पोवे-पिरोती है। विहाणी-व्यतीत की। कद-कब।

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(37)
राणाणी ! थे क्यांने राखो म्हांसू वैर।
थे तो राणाजी म्हांने इसड़ा लागो ज्युं रूंखा मां कैर।
महल अटारी म्हां सब त्याग्या, त्याग्यो थारो बसनो सहर।
कजल टीकी म्हां सब त्याग्या, भगमी चादर पहर।
मीरा रा प्रभु गिरध नागर, इमरत करयो जहर।
(38)
राणाजी ! म्हांने या बदनामी लागे मीठी।
कोई निंदो कोई विंदो, म्हूं चलूंला चाल अपूठी।
सांकड़लो सेर्या जन मिलिया, क्यूंकर फिरूं अपूठी।
सत संगति मांय ज्ञान सुणैची, दुरजण लोकां दीठी।
मीरा रा प्रभु गिरधरनागर, दुरजन बलो अंगीठी।
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क्यांने-क्यां। थे-आप। वैर-शत्रुता बैर। इसड़ा-ऐसे। लागो-लगते हैं। रूंखा-वृक्षां। मां-में। कैर-करील वृक्ष। बसनो-आधिपत्य का। टीकी-बिंदिया। भगमी-भगवी।
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या बदनामी-कृष्ण से प्रेम होने की बदमानी। निंदो-निंद करे। विंदो-वंदन, प्रशंसा करे। चलूंला-चलूंगी। अपूठी-उल्टी। सांकड़ली-संकरी. सेरयां- गलियाँ। जन-पुरुष (श्रीकृष्ण) हरि भख्ति। क्यूं कर-कैसे। अपूठी-पीठ फेर लूं। सुणैछी-सुन रही थी। दीठी-देखा। लोकां-लोगोंने। जलो अंगीरी-भाड़ में जलो।
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(39)
राम नाम रस पीजे
मनवा ! राम नाम रस पीजे।
तज कुसंग, सतसंग बैठ नित, हरि चरचा सुण लीजे।
काम क्रोध मद लोभ मोह कूं, चित सूं नसाय दीजे।
मीरा रा प्रभु गिरधरनागर, उणरा रंग रंगीजे।
(40)
रामैयो मिलण कद हूसी।
थे कहोनी जोसी, रामैयो मिलण कद हूसी।
आवो पधारो जोसी, आंगणिये विराजो
वांच सुणावो थांरी पोथी।।1।।
पाग पटोला जोसी, अवछल वागो।
पहरण पीतांबर धोती।।2।।
सोने रूपे सूं जोसी, हाथ मंडावूं
रतना जडाऊं थांरी पोथी।।3।।
खीर खांड रा जोसी, अमृत भोजन
नैत जिमावूं, थांरा गोती।।4।।
पांच मोहरां री जोसी, दिखणा देरावूं
सात समंदरां वधका मोती।।5।।
मीरा रा प्रभु गिरधरनागर
राम मिलयां सुख होसी।।6।।
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रमैयो-राम-श्रीकृष्ण। जोसी-ज्योतिषी। आंगणिये-आंगन में। पोथी-पुस्तक। (यहाँ ज्योतिष का भविष्य कथन) नैत-निमंत्रित करके। गोती-गौत्र के लोग। पटोलो-एक रेशमी वस्त्र। पहरण-कुर्ता। दिखणा-दक्षिणा। वधका (1)कीमती (2) तुलना में श्रेष्ठ। होसी-होगा।
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(41)
ववरसे वादलियां सावण री, सावण री मन भावण री।
सावण में उमड़यो म्हारो मनड़ो, भणक सुणी हरि आवण री।
उमड़ घुमड़ घम मेघ आया, दामण घन झड़ लावण री।
वीजां बूंदां मेहो वरसे, सीतल पवन सुहामण री।
मीरा रा प्रभु गिरधरनागर, वेला मंगल गावण री।
(42)
वादल देख डरी
स्याम ! म्हां वादल देख डरी।
काली-पीली घटा उमड़ी, वरस्यो एक घड़ी।
जित जावूं तित पाणी पाणी, हुयगी भोम हरी।
म्हारा पियु परदेश वसत है, भीजूं बार खड़ी।
मीरा रा प्रभु गिरधरनागर, करज्यो प्रीत खरी।।
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वादलियां-बदलियाँ। भणक-भनक। वीजां-बिजलियां। वेला-समय।
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वरस्यो-बरसा। वसत-बसते है। बार-बाहर, द्वार। भीजूं बार खड़ी-द्वार पर प्रतीक्षा करते हुये। खरी-पक्की।
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(43)
विध विधना री न्यारी।
दीरध नैण मिरग कूं दीना वन वन फिरतो मारी।
उजलो वरण बगलां पायो, कोयल वरणा काली।
नदियां नदियां निरमल धारां, समंदर कीना खारी।
मूरख जन सिंघासण राजे, पिंडत फिरतां द्वारी।
मीरा रा प्रभु गिरधर नागर, राणा भगत संधारी।।
(44)
सुणी री म्हें हरि आवण री आज।
महलां चढी जोवूं म्हारी सजनी, कद आवे महाराज।
दादुर मोर पपीहा बोले, कोयल मधुरे साज।
उमड़यो इन्द्र चहु दिस बरसे, दामणि छोडी लाज।
धरती रूप नवा नवा धरिया, इन्द्र मिलण रे काज।
मीरा रा प्रभु गिरधरनागर, वेल मिलो महाराज।
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विध-विधि, पद्धति। विधना-ब्रह्मा। दीना-दिये। वरण-वर्ण, रंग। कीना-किया। राजे-शोभायमान हैं। द्वारी-द्वार द्वार पर। संघारी-नाश करने वाला।
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इन्द्र-मेघ घटा। दामणि-दामिनी। वेग-शीघ्र।
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(45)
सखी, म्हारी नींद नसाणी हो।
पिय रो पंथ निहारत, सब रैण विहाणी हो।
सब सखियां मलि सीख दई, मन एक न मानी हो.
विण देख्यां लना पड़े, मन रूसणा ठाणी हो।
अंग खीण, व्याकुल भयो मुख, पिय पिय वाणी हो।
अंतर वेदन विरह री म्हारी पीड़ ना जाणी हो।
ज्युं जातक घड कुं रटे, मछी ज्युं पाणी हो।
मीरा व्याकुल विरहणी सुध-बुध विसराणी हो।

(46)
सांवरा म्हारी प्रीत निभाज्योजी।
थे छो म्हारा गुण रा सागर, औगण म्हां विसराजो जी।
लोक ना धीजे मन ना पतीजे, मुखड़े सबद सुणाज्यो जी।
दासी थारी जनम जनम री, म्हारे आंगण आज्यो जी।
मीरा रा प्रभु गिरधरनागर, बेड़ो पार लगाज्यो जी।
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नसाणी-नष्ट हो गई। रैण-रैन। विहाणई-व्यतीत होगई। सीख दई-शिक्षा दी, समझाया बुझाया। रूसणा ठाणी हो-रूठने का निश्चय कर लिया है। खीण-क्षीण। अंतर वेदन-हृदय की पीड़ा को। घड़-घटा। विसराणी-भूल गई।
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धीजे-विश्वास करे। पतीजे-विश्वास करे। आंगण-आंगन।
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(47)
स्याम मिलण रे काज सखी, उर आरती जागी।
तड़फ तड़फ कलना पड़ै, विरहानल लागी।
निस दिन पंथ निहारों पिवरो पलक ना पल लागी।
पीव पीव म्हां रटां रैण-दिन, लोक लाज कुल त्यागी।
विरह भवंगम डस्यो कालजे, लहर हलाहल जागी।
मीरा रा प्रभु गिरधरनागर, स्याम उमंगां लागी।
(48)
स्याम मिलण रो घमओ उमावो नित उठ जोऊं वाटड़ियां।
दरस विणा म्हांने कांई न भावे, जक न पड़ दन रातड़ियां।
तड़फत तड़फत घणा दिन वीता, पड़ी विरह री गांठडिया।
नैण दुखी दरसण कूं तरसे नाभि न बैठे सासंड़ियां।
रात दिवस हिय आरत म्हारे, कद हरि राखे पासड़ियां।
लागी लगन छुटण री नाहि, अब क्युं कीजे आटड़ियां।
मीरा रा प्रभु कद र मिलोगा, पूरो मन री आसड़ियां।
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आरति-लालसा, तीव्र उत्कंठा। विरहानल-विरहाग्नि। पलक ना-पल लागी- एक पल भर के लिये भी नींद नहीं लगी। विरह भवंगम-विरह रूपी भुजंग। कालजे-कलेजे। लहर हलाहल जागी-विष की तरंगे उठना (शरीर में) स्याम उमंगां लागी-श्याम से मिलने की उमंगे जागृत हुई हैं।
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उमाव-उत्साह। वाटड़ियां-राह। जक-चैन। रातड़ियां-रात्रियां को। पड़ी-गांठड़ियां-गाँठे पड़ना। सासड़ियां-सांसे। आरत-तीव्र इच्छा। पासड़ियां-पास में। आसड़ियां-आशा। पूरो-पूर्ण करो।
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हरि थे हरो जण री भीर।
द्रोपदी री लाज राखी आप वधायो वीर।
भगत कारण रूप नरहरि, धरयो आप शरीर।
हिरणाकुस मार लीनो, धरयो नाही धरी।
बूडतो गजराज राख्यो, आप काढ्यो नीर।
दासी मीरा लाल गिरधर, हरो म्हारी भीर।
(50)
हरि ! म्हारा जवीण प्राण आधार।
अवर आसरो नहीं थां विण, तीनूं लोक मंझार।
थां विण म्हांने कांई नी सुहावे, निरख्यो सब संसार।
मीरा कहे म्हूं दासी रावरी, दीजो मती विसार।।
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भीर-कष्ट, आफत, संकट। वधायो-बढाया। नरहरि-नृसिंह। बूडतो-डूबते।
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अवर-अन्य। और। आसरो-आश्रय, शरण। विण-बिना। मंझार-बीच। थां-आप। राव री-आपकी।
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(51)
हेरी मा नंद रो गुमानी म्हारे मनड़े वस्यो।
गहे द्वुम डाल कदम ठाडो, मृदु मुसकाय म्हारी ओर हस्यो।
पीतांबर कट काछियो काठे, रतन जड़त माथे मुगट कस्यो।
मीरा रा प्रभु गिरधरनागर, निरख वदन म्हारो मन फस्यो।
--
गुमानी-गर्वीला। वस्यो-बसा। कट-कटि। कस्यो-कसा, पहिना। फस्यो-फंसा।

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