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(आभार राजस्थान पत्रिका)

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संत कूबाजी

राजस्थान री धरती नर-रतनां री खाण। अठै अनेकूं शूरवीर, ग्यानी-गुणी, सती-जती अर साधु-संत जनम लेय'र इण मात-भोम रौ मान बधायौ, जस गायौ। संत भगतां री इणी ओल में अेक चावौ नाम संत कूबाजी रौ गिणाईजै। मथुरा रै कनै जमना नदी रै नजीक आयोड़ै गाम बोरनी में पं. रामजी मिश्र रै अठै संवत 1500 री वैसाख सुदी 11 रै दिन माता सुखदेवी रै तीजै पुत्र रै रूप में कूबाजी रौ जनम हुयौ। नाम राखीज्यौ केवलराम। पैलै पुत्र रौ नाम भागवतजी अर दूजै रौ प्रेमजी हौ। पिता पंडित रामजी मिश्र भलै सभाव रा अर ग्यानी ब्राह्मण देवता रै रूप में चावा हा।
पंडित रामजी मिश्र भगवान रौ भजन करता, लोगां री सेवा-बंदगी करता अर सरदा मुजब दान-धरम ई करता। मन, वचन अर करम सूं आप घणौ ईजस कमायौ अर आदरम-मान पायौ। अेक दिन आपरी जोड़ायत सूं सलाह कर द्वारकाधीश री जातरा करण री तेवड़ी। दोनूं बेटां नै उठै इज छोड'र बालक केवलराम नै साथै लेय'र द्वारका करी जातरा करी। जातरा सूं पाछा आवतां बगत मारवाड़ री कांकड़ में अेक ठौड़ विसराम कियौ। अठै इसौ कुजोग बण्यौ के नींद में सूता तीनूं जणां मांय सूं पं. रामजी मिश्र नै सरप डसग्यौ अर वै चिर-निंदरा में लीन हुयग्या। पंडिताणी री नींद खुली तौ पंडित नै अटूट नींद में सूता देख'र कलपण लागी। गोदी में चार बरसां रौ टाबर लियां अेक नारी रौ विलाप सुण'र द्वारका सूं पाछौ आवतौ अेक जातरू जोड़ौ ढब्यौ, वै नेडा आय'र सगली गकीकत जाण'र दुख दरसायौ, थ्यावस दीवी अर पंडितजी नै दाग देवण री इजाजत मांगी। पंडितायण वां रै बारै में पूछ्यौ कै वै कुण है?
जातरू आपरी ओलखआम देवतां बतायौ के उणरौ नाम गोपाल है। अर जात रौ कुमावत है। मारवाड़ रै जैतारण परगना रै गाम खीनावड़ी रौ रैवासी है। वौ करसण रौ काम करै अर आपरी जोड़ायत साथै द्वारकाजी री जातरा करनै आ रैयौ है। बामणी आपरै टाबर नै गोपालजी रै हाथां में सूंप्यौ। चोखी शिक्षा देवण री भोलावण दीवी। भरतार रा पिंड री परकमां देय'र चरणां में माथौ निवाय'र प्राण त्याग दिया। गोपालजी दोनूं पवित्र सरीरां रौ अगनी संस्कार कियौ। टाबर केवलराम नै आपरी जोड़ायत रै सूंपतां कैयौ के ले भाग्यवान, आपां रै टाबर नीं हौ। औ भगवान री किरपा सूं थारी गोद में आयौ है। बालक घणौ तेजवान दीसै। इणनै खुद रौ जायौ समझ'र पालजै। संत कूबाजी रा भगतां री मानता है के उण बगत बांनै आकशवाणी सुणीजी के- "थै लोग संकौ मत राखौ। थांरा पूरबला भव रा करमां रौ फल उदै हुयौ है। औ बालक नारदजी महाराज रौ अवतार है अर द्वारकाधीश दियौ है। औ कल्याण करण सारू जनम लियौ है।"

बालक केवलराम नै लेय'र गोपालजी आपरै गाम खीनावड़़ी आया। गाम रा लोगां नै सगली कहीकत बताई। लोग घणा राजी हुया, टार रा लाड-कोड करिया। आखै गाम में हरख मनाईज्यौ। गाम जोशी टीपणौ, हाथ अर लिलाड़ री रेखावां देख'र टाबर रै भाग्यसाली अर अवतारी हुवण री भविष्यवाणी करी। जोशीजी री बात सुण'र सगलै गाम रा लोग राजी हुया। गाम रा धणकरा घर कुमावतां रा हा अर वै लोग गोपालजी रौ घणौ मान-सम्मान करता। पछै टाबरपणै सूं इज केवलराम किणी अवतारी ज्यूं परचा देवणा सरू किया। कूबाजी रा भगतां में वां रै चमत्कारां बाबत केई कथावां चावी है, वांरी की जाणकारी अठै दिरीज रैयी हा।
केवलजी अबोध अवस्था में इज भगवान री मूरत सामी बैठा रैवता। मात-पिता वांरी आ दस देख'र अचरज करता। अेक दिन गोपालजी दिनूगै री वेला केवलराम नै उणरी मां कनै छोड'र आपरै बेरा कानी गया। बेरा माथै जाय'र आप चक्कर में पड़ग्या। उठै कांई देखै के बेरा रै पाखती भगवान री मूरत सामी राख'र केवलजी बैठा है। वां रै मूंडै सूं राम-नाम रा सबद निकल रैया है।गोपालजी दौड़'र पाछा घरै आया तौ बालक केवलराम घर में मौजूद भगवान सामी ध्यान मगन। वै आपरी जोड़़ायत नै सगली बात बताई। अप पछै उण आकाशवाणी रा बोल याद आया। दोनां रै हरख रौ पार नीं हौ। वांरौ विसवास पक्कौ हुयौ के बालक अवतारी है।
थोड़ौ बडौ हुयां पछै गोपालजी बालक नै जैतारण रा पं. शंकरलालजी शास्त्री कनै शिक्षा लेवण सारू भेज दियौ। शास्त्रीजी बालक केवलराम री प्रतिभा नै परख लीवी अर उणनै तीन-च्यार बरसां में इज धरम-शास्त्र, वेद-पुराण, भाषा, दरसण अर व्याकरण री नामी शिक्षा दी। शिक्षा प्राप्त कर आप पाछा खीनावड़ी आय'र करसण रै काम में लागा। जोध-जवान हुयां मां बाप जोगी डावड़ी देख'र वांरौ ब्याव कर दियौ।
केवलरामजी घर-गिरस्थी संभालता थकां करसण, सेवाअर सत्संग करता रैया। कीं बगत पछै माता-पिता देवलोक हुयग्या अर केवलरामजी नै घणौ दुख हुयौ, पण हरि इंछा प्रबल मान'र आप पाछौ सत्संग में मन लगायौ। कीं बगत बीतां आपनै पुत्र रत्न री प्राप्ति हुई ्‌र आप घणा लाड-कोड किया। कुजोग औ हुयौ कै टाबर अेक बीमारी म्‌ं गुजरग्यौ। आप दुखी होय'र कुध गाम रै तलाव में डूब'र मरण री तेवड़ी। उण बगत अेक महातमा आपनै रोक'र समझाया। दोनां बिचालै ग्यान- ध्यान री बातां हुई अर केवलरामजी वां महातमाजी नै आपरा गुरु मान्या। महातमाजी आपरौ नाम नरहरिदासजी बतायौ। वै उतराध रा वासी हा अर तीरथ-जातरा करता उठै पूगा हा। नरहरिदासजी री बातचीत घणी उपयोगी साबित हुई, वै केवलरामजी नै भगती री महत्ता समझाई। उणी दिन सूं केवलरामजी हुयग्यौ। गुरुजी आपनै नरसिंह भगवान अर रामचंदरजी री दोय मूरत्यां पूजा सारू दीवी अर पाछा तीरथ-जातरा में निकलग्या।
गुरु-ग्यान रै परताप सूं केवलदासजी भगती में रमग्या। आपरी भाव-भगती आपनै घणा चावा किया अर दूर-दूर सूं लोग सत्संग सारू आवण लागा। कीं लोग वारै सूं ईसको राख'र छलथदम री रचना करी। आप सूं पूछ्यां बिना ई केई साधु-संतां नै जीमण सारू न्यूंत दिया। खीनावड़ी में साधु-संतां रौ जमावड़ौ लाग्यौ। घर मांयलौ भोजन रौ सामान चौरी हुयग्यौ। केवलदासजी इण मौकै लाज राखण सारू भगवान सूं अरदास करी। ईश्वर री प्रेरणा सूं आप भोग रूपी लापसी बणाई अर संतां नै जीमावण सारू बेठाया। सगला लोग जीमग्या, पण लापसी नीं खूटी। संत समाज आपरी जै-जैकार करतौ पाछौ गयौ। सेण राजी हुया अर दुरजनां रा माथा निवगा।
इमी गत अेक वार गाम में आयोड़ी अेक संतां री टोली नै जिमावण सारु केवलदास गाम में अेक सेठ सूं उधारौ सामान लाय'र संतां नै जिमाया। उधारा आप इण कौल माथै लाया के रोकड़ नीं दिया तौ वारै कूवौ खोद'र करज उतार देवैला। संतां नै भोजन कराय रवानगी दीवी। कौल मुजब रोज सेठ सारू कूवौ खोदण नै जावता। अेक दिन णिी कूवै रा ढगल माथै आय पड्या अर आप कूवा में दबग्या। लोग समझ्या के आप अबै समायग्या। सगला दुखी होय'र नैचौ धार लियौ। मानीजै के छह महीना पछै अेक संतां री टोली कूवै सूं राम नाम री आवाजां सुण'र गाम रा लोगां नै बुलाय, वां रै साथै मिल'र कूवा री माटी बारै काढी तौ केवलदासजी भगवान नै सिंवरण करता पींदै बिराजिया हा। औ इचरज देख'र लोग वांरी जै-जैकार करण लागा। केवलदासजी भगवान रौ नाम लेवता बारै आया। इत्तै लंबै बगत तांई कूवा में रैवण सूं आपरी कमर ई झुकगी ही। उण दिन सूं लोग आपनै संत कूबाजी रै नाम सूं ओलखण लागा।
कूबाजी रा भगतां री मानता है के अेक दिन आपरौ हाथ पत्नी सूं अड़ग्यौ अर आप वौ हाथ काट दियो। पत्नी विलाप करण लागी, पम गुरु की करिपा सूं हाथ पाछौ आयग्यौ। पछै आप प्रभु री प्रेरणा सूं खीनावड़ी गाम छोड'र झींथड़ा में आय बस्या। जिण जगै आप डेरा किया, उठै इज भगवान रौ आसल राख'र मूरती थापन कर चारूंमेर कांटां री सूखी बाड़ रौ परकोटौ बणाय दियौ। कीं चेला ई साथै हा। भजन-कीरतन हुवण लाग्या। लोग दरसणां नै आवण लाग्या। बगवान री किरपा सूं कांटां री बाड़ हरी व्हैगी। लोग औ परचौ देख'र अचरज करण लाग्या। आपरी चरचा गाम रै रावला में हुई। कूबाजी रौ नाम-गाम जाण'र ठकराणी मां परसाद सारू अनेकूं चीजां भिजवाई। कामदार नै कूबाजी रौ उठै बसणौ नीं सवायौ अर ठाकरां नै ऊंधी पाटी पढ़ाय'र मिंर री ठौड़ म्हैल बणावण रौ चक्कर चलायौ। रावलै रा कारिंदा आय पूगा। कूबाजी नरसिंह भगवान नै आरदास करी अर उणी बगत अेक नाहर उठै गरजना करतौ आय पूगा। कारिंदा भाग छूटा। नाहर रावलै जाय पूगौ। आखौ रावलौ माथौ निवाय माफी मांगी तद नाहर पाछौ गयौ। रावला कानी सूं कूबाजी री इंछा मुजब मिंदर बणाय'र नरसिंह भगवान री मूरती थापन करी।

इणी गत संत कूबाजी रै केई परचा देवण री बातां लोक-प्रचलित है, ज्यूं के- भगत करड़ाजी नै गुरु-मंतर दियौ अर भगवान रा दरसण कराया। संत राधवदासजी किसन भगवान री मूरती लेय'र द्वारका जावतां झींथड़ा में विश्राम लियौ त कूबाजी नै सपनौ आयौ के किसन भगवान द्वारका नीं जाय'र उठै इज रैवणी चावै अर दूजै दिन मूरती राघवदासजी सूं नीं उठी तद कूबाजी वांनै कैयौ के भगवान झींथड़ा में इज रैवणी चावै। भगवान जाण करनै अठै रैवैला इण कारण श्री जानरायजी रै नाम सूं ओलखीजैला। पछै आप जानरायजी री मूरती कनै आय मिंदर में पधारण री अरज करी अर भगावन मिंदर में आयगा। इणी गत आप द्वारका में परचौ दियौ। उठै द्वारकाधीश रै पाखती गोमती सागर रौ जल सूखग्यौ अर पुजारियां नै भगवान रौ हुकम हुयौ के झींथड़ै जाय'र कूबाजी सूं मिलौ, वै गोमती सागर में जल ला सकै। पुजारी झींथड़़ै आय'र कूबाजी नै अरदास करी अर कूबाजी आपरी माला देय'र कैयौ के आ माला गोमती सागर में अरपण कर दीजौ। उण माला रै गोमती सागर में पड़तां ई सागर हिलोला लेवण लागौ। अठी कूबासर में वा माला तिरती पाछी आयगी।
कूबाजी रा बडा भाई भागवतीजी मिश्र की ंसंतां नै सताया हा, तिण कारण वांनै कोढ फूटग्यौ तद वै कूबाजी कनै आया अर कूबाजी वांरौ कोढ़ झाड़ दियौ। संत सागरदासजी जगन्नाथपुरी रै समदर में डूबग्या, पण कूबाजी री किरतपा सूं पाछा जीवता जल सूं बारै आयग्या। तीरथ जातरा करता कूबाजी दिल्ली जाय पूग्या अर गलती सूं बादसा रै बगीचै में डेरा दिया। राज रा सिपाही वांनै सगला भगतां समेत कैद कर बादसा कनै लेयग्या अर बादसा तोप सूं उडावण रौ हुकम दियौ। आंनै तोप सूं बांध'र तोप रै पलीतौ लगायौ तो तोप ठंडी पड़गी। बादसा आ बात देख'र आप सूं माफी मांगी अर मान-सम्मान कर विदा किया। कैवै के अेकर खुद भगवान रामचंदरजी अर सीताजी संत भगतीदास रौ रूप दारण कर'र झींथड़ै पधार्या अर कूबाजी री सेवा-चाकरी में लागा। कूबाजी वांनै ओलख'र वांरा चरणां में आयग्या अर भगवान वांनै दरसण दिया। उज्जैन रा जंगल में टाबरां नै सिंघ सूं बचाया। काकाणी रा ठाकर नै परचौ दियौ। मारवाड़ रा महाराजकंवर सूं मंडोर री बाड़ी में मिलिया। द्वारकाधीस रा दरसणां नै जावण लागा तौ भगवान खुद सामी आयग्या। कैवै के कूबाजी अेक सौ अस्सी बरसां री उमर में सागै जनम-दिन वैसाख सुदी इग्यारस संवत् 1680 में झींथड़ा रै तलाव कूबासर री पाल माथै भगती भजन करता लोगां सूं छेहला राम-राम कर सुरग सिधार्या।

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