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(आभार राजस्थान पत्रिका)

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14 जनवरी

पौष - माघ

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माघ शुक्ल पांचम

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जनवरी - फरवरी

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फरवरी - मार्च

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फरवरी - मार्च

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मार्च - अप्रेल

चैत्र कृष्णा आठम

नवरात्र शुरु

मार्च - अप्रेल

(चैत्र शुक्ला प्रतिपदा सु नवमी) अर सितम्बर - अक्टुबर (अश्‍विन शुक्ला प्रतिपदा - नवमी)

वैशाखी

13 अप्रेल

चैत्र - वैशाख

नव संवत्सर

मार्च - अप्रेल

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गणगौर

मार्च - अप्रेल

चैत्र शुक्ला तीज

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मार्च - अप्रेल

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-

चैत्र शुक्ला तेरस

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जून - जुलाई

आषाढ शुक्ला ईग्यारस

गुरु पूनम

जून - जुलाई

आषाढ पूनम

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जुलाई - अगस्त

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-

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जुलाई - अगस्त

श्रावण शुक्ला तीज

नाग पांचम

जुलाई - अगस्त

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रक्षा बंधन

जुलाई - अगस्त

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अगस्त - सितंबर

भाद्रपद कृष्णा तीज

हल छठ

अगस्त - सितंबर

भाद्रपद कृष्णा छठ

श्रीकष्ण जन्माष्टमी

अगस्त - सितंबर

भाद्रपद कृष्णा आठम

गोगानवमी

अगस्त - सितंबर

भाद्रपद कृष्णा नवमी

पर्यूषण पर्व शुरु

अगस्त - सितंबर

भाद्रपद कृष्णा ईग्यारस

बछ बारस

अगस्त - सितंबर

भाद्रपद कृष्णा बारस

ऋ षि पांचम

-

भाद्रपद कृष्णा पांचम

दशलाक्षण पर्व

-

भाद्रपद शुक्ला 5 - 14

राधाष्टमी

अगस्त - सितंबर

भाद्रपद शुक्ला आठम

सुगंध दशमी/विश्वकर्मा दशमी

अगस्त - सितंबर

भाद्रपद शुक्ला दशमी

अनन्त चतुर्दशी

अगस्त - सितंबर

भाद्रपद शुक्ला चतुर्दशी

क्षमावाणी पर्व

-

आश्‍विन कृष्णा एकम

श्राद्ध पक्ष शुरु

सितंबर - अक्टूबर

आश्‍विन कृष्णा प्रतिपदा सु अमावस

दुर्गाष्टमी

सितंबर - अक्टूबर

आश्‍विन शुक्ला आठम

दशहरो (विजयदशमी)

सितंबर - अक्टूबर

आश्‍विन शुक्ला दशम

करवा चौथ

अक्टूबर - नवंबर

कार्तिक कृष्णा चौथ

धन तेरस

अक्टूबर - नवंबर

कार्तिक कृष्णा तेरस

गोवर्धन पूजा (अन्नकूट)

अक्टूबर - नवंबर

कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा

भाई दूज

अक्टूबर - नवंबर

कार्तिक शुक्ला दूज

आँवळा नवमी

अक्टूबर - नवंबर

कार्तिक शुक्ला नवमी

देवोत्थान ईग्यारस

अक्टूबर - नवंबर

कार्तिक शुक्ला ईग्यारस

 

—अनुश्री राठौड़
मकर संक्रांति नैं देश रै विभिन्न हिस्सों माय न्‍यारां-न्‍यारां नाम सूं मनायो जावै है। कठै इणनैं मकर संक्रांति केवै हैं तो कठै पोंगल पण तमाम मान्यताओं रै पाछै इण त्यौहार नैं मनावा रो तर्क एक ही रेवै है और वो है सूर्य नारायण री उपासना और दान। सूर्य रो मकर राशि माय प्रवेश करणो मकर-संक्रांति कहलावै है। संक्रांति रै लागते ही सूर्य उत्तरायण हो जावै है। मान्यता है कै मकर-संक्रांति सूं सूर्य रै उत्तरायण होवा माथै देवतावां रो सूर्योदय होवैं है। उत्तरायण सूं दिन मोटा अर रातां छोटी होवा लागै हैं। मकर-संक्रांति नैं महापर्व रो दर्जा दियो गयो है। उत्तर प्रदेश माय मकर-संक्रांति रै दिन खिचड़ी बणार खावा तथा खिचड़ी री सामग्रियों नैं दान देवा री प्रथा होवा सूं यो पर्व खिचड़ी रै नाम सूं प्रसिद्ध हो ग्‍यो है। राजस्‍थान, बिहार-झारखंड एवं मिथिलांचल माय या धारणा है कि मकर-संक्रांति सूं सूर्य रो स्वरूप तिल-तिल बढ़ै है, अत: वठै इणनैं तिल संक्रांति कैयो जावै है। अठै प्रतीक स्वरूप इण दिन तिल तथा तिल सूं बण्‍या पदार्थां रो सेवन अर दान कियो जावै है।

मकर संक्रांति नैं विभिन्न जगहों माथै न्‍यारां-न्‍यारां तरीके सूं मानायो जावै है। हरियाणा व पंजाब माय इणनैं लोहड़ी रै रूप माय मनायो जावै है। उतर प्रदेश व बिहार माय इणनैं खिचड़ी कैयो जावै है तो राजस्‍थान अर उतर प्रदेश माय इणनैं दान रो पर्व मान्‍यो जावै है।

असम माय इण दिन बिहू त्यौहार मनायो जावै है। दक्षिण भारत माय पोंगल रो पर्व भी सूर्य रै मकर राशि माय प्रवेश करवा माथै होवै है। वठै ण दिन तिल, चावल, दाल री खिचड़ी बणाई जावै है। वठै यो पर्व चार दिन तक चालै है। नुवी फसल रै अन्न सूं बण्‍या भोज्य पदार्थ भगवान नैं अर्पण करर किसान आच्छे कृषि-उत्पादन हेतु आपणी कृतज्ञता व्यक्त करै हैं।

गंगास्नान री मैहमा अर ऐतिहासिक महत्व
कैयो जावै है कै मकर संक्रांति रै दिन गंगा स्नान करवा अर दान देवा सूं संगळा कष्टां रो निवारण हो जावै है। इण वास्‍तै इण दिन दान, तप, जप रो विशेष महत्व है। अस्‍यो मान्यो जावै है कै इण दिन नैं दियो गयो दान विशेष फल देवै है।

मान्‍यो जावै है कै इण दिन भगवान भास्कर आपणै पुत्र शनि सूं मिलवा स्वयं विणरै घर जावैं है। चूंकि शनिदेव मकर राशि रा स्वामी हैं, अत: इण दिन नैं मकर संक्रांति रै नाम सूं जाण्‍यो जावै है। महाभारत काल माय भीष्म पितामह आपणी देह त्यागवा रै वास्‍तै मकर संक्रांति रो ही चुणाव कियो हो। इणरै अलावा मकर संक्रांति रै दिन ही गंगाजी भगीरथ रै पाछे-पाछे चालर कपिल मुनि रै आश्रम सूं होयर सागर माय जा मिली ही अर अणीज दिन राजा सगर रै साठ हजार पुत्रां नैं मोक्ष मिल्‍यो हो।

—अनुश्री राठौड़
नानाशास्त्र पुराणादि र अनुसार यूं तो एक वरस में चार नौराता आवै ये चैत, आषाढ, आसौज, अर माघ मास में मान्या जावे पण आषाढ अर माघ रा नौराता गुप्त नौराता केवावे अर प्रसिद्धि में मुख्य चैत अर आसौज रा नौराता ही मान्या जावे है याने बासन्ती नौराता में भगवान विष्‍णु री अर शारदीय नौराता में शक्ति री उपासना री प्रधानता रैवे। यदि कणी वरस में आसैज मास अधिक मास व्है तो शास्त्रां रै अनुसार श्राद्ध पेहला आसौजा में अर नौराता दूजा आसौज में मान्या जावै। नौराता में देवीपूजा में एकम रै दन केशां रै वास्ते सुगंघ वाळो तेल, बीज {दूज} रै दन केश बाँधवा रै वास्ते रेशम री डोरी, तीज नैं सिंदूर अ‘र दरपण, चौथ नैं मधुपर्क, तिलक अर काजळ, पाँचम नैं अंगराग अर अलंकार, छठ नैं फूल, माळा, वैणी अर गजरा आदि समर्पण करणो चावै, सातम नैं ग्रहमध्यपूजा, आठम नैं उपवास रै लारे पूजा अर नवमी रै दन महापूजा रै लारे कन्यापूजन करर नीराजन अर विसरजन करवा रो वरणन पुराणां में भणवा में आवै।

कन्यापूजा में दो वरस री कन्या कुमारी, तीन वरस री त्रिमुर्तिनी, चार री कल्याणी, पाँच री रोहिणी, छः री काली, सात री चण्डिका, आठ री शाम्भवी, नौ री दुर्गा अर दस वरस री सुभद्रा मानी जावै। नौराता रै वरत री पूर्णता रै वास्ते कन्यापूजन जरूरी व्या करे। मान्यता है कै एक कन्या रै पूजा सूं ऐश्वर्य, दो सूं भोग अर मोक्ष, तीन सूं धर्म अर्थ, काम, चार सूं राजपद, पाँच सूं विद्या, छः सूं षटकर्मसिद्धी, सात सूं राज, आठ सूं सम्पदा अर नौ कन्या री पूजा सूं हंगळी पृथ्वी रो प्रभुत्व मिल जावै। नौराता एक अस्यो पर्व है, जो नर जात नै नारी री मैहमा वतावै। नौराता में मनख आका मोहल्ला में कन्यावां हेरता फरे अ‘र चार दन केड़े वणी‘ज घर में ठा पड़े के घर री बहू रै पेट में कन्या है तो कन्याभ्रूण हत्या में सहयोग करवा वाळा डॉक्टर नैं हेरवा दोड़ी पडे। काश वे हमझ जावे के कन्यावां नी जनमेला तो वां री शक्तिपूजा री नौराता किंकर पूरी वेवेला ?

—अनुश्री राठौड़
पुराण कथावां माय रक्षाबंधन
रक्षाबंधन कद प्रारम्भ व्‍यो इणरै विषय में कोई निश्चित कथा नीं है। इणरै लिए अलग-अलग जग्‍या अलग-अलग कथा अर मान्‍यता प्रचलित है। भविष्य पुराण में लिख्‍यो है कै सबसूं पैल्‍या देवराज इन्द्र री पत्नी देवराज इन्द्र नैं देवासुर संग्राम में असुरों माथै विजय पावा रै लिए मंत्र सूं सिद्ध करणै रक्षा सूत्र बांध्‍यो हो। इण सूत्र री शक्ति सूं देवराज युद्ध में विजयी व्‍या।

इण विषय माथै दूजी कथा कृष्‍ण अर द्रोपदी सूं जुड़ी मानी जावै जद शिशुपाल रै वध रै समै भगवान कृष्ण री आंगळी कट गी ही तद द्रौपदी आपणी साड़ी रो पल्‍लो फाड़’र कृष्ण री आंगली पै बांध दियो। इण दिन सावन पूर्णिमा री तिथि ही। भगवान श्रीकृष्ण द्रौपदी नैं वचन दियो कै समै आवा पै वे यो कर्ज उतारेला और द्रौपदी रै चिरहरण रै समै श्रीकृष्ण इण वचन नैं निभा’र द्रोपदी री लाज री रक्षा करै। यो भी कैयो जावै है कै भगवान विष्णु वामन अवतार धारण कर बलि राजा रै अभिमान नैं इणीज दिन चकानाचूर कियो हो। इणलिए यो त्योहार 'बलेव' नाम सूं भी प्रसिद्ध है। दूजी मान्यता रै अनुसार ऋषि-मुनियों रै उपदेश री पूर्णाहुति इणीज दिन व्‍हैती ही। वे राजाओं रै हाथ में रक्षासूत्र बाँधता हा। इण वास्‍तै आज भी राजस्‍थान में इण दिन ब्राह्मण आपणै यजमानों रै राखी बाँधै हैं।

इतिहास रै झरोखा माय रक्षाबंधन
इतिहास रा झरोखा माय झांका तो एक कथा रानी कर्णावती व सम्राट हुमायूँ री भी मिलै हैं। मध्यकालीन युग में राजपूत व मुसलमानों रै बीच संघर्ष चाल रियो हो। रानी कर्णावती चितौड़ रै महाराणा संग्रामसिंह री विधवा ही। जद गुजरात रै सुल्तान बहादुर शाह राज्‍य माथै हमलो कियो तो राणी आपणी प्रजा री सुरक्षा रै लिए हुमायूँ नैं राखी भेजी ही। दूजी कथा अलेक्जेंडर व पुरू रै बीच री मानी जावै है। कैयो जावै है कै हमेशा विजयी रैहवा वाळो अलेक्जेंडर भारतीय राजा पुरू री प्रखरता सूं विचलित व्‍है ग्‍यो। इणसूं अलेक्जेंडर री पत्नी तनाव में आयगी। वणी रक्षाबंधन रै त्योहार रै बारे में सुणर भारतीय राजा पुरू नैं राखी भेजी। और राजा पुरू अलेक्जेंडर री पत्नी नैं बहन मान’र युद्ध समाप्‍त कर लियो। 

रक्षाबंधन रो धार्मिक महत्व :
भाई बैण रै अलावा आज रै दिन यजमान पुरोहित भी ऐ दूजा रै राखी बांधै हैं। ण प्रकार राखी बांध’र दोई एक दूजे रै कल्याण अर उन्नति री कामना करै हैं। इण दिन कैई स्थाना माथै रूंखड़ा रै भी राखी बांधी जावै है जो यो सिद्ध करै है कै प्रकृति भी जीवन री रक्षक हैं। अणीरै साथै ही मंदिर अर घरां माय भगवान री मूरता अर तस्‍वीरा पै भी रक्षासुत्र बांध्‍या जावै है, क्‍यूंकै ईश्वर संसार रै रचयिता एवं पालक व्‍है।

रक्षाबंधन रो मंत्र :
पयेन बद्धो बलिः राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥ 


रक्षाबंधन पर्व मनावा री विधि :
रक्षा बंधन रै दिन सुबह भाई-बैण स्नान कर’र भगवान री पूजा करै हैं। इणरै बाद रोली, अक्षत, कुंमकुंम अर दीप जला’र थाळ सजावै हैं। इण थाल में रंग-बिरंगी राखियां नैं रख’र वंडी पूजा करै हैं पछै बैणा भाइयां रै माथे पै कुंमकुंम, रोली एवं अक्षत सूं टीको करै हैं। इणरै बाद भाई री जिमणी (दाईं) कलाई पै रेशम री डोरी सूं बणी राखी बांधै हैं और मिठाई सूं भाई रो मुंडो मीठा करावै हैं। राखी बंधवाणे रै बाद भाई बैण नैं रक्षा रो वचन, आशीर्वाद अर उपहार देवै है। बैणा राखी बांधता समै भाई री लाम्बी उम्र एवं सुख अर उन्नति री कामना करै। 

आखातीज (अक्षय तृतीय)


वैंशाख शुक्ल तृतीया री तिथि सत्ययुग रे शुरु होणे रो पेलो दिन मानीजे हैं। इ दिन उषाकाल मे प्रातः स्नान करने रो बहुत फ़ल मिले हैं। इ दिन श्राद्ध, तर्पण,पूजन औंर दान करने सु मिलने वालो फ़ल,अक्षय मानिजे हैं इण वास्ते इ ने आखातीज केवे हैं। इ दिन पाणी सु भरोडो घडो दान करिजे हैं। इ पर्व पर आखा अन्नदान,छतरी, पगरखी रो दान करिजे हैं।

इ दिन महालक्ष्मी व नारायण री पूजा करिजे हैं। इ दिन हवन भी करणो चाहिये। इण दिन जल्दी उठणो,स्नान करणो,पितृ तर्पण करणो ,जवो रो दान  करणो,आदि जरुरी हैं।जिकासु पितरगण प्रसन्न होने सुखी बणावे हैं। औंर भाग्यशाली सन्तान देवे हैं। लक्ष्मी नारायण विनाने धन दौंलत देवे हैं।इण दिन एक बार भोजन करणो चाहिये।

केविजे हैं कि इ दिन जमदग्नि ऋ षि रे पुत्र परशुरामजी रो प्रदोष काल मे जन्म हुयो । अतः इ पर्व उपर परशुरामावतार रो पूजन औंर हवन करिजे हैं औंर कथा भी केविजे हैं।  अगर इण दिन कृतिका या रोहिणी नक्षत्र औंर बुधवार पड जाये तो वा तिथि अनुष्ठान,दान व पूजा मे विशेष लाभ देणे वाली होवे हैं।आ तिथि प्रातःकाल रे कर्म करणे ए विशेष लाभप्रद सिद्ध होवे हैं।

आखातीज रे दिन साबुत अन्न (गेंहू या बाजरी) रो खिचडो ,इमली औंर गुड री इमलाणी व बडी रो साग बणाईजे हैं। ईण दिन अबूझो सावो होवे हैं जिकासु बिना मुहूर्त्त रा ब्याव होवे हैं। ई दिन गावो मे बाल विवाह हुवे हैं। बीकानेर मे स्थापना दिवस रे उपलक्ष मे आखातीज रे दिन पतंगा (किन्ना) उडाईजे हैं।

बच्छ बारस

बच्छ बारस रो व्रत भाद्रपद वदी द्वादशी रे दिन करिजे हैं। कोई बामण रे बेटे रे बलिदान री याद ने चिर स्थायी बणाने वास्ते ई दिन गाय औंर बिरे बछडे री पूजा करिजे हैं।ई दिन वैंदिक धेनू द्वादशी भी मनाईजे हैं।

विधि विधान

एकादशी रे दूसरे दिन स्नान कर ने नित्य पूजा सु निर्वत होर गाय औंर बिरे बछडे री पूजा करिजे हैं। ई व्रत रे अनुसार गेहू ,गाय रो दुध,दही औंर गाय रो घी काम मे लेविजे कोनी बल्कि भेस रे दुध ,दही घी ने काम मे लेविजे।पछे गाय औंर बछडे री पूजा करिजे हैं। ई दिन गाय ने जंगल मे चरणे वास्ते कोनी भेजिजे । गाय औंर बछडे री पूजा करने सु पेली विनारे मेंहदी औंर हल्दी लगाविजे हैं। अगर ई दिन बुधवार होवे तो ज्यादा श्रेष्ठ मानीजे हैं।

ई व्रत सु मनवांछित फ़ल मिले हैं।

ई दिन ठंडी रोटी खाविजे हैं। पूजा करने रे बाद ,आपरे कुवारे लडके री नाभि ऊपर सबियो बनाकर दही ,मोठ,दूब औंर रुपियो राख र फ़ुदकडो करीजे। बछबारस बेटो होने रे बाद मे करीजे।

बडी तीज

बडी तीज रो व्रत भाद्रपद मास री कृष्ण पक्ष री तृतीया ने करिजे हैं।इने गौंरी व्रत भी केविजे हैं।मारवाड मे सातू तीज भी केविजे हैं।इ व्रत रे अवसर पर सुहागिनी नारिया देवी सु आपरे पति री आयुष्य वृदि री कामना करे हैं। अगर कोइ नारी रो पति परदेश गयोडो हुवे तो इण दिन विने आपरे घरे आणो पडे।

इण दिन प्रातःकाल स्नान सु निवृत होने बाद सुहागिना तृतीया रे इ व्रत रो संकल्प करे औंर पति री दीर्घायु री कामना करती हुयी सांयकाल ने चन्द्रोदय होणे पर इसे स्थान पर बैंठ पूजा करे जठे चंद्रमा औंर रोहिणी रो तारो साफ़ दिखे हैं। कइ औंरता नीम रे नीचे पूजा करे हैं। पछे इने गोबर सु जमीन उपर खडी करे हैं। औंर विणरे कने गोबर री नाडी (छोटो ताळाब ) सी बणा देवे हैं। ईणमे दूध औंर पाणी भर देवे हैं।बाद मे बिणरी पूजा करे हैं। बडी तीज पर कई लोग खाली चन्द्र री पूजा करे हैं औंर सातू रो नेवेध चढावे हैं। फ़ळ री जगा नींंबू औंर काकडी चढाणे रो भी रिवाज हैं।

कई जगा कसूमल कपडो चढ़ाणे रो भी रिवाज हैं।नाडी री पाळ उपर दूध भी चढाइजे हैं औंर विण पर दीयो भी करिजे हैं।पछे बे दूध मिलायोडे पाणी मे चन्द्‌र्‌मा रा दर्शन करे हैं। नींब्ंाू , ककडी ,सातू ,मोती ,नीम,दीयो, कसूमल कपडो इण सब री परछाई नाडी मे देखे हैं। कसूबल साडी पेहन औंर नाक मे बाळी पेह्न ने सू चोखो फ़ळ मिले हैं। बाद मे आरती कर पुष्पांजली अर्पित करिजे औंर कथा केविजे हैं।

गणगौंर पूजन
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राजस्थान में चैत्र शुक्ला तीज ने आणे वाळे पर्व 'गणगौर' री पूजा रो फोटो आभार - राजस्थान पत्रिका

ाारां जिले मांय गणगौर ने पाणी पिलावती लुगाया रो फोटो आभार - राजस्थान पत्रिका

होली रे दूसरे दिन चैंत सुदी तीज तक कुँवारी औंर शादीसुदा लडकिया गणगोर री पूजा करे हैं।ई दिन सबेर आठ पीन्डिया होली री राख री औंर आठ पीन्डिया गोबर री बणार ,छोटी टोकरी मे दूब बिछाकर राखे। लडकिया सबेर बाहर सु एक लोटे मे पाणी ,दूब,फ़ूल ले ने गीत गावे जमीन ऊपर गोबर माटी रो चोको देर पीन्डिया ने टोकरी मे राखे।दीवार या गत्ता पर एक काजल री औंर एक रोळी री टिक्की देवे हैं।पीन्डिया पर पाणी रा छीटा देवे।गोबर री पीन्डिया ऊपर रोळी री औंर राख री पीन्डिया ऊपर काजल री टिक्की देवे। फ़ूल चढ़ावे ,सवेर रा गीत गावे ,एक प्लेट मे पाणी,एक कोडी ,एक सुपारी एक छल्लो औंर एक पीसो घाल कर,दूब सू सोलह छींटंा देवे। कौंडी छल्लो पीन्डियो रे लगाने बाद आपरी आँख रे लगावे। बाद मे ।पीन्डिया ने लेर खडी हो जावे। बासेडा तक अयाही पूजा करिजे हैं।

बासेडा रे दिन गणगौंर ने सजार कुन्डा मे गणगौंर ने दूब बिछा राख्जिे । दूसरे दिन कुन्डे मे झुंवारा उगाविजे।गणगौंर रे प्रसाद चढाविजे औंर पाणी पीलाविजे हैं।संजा ने भी पूजा करिजे औंर गीत गाविजे।गणगोर ने दूब सु दांतण देविजे ।बाद मे प्लेट मे राखे पाणी सु आरती करिजे औंर विण पाणी रा छांटा घालिजे व प्लेट उलटी करीजे हैं।दूज तक ईया ही पूजा करिजे।बीच मे कोई भी रविवार आवे तो सूरजरोटे रो व्रत राखिजे।

तीज ने घर री सब लुगाईया भी गणगौंर री पूजा करे। गणगौंर ने कुन्डा मे सु निकाल जमीन पर दूब झुंवारा बिछार बैंठाईजे हैं।दिन मे गणगौंर ने पाणी पार विदा करिजे हैं।विदाई रे समय गीत गावीजे औंर गणगौंर ने नदी या कुवा मे विर्सजित कर देवे।

बासेडो (शीतला सप्तमी)

चैंत बदी मे होळी रे 6,7 दिन बाद बासेडो आवे हैं।मारवाड राज्य रे देहाता मे ओ उत्सव बणाइजे हैं पण जोधपुर मे राजा प्रजा सब चैंत्र बदी अष्टमी ने ओ पर्व मनाइजे हैं। इणरो कारण हे कि शीतला रे प्रकोप रे कारण राजघराने मे सप्तमी रे दिन एक राजकुमार रो स्वर्गवास होय गीयो इण वास्ते अष्टमी रे दिन ओ पर्व मनाईजे हैं ।

बासेडे रे पेले दिन खाटी  चीज बणाइजे हैं इणरे बाद मे बासोडा रे दिन रात ताई सूई हाथ मे कोनी लेविजे । इण दिन राबडी बाजरा री रोटी,मीठा भात,गुलगुला औंर मन मे जो होवे सो खावा वास्ते बणाइजे हैं। मोठ बाजरी भिजावीजे हैं। रसोई बणाने रे बाद चोका मे दिवाल पर घी रो थापो देविजे हैं। जल,रोळी चावळ सू पूजा करिजे हैं। शीतला माई,हनुमान जी औंर भैंरुजी रा ग़ीत गाविजे हैं।

अष्टमी रे दिन प्रातः काल नित्य नियमो सु निवृत्त होने सब लोग आपरे घरा मे शीतला माता री पूजा करे हैं। । मंदिर मे शीतला माता गधे उपर विराजमान हाथ मे बुहारी औंर कलश औंर सिर उपर छाजला धारण करियोडी सुशोभित होवे हैं।

बासेडा रे दिन सबेर मे एक थाळी मे राबडी ,रोटी,भात,दही ,चीणी ,मंूग री दाळ,बाजरा री मोई औंर दुसरा पकवान शीतला माई के च्‌ढाविजे हैं।

इणरे अलावा ई दिन कई तरह रा मीठा व्यंजन ,गुड रो हलुवो,कैंर सांगरिया रो साग़ नमकीन पूड़ीया औंर शक्करपारा आदि नैंवेध रे रूप मे चढाईजे हैं। माई रे सामे जल रो भरोडो कलश चढाने पूजा करिजे हैं औंर जल घर रा सब लोग आँख मे लगावे हैं।

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