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राजस्थान रा जिला रो नक्शो
(आभार राजस्थान पत्रिका)

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रामायण

मानव मित्र रामचरित्र
लेखक- महाराज चतुरसिंहजी बावजी

वन चरित्र

अबे तो सारा ही जाण गिरा के पिता रा वचन मान अयोध्या रा बड़ा कुंवर वन में पधार गिया, ने भरतजी रे मनावा पे भी पाछा नी पधारया। जदी तो छेटी-नजीक रा आदमी राम भगवान रा दरशण करवा आवा लागा। वठे मनखां रो मेलो भरयो रे'वा लाग गियो। जणी शूं वठा रा एकमाड़ा रे'वाला वाला साधुवां ने भी अबकाई आवा लागी, ने भगवान भी विचारी, अठे तो धीरे-धीरे वसती वश जायगा। आपां ने तो वन में रे'णो चावे। अबे या जायगा छोड़ उजाड़ वन में जाय रे'वां, के जठे कोी नी आय शके। यूं विचार परभतो वेगा तीन ही जमां वठा शं एक दाना अत्रि नाम रा रिषि रे'ता हा, वणांरी कुटी पे पधारया। ई बड़ा धरमात्मा रिषि हा, ने ्‌णां री रिषियाजी तो धम री मूरत हीज हा। सीता माता बालकपणां शूं ही जनकपुर मे ंअणां रिरिषयाणी जो नाम शुण राख्यो हो, अणां रा दरशणां री कदकी ही चांपरी लागरी'ही। घड़ी-घड़ी रा भगवान ने अरज करता हा के, अनुसूया माता रा दरशम करवा कधी चालांगा। आज वठे पधारवा री शुण घमा राजी व्हिया, ने ज्यूं-ज्यूं वणां रो आश्रम दिखवा लाग्यो, ज्यूं-ज्यूं वत्तो-वत्तो हरष व्वेहा लागो। अत्रि रिशि राम-सीता लछमण ने पधारता देख, सामा पधार्या। राम-लछमण ने पगां में धोक देता देख, बड़ा मोह शू ं तीनां रे ही माथा पे हाथमेल्यो, े आश्रम पे पधराय कंद-मूल फल अरोगाया, ने अनुसूयाजी भी तीनां ने ही देख, घमा राजी व्हिया। पछे रिषि, राम लछमण ने ज्ञान-ध्यान समझावा लागा। जदी अनुसूयांबी सीताजी ने हुकम कीधो, सीता बेटी ! चाल, आपां भी ज्ञान-चरचां कराँ यू के' सीताजी री शीख राम भगवान शूं मांग, आप री कुटी में पधार्या। वठे सीताजी हाथ जोड़ पगां में धोक दे'ने अरज कीधी, के हे पतिव्रत में बड़ा माताजी ! आपरा दरशणआं री बालकपणां शूं ही म्हने लालसा लाग री' ही। आज आपरा दरशण कर म्हूं म्हारा जनम ने सुफल जाणूं हूं ने यो वनवास भी म्हारे गुणकारी हीज व्हियो। जदी अनुसूयाजी हुकम कीधो, क्यूं नी व्हे बेटा ! एक पवित्र राजा रा कुल में तो थूं जनमो है ने एक पवित्र कुल में थूं परण ने आई है, अबे सअशी बुद्धि थारी व्हे जणीमें कई अचम्भो है। म्हारो तो दोही ठिकाणा शूं प्रेम है, सो अणी सनातन शू ंथूं म्हारे बेटी ने वउ दोही लागे है। थारे जश्यां गुण व्हेवणी पे तो म्हने दू्‌ंज्यूं ही मोह आवे है। थारो जनम सुफल व्हे जणी रोतो कई केणो, पण थारी वातां शुण शुण ने शेकड़ां लुगायां रा जनम सुफल व्हे'  जायगा। आछो आदमी आपणी हीज आछी नी करे है, पण वणी शूं सब संसार रो आछो व्हे' है। यूं ही खोड़ीला शूं सब संसार में खोड़ीला-पणओ फैले है। बेटा ! राम ने वनवास व्हियो सो बो'त आछो व्हियो। वगत पड़े जदी हीज आवणा-पराया री, ने धरम-अधरम री खबर पड़े है। थारी बड़ाई तो म्हें कदीक ही शुणी ही, के जनकजी री बाई बड़ी धरम वाणी ने श्याणी है। पण आज थने पति रे साथे दुःख भुगतवाने वन में निकली थकी देख, म्हने घणी वात पे भरोशो आयगियो।

बेटा ! आपाणी जात जनम शूं ही पाका अन्न जशी है। फेर रूप तो आपमए कणई-कणी वगत दुशमण रो काम करे दे है। आपां पे भे'म कतां भी मनखां ने देर नी लागे, ने बुरो विचारतां भी लोगां ने लाज नी आवे। थारो' ने राम रो जनम संसार ने सुधारवा वासते हीज व्हियो है। बेटा ! म्हने या के'तां हरष ने शोक दो'ही व्हे' है, के थारा पे और भी दुःख पड़ेगा। ण सोनो ज्यूं ज्यू ू ं तावे ज्यूं ज्यूं ही वत्त्‌ो वत्तो चमके है। अणई शूं थारो दुःख हीज संसार रे सुख रो कारण व्हे' जायगा। म्हारो के'णो लुगाई जात री भलाई रे वासते है, सो थूं ध्यान दे'ने सुण। अणी शूं आपणी जात रो भलो व्हे'गा। धमी हीज लुगाी रे धरम-करम-तीरथ-वरत है। ज्यां लुगाई पतिवरता नी है, वा लुगाई नी है। परन्तु जनावर है, जनावरां में भी वीने गडुरी समझणी चावे। क्यूंके पति तो गुडुरी रे भी व्हे है। पण वा पतिवरता नी व्हे है। लुगाई ने चावे, के जतरे व्याव ही व्हेवे, जतरे मां-बाप वा आपणी लागती रा री रखवाणी में रे'वे। व्याव व्हियां केड़े पति रा के'वा में रे वे, पति रो वियोग व्हेवा पे बेटा रे, वा वणी वंश रा बड़ा बूड़ा री रखवाणी में रेवे। पण लुगाई-जातने आपे नी व्हे'णो चावे। बेटा ! आपणो धरम आपमे नखे है, ने धरम री रखवाली दूसरां शूं नी रे'वे है। पण संसार में अणी शूं आछो लागे है। पे'लो भय तो भगवान रो राखमो, दूजो भय धरमातामा राजा रो राखणो, ने तीजो भय लोकीत रो भी राखमो चावे। संगत रो गुण व्हे' जश्यो और रो नी व्हे' है, जी शूं सदा आछी संगत राखमी, खोटी संगत शूं आछी वातां भी खोटी दीखवा लाग जावे है। अणी वासेत खोटी संगत कधी नी करणी। आप व्हे', बेटो व्हे' अथवा बाई व्हे' तो भी एकान्त में नखे नी बेठणो। जणी लुगाई रो दूसरा आदमी कानी मन ही नी जावे, वींने देवता समझणी वा होज महासती वाजे है। जींंरो दूसरां ने बाप-भाई-बेटा ज्यूं समझ मन रूके वीेने मनख के'वे है। जींरो मन लोका-लाज शूं अथवा डर शूं रूके वींने मनखां में भी नीची समझणीं चावे। ज्यां थोड़ा सुख रे वासते ईं लोक ने पलोक रो विचार नी करे वा गडुरी है। वा परलोक में नरक भुगतेगा, ने अठे भी वींने मायलो मन मांय रो मांय धुरकारतो देवेगा। मनख एक साथे पाप में नी लागे है, पे'ली मन थोड़ो-थोड़ो पाप कानी ढलके है। पछे रूकमो मुशकल व्हे' जावे है। अणी वासते वठीने पे'ली शूं ही नी जावा देणो आछो है। मन ने मजबूती शूं मरणो धार'ने रोक देवे, तो पछे मन रो जोर आपां पे नी चाल शके है। काचो-पोचो मन हीज नरक रो गेलो है। बेटा ! थारां में तो शुभाविक ही आछा गुण है, पण संसार ने वासते या वात की' है। जदी श्री सीताजी अनुसूयाजी रा पगां में धोक दे, हात जोड़ अरज कीधी, के या जानकी आपरी दो'ही तरे शूं छोरू है। अणी रा काम आप री दया शूं आप ने राजी करवावालला हीज व्हे'णा चावे। परमातमा आपने घमआं वरष वराज्या राखे और आप सती रा संसार में दरशण व्हे'ता रे' अणी संसार रो भी भलो व्हे' जावे। अतराक में अत्रि रिषि शूं शीख मांग दोई भाई आगे पधारवा लागा। जदी सीताजी भी अनुसूया माता शूं शीख मांगी, ने अरज कीधी, के अणी आपरी बालक पे सुनजर वणी रखावे, ने कधी-कधी याद करावता रेवे। जदी अनुसूया माता आशीसश दे'ने सीताजी ने शीख दीधी. अबे तीन ही जमआं आगे उजाड़ वन में पधार रिया हा। अतारक में वठे एक महा भयंकर विराध नाम रो रागश, सीताजी ने पकड़ावने दोड़यो, पण दोही भायां वीने मार नाख्यो। पछे राम भगवान लछमणजी ने कियो के अठे घोर उजाड़ वन है, सो धनुष चढ़ाय'ने थारे भाभी रे पाछे-पाछे चाल, ने म्हू ंआगे-आगे चालूं। यूं चार ही कानी जनर राखतां चालां। अबे ौर तो कठी ने ही गेलो नी दीखे, है सो अणी पगडंडी-पगडंडी चालो. क्यूंके मुनियां, शरभंग नाम रा महातमारो आश्रम अठी ने हीज बतायो हो।

यूं भगवान शरभंग नाम रा महातमा रे अठे पदार्या ने वठा शूं सुतिक्,म मुनि रे अठे पधार्या, ने वठे रात रे'ने प्रभाते अगस्त्य मुनि रे आश्रम रे पधार्या। वठे वणां रिशि रागांशां री अनीति शूं दो' ही भायां ने वाकल कीधा के ई नीच की विचार नी राखे है। धरम-करम रो तो नाम नी जाणे। स्वारथ रे वासते को' जो अधरम कर नाखे, ने मगेले ही चालतां रिशियां ने खाय-खायने ई हाड़का रा ढघला लगाय राख्या है। ई घमंड सूं लोक-परलोक रो कई विचार नी राखे। अणाँ नवो ही धरम मनमान्यो वणाय लीधो है अठे नजीक ही पंचवटी री आछी जगां है। गोदावरी नदी कने वे'री है। साधु वठे रे'ने भजन करणो चावे। पण नजीक ही रावण रो थाणो है वठे खर, दूषण, त्रिशिरा नाम रा तीन मुखि,ा, रावणी री कानी शूं रे'वे है, ने चवदा हजार रागशां री फोज वमांरा हुकम में है, ोस वी चार ही कानी अफंड मचावता फिरे है, सो वणांरा डर शूं कोी पंचवटी में नी रे' शके। जदी राम-लछमण अरज कीधी, के म्हें भी अशी ही जगा शोध रियाँ हाँ। जदी अगस्त्य रिषि एक आछो धनुष-भाथो, ने दो तरवारां दो ही भायाँ ने दीधी, ने कियो के आप सावधानी शूं वठे री'जो।

जदी दोही भाई, ने जानकीजी रिषि वतायो वणी गेले व्हे' पंचवटी पधार्या। वठे पांच वड़ला रा रूंखड़ा गे'री छाया रा लागरिया हा। नखे ही होगादवीर नदी खल-खल करती वे'री ही। हंस, मोर चकवा पंखेर खेल रिया हा। नी नखे चोड़ी-चोटी जगा' पे गदा जशी रेची पिछी थकी ही ौर छोटी-छोटी दोब  दलीचा सरीखी जम री' ही। एक कानी तरे-तरे रा रूंखडाी जाणे वाड़ी लाग री ही। वठे आरणा भेंशा पाणी पीवा आवता हा, ने खरगोश्या-हरण्या दोड़ता ने कूदता हा। कोयलाँ न्यारी री टहक री ही। अशी रमणीक जगा देख, तीनाँ रे आशे आयगी। वठे एक मंगरी पे भाी-भोजाई रे वासते लछमणजी एक शुवावणी कुटी वणाय ने वीं शूं थोड़ीक छेटी ेक पाना री डेगची आपणे भी तयार कर, रे'वा लागा। सीताजी ने वठे खूब शुं वाय गियो। एक हाथी रा बच्चा ने नरम-नरम पाना खवाय ने हेवा कर लीधो हो, सो वो वठे हीज कुटी नखे चर्यां करतो हो और एक मौर रा बच्चा ने भी सीताजी चटकी पे नाचणओ शिकाय दीधी हो। कधी परण--कुटो में वराज्या वराज्या हात्यां री, गेंडा री, ने ना'रा री लड़ाई देखता हा, ने कणी कणी गरीब जनावर ने कोई म्होटो दुख देतो तो लछमणजी ने हुकम करता, सो लछमणजी छोड़ाय देता हा। कछी लछमणजी राम भगवान ने अरज करता के जीव कई है, ईश्वर कई है, ने जगती कई है, तो राम भघगवान अणी रो नरणो समझावता हा। यूं तींनां ने ही वठे शुवांय गयो हो।

एक दिन राम भघवान गोदावरी नदी में सनन कर पाछा पधारता हा। वणी वगत छेटी शूं वणां ने रावण रो बे'न देखो लीधा। ईरो नाम शूरपणखा हो, ने या विधवा ही। अठे रागशाँ रा थाणा में रे'ती ही, ने वन में चार ही कानी शेलाँ करती-फिरती ही। अणी पे'ली तो जाणी के कोई साधु व्हे'गा सो जाय ने घेंटी मरोड़ ने लोई पा आऊं। जदी नखे शूं राम रो रूप देख्यो जदी तो ईंरो यो विचार बदल गियो, ने या आछी रूप वणाय ने परण-कुटी आय खटकी। वणी वगत ईं ने देख श्रीजानकीजी राम भगवान ने अरज कीधी के ई कुण आया ? जतराक में तो वण ीराम भगवान नखे जाय ने कियो के थें कुण हो ? अठे वन में क्यूं मार्या-मार्या फिरो हो ? जदी तो राम भगवान वींने सब वात समझाई। जदी वणी कियो, के म्हने परण जावो तो थाने अठें वन में कई अबकाई नी पड़ेगा। जदी राम भगवान हुकम कीधो के वणई कुटी में म्हारो भाई है, वठे जा। म्हूं तो पण्यो थकी हू। राम भगवान विचारी के लछमई ईंने समझाय ने शीख दे' देवेगा, ने मोको देखेगा तो धुरकार भी देवेगा। आपआं क्यूं धुरकरांरां. पण वा समझी म्हारो भाई थने परणेगा, सो लछमणजी री कुटी में दौड़ी थकी गी'। लछमणजी लुगाई शाम ीऊभी देख, नीचा न्हाल, हुकम कीधो 'थूं कुण है ? अठे क्यूं आई है ?' जदी वणी कियो 'परणवा', लछमणजी हुकम कीधो के थने म्हारी खबर नी, ने म्हने थारी खबर नी। नी, जो कोई थारो भाई-बन्ध भी थारे साथ ेहै। थूँ यूं अकले फिरती फिरे है। लुगाई ने आपे नी फिरणो चावे। जदी वणी कियो, के म्हने थारी खबर है। जदी लछमणजी हुकम कीधो खबर व्हेती तो अठे आवती हो नो। जदी तो पाछो भागी सो राम भगवन नखे जाय खटकी। भगवान हुकम कीधो, के अठे पाछी क्‌यूं आई ? म्हेंतो लछमण नखे जाय री की ही, थूं वठे नी गी' कई ? जदी तो फेर पाछी लछमणजी नखे जाट खटकी, यूं वा हींदा र ी पाटकड़ो री नांी अठीरी उठी फिरवा लागी। पछे तो वनक्की कर'ने राम भगवान नखे जाय ने के'वा लागी, थे म्हने क्यूं नी परणओ हो, ने अठी री अठी क्यूं फेर रिया हो ? जदी राम भघवान विचारी के लछमण ब्रह्मचारी है, वो एकान्त में लुगाई शूं यूं बोलम भी नी चावे है। ईं शूं म्हूं हीज ई ने समझाय ने सीख दे' देवुं। सीता माता तो वींने देख ने बड़ो अचंमो करवा लागा। राम भगवान हुकम कीधो म्हआं थने अठी री अठी कदी फेरी ही। थारा मन शूं ही थूं दौड़ती फिर री' है। ईमें थारी शोभा नी है। कन्या तो मां-बापा रे आधीन रेवे है। वी देवे जठे ही जावे है। की थाररा वंश में कोई नी है ? कोई नी है, तो भी मामा-मुशाल रो कोई थारे लायक वर शोधने अघ्निसायकी करने थने परमाय शके है। म्हें तो रघुवंशी हाँ। म्हें पराी लुगाई शामो देखमओ भी पाप समझां हां और शासतर री रीत छोड़़ने चाले वींने दंड देवां हां। जदी वण ीविचारी के ईं तो के'वारी वातां है। पण अमांरे या लुगाी है जीशूं मह्ने नी परणात व्हे'गा। यूं जाण जोर शूं विजली ज्यूं कड़की, ने कियो, अणी दुबली-कुरूपी ने तो म्हू अबार परमधाम पुगाय दूं' यूं के' श्रीजानकीजी पे शांवली री नांई रपटी। जदी तो राम भगवान सीताजी रे आगे आय ने ऊभा रे' गिया, ने लछमणजी वींर कड़क शुण दौड़ने पधारय्‌ा, तो राम भगवान हुमक कीधो, के देथ तो खी भाी अणी रांड कधकी हो धामर-ताल लगाय राखो है, ने सूधी ज्ञान री वात के'तां थारे भाभी ने मारवाने त्यार व्ही' है। जदो लछमणजी अरजी कीधी के यातो बे'री ने नकट ी रांड दीखे है। अशी वात नगटी बिना कुण करे है, कान व्हे'ता तो आपां कधकी ही समझाय रिया हां। पणया तो आप नखां शूं भागे ने तो म्हारे नखे आवे, ने म्हारे नखा शूं भागे ने आप नखे आवे. म्हू जाण ईं रे नाक-कान व्हे'गा, पण ई तो दीखत रा हीज है, ने अणा शूं दूजा आदम्यां ने धोको व्हे' दीखत रा हीज है, ने अणा शूं दूजा आदम्यां ने धोको व्हे' जायगा। अशी रांडां रे तो नाक-काना राखवा शू ंसामो नाक-कान रो बदनाम व्हे' है। यूं हुकम कर लछमणजी वणी रा दो ही कान ने नाक ततरवार शूं काटन नाक्या, सो नाक रे साथे साथे ऊपरलो होठ भी कट गियो, सो ठेठ पेड्यां ने सेती ऊपरला दांत धोला भाटा रा दांतां ज्यू बारणे ोखवा लाग गिया। पेली होत ओपा रूपाला घमआ हीज हा, ने फेर लछमणजी री कृपा शूं जाणे नवो रूप रो भंडार खुल गियो। सो अबे तो रूप रो पार ही नी रियो। आकी ही डोल गुलाल खेली व्हे ज्यूं रात व्हे गियो।

पाछे वा हाका करती ने छाती ने माता कूटती वठा शूँ भागी। दूज्यूं वा डगती भी नी पण लछमणजी रा टोटका शूं चुड़ेल डील में शूं निकले ज्यूं कुटी में शू ंनिकल ने भाग गी। जदी सीता मात किोय के अशीज रांडाँ लुगाई जात री बुरायाँ करावे है। वठे नीजक हीज थाणापति खर-दूषण वींरा काका-बाबा रा भाई रे'ता हा। वणां रे पुकारू दौड़ी। वणाँ बे'न ने हाका करती ने लोयां में रंगाबंग व्ही' थकी आपती देख किो, के बे'न बे'न कई व्हियो ? कई व्हियो ? पण वा तो धिरकार, धिरकार थारो जमारो यूं हाका कर कर ने केवा लागी। फेर भाई पूछे बेन बेन कई व्हियो ? पण वमी तो या हीज ढोली पकरड़ लीधी सो धिरकार, धिरकार थारो जमारो यूं हीज कियाँ जाय। जदी फोजा रा सार ही पूछे, पण वा तो यो रो यो हीज जवाब देवे। जदी एक रागश कियो देखाँ अणी रे माथा मे कठके लागी दीखे है, यूं केने शाडी माथा पर सूं परी कीधी तो नाक-कान रा ठिकाणा ही नी लाधा। जदी तो सारा ही कियो, अरे बाईजी लाल री या कई दशा व्हे'गी। लंकानाथ आपां ने के'वे गा, के म्हारी बे'न री थाँ या कई दशा करआई। खर-दषण कियो, के यो तो आज आपाँ सारा ही रागशाँ रो नाक कट गियो। वा नकटी बोली केम ्‌हें त सब मनखआं रो नाकट कटावा रीं कीधी ही, पण वात ऊंधी पड़गी।

अठे अयोध्या रा बड़ा कुंवर ली लुगाई है। वींने दादा खर ! थारे घर में गालवा ने लावा साते म्हूं गी' ही। सो म्हूँ वींने भंगराय री' हा जतराकम में तो वी दो ही खोड़ीला आप गिा, ने म्हने पकड़कने म्हारा नाक-कान-काट नाख्या, ने कियो के रांडम नखाँ रा नाक कटावती ही, पण यो सब रागशाँ रो नाक कट गियो.ो जा रांड ! पुकार थारा बापां, ने अबे जो वणी लुगाई ने थारां घर में नी देखूँगा ज्या बड़ी धरम वाली वणती ही, ने वणीरा माँटी ने देवर रो ऊनो ऊनो लोही नी पीयूंगा, तो म्हाऊं भाटा बंध कूडा में पड़ने मर जाऊंगा ने म्हारी ह्ताय थाने लागेगा।
जदी तो रागशां ने बड़ी रीश आई ने एकी साथे फौज री चढाई कर दीधी, ने आगे आगे नकटी रांड गेलो बतावती-वतावती जाय री' ही। आकाश में धूबला री धूँधल देख राम भघवान हुककम कीधो, भा ीलछमण, रागशां री फौज आय री' दीखे है। दो देख ोधूलो उड़रियो है, ने हाथी, घोड़ा, रथ री ने फोज रा लोगां ही हाका-हूक ऊंडी-ऊंडी शउणाय ही री' है। म्हने अशी दीखे है के आज गमो बारी रम व्हे'गा। अणी वगत में आपांने आपमओ वचाव कर, वणां ने मारटने थारी भाभी री शा पूरी राखणी  पड़ेगा, ने अणांरी आड़ी मन रे'वा शूं आपां ठीक तरे शूं लड़ नी शकांगा। जणी शूं थूं अमांने अणी परवत री खोह में चपाय दे, ने थूं भी वठे छिपने बेठो बेठो देख जे। अमां ने अठे नी देख ने कतराक रागश शायत थरे नखे भी आय जाय, ने थाँशूं लड़े जणांने थूं संभाल लीजे, ने म्हारा शूं लडेगा जणां शूं म्हूँ समझ लूंगा। अपे देर करेगा तो रागश नजीक आया केड़े, अणांने आपां छुपाय नी शकाँगा। दी लछमणजी वणी गुफा में सीता माता ने छुपाय ने बारणा पे चिपन ेरखवाली करवा लागा। ने छुप्या छुप्या दोही देखवा लागा।

अतराक में तो रागश धामा-धूम मचावता, "ने म्हूंं बेन रो बदलो लांगा।" म्हे बाईजीशा रो हुकम बजावांगा, म्हे मनखां ने बाँधाँगा, म्हें मनखां ने खावाँगा यू ँ करता, करता पंचवटी नखे आय गिया, ने जदी तो शूरपणखा छेटी शूं आंगली शूं वताय दीधा, के बडो तो वो मँगरी पे बेठ ोह,ै ने दो जमा कजाणाँ कठे है। जदी कणी तो कियो, वी तो भाग गिया दीखे है, कणी कियो छिप गियो दीखे है। कणी कियो अश्या भगावा-न्हाटवा अस्या व्हेता तो अठे घोर उजाड़ वन में आवता ही कधी। कणी कियो आपां ने देख, ने तो देवतां रा ही देवता कूँच कर जाव है, ई तो मनख है। कणी कियो, यो तो नरभे बेठो है। कणी कियो ईंरी लुगाई ो तो पत्तो लगावणओ चावे. कणी कियो अणी उजाड़ में शूं कठे जाय शके है। अबार लाध जायगा।
यूँ करता-करतां ज्यूं नजीक आवता जावे ज्यूं ज्यूं राम भगवनान रा आछी तरे'शूं  दरशण व्हेवा लागा। जाणे वणीं मंगरी पे शावण-भादव रो गे'र शाँवलो बादलो उतर आयो है। आखोई शरीर, जाणे तेज शूं चमक रियो हैष हाथी री शूंड  जशी बड़ी बड़ी चूड़ी उतार भुजा है। चोड़ी छाती, कमल जश्या नेतर,ने ऊँची ललाट दमक री है, ने निर्भय, ने रागशाँ शूं लड़वने अकेला ही त्यार है। जटा रो मुकट धारम कर राख्यो है। कमर में फाथो बांध राख्यो है। धनुश-बाण हाथ में ले'ने धरम रा दुशमणां री वाट देख रिया है। कणी कियो ओहो ! शूरता ने सुन्दरता दोीह जाणे अणी अकेला ही मनख में आय ने बैठगी है। कणी कियो के मनखाँ रो कई, यो तो तीन ही लोक रो राजा व्हे' जश्यो दीखे है। कण ीकियो के दुशमणआं री बड़ाई करता ा ँ थाँने लाज ी आवे. थें तो डरपण्या हो। जदी अकंपन नाम रे हर रागश कियो, "चावे ज्यो व्हो, अणीं ने एकलो समझ नेरप राखो मत। दुशमण रो नेरप नी राखणी।" खर-दूषण कियो "अणी री लुगाई ने दे' देवे, तो आपणे लड़' ने कई करणो। म्हारी बे'न रो माजनो रे' जायगा।" कणी कियो "या तो वेंडाणा री वात है।" कणीं कियो 'आपणी फौज देख डरप ने शायत दे भो देवेगा।' के'वा में कई अटकाव है।

यूँ शल्ला कर चार हलकारा राम बघवि नखे वणां भेज्या। वणां जाय सब वात कीं। जदी राम भगवान हुकम कीधो 'म्हां थारो कई वगाड़ो नी कीधो। या जगां म्हाराँ बड़ावारी है। अणींमें थे रे' ने अधरम कर रिया हो, तो भी म्हाँ कई नी कियो। अबे थें शगत अठे लड़वा आया हो तो म्हूं रजपूत हाँ, लड़ाई तो म्हांरे रमत है। परभाते ऊठ ने म्हे ं धरम री लडाई में देह छूटवा री ईश्वर शूं अरजाश करां हां। जो थांरां में लड़ावा री आमगण नी व्हे' तो म्हूं डरपे जींने मारमो नी चावू हू, ने टकाी देखाव ारी मुरजी व्हे'तो म्हूं अणीज वास्ते अठे आयने रियो हूँ। क्यूँके, साधु, ब्राह्मण, गहीरबां पे थें घणी टकणाकई देखावो हो, स,ो देखां, म्हूँ भी देखूँ, के रागश कश्याक शूरा व्हे' है। अबार थो थें मह्‌ारी लुगाई माँग रिया हो, पण दो-दो हाथ म्हारा देख लो'गा, तो थांरो जीवणो हीज मारे नखा शूँ मांगवा लाग जावेगा। लडवा ने आवणो तो लड़णो, ने मजीवा ने आवणो तो जीमणो। अणी में संकोच नी राखमओ। भूख नी व्हे तो वा वात न्यारी है। या वात हलकाराँ पाछी सब रागशाँ नी की।

जदी तो सारा हो के'वा लागा, 'अबे कई देखो मारो, पकड़ो, उड़ाय दो, वखेर नाखो।'यू के चार ही कानी शूं अकेल राम पे टूट पड्या। पण घमआ दुशमण शूं एकलने कूंकर लड़णो चावे. या रीत भी भगावन विश्वामित्रजी शूं शीख्या थका हा। जीशूं एक साथे वणांरा भाला, तीर, गोली, भाटा, गोफणां, तरवारां ने काट, तोड़, वचाय, एक-एक तीर री भालड़ी चवदा ही हजार रागशां रा डील में चोब दीयो। जदी तोरागश जाण गिा के या लड़ाई शेल नी है, ने अबे राम आपणो वार कीधो। जणीने रागश वंचया नी शक्या, ने शकेड़ा-हजारां माथा, हाथ, टाँगड्‌यां, वणी जगा वखर गी। देखतां ही देखतां सब फौज ने राम भगवान काट ने तारां रे खेड़े वशाय दीधी। जदी तो त्रिशिरा नाम रो रागश आपमा रथ ने आगे वधाय, ने राम शू लड़वा लागो ने आछो लड्यो। पण वींने भी शेवट में धरीत पे शूवणो पड्‌यो।

चदी तो दूषण वध्यो, ने वणी भगवान पे अनेक बाण अस्या वाया के जमआं राम भी न ीडाल शक्या, ने वी भगवान री चोड़ी थाी में ने बड़ी भुजां में और लालाट में लाग गिया। पण पाछो झट ही राम भी वमआं रो जबाब दे' दीधो। जणी शूं दूषण सदाई रे वासते मून ले' लीधी अर्थात् मर गियो।

अबे तो खर वध्यो। नरी देर शूं नरा ही रागशाँ शूं लड़तां-लड़तां राम भगवान रे परशीनो चूवा लाग गियो हो, ने जगा जगा तीराँ रा धावाँ में शूं लोही भी वे'रिया हा। पण रणशूरा राम री लड़ाई री उमंग तो वधती ही जाती ही। खर ने आवतो देख, राम हुकम कीधो, 'हे नीच रागश ! अणीज टकाई पे साधुवाँ ने दुःख दे'तो हो ? थने खबर नी ही के अणाँ री कानी भी कोई है। अबे थारो पाप रो घढ़ो फूटवा ने आया गियो है। अबे बामण-साधु अठे राजी खुशी भजन करेगा, ने संसार में धरम फेलगेा। जदी खर कियो, हे राम ! म्हूं जाणूं हूँ के थूं बड़ी शूरवरी है। पण यूं पोमवाणो थारा जश्या ने शोभा नी दे है।' बहादुर रा हाथ काम करे है, ने डरपण्या री जीभ काम करे है। थने अतरा रागश मार'ने घमंड आय गियो है। पण हालत तक तो म्हूं एक बाकी हूं. काम कर'ने भी समझणा घमंड नो करे, ने मूरख तो पे'ली ही। पोमावा लाग जावे है। अबे आपां रा हाताँ रा युद्ध रो वगत है, वाताँ रो नी। या वात खर री राम भगवान रा मन में चुभ गी', ने अबे तो दोयां रे ही अश्यो युद्ध व्हियो; के शेण-दुशमण री सारा ही वाह वाह करवा लाग किया,ने देवता भी रथ रोकने या लड़ाई देखवा लाग गिया। ्‌बे कूण जीतेगा, अणी वात री देखवा वाला ने नक्की नी ही। खर एक बाण अस्यो बायो के राम भगवान रा बाण ने काट ने धनुष ने भी काट नाख्यो. जदी तो राम भगवान् शारंग नाम रो आपणो धनुष चढ़ाय लीधो। पण जतराक में वणी री भी वणी चढ़ती चणप ने काट न्हाखी। ज्यूं ज्यूं फुरती शूं राम चणपां चढ़ावे त्यूं ही त्यूं फुरती शूं वो काट न्हाखे। यूं सात दाण वणी चणपां काट न्हाखी। पण आठमी दाण में राम अतरी फुरती कीधी के वींरे बाण रे वावतां पे'ली चणप चढ़ाय बाण शूं बाण काटने, अब ेआपणा वाण बावणा आरंभ कर दीधा। एक बाण री तो वीं रे ललाट में दीधी, ने एक शूं वीं रो धनुष काट न्हाख्यो. जद वो भी फुरती शूं धनुष बदलवा लागो। पण हाथ में धनुष लेवे, ने वोंनीे भी राम काट न्हाखे। फेर दूसरो लेवे जतरे वीं ने भी काट न्हाखे। अबे तो सात धनुष वींरा काट'ने रथ भी तोड़ ने वचे वचे बाणां शूं सारथी घोड़ा भी राम मारा'ने आपमी अनोखी फुरती देखाय दीधी। जदी तो वो भालो लेने' राम पे दोड़ो। पण वो भी काट न्हाख्यो। अबे वणी नख ेकई आवध नी रियो। जदी तोवणी एक डींगो ऊंचाय ने भगवान रा मस्तक पे दीधी, जणी शूं थोड़ी देर अयोध्या-नाथ ने जांफ आयगी। पम पाछा झट सावधान व्हे'ने हुकम कीधो, 'खर ! सचे व्हे, यो बाण आवे है' यूँ, के', ने एक ही बाण में खर रो खरे कर दी।ो या देख शूरपणखा फेर वठा शूँ छाती-माथा कूटती थकी लंका कानी भागी, ने लछमणजी, ने सीता माता पाछा पधार, ने दोही देवर भौजाई श्री राम भगवान री शेवा में लागा,न े श्री राम भगवान रो अनोखोे जुद्ध न बल शुण-शुण साधु-बाण राम ने आशीर्वाद देवा ने छेटी झेटी शूं आवा लागा। यूँ आनंद शूँ सारा पंचवटी  में विराजवा लागा। पण दूसरां रो सुख ने शांति शूं रे'णो रागश जात ने कठे खटे। वा तो लंका में जाय ने रावण रे मूंडा आगे भी धिरकार धिरकारर थारो जमारो यूँ वार वार के'वा लागी। रावण रे पूछवा पे वणी आपरो मूँडो उघाड़ ने वताय दीधी ने खर-दूषण ने की ही ज्या ही वणावटी वात रावण ने भी के' ने कियो, के खर-दूषण भी म्हारे वीडू चड्या। पण देखतां देखतां वणाँ रो तो धूंवो व्हे' गियो। अबे लड़ने तो तो वणी शूं जीततणो शे'ज नी है। पण छल कर ने वींरी लुगाई ने लाय थांरा रावला में घाल दो, तो म्हारे जाणे पाछा नाक-कान ऊग जावे, ने वणां रा कट जावे। साँची वात है, नकटा में नाकवालो नी खटे। जदी रावण कियो, बे'न । "थूं कई विचार मती कर। अबे म्हारा काम देख।"

यूं  दीं नगटी बे'न ने धीरप दे' ने अकेलो ही रावम रथ में बठ समुद्र री तीर पे ताड़का रो बेटो ने वींरो मामो मारीच रे'तो हो, वणी नखे गियो। अणीरे विश्वामित्र जी रे अटे भोटा तीर री राम रा हाथ री लागी ही। जदकोई यो अठे लंका कने जंल में भजन करतो हो, ने साधु ज्यूं रे'तो हो। रावण नेदूरा शूँही आवोत देख मारीच सामे जाय, बड़ो आदर मान कीधो, ने कियो एक तो आप सब राघशाँ रा राजा, एक पामणा, ने एक म्हारा भाणेज। म्हारे पे मेहरबानी कर अदना री नाँई अठे पधार गिया। अबे म्हूँ कई खातिर करूँ। आपरेवासते तोम ्‌हूँ प्राण देवा ने भी त्यार हूं। जदी रावण कियो मामाजी आपणओ तो माजनो वगड़ गियो। थाँरी तो भाणेज, ने म्हारी जो बे'न शूरपणखा, वी रा अयोध्या रे कुँवर नाक-कान, काट नाख्या। अबे म्हूँ थांरे कने अणी वासते आयो हूं, के वीं रीं लुगाई ने चोरलावूं। जदी पाछी बराबरी व्हे शके। पण वो वठे व्हे जतरे तो या वात व्हे शके नी. जू शूं म्हारी केण है के थांने हरण रो शाँग आछो वणावतां आवे है, ने अणी शाँग शूं आगे भी थाँ नरा ही साधु-ब्राह्मण ने मार्या है, सो छल शूं वाँ दोयां ने वी शुं दूरा करो। जदी मारीच कियो, के हे राजा ! अश्यो थारे शल्लागीर कूण मिल्यो। जीं थने राम शूं वेर वशावा री शल्ला दीधी। राम बड़ो शूरो है, ने बड़ो धरमवाला है। कणी लगाई रा नाक ोव कटावे जश्यो नी है। या तो शूरणखा हीज लखणा वायरी है, ोस शगत नाक कटाय आई दीखे। जदी तो रावम रीश करने कियो के थें ताड़का रो बेटो व्हे'ने धूल खादी। एक नजोगा मनख शूँ ही डरप गियो। यूँ के ने वीं ने रीश देवाय, ने जूना वैर याद देवाया। जदी मारीच कियो, म्हारे तो आछी शल्या देवा रो काम हो, सो दीधी। पम अणां शूं म्हारो वैर तो म्हारे भी ले'णो है, ने आपरी चाकरी भी है, सो एक पंथ ने दो काम' व्हे जायगा।

यूँ के' ने मारीच ने रावण शल्ला कर पंचवटी नखे गिया। वठे नराई रूंखां री झड़ी में रावण रथ छुपाय साधु रो शांग कर मारीच रे साथे-साथे आय, एक म्होटा रूंख री आड़ में छुप ने देखवा लागो, ने मारीच हरण रो शाँग अश्यो ्‌ोखो कीधो, के देखताँ ही ईने पकड़ ने पालवा रो मन चाल जावे। वठे, सीता जी विराजता जठे नराई हरण चरता हा। वणां भेलयो यो भी चरवा लागो। कणी वगत गाबड़ी फेर अठीरो उठी देखे। कणी वगत चमक ठेकड़ी दे'ने दोड़े। कणी वगत ऊभो-ऊभो वागोले, ने तणमण तणमण पूँछ हलावे। कणी वगतत चरवा ने नी चो मूंडो कर नाका रा फूरणा शूं धूलो उड़ाय तणखा तोड़े। सीताजी रे जनावराँ रो शोख तो हो जी, सो अणी हरण ने देखतां ही बड़ा राजी व्हिया, ने राम भगवान वतायो के देखजे यो सोना रो हरण कश्यो रूपालो है, ने अणी रे धोली धोली टपक्यां जाणएं हीरा चमके ज्यूं चमक री' है। अशी जात रो हरण जो आज तक म्हां भी नी देख्यो। यूं हुकम कर रामचन्द्र भगवान लछमणजी ने हेलो पाड़ ने हुकम कीधो, के देख भाई थें भी कधी अश्यो हरण देख्यो हो ? यो थारे भाभी रे नजरे आयो है, ने अणां रे घमो दाय लागो है। लछमणजी देख अरजी कीधी यो तो रागशाँ रो छल  दीखे है, आपाँ रे, ने वणां रे दुशमणो व्हे'गी है। सो आपाँ ने अबे सावधान रे'णो चावे। जदी सीता जी हुकम कीधो, लालजी, आपने तो भेंम घमओ आवे है। रागश वेर बांध ने हरण का' शारू वणे। अणी छल शूं वणां रे कई फायदो ? फेर भगवान ने अरज कीधी, के यो हरण्यो तो हाते आय जाय, तो अठे भी म्हारे चोखो तमाशो रे'वेगा, ने अयोध्या में भी बे'ना ने केवूँगा के वन शूं थारे यो तमाशो लाई है हूँ, ने ईंने देखवाने नराी गाम रा लोग-लुगाई आवे गा, सो अणीने तो जरुर आप पकड़ाय देवावो, ने नी आवतो दीखे, तो खोड़ो कीधाँ ही आज जाय, तो ठीक नी तो अणीरी खाल ही ले'जाय, ने देखावाँ गा के म्हाँ तो वन में अश्या-अश्या तमाशा देरुया हा। जदी तो राम भगवान कमर में भातो बाँध ने धनुष-बाण ले'ने लछमणजी ने हुकम कीधो; "भाई, थारी भोजा री थूं अठे रखवाली राखजे" ने धीरे-धीरे वमी हरण ने पकड़बा पधार्या। हरण भी अणजाण री नांई धीरे-धीरे आगे वधतो जाय, ने राम भगवान भी अबे वारमें आवे, अबे वारमें आवे करतां करतां छेटी पधारवा लागा। पछे वारमें आवतो नी देख्यो, जदी खोड़ो करवाने टाँग पे तीर ताक्यो, ने तो वो ठेकडी दे' छेटी जाय पड्यो, फेर नजीक पधारया, ने फेर छेटी भाग गियो, ने अबे तो ऊभो ही नी रे'वे। जदी तो राम भगवान रीश में आय, वीं ने मारवा ने बाण खेंचो, ने वो झट रूँखडा री आड़ में व्हे' ने छेटी नकिल गियो। भगवान ने तो यूँ वणी जगा रा गेला री खबर ही नी री, यूँ ही यूँ नराई छेटी पधार गिया, ने यो तो आगे छेटी जाय हाय सीता, हाय भाी लछमण दौड़ रो म्हने मारे है, म्हने वंचावो रे ! झट आवो रे ! यूँ जोर जोर शूँ हेलो पाड़वा लागो। यूँ हेलो शुणतां ही राम भगवान ने लछमणजी री वात याद आयगी के यो तो रागशां रो छल है। अबे तो राम भगवान भी जोर शूं हेलो पाडड्यो के भाई आवे मती, पम साथे साथे यो भी नीच छप्यो थको हाक कर रियो, के झट आव, झट आव, सो दो हीहेला मिलजावा शूं पे'ली रा हेला री तो खबर पड़ गी'। पछे राम ने रागश री बोली मिलिी मिली शमलावे, सो कई खबर नी पड़े। जदी राम भगवान मिली शमलावे, सो कई खबर नी पड़े। जदी राम भगवान वणी रागश री बोली रे समचे तीर वाो. जींरी लागवा शूं नीच मारीच तो हरण रो रूप छोड मर गियो, ने वमी रागश ने मरची देख, राम पाछा आगता ागता कुटी कानी पधारया, पण गेलो भुलाय गियो। क्यूं के वो अश्या हीज उजाड़ कानी ले' गियो हो। अठी ने रावण शिंयाला री बोली बोल्यो, सो आखा वन रा शिंयालया हुवो हुवो मचाय दीधी, सो कई हेलो-हाको शुणाय ही नी शके। वणा वगत सीतीज कियो, 'लालजी झट दोड़ो, आयरा भाई वे दुःख पड्‌यो, झट जावो' जदी लछमण जी अरज कीधी, दु:ख में धीरज राखणो चावे, आगत शूं काम वगड़े है, दादाजी म्हने आपने शूँपने पधार्या है। म्हूं आपने ने छोड़ने परी जाऊं, ने पाछे की ओछो वत्तो व्हे' जाय, तो पछे म्हूँ मनखाँ मेंडूो वतावा जोगो नी रेऊं। म्हारा दादाजी ने कणी री मूंडी है, सो दुःख वे शके। आपा घबरावो मीत। अबार दादाजी पधारया, के पधारया है।

जदी तो सीताजी ने रीश आय गी' ने कियो के हे हत्यारा, थने लोभ आगे भाई री दया नी आवे। अशी दुःख री वार शुण ने तो हरकोई ही दोड़ जावे। जणी में म्हूं के'री हूँ, ने सगा भाई रे वगत पड़ी है, तो भी आप धीरप री वाताँ कर रिया है, सांची है 'भाई जश्यो शेण नी ने भाई जश्यो दुशमणनी' पण रखवाली माँग रिया है, जणारी तो रखवाली नी करे, ने म्हूं घर में बेठी हूं, जणी रा रखवाली करवा विराज्या है। अणां वातां शूँ तो म्हने थारी दानत खोटी दीखे है। पण याद राखजे, सीता अशीवशी लुगाई नी है। अनसूयाजी शूं म्हूं प्राण छोड़वा री रीत भी शीखी हूं, सो अबार प्राण छोड दूंगा। अमई भरोशे भूले ही मीत। यूं रीश ही रीश में घबराया थका सीता मता कई-रा-कई बकवा लाग गिया। जदी लछमणजी शिव शिव कर ने कानां आड़ा हाथ दे' ने अरज कीधी, के 'म्हूं तो जाणतो, के कैकयी माँ अयोध्या में रे'गिया। पण ईतो म्हारा कैकीय माँ साथे ही पधारया  दीखे है, ने म्हने झूठो अपराध लगावो हो, तो आप ने ही झूठो अपराध लागे गा। आप मरो मती। म्हूँ तो यो निकलोय। पण पाछे आप ने पछतावणी पड़़ेगा। फेर भी या अरज करुं हू, के या म्हारी वणाई थकी ओवरी अशी गाड़ी है के ई में विराज, ने आप मायली शांकील झड लोगा, तो दो पे'र तक म्होटो रागश खपेगा, तो भी आपने नी निकाल शकेगा।  हे माता लछमी ! कृपा कर अणी में सूं बारमे पधारो मती। यूं के' ने राम रा हेला री शूध पे दोड़ गिा, ने सीता माता मायली शाँकली झड़ ओवरी में बिराज गिया।

अतराक में रावण साधू रो रूप कर लांबा-लाबां टीला टपका कर, ने म्होटी म्होटी माला पे'र ने खांख में पोथी दाबने आय ने अलख जगाई। सीता माता तो छाना-माना माँयने विराज्या रिया। जीद तो कपटी साधु ओवरी नखे जाय, ने बोल्यो-'महूं तो जाणोतो हो, के अठे कोई वसतो व्हे'गा। पण यो घर तो सूनो हीज दीखे है, वसतो वाश उजड़ताँ कई देर लागे। या वता शुण ने तो सीता माता डरप्या के साधु भूखो जाय तो भी पाप लागे, ने ईं रा मूंडा में शूं कई निकल जायगा तो भी आछो नी। यूं विचार सीता माता मांय ूं बोल्यो, बावजी आप आशीश देवो सो ई घर हर्या भर्या रे'वे।' जदी रावण कियो को कश्यो घर है, जी में अभ्यागत ने भीख भी नी मिले। या शुण ने सीता माता बोल्यो 'मिलेक्यूं नी बावजी ! पण घरवाला ने बारणे पधार्या है। वणां रा छोटा भाई भी अबार हीज पधार्या है। आप थोड़ी देर पे'ली पधारात ोत मिल लेता, ने वी आप री आछी शेवा करता। अबे थोड़ाक अणी चोंतरा पे आब बिराज जाओ, सो पधार्या-के-पधार्या है। जदी रावम कियो 'म्हां साधू हाँ, गड़कडा री नंंाई रोटी रे वासते बारणा पे पड़या नी रे'वाँ। म्हाँ तो एक दाण हेलो पाड़ चल्या जावाँ। पण म्हें जाण्यो म्हारे सूनो जावा शूं घरबालो हामोहीतो दोरो हीज व्हेगा। जदी तो सीता माती री छाती धड़क-धड़क करवा लागी, ने नोज, आपने भीख कूण नी देवे। अणी बारी नीचे झोली मांडो सो कन्द-मूल-फल देवूं. जदी तो रावण कियो के म्हूंतो जी रोकम में व्हे' ने भगी ने देवे, ज्यूं देवे वणी तीरा शूं भीख नी लेवुं। खेर शंसार है, म्हूं कणी कणी री शोच करूं। थांरी भीख रे'वा देवो। मूं सूना हाथां जावूं हूं। जदी तो सीता माता बारणे पधार गिया ने कियो के, लो महाराजा म्हूं बंधो नी हूं, ओर बारणे आई हूं। जदो तो राव सीता माता रा रूप ने देख चतित व्हे' गियो और बोल्यो के एक अबला, थूं तो घणी रुपाली है। वन में रे'वा लायक नी। तूं तो कमी राजा रे मे'लां में पटराणी व्हे'ने रे'वा लायक है। थारी जवानी सुख में बीवा लायक है। थारी घणी गँवार है, जो थने वन में दुःखी राखे और आप रो स्वारथ पूरो करे। थारी दया ही नी देखे। जीशूँ थने भी चावे कै जो थने सुख देवे वीरे अठे रे'वे। वी थारी बड़ाई ने जाणे। थूं लंका रा राजा रे मे'लां में पटराणी व्हे' ने रे'।  वठे थने की दुःख नी व्हे'गा। अणी वात री हामल म्हूं देवूं हू। वमी रा शे'र रे चार ही आड़ी समन्दर है। घणी फौज है। वणी रो नगर धन-माल शूं भर्यो-पूरो है। वठे थारी घमी ओर देवर नी जाय शके है। वमी री बराबरी देवता भी नी कर शके। देवात भी वीं ने माथो नमावे है। जदी तो सीता माता समझ गिया, के यो तो साधु नी दीखे, कोई दुष्ट है। यूं जाण झट पाछा ओवरी में घुशवा भागा और शांकल दे'ने माँय ने बेठवा रो विचार कीधो। पण रावण वणांने भागत देख दोड़ ने पछाड़ी शूं सीता माता ने बांध, रथ में न्हाख, रथ दोड़ाय ने भाग गियो। जी तो सीता माता हे लछमण ! हे नाथ ! यो नीच म्हने पकड़ ने ले' जावे है। यूं जोर-जोर शूं वा'राँ करवा लागा। पण रथ री धड़धड़ाट सूं मोर्या बोलवा लाग गिया। वमई उजाड़ वन में एक पतला कंठरी वा'र कुण शुणे। सीता माता घमा ही खीजे, ने जोर-जोर सूं हेला पाड़े। पण कोई वणी पुकार ने शुणबा हालो नी लाधो, रावण जो पनव री नांई रथ ने जोर शूं दोड़ाय दी।ो। वींने अबे दो ही भाई आया, आया, या धाक लाग री' ही, सी नटाटूट रियो हो। वणी सीता सीता माता ने कियो के थूँ क्यूं घबरावे है। म्हूँ रागशां रो राजा रावण हूं। थने लंका में कणी' तरे' अबकाई नी पड़ेगा। थारो आखी लंका पे, ने देवता-दानवां पे भी हुकम चालेगा।

जदी सीता माता ने खबर पड़ी के रावण-रावण शुणता हा, सो यो है। पछे सीता माता हुकम कीधो आप म्हारे पिता री जंगा हो। आप पुलस्त्य नाम रा धर्मात्मा रिशी री पोता हो। आपने धर्मात्मा व्हे'ने पराया री बहू-बेट्यां ने नी ताकणी चावे। ाप पाछो रथ फेरो, ने म्हने जनक जी दीधी ज्यूं ही आप भी म्हारा पतिने पाछी दे' देवो। अणी शूं ापरी बड़ी शोभा व्हे'गा ने अयोध्या शूं आप रो सनातन व्हे' जायगा। आपारा अयोध्या रा राजा जमाई व्हे जायगा ने म्हूँ आप री बेटी हूं हीज। जी अशी वाताँ पे नालायक ध्यान देता व्हे तो संसार में पाप ही नी रे'वे। वमी रीश कर ने कियो अबे तो थूं शपना में ही वणां भिखायरयो ने नी पाय शके। अबे तो रावम री राणी वण ने रे'णो पड़ेगा। जदी तो सीता माता हुकम कीधो के हे नीच ! थूँ दथरथ रा बेटा ही वउ, ने जनक री बेटी ने धर्म शूँ नी डगाय शकेगा। भले ही सूरज अठी रो अठी ऊग जाय, पण सीता आपणो सतधर्म नी छोड़ेगा, पण प्राण छोड देगा। अबे तो रावण तो कई बोले ही नी, ने रथ ने जरो शूं दोड़ायां ही जाय और सीता माता विलाप करता जाय।

वणी वगत एक शंवलो रूँखड़ा पे बेठो हो। यो पंखेर दशरथजी रो मित्रो हो, ने जाटायु अणी रो नाम हो। यो राम भगवान नखे पंचवटी पे भी आयाँ-जायाँ करतो ो हो। राम भगवान अणी रो दशरथजी ज्यूं घमओ आदर करता हा। वणी दाने पंखेरू सीता जी, ने रावम ने ओलख लीधा. ने सीताज ीने यूँ विलाप करता देख अणी री पती बूढो हो तो भी नो रे'णी आयो। अणी रावण ने कियो, के हे रावण ! रागशां रा राजा! यो कई कर रियो है। वासदी ने कपड़ा में बाँधने कठे ले' जावे है। सब रागशाँ रो क्यूं राखोड़ो करावे है। म्हारो किया मा ान सीता ने छोड़ ने परो जा। पण रावण को बोल्यो ही नी। जदी तो वो क्रोध कर ने झपटयो, ने कियो के बेटी सीती  डरपे मती। यो म्हूँ आयो। यूँ के ने एक झपट अशी मारी, के राण रा मुकट नीचे पड़ गिया, ने चोटी भर्राटया खावा लागगी ने दूसरी झपट में वीं रो धनुष चाँच सूं तोड़ नाख्यो। रावण घमओ ही वंचावे, ने जाणे, के यो रोक लेगा, तो अबार दोही भाई आय जायगा। पण अणी तो मार झपटां आगे रावण ने घबराय नाख्यो शेवट में यो दानो घणो हो, सो थाक गियो। जदी सीताजी ने पंजा में ठान में पंचवटी कानी उड़वा लागो। जदी रावण विचारी, अबे वठी सूं वी आवता व्हेगा तो अबकाई पड़ेगा। यूं जाण वणी महादेवजी री दीधी थकी चन्द्रहास नाम री तरवार शूं वणी रा पांख काट नाख्या। जणी शूं वो शंवलो धरती पे पड़े,ने तड़फड़ तड़फड़ करवा लागो, ने रावण फेर रथ ने जोर शूं दोड़ा, दीधो. पण अबरणे अणी आकाश में रथ दोड़ायो। ईं रो यो रथ धरती, पाणी, ने आकाश में एक सरीखी दोड़तो हो। अणीदेखी अबे धती पे चलवा ा शूँ फेर कोई पिधन व्हे' जायगा। अतरी देर तो ऊँचो रथ वणां दोही भायां ने दीख जातो. अबे नरी छेटी पड़गी सो नी दीख शकेगा। यूँ विचार वमी आकास में रथ ने दोड़ावणओ शरू कीधो। सीता माता विलाप करता जाय रिया हा, ने हाय, म्हारा पिता रीजगा जटायु हा, वणां ने ही अणी गंडक मा'र नाख्या। मने अनुसूया माता कियो के लुगाई ने आपे नी व्हे'णो जावे। पण हाय म्हूँ क्यूं बारमए नकिली, लालजी तो पे'ली हो कियो हो। पण म्हें या कई बिना अक्कल री वात कर ने दोयां ने ही एक हरण्या रे वासते मोकल दीधा. म्हारी दनदशा अशी कई आई।

यूँ विलाप करतां-करतां वणा रे एक मंगरा पे पाँच वाँदरा बेठा नजर आय गिया, सो झट आपरां पगाँ री नेवर्या, ने कनकूल, पोचावणा, वांदरा पे फेंक दीधा, के या शेलाणी भगवान नखे पूग जावेगा, ने ई सब वात के' देवेगा। अबे रावण सीता माता ने समुदर् पे व्हे' ने लंका में ले' ने परो गियो, ने वठे घमआ ही धमकाया-समझाया ने लोभ दीधा। पण सीता मात रो मन नी डग्यो। जदी एक अशोक नाम री वाड़ी में कैद कर राख्या, ने वठै रागशण्यां रा पे'रा बेठाय दीधा, सो वी सीताजी ने वगत-वगत पे डरपावे, ने समझावती रे'वे। अणी रावण नरी नागकन्या, देवतां री लुगायाँ, ने गंधर्वा रा साथी री ने, नी मानती जदी यूं हीज राखी ही। पण थोड़ा-थोड़ा दिनां में वी रावम रा रावल में घुश जाती ही। यूँ ही सीताजी ने वो भी जाणतो ही। पम वी ने या खबर नी ही के या तो सब रागशाँ रो खाटो कड़ावा लंका में आई है। मे लां में रे'वा वाली ने संसारी सुख चा'वा वाली, और व्हे है।

अठी ने लछमणजी आगे मंगरा री नाल में व्हे'ने हेलो पाड़ता-पाड़ता पधारया। जदी राम भगवान भी भाई रो ले,ो शुण, झट दोड़ ने हुकम कीधो. अरे भाी या कई कीधो। सीता कठे है ? म्हारे नख ेकी लेवा आयो ? रागशां रो दाव लाग गियो दीखे है। जदी तो लछमणजी सब अरज कीधी। जदी भावो ! यूँ केने दोई भाई दोड़ ने पधार, ने देखे तो पंचवटी री कुटी तो सूनी पडी दीखी। अबे लछमणजी जोर-जोर शूँ हेलो पाडवा लागा, भाभीजी ! जानकी ! तो पाची कई पण उत्तर नी मिल,े ने वठे पण उत्तर देवा वालो हो ही कुण। खाली पाण ीरी तीर शू ँ ने मंगरा में शूँ जाणे दोही भायाँ री कूटी काडे ज्यूँ पाछो पड़छो भाभीजी ! भाभीजी ! भाभीजी ! जानकी ! फूटतो हो। जदी तो छेटी-नजीक हेर ने कोज काढता-काढता दोही भाई आगे पधार्या। पे'ली कुटी नखे, सीताजी रा पग बारमए आवता, ने पछे पाछा जावता नजर आया ने एक मनख रा म्होटा महोटा पग रा आंगला मंड्या दीख्या, ने पल-फूल वखर्या देख, आगे रथ रा पेड़ा देखष दोही भाी आगे पधार्या। तो वमी पंखेरू ने पड्‌यो देख्यो वणी दो'ही भायाँ ने देख अटकताँ-अटकताँ घमओ-खरो समाचार कियो, ने के ताँ के तां ही वणी रो तो प्राण निकल गियो। जदी दोही भायाँ वणी री पिता री नांई क्रिय कीधी, ने नरोही सोचकर सीता ने शोधता शोधता फेर आगे पधार्या। वठे राम हुकम कीधो भाई ! यो तो अजाण्यो उजाड़ वन दीखे है। अठे नी तो रथ रा पेड़ा दीखे, नी ती कई ओर खजो दीखे है। जदी लछमणजी अरजी कीधी के आपमी पंचवटी तो अठा शूं नरी छेटी रे'गी है। अणी भयंकर वनी ने देखतां, जाणी जाय के यो कुंज नाम रो वन आयो गियो दीखे है। कबंध नाम रो रागश अठे हीज रे'तो शुण्यो हो। यूं के दोही भाी न्यारा-न्यारा वणी वन में हेरवा लागा। अतारकमें एक कूक जोर सूं शुण के अरे! कोई म्हने छूडावो रे, कोई दोड़ो रे, यो रागश, म्हने खावे। जदी लछमणजी दोड़ने देख्यो तो एक रागश एक भीलड़ी ने पकड़ ने मूंडा में घालवा लागो। जतरेक लछमणजी दोड़ने छोड़-छोड़, अणी बापड़ी ने क्यूं मारे है। यूं हुकम कीधो। जतरेक तो दूसरा हात शूं वीं लछमणजी ने भी पकड़ ने मूंडा माय मेलावीर कीधी। जदी तो लछमणजी झट तरवार निकाल वीं रा दोही हात काट ने माथा में उभी वाई सो वींर ोमाथो वच में शूं फाट गियो। यो कबंध नाम रो रागश हो। अणी री गाबड़ी धड़ में धश री' ही, ने पग भी पेट में घश रिया हा। ौर दोही हाथ लंबा-लंबा हा। वणा शूं छेटी नजीक रा जनवरां ने पकड़-पकड़ ने यो , केकड़ो जल रा जीवाँ ने ज्यूं खाय जातो हो. आज लछमणजी, ईने मार गेला रो यो काँटो भी मियाय दीधो। जदी वणी लुगाई लछमणजी री वावहाई कर दियो म्हें शुणी के अयोध्या रा दो राजकुंवर ने बड़ा राजकुंवराणजी वन में पधार्या है, सो म्हूं वणा रा दरशण करवा ने जावती ही पण हे परोपकारी वीर ! आप कूण हो ? आप अबार म्हारी वा'र  पे नी पधारता तो आज म्हारे वणां धर्म रा रखवाला, राम-लचमण रा दरशणां री मन री मन में ही रे जाती। जदी लछमणजी हुकम कीधो, वी भगवान राम अठे नजीक हीज है, ने म्हूं वणां रो

छोटो भाई लछमण हू। थारी वार शुण अठी आयो, ने थारो जीव वंच गियो, सो म्हारी मे'नत सुफल व्ही'। पण शूं कुण है ? ने थने अयोध्यानाथ रा दरशण री अभिलाषा क्यूं लागी ? जदी वमी किया म्हूं मोलण हूँ। अठे मतंग नाम रा महात्मा रे'ता हा। वणां री धूणी अठा शूं नजीक हीज है। वमा महात्मा ने तो शरीर छोड़यां नराी दिन व्हे' गिया। पण वणांरी धूणी आज भी विना लकड़यां रे सुलग री' है। म्हू बालक पम शूं हीवणी आश्रम री शेवा करूं हूं ने योगाभ्यास करूँ हूँ। अठे म्हने खबर लागी, के राम रे ने राघशाँ रे विरोध व्हे गियो है, ने रावण सीताजी ने हर लीधा है, सो म्हू ंया अरज करवा ने हीज आवती ही के ईंरो आप ने कई शोच नी करणो चावे. परन्तु झट ही सुग्रीव शुं मित्रता कर लेणी चावे। क्यूं के अठे वनाराँ रो राजा बाली है। वणीरे रने रावण रे मित्रता है, सो वो बाली तो आपीर कानी नी व्हे' शकेगा, ने वणी बाली रो छोटो भाी सुग्रीव है। वमी रे बाली रे नी वणो है। वो सुग्रीव अठे नजीक हीज अणी रिष्यमूक नाम रा मंगरा पे रे'वे है, ने दुःखी है, ो वो आप शूं मित्रता कर ले'गा, ने सीताजी ने हेरवा में आपरी पूरी मदद करेगा। म्हें शुणी के सीताजी रा कईक गे'णा भी गेला में पड़ गिया, सो भीवणी अवेर राक्या है। यूं दोही वातां करता-करतां श्रीराम भगवान नखे आया। ने लछमणजी सब वात अरज कीधी, ने बरी भीलण हाथ जोड़ अरज कीधी, के या मतंग नाम रा महात्मा री जगा है। आज अठे ही विराज जे, ने अठे म्हूं भी रे'वूं हूं , सो ्‌हारी भी झूंपड़ी पवित्र व्हे' जायगा।

जदी तो दोही भाी वठे पधार्या। वठे वणी नराी दिनां शूं राम भगवान रे वनमें पधारवा री शुण राखी ही, सो आछा-आचा बोर अमीज वासते भेला कर राख्या हा, के अछे पाणा करूंगा ने बोर जीमावूंगा, सो आज वीं रो मनोरथ पूरो व्हियो। राम भगवान ने प्रेम रावी बोर घमआ सवाद लागा, सो घड़ी-घढ़ी सराय-सराय ने मंगाय-मंगाय ने खूब आरोग्या, ने ई सूं वा भीलमण घमी राजी व्ही। पछे परभाते राम भगवान वठा शूँ पधारवा लागा। जदी वणी भीलण अरज कीधी, के म्हारी अवश्ता तो व्हे'गी है, पण योग शूँ शरीर ने अणीज वासते राख मेल्यो हो, के अठे राम भगवान पधारेगा, सो दरशण कर पछे शरीर छोड़ देवूंगा। अबे म्हूँ अणी शरीर ने योग शूं छोड़ू हू। यूं के ने वा प्राण छोड़ भगवान रा रूप में मिलगी नेदोई भाई वणी री बड़ाई करता-करता आगे पधारया। धन्य है, अणी भीलण ने जो अतारा योग साध ने परमात्मा रा रूप ने पायगी।

 

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राजस्थान रा सूरमा
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
आप भला तो जगभलो नीतरं भलो न कोय ।

आस रे थांबे आसमान टिक्योडो ।

आपाणो राजस्थान
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ज्ञान गंगा ऑनलाइन
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