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(आभार राजस्थान पत्रिका)

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रामायण

मानव मित्र रामचरित्र
लेखक- महाराज चतुरसिंहजी बावजी

सुन्दर चरित्र

अबे तो सब वांदरा समंदर रे कांठे बेठा-बेठा केवा लागा, के अणी समंदर शूं तो जीव घबरावे है। आपां में कूण अश्यो है, जो ईरे पेले पार जाय ने रागशां री पुरी में फिरने सीताजी री खबर लाय ने पाछो जीवतो-जागतो आव जावे ? यो काम थोड़ी समझ ने थोड़ा बल रो नी है। यूं के'ने सघला, रीछां रा राजा जामवंतजी के रानी देखवा लागा। जामवंतजी दाना हा, ने सघल रा बल ने ओर बुद्धि ने भी जाणता हा, ने समझणा भी हा। वणां किया, आपां में बालों रा कुंवर जश्यो कओी बली ने बुद्धिमान नी है। पण एक अंजनी रो कुंवर दीखे है, यो चावे तो दश दाण अठीरो वठी लंका मंे जाय आवे। यो चावे तो सब रागशां ने लंका में शूं उजाड़ ने जमलोक में वसाय देवे। एक लंका कई आखा संसारने यो उजाड़ भी देवे, ने वसाय भी शके है। म्हूं बाला-पणां शूं ही अमीने जाणूं हूं, ने म्हूँ या भी जाणतो हो, के कदी न कदी काम पड़ेगा तो वांदरा रो नाम यो उजलो करेगा।

जदी अंगदजी कियो के वीर भाई हनुमान, म्हें सघला घबराय रिया हाँ, ने मरजादा पुरुषोत्तम राम रो काम है, ने सती शिरोमणि सीता रो काम है और जति वीर लछमण रो काम है। आपां रा राजा सुग्रीव रो काम है। धमात्मा साधु-बामणां रो काम है। थांरा मित्र अंगद रो काम है। चाँद, सूरज, पवन आदि सघला देवतां रो काम है, ने दाना जामवंत रो सूरझ वंश रो काम है, ने वांदरा रा वंश रो काम है। थांरा जनम रो पण यो हजी काम है, के खोटा ने दंड देवे, ने आछारी रखवाली करे। अणी शूं वत्तो धरम रो थारे दूजो कई काम है। अबे थूँ बेठो-बेठो कई देखे है ? या शुणतां-शुणतां हनुमानजी रो डील फूलवा लागो, ने चे'रो रातो-रातो चमकवा लागो, ने म्होटी पूंछ सांप री नांई पलेटा खावा लागी। रूंगच्या ऊंचा-ऊंचा फूलवा लागा, ने एक हाक करने उछल मंगरा री चोटी पे जाय विराज्या, ने वठासुं कियो, ओ कुंवरजी ! ओ जामवंतजी ! हे सारा ही वांदारा ! थे क्यूं घबराय रिया हो ? कई रावण री घेंटी मरीडाड़वो ही ? के लंका ने समदर में डुबोवारी मुरजी है ? के रागशां रो हीज खोज मिटावमओ चावो हो ? बोलो-बोलो म्हां शूं कई काम चावो हो ? भलारी रमखवाली कराव रो, ने खोटां ने दंड देवारो तो म्हारो ने म्हारी घणी रो शउभाव हीज है। जदी जामवंतजी खियो आपने राम भघवान वींटी  बगशी ही, के सीता ने दीजो, ने वठारी खबर पाछी झट ही लावजो ो अबार तो घमअयां री आज्ञा परमाणे यो हीज काम करणो चावे, फेर ज्या ज्या आज्ञा व्हे'गा वा-वा करता रे'वांगा। जदी हनुमानजी यूं के'तां ही एकही फलांग मे समंदर रे पेले पार जाय पूगा, ने वझे सांझ पड़वा दे'ने, लंका नाम रा गढ़ में छानेरा-छाने घुश गिया. आखी रात में  लंकां में सघला घरांने ओर मे'लां ने हेर लीधा. चानणी रात ही, रागशां री शगली वातां शूं एकही रातमें जाणकार व्हे'गिया। फोज ने असतर शतर सघलां रो अठोठो बांध लीधो। फेर विचाीर सीता माता कठे ? कई रागशां वी पतिवरता के कठे ह ओर जगा घुशाय दीधी, के मारने खाय गिया, के राम रा वियोग में वणांरो शरीर हीज झूट गियो, के कई व्हियो ? लंका ने तीन दीन दाण आखी समाल लीधी, पण पत्तो नी लागो। अबे कई करणो चावे ? यूं विचारता -विचारता एक बाड़ी नजर आई। जीशूं विचारी, के देखां अठे ही व्हे'तो तो ईं ने हेरलाँ। यूं विचार, वाड़ी में हेरवा लागा। वठे आशापालव रा रूंखड़ा घमां हा। जीशूं वणीने अशोक वाटिका अर्थात् आशापालव री वाड़ी केता हा। वमी अशोक वाटिक में आग जानेय देखे तो रागशण्यां नागी तलवाराँ ले ने पेरो देबी ही। हनुमानजी विचारी अठे यूं कणीरो पे'रो दे'री है। फेर आग जायने देखे तो नरी रागणण्यां् रलक-रलक जीभां काड़ री है, ने एक नकटी-बूंची रागशणी खाँधा ने नागी तलवार लीधाँ, अठी-उठी टे'ली री है। वा कीने ही सुवी नी देवे, हनुमानजी विचारी यातो किंष्किंधा में आयां-जायां करती ही। वा हीज शूरपणखा दीखे है। ईंरा नाक-कान नी व्हेवा शूं अबे ओलखणी ही नी आई, व्हे'नी व्हे सीता माता अठे हीज व्हे'गा। ईंने रावण वणांरी रखवाली पे राखी व्हे'गा। जतराक में तो यान कटी ्‌जामुखी नाम री रागशी नखे बैठ ने केवा लागी, कई कराँ अज्जु ! अणी मनखणी रो तो भाटा वच्चे ही हियो गाढ़ो है। मरवा ने त्यार है, पण आपाँरो तो वातआं ही नी शूणे। बाई अशी भी लुगायाँ व्हे है, या तो म्हूं नी जाणती ही। देख, अती म्हारे भाई रे रावणां मे राणय्‌ां है, पण अशी पण थाँ कोई देखी है ? आखोदिन पतिव्रत-पतिवर्त कर्या करे। बाी, पतिव्रत कजाणा कई व्हे'है। एक तोमेघा री वउ सुलोचना ने एक विभीषण री वउ शमा ने त्रिजटा, ई ईंरी वातां शुण-शुण ने केवे के धन है, सीता थारा माता-परिता ने धन है। यूं शुण-शुण ने या वत्ती-वत्ती फूकर्यां चढ़ है। ्‌बे तो अणां राँडाँ ने रोकी है। तो भी भाई, आखी-आखी रात जागां ने आखोृआथो जिन अणी का कानड़ा खाचाँ, पण अणीरे तो कई गनार में ही कोय नी। ईंरो तो शुभाव ही खोड़ीलो है। म्हारो चायो लागे तो अशी रीश आवे के ईरी गेंटी मरोड़, ने लोही पीजाऊँ। जदी अजामुखी बोली 'बाईशा, घेंटी मरोड़तां तो कई देर लागे, पण मार्यां केड़े पछे आपणो कई जोर जाचेला। मरवा शूं तो या राजी हीज है। आखर मे के'क तो आपणो के'णो माने, के'कींरा शूलां री गोठ तो व्हे'गा हीज। पण दिन-दिन दूबली व्हे'ती जावे है, तो पछे मांस री अश्यो सवाद नी रे'वेगा।' अणी वात शूं हनुमानजी ने नरी समझ पड़ी, ने नखे हीज एक रूंखड़़ो ही, वणी ऊपरे अदर शूं चढ़ने वणीरी डालां पे व्हे'ने आगेरा रूँखड़ा पे पधारवा लागा तो आगे जायने कई देके है, एक लुगाई शीशम रा रूंखढ़ा नीचे बेठी है ओर वणी री म्होटी-म्होटी कमल रो पाँखड़ी जशी आँख्यां में सूं मोती रा दाण-रा-दाणा आशूं ढलक रिया है। डील दूबलो व्हे'रियो है। जाणे कोई तपशो तपश्या कर रियो है। माथा रा केशां ने भेला करने जूड़ो बाँध राख्यो है। कमी कणी दाण शूं भी बोले है, के हे नाथ ! हे दया सागर ! न कणीक दाण, हे लाल लछमण ! यूं भी बोल जावे है। वणी वेला आँखां में रीश भी दीखवा लागा जावे है. जामए तलवार हाथ में आय जावे तो दुरगा-भवानी री नांई एकली ही सघलां दुष्टां रा माथा काटन न्हाखे। कणी दाण नेतरां में अशोय शूरापणो दीखे है, के एक रावण कई करोड़ रावण व्हे जदी भी मह्‌ारो कई नो कर शके। एक क्षण में प्राण छोड़ दूंगा।

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