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(आभार राजस्थान पत्रिका)

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जबान रो धणी

पोकरयण ठाकर देवसिंघ रे अर जोधपुर राजाजी बिजैसिंघजी रे रात दिन खैंचा ताण चालती। विजैसिंघजी एक दिन देवीसिंहनी ने किले में बुलाया। किले रा दरवाजा बंद कर देवीसिंघजी रो चूक कराय दीध। उणा ंरा दो बेटा सकलसिंघ अर स्यागसिंघ जी ही मारवा ने राजाजी आदमी भेजिया। बिलाड़ा कनै यां री एटक भेटक व्हीं। दोनूं कानी सूं गोलियां चाली। सबलसिंघजी रा माथा में गोली लागी। गोली लागतां ही नीचे पड़िया।
भाई ने घायल व्हियो आंगण पड़ियो देख स्यामसिंघजी दौड़ भाई रो माथो हाथ में झेलियो। लोहियां सूं भीजियोड़ी पलकां ने उधाड़ता सबलसिंघ जी धीरे सूं बोलिया,
"भाई, पाली ला।"
स्यामसिंघ जी दौड़ लौटा में पाणी ले आया।
"हाथ में ले पाणी।" स्यामसिंघझी जाणियो मरती वेलां म्हनें पाणी झेलाय रिया है, आप रो अरब बाप रो बदलो सत्रु सूं लेवणै रौ। वां हथेली में पाणी झेलियो।
कांई प्रण करुं बोलो।
"प्रण ले के जोधपुर रा राज में ऊभो रे पाणी नीं पीऊं।"
दुख अर गलानी सूं स्यामसिंघ रो मूंडो पीलो पड़ गियो,
"आप म्हनै अतरो ओछो समझो ? आप ने वैम है के पोकरण रो ठिकाणो आप रा बेटा ने कोनी भोगण दूंला, हूँ ले लूंगा ? इण सारू आप म्हनें एड़ा सौन देवाय रिया हो। म्हूं  अस्यो नीच नीं, खैर ओ पाणी झेलूं के जोधपुर रा राज में ऊभो रे पाणी तक नी पीऊं।"
सबलसिंघ रो सांस छूट गियो, दाग दे स्यासिंघजी उण ही वखत रवाना व्हे गिया। जोधपुर री कांकड़ में चालियो जितरे पाणी  नीं पीधो। भरतपुर जाय वठा राजाट रावा जवाहरमलजी री चाकरी झलेी। काम चोखा चोखा कीधा जो घोड़ा पांच सौ वां रा आप रा व्हे गिया अर आछो ठाट बाट जम गियो।
जोधपुर राजाजी विजैसिंघजी रे पासवान जाटणी गुलाबराय। गुलाबराय कैवे जो राजाजी करे, गुलाबराय रा नाम सूं जोधपुर में पत्थर तिरै। जोधपुर रो नामी तलाब गुलाब सागर उण रो बणयोड़ो है। कनै ही बच्चो नाम रो तलाव उम रो बच्चो मर गियो जिण नाम पे बणायो। गुलाबराय भरतपुर राज री रैण वाली है। एक र राजाजी मुहीम सूं पाछा भरतपुर रा राज में व्हेयर आय रिया हा। इण जाटणी ने निजर पड़ी, लारे ले आया।
गुलाबराय ने राजाजी रो अर मारवाड़ रा राज रो जोम अर घमंड व्हेणो ही ज हो। भरतपुर रा मिनखां ने अर वठा रा राजा ने आप रो ओ दिन बतावणे री उण रा मन में घणी। आघर आप रो गरब बतावण री तरकीब वीं काढ़ ही दीधी।
एक दिन गुलबराय जाय राजाजी ने अरज कीधी
"जातरा जाणे री मन में घणी सो आ साध म्हारी पूरी करावो।"
थोड़ी देर तो राजाजी आं दिनां में जातरा री अबखायां बताई पण गुलाबराय री वात ने टालणौ दौरो हो। जातरा जाणे रो बंदोवस्त कराय दीधो।
गुलाबराय दाव लगायो, "भरतपुर रे गैले व्हेता जावां, जलम भोम रा दरसण व्हे जावेला।"
राजाजी उण गैले व्हे जाणे री इजाजत देय दीधी।

चौगणो मगैज बतावती रथ ने सिणगार, टण टण टोकरिया बजाती भरतपुर रा बाजार में गुलाबराय निकली, राजाजी ने बराबरिया ज्यूं मिलणो कैवायो, जात वालां ने आसीस कैवाई। अस्या फितूरा कीदा के ुण रा परवार रा, जाण पिछाण रा बल गिया। राजा जवाहरमल जी ने ही घमी नागुवार गुजारी। जाट सिरदारां आप री तोहीन समझी।

जवाहरमलजी कहियो, "स्यामसिंघजी, बाप रो अर भाई रो बदलो क्यूंक तो आज ले लो। आधी रात गुलाबराय रा डेरा साथे हमलो बोल दो अर इण रांड ने जीवती पकड़ म्हारे कने ले आवजो।"
सारा हमला री रूप रेखा त्यार व्हेगी, हुकम पक्का लाग गिया. स्यामसिंघजी हां हां करता रहिया। सल्ला देता रिया। पण वां रा म में एक मोटी पसोपस।
"सांची वात है विजैसिंघजी म्हारा बाप ने बेकसूर धोका सूं मारिया, म्हारा भाई ने मराया, आज म्हूं वां ने मिल जावूं तो म्हनें वो हत्यारो कदै ही नीं छोड़े, पण वां री लुगाई री बेइज्जती ? भले ही घर में घालियोड़ी है, है तो जोधाणा नाथ री लुगाई। ये उण री बेइज्जती करेला। म्हां राठौड़ लोगां ने मूंडो कठे बतावालां ? दुसमणी है तो मरदां सूं। आपस में लड़ां, कटां, मरां पण अस्तरी री इज्जत पे हाथ घाले अर म्हूं भेलो रेवू ? धिक्कार ! चाहे जो हो वात  कोनी व्हे सके। लुगाई री इज्जत देस री इज्जत है, जात री इज्जत है। म्हूं लाख मनां करुं तो ही जवारमल जी तो मानण वाला है नीं। गुलाबराय री इज्जत गी तो मारवाड़ री गी, राठौड़ां री गी। णि री इज्जत राखणे रो तो म्हारो फरज है धरम है। चाहे जो व्हो गुलाबराय री इज्जत खराब नीं व्हेवा देणी।"
स्यामसिंघजी आप रे पांच सौ घोड़ा सवारां ने त्यार रेणे रो हुकम देय, जाट रो सो पैंटो माथे बांध ऊंची ऊंटी गोड़ां सूधी धोवती बांध, हाथ में लाठी ले, घढ़ी रात गियां, गुलाबराय रे डेरे गियाष साथ वाला में ओलख पिछाण रा घणां ही हा।
जाय ने कहियो, "बेटि रा बापां, क्यूं इज्जत देण ने अठे बैठियां हो धड़ीक में थां ने खबर है कांई व्हेण वालो है ?"
खलभलो मच गियो।
गुलाबराय घबराई "अबै कांई करूं।"
स्यामसिंघजी कहियो, "करणो कराणो कांई है, अठा सूं सीधावो, जैपुर री कांकड़ मे जाय थमो, जते पाछा फिर झांकज्यो ही मत। म्हारा घोड़ां, सवारां ने ले म्हूं मराग रोक ऊभोव्हे जावूलां, जीवूं जतरे थो थां ने भीलवा दूं नीं। मरिया पछै री कैवुं नी।"
गुलाबराय तो रथ में ताता नागौरी बलदां री जोड़ी जुताय भागी। लारे आदमी हा जोई घमा खरा तो जातरा जाणे जोग बूढा ठाढा ही ज हा, व्यीया रवाना। लारे झांकती जावे ने बहैलियां ने भगाती जावे। आधी रात रा भरतपुर री फौज हमलो करे तो देखे तो डेरो तो खाली, जवाहर मलजी ने खबर मिली हुकम कीधो,
"लारे रा लारे जाओ, रांड ने पकड़ लाओ।"
गैला में स्यामसिंघजी आप रा पांच सौ सवार लीधां ऊभा। गैलो रोक आडा उभा रे गिया। तरवारां तुल ही गी, सेंठो झगड़ा व्हीयो। स्यामसिंघजी घावां सूं भर गिया, लोहियां सूं झगाबोल  व्हे गिया। भरतपुर सूं जैपर री कांकड़ पच्चीस कोस तो दूर जी है। गुलाबराय जैपुर री कांकड़ में जाय रथ रा बहैलिया खोलिया. साध वाला आदमी स्यामसिंघजी ने उठाय गुलाबराय कनै ले आया। स्यामसिंघजी रे पाटा पीड़ कराया। गुलाबराय इण असान रा बोझ सूं दबगी, स्यामसिंघजी रा पग पकड़ लीधा, "जां राजाजी, आप रा बाप ने अर भाई ने चूक कराया उणां री लुगाई रे वास्ते आप रो यो बलिदान। चालो जोधपुर चालो, मन चाहियो पट्टो आप ले। आप केवो जो जो गांव दिरावूं आप ने।"
गुलाबराय री आंखियां में सूं घर घर आंसूं झर रिया।
स्यामसिंघजी बोलियो "पट्टो लेण ने म्हैं यो काम नीं कीधो म्हें तो म्हारो रामधरम निभायो है।"
"स्यामसिंघजी मान जावो, इणवखत म्हारो जोर है, कैवो तो आधीई मारवाड़ रो राज देवाय दूं, चालो जोधपुर। गुलाबराय घणो ही कियो।
"मारवाड़ रा राज में ऊभो रे पाणी पीणे री म्हूं सौगन खाय चूक्यो हूँ, वठे तो नीं आवूं।"
स्यामसिंघझी नी गिया, पण गुलाबराय जोधपुर राजाजी ने कै, जैपुर राजाजी ने कैवायो जैपुरा राजाजी स्यामसिंघजी ने जैपुर में हवेली दे, गीजगढ़ रो डोढ़ लाख रो पट्टो स्यामसिंघजी ने झेलायो।

स्यामसिंघजी रा छोटा कंवर इन्द्रसिंघजी ने गुलाबराय घमा मान सं बुलाय पुसकर कनै थावलां रो पट्टो देवायो। उठे वां रा नाम सूं इन्द्रगढ़ थांवलो वाजियो।

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महाराजा मानसिंघजी

जोधपुर महाराजा मानसिंघझी रो नाम कदाच ही कोई साहित्य रो प्रेमी अस्यो व्है जो सुणियो कोनी व्है। ए नाम कवि हा, कवियां रा आसेर दाता हा, तवारीख रा प्रेमी हा। यां आप रे जिंदगी रा मौका मौका माथे कवित कही है। दुख आयो  तो, सुख आयो तो, भली व्ही तो भूंडी व्ही तो चट आपणी अनुभूति ने काव्य में उतार दीधो।
कला रा ए घणो प्रेमी हा, जोधपुर राजा रा संग्रह में जो चित्र है वां में सूं घमा उणा रा कला प्रेम री नीसाणी है। देवी भागव ने कवि राजा करणीदान जी रा रचियोडा सूरज प्रकास जस्या वीर रसस रा ग्रंथ ने चितराम में उतरा दिया। चालीस बरस यां राज कीधो अर चालीसूं बरस राड़ झगड़ में, गृह कलह में अर घात पड़घात में बीतिया। समझ में कोनी आवे चित्र कला रो अतरो उत्थान करणए री अर रचना करणए रो समै उणां ने कठा सूं मिलियो।
यां रो जीवण विपरती तत्वां रो एक अजब मेल रियो। विद्या प्रमी अ दानी एक लम्बर, धरम में आसतिकता ्‌तरी के नाथां ने गुरु बणाया जा सारूं उणां री आंधी भगती अर आधा विसवास री, मारवाड़ रा गांव गांव में कहाणिया सुणीजे। अठी ने ग्यानी अर भावुक, वठी ने जुलम री वातां रो ही टोटो नीं। पचासां मिनखां ने मारया, किला रा भाखर सूं नीचे गुड़ाय मराय देणो भी उमां री साधारण सजा में हो। हाथी रा पगां सूं बंधाय घमां ने ही किचाराय, जैहर रा पियाला पावणो तो मामूली वात ही और तो ौर आप रे भायां तक ने मरवाया। ये वे ही ज राजा मानसिंघझी हा, जो कविराजा बांकीदासजी ने आप रे सगै भाी सूं अधक सनेह करियो, घमओ कुरब दीधो।
यां रा हाथ सूं लिखियोड़ी आप री रचियोड़ी पोथियां पड़ी है।
राणां प्रताप रा जो या ंदो दूहा कहिया बेजोड़ है। सबद कांई है जाण छांट छांट न ेरतन जड़िया है।
गिरपुर देस गमाड़, भमिया पग पग भाखरां।
महा अंजसै मेवाड़, सह अंजसै सीसोदिया।।
ऊरां थिरन्दा आपमां, सीस धुणियन्दा साह।
रूप रखिन्दा राण रा, वाह गिरिन्दा वाह।
ए तपिया ही तेजस्वी राजा ज्यूं अर सारी ऊमर दुख देखियो तो ही घणो। घमी ही दाण यांने जैहर देणे री लोगां घात घाली, उणांरी बिछायत में बिच्छु छोडिया, तकिया री खोली में सांप घालिया, मार देवा री घमी तरकीबां कीधी। अठां तांी के घातां सूं बचण री खातर ओ चतुर राजा जाण बूझ ने गहलो बणगियो. पांच बरसां तांई गैली वातां, उन्मत्तपणा रा काम कर लोगां ने भरमायां राखिया।
ऊदैपुर री राजकंवारी कृष्णाने जैहर रो पियालो, इणहमान साहित्यिक राजा री हठ सूं पीणो पड़ियो, इण काव्य  प्रेमी राजा रा राज मे ंजैपुर री फौजां जोदपुर री लुगायां न टका टका मेंं बेची।

इण राजनीतिग्य राजा पाछी जैपुर री लुगायां ने दमड़ी दमड़ी में बेच बदलो लीधो। अस्या राजा रा जीवण री घटणां साहित्य रा चानणां में अबार तांी आई नीं। दो चार घटा अठे देय री हूँ।

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जुगो जुग तपस्या साथी कीधां जुड़ै

महाराज मानसिंघझी जालौर रा किला में धिरियोड़ा। उणां रा बड़ा भाई भीमसिंघजी जालौर रा किला ने घेर राखियो. बरसां तांई जालौर घिरियो रहियो। मानसिंघजी घमआ ंबिखा में, दौरा दिन काठे. खावा पीवा, खरचा खाती री अबखाई। इण आपत्ति काल में उणां रा कनै आदमी हा जिण में सूं सतरा चारण कवि हा। वां चारणां में सूे एक जुगतीदान जी बणसूरी जो घणां मरजी में। मरजी में कांी चाकरी घणी देता। दीखत रा काला कुरुप बोलण में भोला पण स्याम धरमी पक्का। खरचा रो टोटो पड़तो, सोनो बेचणो रो मौको आतो, खरचो माँग लाणे रो सुवाण आतो, जुगतीदान जी भेख बदल झट जोधपुर री फोजां बीचै व्हेता निकल जाता। कोईवैम हीं नी करतो के अस्यो भोलो सो आदमी खचै रो परबंध करण ने जाव रियो है। गैहलो रो गैहलो पाको रो पाको।
एकर मानसिंघ रो रिपियां री पूरी जरुरत, "जुगता, खरचा रो कांई उपया कर।"
"करुं बापजी।"
अठी उठी गियो कांई उपाय चालियो नीं। बेटा री बहु रो गहणो पड़ियो अठी ने वठी ने झांक, पोटली बांधी। कांख में घालतां बेटी री बहु देख लीधो. जुगतोजी आगे व्हे बोलियो,
"थां रे नवा घड़ाय लावूं वीनणी।"
"हां नवां तो थां लाख एक रा घड़ाय लावोला, जाणूं हूँ था ने।"
बहू महेणो दियो।
"भगवान भलो करियो तो लाख एक रा ही ज घड़ीजेला।"
जुगताजी तो गैहणो बेच, जाय मानसिंघजी ने रिपीय दीधा।
"कठां सूं लायो जुगता ?"
"थां रने रिपियां सूं काम है के नाम जाणणे सूं।"
वखत री वात मानसिंघजी ने फेर जरुरत पड़ी, वे जुगता साम्हा झांकिया।
जुगतै तो एक सामी रे घरे आप रा बेटा भैरजी ने अडाणे राख रिपिया लाय दीधा। मानसिंघ तो जुगता री स्याम धरमी सूं पाणी पाणी व्हे गिया। असान रा बोजा सूं दबा गिया।
मिनख रा दि न बिगड़ता देर नी लागै तो बणतां ही ताल नीं लागे। दिन पाधार आया, जालौर रो घेरो ठूटियो, मानसिंघ जी जोधपुर री गादी माथै बैठिया। लिछमी हाथ जोड़ियां आगे आय ऊभी री। जुगोत उणवखत याद किण ने रे ? छ महिनां बीतियां जुगतो याद आयो। रिपिया चुकायस, जुगता रा बेटो भैरजी ने सामी रे अडाणां सूं छुड़ाय मंगायो। मानसिंगजी बांह पसाव कर भैरजी सूं मिलतां, उणां दिनां री याद करतां गीत री आ झड़ कही,
"भाी सरीखो भैर भाई।"
भाइयां सूं बढ़कर भैरजी भाई है।
जुगताजी रो पतो नीं, राजाजी आदमी दौड़ाया, "जुगतो जस्यो आदमी बाग सूं मिलै व्है, व्है जठा सूं लावो।"
एक निसासो न्हाकता राजाजी गीत कहियो, जुगताजी रे गुणां रो बखाँ ण करतां थका,
"जुगो जुगो तपस्या साथ कीधां जुड़ै।"
जुगताजी आया। गणो मान कीदो, "पारलवू री जागीर दीधी, लाख पसाव बखसियो. घमी कुबर दे, हाथी बै बैठाय, आप हाथी रे मुंडागे जलेब में पैदल चालिया। थोड़ा चालिया ने जुगते अरज कीधो, "हमें पाछा पधार जावो।"
राजाजी रुकिया नीं, आगे और चालिया। जैपोल सूं बारै निकलण लागिया तो जुगतोजी विचलाय गिया।"
"अबै पिंडा सूं पाछा पधार जावो।"
"हवेली तांई थां ने पुगाय दूं।"
जुगताजी सूं रैणी कोनी आयो, हाथी रा हौदा माथे ही जोर सूं बरलाया "नीं, नीं बापजी हमें म्हारो कालो मूंडो करणो है कांऊ ? नीठ नीठ तो थां ने किले माथे घालिया हैं। हमें अबे पोल बारै आपां रे नीं निकलणो।"
राजाजी जुगतां री साफ बोली पे मुलक ने पाछा फिर गिया, जुगता जी रो अरथ समझ गिया के एकर पोल बारै निकल जावोला तो सवाईसिंघजी जस्या दुसमण बैठिया है कजाणां मांय ने पाछा घुसवा देवे नीं।
जुगत री बेटा री बहू रे गैहणो, मेहणां रे माफक ही घड़ीजियो।
मानसिंघजी आप नामी कवि हा।वीं अबखां वेवला में जां चरमा कविया ुणां री सेवा कीधी, बां रा नाम रो छपाय बणां यादगार ने यूं राखी।
सुध जगुतो बण सूर, पीथ हरियन्द सादूं।
बारहठ भैरुदान, दान उमो वन वान्दू।।
एक पन्नो आसियो, नवल लालस कवियां रंग।
ईदौ कुलो मेघ माय रामो रतनूँ रंग।।
गाडणो भोम खड़िया, ऊभै कैहर साहिब चारणां।

जालौर किलो पायो सुयस, चवडै ऐता चारणा।।

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रिड़मलां थापिया जकै राजा

बारा वरस तांी मानसिंघ जालौर में घिरियोड़ा रिया अर भीमसिंघ रे देवलोक व्हैतां ही फोज मुसाहिब इन्दरराजजी सींघवी घेरो उठाय किला में जाय मानसिंघजी सूं जोधपुर जाय गादी बिराजणे री अरज कीधी। मानसिंघजी री कोरा सींघवीजी रे भरोसा माथ ेजोधपुर राज पे कबजो करणे री हिमत पड़ी कोनी. वे चावता के मातवर सिरदार भरोसो दे जोधपुर रा किला में ले जाय उणां ने बैठावे।
आऊवे ठाकरां रो ख्याल आयो। वे आय जावे तो अैौर सगलां ने ही आया जाणो। या सोच मानसिंघजी आप री कविता री तागत काम में लीधी। आऊवा रा ठाकर माधोसिंघ ने जोस देवता, वां री बादरी, आपा री याद दिराता अर बिड़दातां जोरदार गीत लिख भेजिया।
अपणायत अर ममता भरी मनवार ने वीर रस री डोर में बांध गीतां री झड़ां में असी गूंथी के माधोसिंघजी रा उदार हिड़दा में सूरा पण री लैरां हिलोला लैण लागी। वीर, प्रेमी अर कवि रा हिड़दै ने कोई स्पर्स करण वालो चावे, पछे वो किण री ही आगछ नीं माने, दौरा काम उण सारूं सोरा व्हे जावे।
माधोसिंहजी ने यां गीतां रो अस्यो नशो चढ़ियो के भागा लगा वे, उणी ज वेलां जालौर गिया। झट नजराणो कर धणी मान मुजरो कीधो। माधोसिंहजी रा पसरियोड़ा हाथ पर सूं नजारमओ उठातां मानसिंघजी ने मारवाड़ रा घम ीबण जाणे रो भरोसो व्हे गियो। मानिसंघ जी तरुंत माधोसिंहजी री तारीफ करता, उपगारा जताता बोलिया,
मूंजि मिनख आप री मूंठी भीचियोड़ा यूं ही मर जावेला, उणां ने कोई जांणेला तक नी। पण जो हाथां सूं बादरी रा कामड़ा अर नामड़ा कर जावेला उणां री माधोसिंहजी, पीढ़ियां तांई गल्लां चालेला।
मूंजीड़ा मर जावसी, भींची मुटढड़ियांह।
मध ! कर चंगा मांणसा, रहसी गल्लड़ियांह।।
गीत में मानसिंघ जी, माधोसिंघजी ने खराया के आगोलग सूं ही या वात कहीजे के जिण ने रिड़मलां थपा दीधो जो ही मारवाड़ रो घणी। अबे थां रा हाथ सूं थापियो है जिण री औसाण राखजो।
गीत
अडर झोेंक आथाय रण टकारा दियण अत
वसू कज सलांरा करण वारू।।
सिवा रा सुतन खग्ग झलारां साहसी,
मधा ! रंग भलांरा करण मारूं।।
यही तो हाथ मो बहा जाणी जगत,
प्रगट कीरत्त चली समंद पाजा।।
कहै आगोलगां अह आलम कथन,
रिड़मलां थापिया जकै राज।।2।।
जां करां लिखाणां अक्खर वे जोसरा,
प्रगट के बार जां बिडद पावो।
जाणियां मुझ दिल, जगत हवे जाणसी,
आबियां पत्र जोधाण आयौ।।3।।
तिलक निज प्रिया रा, दूसरा तेजसी,
झाट अरियां दियण काल झापां।।
अडर अगजीत देवल कियौ आखियो,
चाढ़णौ सुजस रो कलस चापां।।4।।

इण गीत रो घमओ ऊंडो असर आऊवां ठाकरां रा मन भे अस्या पड़ियो के जिदंगी में घमआं ही मौका याया विरोध करणे का दूजा सिरदारां विरोध कीधो पण वे मानसिंघजी सूं कदै ही नीं बदलिया। उणां रा मन में गीत री वा कड़ी रिड़मलां थापिया जकै राजा काटी बैठगी।। उणां रा हाथ सूं थापियोड़ा मानसिंघजी गादी पे थरपमान व्हे गिया वां ने कुण हटावे ?

ऊपर

आभ डिगंता ईंदड़ा थै दीधो भुज थंभ

महाराज मानसिंघजी जालौर रे किले में धिरियोड़ा। इन्दराज जी सींघवी फौज मुसाहिब मानसिंघजी ने घेर राखिया। बारा बरसां सूं किलो धिरियोड़ो, मानसिंघजी राम राम कर दिन काट रिया. पोकरण संवाईसिंघजी अर इन्दरारजजी धरमभाी बणियोड़ा अर मानसिंघजी सूं पूरा खिलाफ।
मानसिंघ जी किलो छोडड भागगणे री  तैयारी कर ही ज रिया के अचाणक जोधपुर महाराज भीमसिंघ रे अदीठ बीमारी सूं देहांत हो जाणे री खबर आी।
राज रा हकदार मानसिंघ हा ही ज। सींधवीजी अर सारी फौज भदर व्ही। किला में समाचार भेजियो, मन में तो मानसिंघजी घणा राजी व्हीया, पण लोकाचार सूं माथे पोतियो बांद भदर व्हीया, घमओ सोग बतायो।
सींघवीजी किला में जाय अरज कीधी "जोधपुरा पधारो. अबै आप म्हांरा धमी हो।"
इण आसा में ही मानसिंघ घेरा में दिन का ही रिया हा। पण जाणे आगे आखा राज री बागोडर सवाईसिंघ जी हाथ में ले राखी है। पर वे म्हने फूटी आंकिया देखे नीं। वात खरावा ने पूछियो।
"आप म्हने ले जावो जो तो आप री स्याम धरमी है पण सवाईसिंघजी ने पूछियो केनीं। आप ले जावो अर आगे सवाईसिंगजी रगड़ो करे तो म्हूं अठीलो रैवूं न वठीलो।"
सींघवीजी खुद आप ने कस्या सवाीसिंघजी सूं ओछा समझता ? सींघवीजी चावे अ र सवाईसिंघजी उथल दे जद तो होयगी पूरी। सींघवीजी तो छाती फूलाय जुबाब दीधो।
"सवाईसिंघजी म्हारी जेब में है, जो म्हूं अरज क्रूं पूरी होवेला। पिडा सूं पधारो।"
"था केवो ज्यूं ही व्हेला, म्हने भरोसो है, पण दूजा सिरदारां ने ही भेले राखलो तो आच्छो रे।"
आऊवे ठाकारने बुलाया। आऊवे ठाकरां अर सींघवीजी लारे व्हे मानसिंगजी ने जोधपुर रा किला में पधरा दीया। गाची उच्छब री तोपां चलागी। सैर में मानसिंगझी री आण दुहाई फिरगी।
सवाईसिंघजी बल न रै गिया। बोलिया,
"सींघवी कोटी कीधी। एक दिन पछतावेला वो।"
मानसिंघजी इन्दरराज जी ने घमी खातरी रो रुक्को लिख दीधो,
"थां जो चाकरी दीधी उण री एवज में उण री एवज में थां रो अर थां रा बेटा पोतां रो पूरो ख्याल राखियो जासी। वां ने कदे ही कैद नी करुंला, कदाच कोई थां गुनहो कीधो तो ही माफ करियो जावेला।"
सोजत अर पाली री हाकमी सींघवीजो रे पैलां ही उण ने पक्की राख सारी मारवाड़ रो काम सूंपियो। उणां रा बेटां ने भाई भतीजा ने मोटी मोटी जागीरां अर हाकमी बखसी।
सींघवीजी चलावे ज्यूं मारवाड़ चालै। अठी ने सवाईसिंघझी षड़पंच रचिया। मसायबां मांय ने फट पडगी। झघटो। रोडो। घात प्रतघात।।
व्हेता व्हेतां नौबत अठा तांी आई के राजाजी नारजा व्हे सींघवोजी ने कैद में न्हांक दीधा। आ कबर सुणी तो सवाईसिंघजी मूंडा मेरूमाल घाल घणां हसिया,
"बाणियां ने घणो ही समझायो हो पण मानियो नाीं। फल पाय गितो तुरता फुरती।"
मानसिंघ तो नवा परधान अखैचन्दजी ने कहिये लाग सींघवीजी ने मराणे रो हुमक देय दीधो।
अनाड़सिंघजी आडा फिरीया, "करो कांी हो पिरथीनाथ ! अस्या चाकर फेर वणेला नीं।"
अनाड़सिंघजी रो केणो सांचो निकलिय। सींघवीजी मानसिंहजी रे आडी वखत आडा आया। सवाईसिंघजी एक नवो धतंगो कीधो। धूंकलसिंङ नाम रा एक टाबर ने गादी रो हकदार साबित कीधो के भीमसिंघजी रो देहांत हुयो जद धूंकलसिंङ ने गरभ में छोड़ गिया।

सवाईसिंघजी जैपुर री फौज जोधपुर माथै चढाय लाया। जैपुर महाराज जगतसिंघजी 1862 में सील सात रे दिन जोदपुर आय घेरियो। जोधपुर रा किला में मानसिंघजी घिरियोड़ा। नीच सहर मे लूटा खोसो व्हेय रियो। मारवाड़ रा घमआ खरा सिरदारां ने सवाईसिंघजी आप री कानी मिलाय लीधा। सहर में तबाही व्हेयगी। जैपरु वाला जोधपुरी री लुगायां ने पकड़ टका टका में बेची। हलाबोल व्हेगी। सीधर्वाजी किला में कैध। घणी लड़ायां रो तजरबेकार, राजनीति रो पिडत इन्दरराजजी सींघवी कैद में पड़ियो ए हाल सुण सुण हाथां रे बटका भरे।

ज्यूं ज्यूं राजाजी मे मालूम कराी, "ओ व्हे कांइ रियो है ? आप कनै कोई मिनख कोयनी जो आज मारवाड़ री लुगायं टका टकां में बिक रही है। आप म्हनैं कैद सूं बारै तो काढ, महूं याने सगलां ने सूधा कर छोडूं।"
मानसिंघजी घबरायोड़ा तो हा ही ज, छोडता, डरपै, कठै ही यो ही जाय ने दुसमणां में मिल गियो तो ?
सींघवीजी केवाई "म्हूं जाणू आप ने कांई वैम है। आपने भरोसो नीं व्है तोम ्‌हारा बेटा ने म्हारी जगां बंदी राख लो।"
बेटा फतेराज ने मायं ने अटक में बैठाय सींघवी ने बारे काढिया सींघवी जी मुसायबी री कबांण हाथ में संभाली। सवाईसिंघजी सूं मिलिया। वै तो घमंड सूं फाट रिया हा बोलिया,
"रिड़मलां रा थापिया ही राजा व्है, बाणियां रा थापियोड़ा हीकदै ही राजा बणिया है के। राज धूंकलसिंह करेला, मानसिंहजी न े पाछा जालौर घालो।"
सीघवीजी घणी सूझ अर स्याणं पणा रो काम करियो. राजनीति री चाल चालिया, "किला में मानसिंघजी राजा अर नीचे धूंकसिंहजी रो राज।" सींघवीजी प्रस्ताव राखियो।
सवाईसिंघजी तो आ ही चावता ही ज हा, झट धूकलसिंहजी री आण दुहाई सहर में फराय दीधी। आणं पिरतां ही लूट खसोट बंद व्हेगी। सहर में सांती व्हेगी।
सींघवी जी कल्याणमल जी लोढा ने दौलतराव सिधीया ने मदद लावण ने भेजियो। आप कुचामण, खेज़ड़ला, मेडतिया वगैरा सिरदारां ने मिलाय जैपुर कानी बढ़िया। मीरकां पीडारी सूं मदद मांगी। वो तो भाड़ा पै फिरतो ही ज हो। रिपिया मांगिया। मानसिंघजी कनै रिपिया रो नाम कठै ? सींघवीजी तो बालकिसनजी रा मंदिर रो सोनो, चांदी, जवाहिरात ले मीरखां री छाती में वालियो।
वठी ने जैपुर कानी सूं जोधपुर में पड़ी जैपुर री फौजां सारूं रसद आय री। सिवलाल रसद लैन आय रियो हो। सींघवीजी जाय फागी गांव मं रसद ने लूट लीध। तूट में घमओ माल हाथ आयो।
फागी-जुद्ध पाई फतै, लूट लियो सिवलाल।
मीरखां रो पेट भरियो, सींघवीजी री फौज मजबूत व्ही। अबै वे सूधा जैपुर कानी चालिया झोटवाड़ा में जाय डेरा दीधा. जैपुर सहर रा दरवाजा बंद व्हे गिया. सींघवीजी ढूंढाड़ में, जैपुर राज में लूच मचावा लागिया। जोधपुर री लुगायां बेची उण रो बदलो लेण जैपुर री लुगाया ने पकड़ पकड़ एक दमड़ी में बेची।
सींघवीजी री लूट की खबर जोधपुर में जैपुर वाला ने लांबी चौड़ी व्हे न मिलणी ज ही। इण रो फायोदो सींघवी जो उठायो। एक कागद आप रे हाथ सूं संवाईसिंघजी रे नाम लिखियो,
"अठी ने नाहरगढ़ माथै कब्जो कर लीधो है आप जैपुर राजाजी ने धोका सूं मार लीजो। आपणे सल्ला माफिक म्हे म्हारो काम कर लीधो। आप आप रो काम सावधानी सूं करो।"
चपड़ लगाय, काठो जबातो कर, कागद ने जुगत सूं बंद कर सावर ने जोधपुर दौड़ायो। सवार जैपुर री फौज में सवाईसिंघजी ने पूछतो पूछतो आयो। उत्सुकता तो व्हेणी हीज, कागज खोल बांचियो।
"अरे ओ तो राठौड़ा रो धोखो।"
उण ही ज रात ने आधी रात रा जैपुर री फौज कूंच करगी। सूबै देखे तो  डेरा खाली पडिया।
मानसिंघजी री खुसी रो पार नी। इन्दरराजजी सींघवी बाथ में घालतां कवि राजा इणदूहा ने आप रा उद्गार काढिया,
पड़तो घेरो जोधपुर, आयो दल असंभ।

आभ डिंगता ईदड़ा थै, दोथे भुज थंभ।।

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राणियां तोप खैंची

जैपुर री फौज मरैठां सूं मदद लियोड़ी जोधपुर में चढ़ आई। पोकरण सवाईसिंघजी जैपुर राजाजी जगसिंघजी ने सीखाय पढाय ले आयआ। और दूजा राजनैतिक कारणां रे अलावा कुमारी कृष्णा उदैपुर ने, जगतसिंघजी परण नीं सकिया। मानसिंघ जी मीरखां ने े भेज जैहर रो पियालो पीवण ने मजबूर कर दीधा हा, वा कसक जगतसिंघ रे छाती में साल री ही, ऊपरे सवाईसिंघजी बलती में लांपे मेलता रैता, "पधारो, आप रो वैर लां।"
अजेमर कनै गीगोली री घाटी में मानसिंघ आप री सारी सेना ले मुकाबलो करण ने आया। जगतसिंघजी ने भै पूरो के राठौड़ मुकबालो करड़ो करैला।
घड़ी घड़ी रा पूछता, "सवाईसिंघजी ! मारवाड़ री तागत कतरीक है ?"
"आप पधारो तो सरी, लड़ाई रा चौगान में आप ने खबर पड़ जावेला। सारा सिरदारां सूं म्हें बात कर राखी है।"
जैपुर री तरफ सूं मीर खां आप रा सिपायं ने ले हमलो कीधो।
अठी ने मानसिंघजी घोड़ा पे सवार, सैना ने लीधा तैयार ऊभा।
दोई कांनी सूं अणियां तुली। मानसिंघ घोड़ा उठावा रो हुकम कीधो। एक घोड़ो नी हालियो। हा ज्यूं रा ज्यूं ऊभा। मानसिंघ जी कड़क'र हुकम दीधो, "घोडा उठावो।"
रास ठाकर जसवंतसिंघजी बोलिया, "घोड़ा उठाय ने कांई करां ? घणां खरा सिरदार तो परा गिया अर बाकी रा जाय रिहा है।"
"अरे धोकेबाजा।"
मानसिंघजी रो मूंडो धोलो पड़ गियो। जसंवतसिंघजी तो झट म्यांन बारै तरवार काढ मानसिंघ पे चालिया, कनैं चाकरऊभो जी हाथ पकड़ लीधो, चाकर रो हाथ चीरावणी आय गियो। मानसिंघ जी किण ने ही बढ़ता देख आप रा घोड़ा रे एड लगाई। जसवंतसिंघजी तो झट मानसिंघजी रा घोड़ा री बाग पकड़ पाचै मोड़ लीधो। फौज ही बदल जावे तो राजा कांई करे ? पाछो फिरणो पड़ियो। फीलखाना रा हाथी ले लीधा, खजानो लूट लीधो, फरासखाना रो सामान ले भगा, डेरा वाल दीधा।
मानसिंघ ने तो सिरदारां जोधपुर ले जाय किला में बाल दीधा। लारे री लारे जैपुर री फौजां आी अर सहल दोलू घेरो घालियो।जोधपुर रा सिरदरा आप रे घरां परा गिया के दुसमण सूं मिल गिया. किला मायंला थोड़ा सा मनिनख बलु रिया। जैपुरा वाला भेले बीकोनर सूरतसिंघजी आय मिलीया। तोपां सूं गोलाबारी सरू व्हेगी। मानसिंघजी हीमत तो नीं हारी। पण मिनख नीं। जोधपुर रा किला में थोड़ा सा सिरदारर हा, वे वीरता सूं लड़वा लागिया. पण सत्रु रा गोला गजब कर रिया हा।
जैपुर वाला सिगोड़ा री भाखरी माथे मोरचो जमायो, वे जोधपुर किला पे अबखी मार करे। मोरचां ने तोड़णो घमओ जरुरी, ुण रा जुबबा में पाची किला पे तोपां लगावे जद वो मोरचो तोड़णो आवे। किसालम ें अतरा मिनख कोनी जो ताोप ां खैचच र लाय वीं मुकाबला में मोरचा जमावे।
तोपां रा गोला धमा मदा किला में आय आय पड़ रिया, अठी ने किला में तोपां पड़ी गोलां री कमी नीं, पण तोपां ने खैंच ने मोरचा पे चढ़ावणियो आदमी नीं।

मानसिंग जी राराणी भटियाणजी ी योहाल देखियो तो वां करम कसी, "आपां हां। तोपां ने चढावां। इण अबखी वगत मांयने कस्यो पड़दो ? इण वेला आपां आगे नीं आवालां, जद कस्ये दिन आवांला। जुद्ध री वखत रजपूत री लुगाई पाचे नीं री। फरज तो आपां रो अबार मरदानी वेस कर हाथां में तरवार पकड़णे रो है। निकलो बारै।"

सारो रणवास वारै निकल आयो। आगरा रा कलिा सूं लायोडी किल किला नाम री मोटी तोप ने मोरचा पे लगाणे रो काम राणीयों झेलियो भलद हा जरात तो बलद जोतिया। सारो रणवसा लाग गियो। खैंच तोप ने लाय, सिंगोड़ा री सूंध वाली बुर पे जमाई मोरचो बांधियो।
लुगायां री या हीमंत देख जो धोड़ा घमा सिरदरा किला में हा वां री हीमत ही चौगण व्हे गी।
लुगायां रा पसीना सूं भींजी किलकिला तोप सूं कीरतसिंघजी सोढा गोला मारवा लागिया।। गोला जुबाब गोला सूं मिलवा लागियो। कीरतसिंघजी घणी वीरता सूं लड़िया, बड़ी बहादुरी सूं ड़टिया रिया। सिंगोड़ा रो मोरच तोड़ कीरतसिंघजी लोढा काम आया। कीरतो मरयो पण सत्रु रो मोरचो तोड़ न मरियो। वठे ही ज मानसिंघजी कीरतसिंघजी री छत्री बणाई।
कीरतसिंघजी री छतरी किला माथे, जैपोल बारै बणियोड़ी आज ही कीरता री अमर कीरती री कथा सुणावें. कीरतसिंघजी इण अवसर माथे जो वीरता बताई उण ने मानसिंगजी सब्द चित्र दीधो।
तन झड़ खागां तीख, पाड़ि घमआं खल पौढियो।
कीरतो नग कौड़ीह, जड़ियो गढ़ जोधांणा रे।।
तीखी तरवारां सूं जिण रा तन रा झड झड न टुकडा व्हे गिया। घमा ंदुसमणां ने पाड़ ने आप रण में पौढ़ियों। उण कीरता री छतरी, जोधाणां रा गढ़ में जड़ियोडी अमोलक रतन हैं।

सांचे ही अस्यां वीरां री छत्रियां माथे ही ज किलां अंजसे।

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सरणाई साधार

मानसिंघजी चालीस बरसां तांई राज कीधो जतरे बराबर वे कलेस राड़ अर पड़पचां में उलझिया रिया। पोकरम ठाकर सवाईसिंघजी तोत रचियों के गादी रो हकदार धूंकलसिंघ है। घणां सिरदारं ने आप रे कानी मिलाय लीधा। लडाई झगड़ा घण बरस चालिया। आं खिलाफत वाला सिरदारं चाल सोची के मौको देख मानसिंघजी ने जहर दे मार धूंकलसिंघ ने गादी पै बैठाय दां। वां लोगां बिहारीदास खीची ने आंपणे भेलो मिलायो। बिहारीदास राजाजी री हजूरात मांयने रैवतो हो। वीं राजाजी ने ज्यूं ज्यूं राजी कर तरकीब सूं रसोवड़ा रो दरोगो बणगियो। अबै मानसिंघझी ने जहर देवा री फिराक में लाग रिया।
मानसिंघजी कनै बुधजी आसिया रैवता। नामी कवि हा, बांकीदासजी रा भाी। उणां ने इण चाल री ठा पड़गी। वां सोची इण भेद ने मानसिंघजी रे कानां बारण काढ देमो फरज है। कवि री आदत रे वां एक गीत रच मानसिंघजी ने सुणायो। जी में एक झड़ यू ही,
गगर गंभीर अभनमौ गंगौ
पाछो जाब न पूछे।
ज्यूंही अभनमौ गांगौ कहियो ने मानसिंघजी चमकिया, "ए सबद क्यूं ? जिंगल काप्य री परंपरा ही है के नायक ने बतलावे के उण रो जिकर रे जद उण रा वां पूर्वजां रो नाम लेवे जो बादर नामी अर जोगा व्हीया है।" गीत री इण झड़ में बुधजी, राजाजी ने गांगाहरो गांगाजी रा वंसज कैय ने बतलाया। गांगाजी जोधपुर री पीढियां में, नाजोगा व्हीया। मानसिंघजी आप कवि अर विदवान हा गांगाजी रो नाम सुणतां ही चमकिया। जरुर म्हार सूं कोई खोट काम के गलती व्हेय री दै जद कवि म्हें गांगाजी री संतान कैय बतलायो।
मानसिंघजी पूछियो, "गांगाजी रो नाम किण तरै लीधो.ओ इण रो साफ साफ अरथ बतावो।"
बुधजी कहियो, "गांगाजी रा वंसज नीं हो तो कांई हो ? जो आदमी थांरा पराणां रो गाहक है उण ने ही ज रसोवजवड़ा रो दरोगो बणाय राखियो है। थां तो जीव दुसमणां रा हाथां में देय दीधो है।"

मानसिंगजी इ ण वात री चांच कराी तो संका ठीक निकली। वां ने घणी रीस आई, "जीं पै म्हूं भरोसो राखतो आयो हूं वो ही लूण हराम निकलियो।" अस्या कसूर पे वां दिनां मौत री सजा सूं कम तो व्हेती कांई ? राजाजी रो हुकम बिहारीदास ने जान सूं मार देणे रो निकलियो।
अबै बिहारीदास घबरायो। वीं ने अत दीखे ने गत। चारुं आडी ने देखियो पम कोई मदद करणियो नीं। अठी ने वठी निजर दौड़ाई। खेजडले ठाकर सादूलसिंघजी पे नजर गी। वां अर वां रा भाई साथीण ठाकरां री, राजाजी ने अबखी वखत घणी मदद दियोड़ी। मानसिंघजी वखत पे दियोड़ी उणां री चाकरी रो एसान ही मानता हा। सादूलसिंघजी रो मान मुलाहाजि ाहो घणो राखता। राज काज री सल्ला सूत ही वां सूं करता रैता। असर राखणिया ठावा सिरदार हा। कोई बचावा री हीमत कर सकै तो सादूलसिंगघी। आसोच बिहारीदास भागियो खेजड़ला भागियो खेजड़ला री हवेली में जाय सादूलसिधजी रा पग पकड़ लीधा।
"आपरी सरण में आयो हूं। मारो के राखो. इण घर में आय थां रा पग पकड़ियां पछे ही म्हारी रक्षा नीं करो तो ओर कोई ऊबारणियो नीं। था री आदू मरजाद है सरण में आया ने सरणो देवा री।"

सादूलसिंघजी विचार में पड़ गिया अठी ने तो धणियां रो गुनैगार अठी ने हवेली में आय सारणो लीधो। सरण में आया ने राखणो हीं कमजोरी। सरण दूं तो राजाजी रो कोप व्हेगा ही ज। वे ही म्हारा पे घणिपाप राखै, भरोसो करै।

ठाकर सोंच में पड़ गिया। आखर तै कीधी के सरण में आय पग पकड़ लीधा है तो सरण देणो आपणो धरम है। रजपूत न सुभ्बराज दैवे जदी पेलां "सरणांई साधार" कैयर बतलावे। आपणी हवेली में आयोड़ो ने सदीप सूं सरण देता आया हां जो इण ने ही सारणा देणो ही ज।
बिहारीदास ने सरणो देय दीधो।
मानसिंघजी ने अरज व्ही, "बिहारीदास, खेज़ला री हवेली सरणे परो गियो, छठाकर सूं पैं नीं। कांी करा ?"
मानसिंघजी जुबाब दीधो, बेसक ओ गुनेगार है। पण सरण में आय गियो, काढूं किण तरै ? पगां पड़िया ने काढणी तो नीं आवै। अरज कर दीजो इणवास्ते मजबूरी है। इण हवेली में आयोड़ा ने हमेसां सारणो मलितो आयो है।
बारैठ कुसकोली रतनू ने राजाजी भेजिया, "थां ठाकरां रे घर रा हो, वां ने जाय समझावो।"
रतनू चारण भाटियां रो पोल पात व्है। कुसलोजी समझवाण ने तो आया पण एक भाटी झट मेहणो दे दीधो, "अबे कांई है। कुसलाजी पोल पात आय गिया, अबे तो ए ही पोल खोलेला।"
पोल पात व्है जां रो ओ भी दस्तूर व्है के सत्रु सेना सूं लड़वा ने पोल खोली जावे जद पोलपात ही ज पोल खोलै। कुसलोजी मेहणों कद सुणता ? बोलिया "जरुर थां जुद्ध करो, पोल म्हूं खोलूं ला ही ज।"
बात अतरी बढ़गी के राजाजी हवेली पे दो ताोपां अर आदमी भेज दीधा। खेजड़लां वालां री मदद पे साथीण वाला ही आय गिया। सहर में दूजा जतरा भाी हा वे सगला भेला व्हे गिया।
कुसलाजी पोल खोली. तोप री झपट में आय घाल व्हे गिया। घड़ी दो घड़ी चोखी तरवारां बाजी। साथीण संगतसिंघजी अर खेजड़ले सादूलसिंघजी रे ही घाव लागिया। भाटियां रो ेक सुभ चिंतक हो। वीं सोची, बे फायदे एसारा मरैला। खींची रे एक तरवार री झपेटी जो माथो नीचे जाय पड़ियो। पछे झगड़ो होणे री जरुरत ही कांई ही ? राड़ समटणी आयगी।
उण ही ज वखत मानसिंंगजी घोड़े सवार वहे, खेजडला री हवेली ठाकरां री साता पूछण ने पधारिया। आगे व्हे मानसिंघजी तीन दांण पूछिोय, ठाकरां आप री तबियत किया ? अर तीनूं ही दाम सादूलसिंघजी मूंडो फेर लीधो. मानसिंघजी फरमायो, "यूं क्यूं ठाकरां, म्हूं तो आप री बादरई देखणी चावतो। ांचै ही आप राजा रा खूनियां ने सरण देण री सामरथ वाला हो। वीं ज वखत यो गीत बणाय राजाजी बोलिया।"

करी तात अखियात जिण हूंत बाधू करी,
नाहरां तेग री उरस बांधी।
छटा अणमापरी चढते जोर चखू,
बाप री भलां तरवार बांधी।।1।।
चालवी पिता जेम भार पड़तां चमू,
भिड़ण खग नालियां याद झलकी।
दलां नृप भींवरा खींवी जका दांमण,
मान रा दला असमेर मुलक्की।।2।।
काज सरणांया भूप सिर रा बली,
दुजल धन रावली कठै दांथी।
बाप रिव ठांवियो घड़ी दोय वाजतां,
ताहि सुत ठबंवियो पौहर तांथी।।3।।
झडंतां अबाग वज्राग तप झेलणा,
ढाल सूं प्रबल गिर मेर ढकणां।
भाटियां जेम प्रथमाद रा भूपतां,
राव सरणाविया ऐम रखणां।।4।।

ऊपर

राणो सांग

महाराणा सांगाजी रा झंडा नीचे आखो ही राजस्थान मिल ने बाबर सूं जुद्ध करवा ने बायना में आय जुड़िय। जुद्ध कस्यो जोरदार व्हीयो अर कांी कारणां सूं बाबर रे आगे राजस्थान री भोजां पग छोड़ दीधा जो तावरीख ने थोड़ी घणी जाणवा वालो हरेक आदमी जाणै।
जंग रा मैदन में झगड़तां झगड़तां राणाजी अचेत व्हे गिया। घावांं सूं अचेत पड़िया राणा सांगा रा हाथ रो महावात हाथ ने ले भागियो। होस में आय हार रो पतो चालियो। राणा सांग क्रोध सूं बल गिया. गलानी सूं पिघल गिया अर लाज सूं गड गिया। वां रो वी जुद्ध में हाथ कट गियो, एक पग बेकाम व्हे गियो अर एक आंख फूटगी। सरीर रे माथै  अस्सी घाव लागिया। सांगोजी ने इण हार सूं असी लाज आई के वे अपणे आप ने मरिया ंबराबर समझ लाग गिया। काम काज, खांणो पीणो, किण रो ही ख्याल नीं। मिनखां ने मूंडो बतावणो नीं सुवावतो। सांगाजी री आ मानसिक दसा देख टोडरमल नाम रा एक चारण कवि डिंगल में गीत रच राणाजी ने सुणायो।
किसन भगवान ने जरासंघ कतरी दाण हराया पण आखर में जरासंघ ने वां मार छोड़ियो। दुरजोधन द्रोपदी रा चीर पै हाओथ घालियो उण वखत पांडव नीचो माथो घाल बैठ रिया। औसर रा आसार में बैठा रिया। मौको लागतां ही दुरजोधन रो प्राण काढ़ लीधो। भगवान राम री सीता ने ही एकर रावण लेय गियो हो। इण दुख सूं रामजी निरास व्हे बैठ नीं गिया। रामजी पाणी पे पत्थर तिराय रावण ने मार सीता ने पाछी लाया। सांगा राणा ! आखी ऊमर में एक राड़ हार ने थूं कांी अमरोस लाय रियो है ? बाबर रा कालजा में सांगोा रो नाम आज ही सैल ज्यूं कटक रियो है। उठ, सरमावे क्यूं है ? जुद्ध कर।
गीत
सतबार जरासंघ आगल श्री रंग,
विमुहा टीकम दीधा जंग।
मैलि घात और मधु सूदन।
असुर घात नांखै अलग।।1।।
पारथ हेकरसां हथणांपर,
हटियो त्रिया पडंता हाथ।
देख जकां दुरजोधण दीधी।
पछै तकां कीधी सज पाथ।।2।।
हेकर राम तणी तिय रावण,
मंद हरै गो दहकमल।
टीकम सो हिज पत्थर तारिया।
जगनायक ऊपरां जल।।3।।
एक राड़ भव मांह अवत्थी,
अमरख आंणै केम उर।
मालमां कैया त्रण मांगा।
सांगा तू साले असुर।।4।।
गीत कांी जाणे कालजा रा घावां पे सजीवणी बूंटी रो लेप हो। सुणता सुणता राणा रा रूंगटा ऊभा व्हे गिया, सूता लग मचकाय बैठा व्हे गिया। हाथ सूधों मूंछोां पे गियो। प्रण कीधो, बाबर ने हराऊं नीं जतरै चितौड़ में पग नीं दूं। नवो उत्साह दे, नवो जीवण देवा वाला चारण कवि ने उण वखत बकाण नाम रो गांव बख्स पूरो कुरुव दीधो, महारा मरियोड़ा मन ने इण पाछो जीवतो कर ने उठाय दीधो है।
राणा सांगा ने दूसरा जुद्ध री त्यारी में लगिया जुद्ध सूं डरवा बाला कायरां अरदेस द्रोहियां उणांने जैहर देय दीधो।

राणो सांगो लांबी नींद सोय गियो।

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चंवर ज झलै साह रा ?

जोधपुर राव चन्द्रसेणजी, बादसा अकबर री सारी ऊमर ताबेदारी मंजूरी नीं कीधी। महाराणा प्रताप ज्यूं अड़िया रिया। राव चन्द्रसेण जी रे देहांत व्हीयां पछै वां रा बेटा उग्रसेण जी ने ज्यूं द्यूं ताबै कर अजमेर में भियाण रो पट्टो दीधो। एकदिन जहांगीर बादसाह सवारी कीधी। उग्रसेण रा बेटा करमसेणजी ने बादसाह री खवासी में बैठ ने चंवर करवा रो हुकम मिलियो। मोटा मोटा राव, उमराव, बादशाह रे पाछे बैठ ने चंवर करमे में ाप री बडी उज्जत समझवा लाग गिया हा। करमसेणजी खावसी में  चंवर ले बैठवा ने राजी व्ही गिया। साही सवारी पूरा लवाजमासूं निकली। करमसेणजी जहांगरी रा हाथी पे, लारै खवासी में बैठिया चंवर झल रिया, सहर रो लोग सवारी देखव ने उलल रियो। सहरा बीच में सावरी पूगी। देखवा वाला में एक स्वाभिमानी चारण री निजर चंवर ढुलाता करमसेणजी रे माथै पड़ी उण रो स्वाभिमान जाग उठियो।
उमर भर आजादी सारूं लड़ता रिया जां चन्द्रसेणजी रो पोतो आ भरी सवारी में चंवर कर रियो है। कवि सूं रियो नीं गियो, भीड़ ने ठेलतो बादा रा हाथी कने जाय पूगियो। हाथी रे कने जाय करमेसणजी ने हेलो पाड़ जोर सूं यो दूहो कहियो,
कम्मा उगरसेण रा, तो जणणी बलिहार।
चंवर ज झल्ले साह रा, नह झल्ले तरवार।।
करमसेण थूं बादसा रे माथे चंवर झल रियो है ? चंवर झलतां थनैं लाज नीं आवे ? थनैं तो इण रा माथा पे तरवार  झलणी ही।
दूवो सुणतो ही करमसेण ने जाणे चेतो आयो। बाप दादा रो रगत गरोलो खाधो. बढ़ती सवारी में, चालता हाथी पर सूं करमसेण जी नीचे कूद गिया। चंवर फैक ने झट घडौा माथै सवार व्हे गिया।
दूजै दिन बादसा जहांगीर खुद संभाल लीधी।

"वाकई में तुम्हारे जैसै बहादर को तो मुझे हाथ में तरवार ही देनी थी।"

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कवित्त री करामात

उदैपुर राणाजी सरुपसिंघजी चित्तौड़ पधारियोडा। वां रे लारे देवगढ़ रावतीजी रणजीत सिंघजी चाकरी में हाजर रहा। हा तो लारै चाकरी में पण दरअसल में रणजीत सिंघजी ने आप रो आपो अर घमंड ज्याता ही ज हो। वां तो चित्तोड़ री तलेटी में आप रे रैवा ने लाल रंग रो डेरो ताण दीधो। लाल रंग रो डेरो ताणदेणो अर उण में रेवणो वीं जमाना में एक मोटो गुनों हो। पैलां दिल्ली रा बादसा रे ही ज लाल रंग रो डेरो तणतो, कोई सिरदारया रियायत तो धणी लाल डेरा नीं रे सकतो। साही डेरो लाल रंग रो व्हैतो। बादसा नाताकत व्हे गिय जदी ए रीस आपरी सान बतावा ने लाल डेरा ताणवा लाग गिया। राणाजी सरुप सिंघजी री चित्तौड़ रा किला पर सूं नीचे नजर पड़ी तो सफेद रंग रा कांगरा रा डेरा पे चारूं कानी लाल रंग रो बाडो तणियोड़ो निजर आयो। वां सोची म्हारे बिराजणे रो डेरो कठै ही नीचे तांण दीधो है।
सूधा भाव सूं कहिययो, "यो रैवास नीचे क्यूं ताणयिो ? म्हां तो अठै ऊपर किला पे ही ज रैवांला।"
कनै ऊभा जांनै मौको लाधो, वे तो यूं ही बल रिया हा झट हाथ जोड़ ने अरज कीधी, "बड़ो हुकम, यो लाल डेरो तो देवगढ़ रावजी रो है।"
"है राणाजी चमकिया जांणे सांप रो पूंछे रे पग पड़ गियो। व्है। होठ चाबता लगा बोलिया,
अतरो घमंड। देख लेवांला।"
सुणवा वाला झट पैट पकड़ियां रणजीतसिंघजी ने आय ने कहियो,
"राणाजी री आंक करड़ी है, आप संभल जाजो।"
रणजीतसिंघजी जाणियो कांई ठा आज रात ने ही आपां रा डेरा पे हलमो व्है जावे, घरै परा चालां।
उणीज वखत डेरा उठाय देवगढ़ साम्हा रवाना व्हे गिया। राणाजी दूजै ही दिन डेरी उठाय दीधो।
संजोग री वात राणाजी री सवारी अर देवगढ़ वालां री जमीत एठा भेटी व्हेगी।
रणजीतसिंघजी पालकी में बिराजियां जाय रिया हा, राणाजी री सवारी साम्ही आती देख, राणाजी री कानी रो पालकी रो पड़दो नीचे न्हकाय दीधो। पालकी सूं नीचे उतरिया नीं देख राणाजी री रीस पै जाणे सोर पै बासदी मेल्ही। चेपणिया ही मौको देख चेपी,
"हद्द व्हेगी अन्नदाता ! पालकी सूं नीचे उतरमओ तो कठै रियो, हजूर ने बराबर व्हे न निकल गयो। इण गुस्ताखी री सजा नीं मिलीत तो पछे धणियां ने धारेला ही कुण।"
राणाजी उदैपुर पधारतां पधरातं देवगढ़ पे फौजकसी करणे रो हुकम बख्स दीधो। नगारां पैं डंको लाग गियो।

राणाजी रा दरबार में केहर प्रकाशन ग्रन्थ रा रचैता राव बख्तावरीज रैवता। वां देखशी गृह कलह रा बीज पाछा पड़ रिया है। राणा अड़सीजी री वखत में जो फूट रा बीज ऊगिया जां रा फल तो आज तांई मेवाड़ भोग रियो है। मेवाड़ वां सूं टूट ने आधी ही नीं री। अबै ए नवा बीज पड़ियां फेर दुखी व्हैला। कवित चतराई काम में लीधी। एक कवित्त बणाय राणाजी ने सुणायो, जीं रो भाव यो हो के अस्या मस्त अर निडर आदमी राज में रैवणो जरूरी है। मस्त हाथी निरंकुस व्हे जावे तो उण ने राजदुवार सूं बारै थोड़ो काढियो जावे ? वो तो साम्हो राज री सोभा है। किलां रा तीखा भालां वाला किवाड़ तोड़ण व्है जदी अस्या मसत् हाथी ज वां भालां पे माथो टेके। सवारी में हुकम मान चालणियां हाथी काम थोड़ा ही आवे। नदियां पाट छोड़ ने बैय री जद ्‌स्या निरंकुस हाथी ज वां नदियां में ठेलणी आवे। आंकस सूं डरणियां हाथी थोड़ा ही वां में उतरे। उण भांत अबखी वेला अस्यो बांको सिरदार ही ज काम आवेला। राजा तो हमेसा ही प्रचंड रूद्रता पे रीझता रियाहै।

जरै ही जंजीरन तैं द्वार की उदारता दें
हिलै निज दल तैं ंसहार कीजियत है।।1।।
कानन विकट पै, महानद्द घाटन में
भूरज कपाटन पै हूल दाजियत है।।2।।
बखत भनन्त भूमि पालन की रीति यह
रूद्रता प्रचंड पै सदा ही रीझियत है।।3।।
एक मतावालो होय आंगछ न मानै कहा।
दुरद दरबार न तै दरू कीजियत्त है।।4।।
राणाजी यो कवित्त सुणतां ही फौज ने रूक जाणे रो हुमक देय दीधो। मौका पे कहियोड़ी कविता री चार ओलां घर में कलह व्हेता न रोक दीधो।
देवगढ़ रावत किसनसिंघजी रे वखत में राजमल जी मुहता उदैपुर में ठिकाणे रो उकील, उकीलात करै। आज री बोली में उकील रो अरथ राजदूत सूं व्है। सगला ठिकाणां रा उकील तो रियासत री राजधानी में रैता अर रियासतां रा उकील आबू रैता। मुगलां रा जमाना में दिल्ली आगरे रैता। कोई कारण सूं किसनसिंघजी, राजमल पे नाराज व्हे गिया। आज सूं साठ पैसठ बरस पैलां री वात ही। जां दिनां ठिकाणां रा ठाकर मन में आवे ज्यूं करता। कोई रोकणियो नीं। आज मोतियां रा आखा चढ़ाय परधान बणायो, काले वेहीज परधानजी पगां में बेड़ियां पैरियां, कैद में बैठिया निजर आवता। आज परधानजी रा हुकम सूं लोगा रा पग खोड़ा में घालिया पड़िया है तो एक दिन परधानजी कांटां वाली काठी री घोड़ी पे वां लोगां रे मूंडा आगे ही ज नीचो माथो घालियां सवार व्हेता दीखता। हां तो किसनसिंघजी नाराज व्हे राजमल जी ने अटक पर पैरा में बैठाय दीधा। राजमल जी घमा दुख में अर सोचा मे, कजाणां कांई कांई सजा दे, कतराक दिन रोकण में राखे।
पैलां वां पै राजी घमआ हा जद एक दिन राजी व्हे वां ने कानां में पेरणे रा मोती बसखिया हा। राजमल जी ने उपाय सूझियो, एक दूहो बणाय कागज पे लिखख, पैहरा वाला ने दीधो,
"यो कागज थूं हजूर रे हाथ में पूगाय दे तो म्हारा दिन आयां थनै याद करूंला।"
बाकर कड़ी बकाल, पहरायां खग ना पड़ैं।
किसण करियो कड़ियाल, मूंडो किम रो मारलै।।
बणिया बक्काल ही जी बकरा रा कान में कड़ी घाल दे वो बकरो अमरियो व्हे जावे, कोई उण रे माथै तरवा नीं उठाय सके। म्हूँ तो किसनसिंघजी रो कड़ियाल करियोड़ी हूँ। म्हारा कानां में तो वां कड़ी (मोती) पैराई ही। किण रो मूंडो जो अबै म्हनें मारे।
किसनसिंघजी रे आ उक्ति जचगी।

"वात सांची, ओ तो म्हारो करियोड़ो कडियाल ही व्हीयो। निकाल दो इण ने अटक बारै। इण रा गुना माफ कीधा।"

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जर जमीन री खातिर

जोधपुर राजाजी अजीतसिंघजी जोरदार बादसात में उमां रो रोब अर पूछ ही चोखी। दिल्ली री बादसात रा थांमा हिल रिया हा। औरंगजेब तो उणवाली वजाय गियो पण बादसात री नींव ही लारे लारे खोखली कर गियो। तखत पे फरुखसियर हो। महाराजा अजीतसिंघ जी कै ही राजनीति रा कारणां सूं ागली पाछली वातां देख भाल ाप री बेटी इन्दरकुंवर ने बादसा फरुखसियर ने परणावा री सोची। बीच बीचावणो भण्डारी खींवसी। इन्दरकुंवर रो डोलो दिल्ली भेजियो। भण्डारी खींवसी ब्याव रचियो।
फरुखसियर ने इण ब्याव रो सौक ! वीं कैवायो ओ ब्याव हिन्दुवां रे व्है जिण रीत सूं ही व्है। हिन्दुवां रे व्है जो सारी रीता करो। भंडारी खींवसी री बऊ, जमाई बादसा री सासु आती कीधी, केसर रो तिलक कर मोतियां रा आखा लगाया। संवत् 1772 में ब्याव व्हीयो। यां रीति रिवाजां सूं फरुखसियर घणों राजी व्हीयो।
मिनखां कैवा वाला कैय ही दीधो,
इन्दर कंवर अजमाल रा मोटे घरे परणाई।
फेरा खादा फरुखसा, कमधां धन कमाई।।
यां ही ज अजीतसिंघजी री दूजी बेटी ने जैपुर नगर रा विधाता जैसिंघजी ने परणाया।
फरुखसियर कमजोर राजा निकलियो सैयदां रो जोर घमओ वध गियो अर उण सूं सैयदां ने दबावणी आयो नीं।
जोधपुर सूं सुसराजी अजीतसिंघजी ने बुलाया घणी खातर कीदी, यूं ही जोरदार हा, सबै सुसराजी व्है गिय ाअर काम ही लेवणों हो। सुसराजी ने राज राजेश्वर री पदवी दीधी, दरबार में जीमणे सिर खड़ा कीधा। कुरुब दीधो।
ये कुरुब लै पाछा दरबार से फि रिया द अबदुलखां सैयद मन-वार करने आपा रा हाथी पे बैठावा लागियो, अजीतसिंघजी नां नूं घणा कीधा पण नबबा घमी खैंचर मनवार कीधी जो बैठणो पड़ियो। नींबाज ठाकर अमरसिंघ जी जाणी कठेी धोखो नीं व्हे जावे जो चंवर ले हाथी पे खवासी में बैठ गिया. उणा दिन सूं सिरायतां रे खवासी में बैठवा री लाग लाग गी। पेली सिरायत खवासी में नीं बैठता। उण दन सूं बैठवा लाग गिया।
नबाब अब्दुला, अजीतसिंघजी ने ाप रे डेरे ले जाय, फरुखसियर रो साथ छोड़ सैयदां रा पक्ष में आय जावा रा फायदा समझाया। अजीतसिंघजी अर अब्दुला बीचै राम धरम व्हे गिया. फरुखसियर आ सुणी तो उण ने रीस आवणीज ही, "म्हैं तो म्हारा जांण ने बुलाया अर ये आतां ही म्हारा सत्रुं सूं मिल गया।"
फरुखसियर, अजीतसिंघजी ने चूक करावा री सोची। जाजम नीचे सोर बिछाय, अजीतसिंघजी ने बुलाया। ज्यूं ही जाजम पे बैठला बारूद में वासदी मेल दालां। इन्दरकंवर बाप ने इण धोखे रो इसारो कराय दी।ो अजीतसिंघ जी जाजम पे बैठया नीं, ऊभा ऊभा ही मजुरो कर पाछा फिर गया। फरुखसियर घात घाल राखी।

एक दिन आप रो दल मजबूत कर सैयदां रे लारे जोधपुर अजीतसिंघजी कोटे भीमसिंघजी आम खास में जाय बैठिया। फरुखसियर तो भागियो जो मांय ने हरम में जाय घुसियो। सैयद उण ने पकड़ावा ने जाय हरम घेरिया। फरुखसियर घबरायो उण सोची अजीतसिंघजी आखार म्हारा सुसरा है, वां रो दिल जरुर पिघलेगा जो एक कागद लिख फूलां री माला में छिपाय नाजर रे लारे अजीतसिंघ कनैं भेजियो।

कागद में दया री भीख मांग,ी भविष्य में आच्छा बरताव करवा री, असान मंद रेवा री, कसमां खाधी। अजीतसिंघ जी कागद वांच ने कहियो, "इण तो म्हनें सोर में बाल मारवारी कीधी हो यो तो म्हूँ म्हारा भाग सूं बच गियो नीं तो म्हनें बाल ने मार दीधो व्हे तो। इण ने छोड़ दूं तो पछे यो म्हने मारियां बिना थोडो ही रैवेला। सैयदां रे बीच में हिंगलाज इस्टदेव ने साक्षी कीधा लगा है जो आपां बदलां नी।"
सैयद रा आदमी हरम  में घुसिया जो फरुखसियर ने पकड़ लाय, सगलां रे मूंडागै बादसा रे गला में तांत फेर ने मार न्हाकियो।
अजीतसिंघजी तीन दिन, ठाठ सूं लाल किला में रिया अर हिंगलालजी री पूजा जोर जोर सूं जालर डंका बजया ने करता। लाल किला में पूजा री झालरां गूंजगी एक गीता री झड़ है।
बड़ै गढ़ माल रै पोत रै बजाई।
झालरे झालरां तणां झणकार।।

इन्दर कवर ने अर माल मता ने जोधपुर लेया। इन्दर कंवर पछे मतै ही जैहर रो पियायो पी मर गिया।

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मिनख मार राजा रो वध

पीपाड़ रो एक रजपूत राजो सूंडो, पीपाड़ रा घमी सेखोजी राठौड़ सूं रूसाणों कर पीपाड़ छोड़ गियो। बाल बच्चां ने ले वो गांव सूराचंद जाय पूगियो वठे पत्तो चुंवाण राज करे। सूंडा ने आया दिन दो तीनेक व्हीया। दसरावा ररो दिन। सूंडो रो बेटो बरस सातेक रो बाजरा में रम रियो। राजा रा चाकर ाया जो उण टाबर ने पकड़ ले जावा लागिया। टाबर घइघाय रोवा लागियो, सूंडो राज रा चाकरां रे आड़ो फिरोयो, "म्हारा टाबर ने कठे कठे ले जावो ?"
बाजार रा महाजन बोलिया, "अरे परदेसी, थारा वेटा ने तो देवी रे चढावेला।"
सूंडे सिपायां ने रोकिया, "म्हूं गैलो चलतो आदमी। थां रो कांई कसूर कीधो जो म्हार वेटा ने पकड़ देवी रे चढ़ावो।"
सिपाही बोलिया, "राजा पूजा री सामगरी जमायां देवी रा देवरा में बैठिया है। सदामद दसरावा ने वे मिनख री वलि दे। हमेसा कोई चोर ने पकड़ बलि चढ़ाय दे। अबकाले कोई चोर तो है नीं। राजा रो हुमक है कोई बाहर रो आदमी आयोड़ो व्है जिण ने पकड़ ले आवो।"
सूंडे हुज्जत तो घणी कीधी। वे इतरा सिपाई वो अकेलो कांई करतो ? सूंडो बोलियो, "बलि चढाणी है तो म्हने ले जावो। म्हारा इण टाबर ने छोड़़ दो।"
सिपाई टाबर ने छोड़ सूंडा ने पकड़ ले गिया। आगे सूराचंद रो राजा, पत्तो चुंवाण देवी रा थान में बैठो आगतो व्हे रियो। जाता ही बलि देवा ने उण ने ऊभो कीधो।
सूंडे राजा ने कहियो, "म्हें थां रो कांई कसूर कीधो जो म्हनें पकड़ बलि देय रियो है। मिनख मार, थनैं लाज नीं आवे थां रे नगर में आयोड़ा ने पकड़ ने बलि देवतां। याद राख, थारा पाप रो घड़ो भर गियो है। जांणे म्हूं कुण हूँ ? पीपाड़ रो रैवा वालो हूँँ। म्हारे लारे धणी, नाम रो सेखोजी राठौड है। उणां ने जै ठा पड़गी के वां रा गाम रा बसीवान ने, गैले चलतां ने थैं पकड़ देवी रे बलि चढाय  दीध ोहै तो वे थनै मिनख मार ने कदै ही नीं छोडे ला। तूं लोगां री कांई बलि चढाय रियो है थारी बलि चढाय देला।"
"जा जा आवा दीजे थारा सेखा ने। मार लेगा म्हनें ? चढावो बलि।"
राजू सूंडा ने तो बलि चढाय दीधो। उण री लुगाई अर टाबर रोवता झींकता पीपाड़ आया। लुगाई जाय सेखाजी रे मूंडागै कुकाई। सेखाजी राठौड़ रे तो असी चुभी के आर पार व्हेगी। वां लुगाई ने दिलासा दीधी, "उण हत्यारा राजा ने मार थारा मरता मोटियार री जबान पूरी करूंला।"

पीपाड़ पै सेखोजी हा अर मंडोवर पै राव गांगोजी हा। हा तो ये भाई पण यां रे आपस में राड़ व्ही। नागौर रा दौलतयाखान सेखाजी री मदद पे हो। सेखाजी हारिया, पण खेत में धावां सूं पूर व्हियां पाड़िया। राव गांगाजी री जीत व्ही। गांगाजी, सेखाजी ने अचेतन पड़ियां देख, दो चार भाई भतीजां ने भेजिया, "जावो उणां ने अमल दो, पाणी पावो। जीत हार रा समाचार पूछे तोवां उणां री जीत ही बतावजो मरती वेलां हार रो दुख सुणाजो मत।"

सेखाजी अमल दीधी, पाणी पायो तो आंख खोली, होस ायो। सेखाजी रे तो अंग अंग में घाव लाग रिया। पीड़ा घणी पण जीव नीं निकले। एक भतीजो डूंगरसी बोलियो, "थां रो जीव निकलूं निकलूं कर निकलूं क्यूं नी रियौ है ? सारो साथ तिसियां मरतो दुख पाय रियो है। थां रा प्राम सोरा करो तो अन्न पांणी भेला व्है।"
सेखोजी बोलियो, "म्हारो जवी अटक रियो है, निकले नीं। राजू सूंडा ने उण मिनख मार हत्यारे सूराचंदे रे राजा बलि चढ़ायो, उण रो आंटो लीदां पेला ही म्हूँ मर रियो हूँ। वो आंटो थां कोई झेल लो तो म्हारो जीव मोखंतर व्हे। थां में सूं जिण री आसंग व्है जो हूंकारो भरजो।"
जैतसी हूंकारो भरियो, "वो आंटो म्हूं झेलूं थां थारा जवी ने सोरो करो।"
सेखाजी रा प्राण छुटिया। जैतसी आंटो झेल तो लीधो। पण काम करड़ो। यो मामूली रजपूत। आगे सूराचंद रो मोटो राज। हजारां घोड़ां, सिपाई।
जैतसी ने रात ने नींद नीं आवे। माचा ऊपरे गोड़ां मांयने ढाल दे जोगीसर ज्यूं बैठा रेवे। नीसास न्हाकतो रे। रात दिन वचन पूर ोकरवा री चिंता लागी रे। एक दिन उण री लुगाई सोलंखमी आप री सास ने कियो, सासूजी थांरा बेटा ने पूछो तो री वां ने दुख कांई है। आखी रात ढाला गोडां बीचै देय ने बैठिया रे के करूंटा फैरता रे। नींद ही ज नीं आवे। बतलायां बोले नीं।
सासू दूजे दिन बेटा ने पूछियो "बेटा मांदगी तो कांई दीखे नीं, थनैं रात ने नींद क्यूं नीं ावे। सोवो क्यूं नीं काँई वात है ?"
जैतसी बोलिया, मां, उण मिनख मार राजा रो आंटो झेलियो है जिण रा सोच आगे नींद नीं आवै। अतरो मोटो राजा खुली लडाई में उण सूं किण तरै जीत सकूं। मरती वेला काकाजी ने वचन दीधो, उण ने पीरो नीं करूं जतरे जीव में जकनीं।
मां कियो, "बेटा, काम सांची करड़ो है। कोरो बल सूं ही काम नीं चाले। कल ने बल दोय ही व्हियां पार पड़ैला। कमर कस, हीमत मत हार। विचार ले उणां री भगवान पार पाड़ै।"
जैतसी सोची अठै बैठियां बैठियां तो काम होणे सारूं रियो। चालो, सूराचंद चालाँ। वठे गियां कोईक गैलो निकलेगा।
जैतसी आपारा पच्चीस साथीड़ां ने ले चालिया। अस्तर सस्तर सुधराया। घोड़ां जीण कीधा। गैले व्हीया।पैला मुकाम बिलाड़े कीधो। दिन तीन चार चालिया। सूराचंद राज में वलिया। आसोजां तो तावड़ो तप रियो. सगलां रा तिसियां मरता ंगला सूख रिया। एक कुवो निजर आयो। कुवा पे एक लुगाई पाणी काढ री। जैतसी रो साथ आय ऊभो रियो, बाई पाणी पा, तिसियां हा।
पणिहारी डोल भर ने पाणी काढियो। जैतसी घोड़े री पताक सूं कुंजी काढी, कूंजी ऊपरलो रूपैटो काढ ने पाणी पीधो। ऊण रूपैटा नें पाणी भर भर छाईस री सवारां पाणी पीधो। पणिहारी धियान सूं यां सवारां री हाली चाली देख री। सगलां ने पाणी पाय, पणिहारी बोली, "सांच बताजो, थां में सूं जैतसी कुम है।"
सुणतां ही सारो साथ चमकियो। या कुण है जो आपां ने औलखिया। कोई देवी है के सियारी है।
जैतसी बोलिया "बाई, म्हारां में तो जैतसी कोय नीं। म्हां तो उणां रा सिरदार हां। पण वता, थनै कांई ठा पड़ी के म्हां वठा रा रैवा वाला हां। बाई, छिपाजे मत सांच सांच कैवजे।"
पणिहारी बोली "जैतसी, सूरचंद रा राजा सूं आंटो लेवा रो मरता काक सूं प्रण कीधो है। दसरावो नजीक आयो है। दसरावा ने दिन ओ राजा हमेसां नर बलि दे। म्हारो जवी कैवे जैतसी इण मौका पे ही ज आय आंटो लेवेला। थां छाईसूं ही सवारां ने एक जोड़ रा देखिया एक सा घडोा एक सा अस्तर। ठाकर री ठा पड़़ै न चाकर री। एक रुपैटा सूं था रो सरब साथ पाणी पीधो। था ंसगला जमां एक जीवो हो, आपस में कोई भेद भाव नीं। आंटा घाटा तो अस्या एक मतै, एक जीव वाला व्है जां सूं ही लेणी आवे। वीरां, यूं म्हूँ ही जैतसी रा गाम री हूँ। बिलाड़े म्हारो परी है। करमानंद चारण री बेटी हूँ। था चिपावो मत म्हारा सूं। थांरे  आंटो लेणो है तो म्हने खुलासो बतावो म्हूं तो थां री धरम पीपली हूँ।"

जैतारणी री बोली ओलख जैतसी घोड़ा नीचे ऊतर पणिहारी रे माथ हाथ मेलियो, "करमानद री बाई जो म्हारी बाई। म्हूँ जैतसी हूँ।"

पणिहारी हर कंवर वारणा लेय बोली "थांरे अठे आंटो लेवा रो हाको व्हे रियो है। दसरावा पे राजा घणो जतन करा राखियो है। जगा ंजगां चौकियां बैठाय राखी है।"
"बांई थूं ही गैलो बता कांई करां।"
"थां यूं करो। म्हूँ तो पाणी रो घड़ो ले म्हारे घरे जावूं। तां घड़ीक पछे म्हारे सासरे आवजो। थां ने म्हारे सासरे वाला पूछ े जद वां ने यूं जुबबा दीजो।"
हर कंवर सगली वात समझाय घरे गी। घड़ीक सूं जैतसी घर पूछता गिया। एक सरीसा तरैदार घोड़े चढिया जुवानां देख गाम राचारणा रो साथ खड़बड़ियो। "कुण ? कठे रैवास ? कठे जावो ? आई दान खड़िया रे थां रे कांई ओलख पिछांण ?"
"तिवीजी रा रैण वाला, गौड हां। सूराचंद दसरावा री चाकरी में जाय रिया हां। म्हारे बारैठ री भाणजी ने अठे परणायोड़ी है। उण रो मामा तो खेती वाड़ी रा काम सूं आयो कोयनीं। भाणजी रे सुवागे रो क्यूं क सामान भेजियो। जो देता जावां।"
हरकंवर रो सुसरो आयो। सुभराज दीधो, बैठाय खातर कीधी। मांयने जाय बेटा री वहूं ने पूछियो "फलाणा सिरदार आया है। थां ओलखो कांई।"
हरकंवर हुंकारो भरियो म्हारे नानैरा रा सिरदार है। जीमाया चूंटाया। जैतसी सूं हरकंवर मिलण ने आई।
हरकंवर धीरे सूं बोली "आप अबारूं रात ने विदा व्हो। राजा रे सासरा सूं हमेसां दसरावा रे दिन पिरोहित राणी सा सुवागो ले न आवे। पिरोत बीस पच्चीस सवार सूं आवो करे। चौकियां पे आप कैता थकां निकल जाजो के पिरोत हरदेव सवागो लै ने आयो है। रात घड़ी एक गियां राजा देवी रा देवरा   में पूजा करतो लाघसी। थां सूंधा वठे पूगजो। तां रो बोलबालो व्हियां म्हनें ही उदरावो है। म्हारा पीहर री सोभा है।"
हरकंवर वां ने कांई कैणो कांई नाम बतावमओ सब समझाय, विदा कीधा। पिरोहित रो नाम लेता चौकियां उलांघता गढ़ मे ंजाय पूगिया पोलिया ने पूछिया, राजाजी कठे।
"देवी रा देवल में। राणी गोडजी वठे ही ज है। औरपूजा तो सगली व्हेगी। मनख री बलि री तैयारी हैं।"
जैतसी सूधा देवल में जाय वलिया। आगे राजा तो उगाड़ो माथो करर देवी रे ागे सास्टांग कर रियो। चोर ने बलि चढावाण सारूं बांध राखियो। जैती रो साथ एकदम मांयने वलतां ही तरवांरां सूंत लीधी, मिनखमार, हत्यारा, थारा पाप रो घड़ो भर गियो अबै, संभल। म्हूं जैतसी हूँ। थै गैले चलता घणां री बलियां दीधी है। आज थारी बलि चढ़ाय रगड़ो मेटूं।
चोर रा बंध काटतां हाथ में तरवार दीधी, "देखे काई, उडा यां हत्यारां रा माथा।"
तरवारां ले झूंब पड़िया। राजा रो भालो कूणां में ऊभो हो। राणी गौड़ भाला ने उठाय जैतसी रा साथी राघोदे रे रे घमोड़ी जो राघोदे री छाती रे आर पार भालो निकल गियो। जैतसी, राजा रो माथो काट न्हाकियो. हाको सुण हाली नवाली दौड़िया। सौ डोढसोक मिनख मारियी गिया। मारियोड़ां रा माथां रो देवी रे मूंडागै ढिगलो कर जैतसी बोलियो, "अबै तो थारो पेट भरियो के ? छोड़ मिनख रो भख लेणो।"

मिनख मार ने उण रा करमां री सजा दे जैतसी घरे आया। उण दिन पछे कदै ही सूराचंद में देवी रे मिनख री बलि नीं चढ़ाईजी।

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अस्या कै तो म्हारा बाप कै म्हारा खाविंद

बीकानेर रा राजा रायसिंघ रा बाईजी रो बियाव आंबेर रा राजा मानसिंघजी सूं व्हीयो। राजा रायसिंघ अर मानसिंघजी दोई जणां अटक रा जुद्ध में, लारे लारे लड़िया, ादसा ने घमो काम दीधो। घणो नाम कमायो।
राजा रायसिंघजी कविता रा घणां पारखी, कवियां ने कुरब देवा में सगलां आगे रेवता। करोड़ां रिपिया री कवियांने रीझां कीधी। यूं तो वां ाप री ऊमर में पांच सो गांव, दो हजार हाथी, पचास हजार घडोा, सौ लाख पसाव अर तीन करोड़ पसाव कवियां ने दीधा हा। दुरसाजी आढा ने बारहढ लखाजी ने तो करोड़ पसाव दीधा। बारहठ संकरजी ने करोड़ पसाव दीधो जो तो सवा करोड़ रो हो। वां री रझां री यो छप्पय साख भरै।
पातां लाख पसाव, कमंध सत सहज जु कीना।
कमां सवा मुर कोड़, दुरस लख संकर दीना।
सिंधुर दोय सहस्स, अरध लक्ख बाजी अप्पे।
सीरोही सुलताण, दूद अरबुद्ध समप्पे।।
जोधांण पाट तापे ज दन, सुजस जिते सस भाण रे।
सतपंच उदक दीना सुपह, कारण जस कलियाण रे।।
एक दाण री वात है। रायसिंघजी पैल पोत करोड़ पसाव रो दान कीदो जद उां रा बाईजी ने जोर आंबेर परणयोड़ा हा, घमओ आंजस आयो। पीहर रो उदरावो सासरा में बतावा री लुगायां री आदत व्है। आप रा बाप रो बड़ापणो बताण ने उणां आंबेर में मोटो जलसो कीदो। मानसिंघ रे रणवास में डोढ़ हजार अस्तरियां ही, वां ने सोंने ही बुलाई। मानसिंघ ने ही जलसा में पधरावा री अरज कराई। बीकानेरी जी री बडारण थैली ले इनाम बांट री।
मानसिंघजी पूछियो, "आज यो जलसो है किण खुसी में या तो बतावो।"
बीकानेरीजी सोकियां साम्हां आंजस बरी आंखियां सूं नालता, हाथ जोड़ जुवाब दीधो, "म्हारे बाबोसा दुरसाजी आढ़ा ने करोड़ पसाव बखसियो है, उण री खुसी तो म्हनें व्हेणी चावे। आज रजवाड़ा में कुण ्‌स्यो राजवी है जो करोड़ पसाव री कवीसरां ने रीझ कीधी व्है।"

उण वखत तो मानसिंघ सुण लीधो। कांी नीं बोलिया। जल,ा सूं ऊठ ने बारे गिण जद परधान ने बुलाय ने हुकम दीधो,

"सुै म्हूं जागूं जिण वखत छ: करोड़ पसाव अर छ: चारण कवि हाजर रै।"
सुबै हुमक मुजब सब तैयार हा। छ: करोड़ पसाव री रीझ कर मानसिंघजी दांतण कीदो। कोई तरै री इण रीझ री चरचा तक नीं कीधी।
जीमवा ने रावा में पधारिया। बीकानेरी जी सोकियां तो सौक रा उदाराव पै बली बैठी ज ही। बीकानेरीजी ने सुणाय एक सौक मानसिंघ जी ने अरज कीधी,
"लोगां रे घरे तो एक करोड़ पसाव देवतां ही, बेन बेटियां ही जलसा करवा लागै पण अठै छः छः करोड़ पसावदेय ने नाम तक नीं लीधो।"
बीकानेरीजी रे झाल तो ऊठी पण झट संभल ने बोलिया,
"अस्या कै तो म्हारा बाप है म्हारा खाविंद और कोई तीजो कठै ही व्हैतो बतावो ?"
छः करोड़ पसाव दीदा उण रो छप्पय है
पोलपात हरपाल प्रथम प्रभता कर थप्पे
दल में दासी नरु सहोड़ घण हेत समप्पे
ईसर कसनो अरधथ बड़ी प्रभता वधाई
भाई डूंगर भणै, क्रीत लख मुखां कहाई।
अई मई मान उपमान पहो, हात धनो धन धन हियो

सूरज घड़ीक चढ़तां समौ दे छः करोड़ दांतण कियो।

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बत्तीस लक्षणी

राणा राजसिंघ एक'र रुपनगढ़ आयोड़ा। एक दिन री वात सुबे दिन ऊगां महलां रा गोखड़ा में ऊबा व्हे, मूंछां पै हाथ मेल न जोर रो खैंखारो कीधो। महलां रे ठीक नीचे एक साहूकार रो घर। उण साहूकरा रा बेटी री बहू बाल विधवा। घर रा आंगणा में बैठी बरतन मांज री, खैंखारो सुण ने घूंघटो खैंचती ऊपर झांकी। देखे तो राणाजी रो एक हाथ मूंछां पै पड़ियो, साम्हलो दसा साम्हा झांक रिया ने खैंखारो कर  रिया। वा तो ही ज्यूं ेक पल रूकगी। थोड़ी देर सोच ने एक कासीद ने बुलाय कागद  मांड ने उण रे हाथ में दीधो।
"अबार रो अबार मालपुरै जा। यो कागद म्हारा बाप रा हाथ में जाय दीजै।"
रुपनगढ से बीच-पच्चीसेक कोस दूरो जैपुर राज में मालपुरो। मोटो गांव, साहूकारां री वस्ती। उण रो बाप करोड़पति सेठ हो।
कागद में लिखियो मेवाड़ा रा राणा राजसिंहजी मालपुरो लूटवा ने ाय रिया है। माल असबाब ठिकाणे कर दीजो।
दूजे दिन तो राजसिंघ जी री फौज मालपुरा ने जाय संभालियो। सगलां पैली राजसिंघ जण ही ज साहूकार रे घे पूगिया। घर संभालियो, सेठ रे तो घर में कांी  ज नीं। राणाजी अचंभा में, सब सूं मोटो सेठ तो यो। धन मि रो गियो कठै ? इण ने खबर पड़ी तो किण तरै ? मालपुरा ने लूटियो अर खूब लुटियो। लूट री कैणांवतां और कविता पण चालै।
मालपुरा रो माल, कैलपुरै घर घ कीधो।
खैर ! गांव ने लूट लूटाय ने पाछा मेवाड़ आया। राणाजी रा मन में संका बैठी लगी के महारो भेद उण मालपुरा रा सेठ कनै गियो किण तरै ? उण ने खबर कांी पड़ी के म्हूं लूट पै चढूंला। राणाजी ने यो भदे जाणवा री जबरदस्त इच्छा। सवार भेज मालपुरा में से सेठ ने बुलायो।
"सेठां, म्हूं जामूं थां रा कनैं लाखां रो माल हो अर है। पण लूट री वखत वो माल गियो कठै ? थांने खबर कांई पड़ी के म्हूँ आज लूटवा ने चढ़ रियो हूं। म्हें, म्हारी जबान बारै वात नीं काढी। फोज तक न पतोनीं के आज चढवा रो हुकम व्हैला। वात गी अरजरूर गी पण क्यूं कर गी ? अबै थे सांच-सांच कैवाो थां ने खबर किण तरै पड़ी, सब गुनाह माफ है थां ने।"
सेठ हाथ जोड़ अरज कीधी, "क्रोड़ गुनाह माफ करावो, ्‌महारी बेटी रुपनगढ में परणायोड़ी है। उण कासीद भेज म्हनैं खबर कीधी।"
राणाजी चमकिया, "उण ने किण तरै खबर पड़ी ? थां री बेटी जो म्हारी बेटी ! म्हूं पूछणो चावूं उण ने अर वात करणी चावूं।"
पूरी इज्जत रे साथ उण ने बुलाय पूछिोय,
"बेटी ! साच बता थनैं कुण कियो ?"
अरज कीधी, "कियो म्हनैं कोई  नीं। म्हूं नीचे घर में बरतन मांज री ही, हजूर गोखड़ा में चरणावंदा बहाल व्हे मूंछां हाथ मेल खैंखारा कर रिया हा। म्हें सोची आज यूं खैंखारा कर रिया है तो कोई वात जरूर है। राणा राजसिंघजी रा आज तांी खैंखरा कदी खाली नीं गिया। जरूर कठै ही दौड़ करेला। सतूनों बांधियो, नैड़े ही जैपुर रो राज है, यां रेग अर वां रे बणैं नीं, जो जैपुर राज में दौड़ करेला। आप जिण दिसा साम्हा झांकता खैंखारो कीधो वठी ने मालपुरो है। सेठां री मोटी वस्ती वा ही ज है, अर नजीक ही वा हीज है। यो सतूनो लगाय म्हैं कासदी दौड़ाय दीधो।"
राण उण सेठ कन्या री बुद्धिमानी पै चकित व्हेगिया। मन में कियो, बत्तीस लक्षणी लुगाई व्हेवो करे है जो या लड़की बत्तीस लक्षणी है।
घणां बरसा पछै राजसमन्दर रौ नामी तलाव बणता लागियो द बामणां कहियो के पाल री नींव बत्तीस लक्षणी स्त्री रा हाथ सूं लगाणी चावें। जद राणाजी ने झट वा सेठाणी याद आई। सेठाणी ने बुलाय पाल री नींव उण रा हाथ सूं देवाई।
राणाजी रा परदान दयालदास रे या नजदीक रा संबंध में लागती ही। नींव लगाया या बोली,
"म्हारा कनैं जतरो धन है वो सारो अठै लगाय दो।"
राजसमन्दर री नौचोकी पाल पवे नामी जैन-मन्दिर दयालसाह रो देवरो है उण देवरा में सेठाणी आप रो सारो माल मत्तो लगाय दीधो।
नौ चौकी नौ लाख री, दस किरोड़ री पाल
साह बंधाया देवरा, राणै बंदाई पाल

नोट-इम पाल री नींव लागवा री ौर ही कई न्यारी न्यारी वांता कहीजे है।

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स्त्रियास्चरित्रं

राणा राजसिंघजी के यूं घमी ही राणियां ही। पाटवी कंवर सुलतानसिंघ जी ने वां री मां चोटा लगां ने ही छोड़ ने मर गिया। रीत सूं मेवाड़ घमी सुलातनसिंघझी रो ही ज व्हेवा रो हक। पण चोटा कंवरजी सिरदारसिंघजी री मां रै मन में पाप। वे चावे के वां रो बेटो सिरदारसिंघजी राज रो घम ी बण  जावे। राजा रा लोभ आगे पाप अर पुन्न कांई नी दीखवो करे। वां राणीजी, राणाजी रा कान भरणा सरु कीधा। जदी देख ोजदी सुलतानसिंघजी री खोटी चावता। ौर कोई उपाय चालतो नीं दीखियो। तो एक गबोलो उठायो राणाजी ने एक कुमानतैण राणी हा, वे कंवर सुलतानसिंघजी पे घमओ ंजवी राखता। कंवरी पण मांई मां रे कनै घमआं आवता जवात, हुकम राखता अर मोह राखता। छोटा लगा ने मोटा कीधो जो माई मां व्हेता थकां ही घमो जीव, सगा बेटा ज्यूं वां ने समझता।
हाथ जोड़ राणीजी अरज कीधी "मालकां ने आंखियां देखावूं तो मान जो।"
राणाजी बोल्यो, "आंखिया ंदेखाय दे तो इण गुरज सूं उणां रो माथो फोड़ दूं नीं तो झूठ बोलवा पे थारो।"
राणीजी मौको देखे। सावण महिना रा दिन। जामनगर सूं राखी रा सिरोपाव एक सरीखा, दो आया एक राणाजी सारूं दूजो कंवरजी रे कंवरजी रो सिरोपाव तो कंवरजी कनै भेजियो अर राणाजी रो सिरोपाव राणीजी राख लीधो।
भादवा री अंधारी रात। रै रैय ने बजिली चमकै। राणाजी अर राणीजी गोखड़ा में बिरायजिया। राणीजी आप री एक डावड़ी ने जामनगर सूं आयोड़ो सिरोपाव पैराय, वीं ने समझाय दीधी। वा डावड़ी मौको देख ने चाह कर ने छिपती, धीरे धीरे चाने छाने आवा रो नाटक करती, वां कुमानैतण राणीजी रा रैवास मांय नूं निकलती रो पलको पड़ियो। राणीजी कनैं बैठिया राणाजी रो हाथ दबायो, "वे देखो, कंवरजी जाय रिया है।" म्हारो कहियोड़ो नीं मानता आप, आज देख लीधां आंखियां ? लारे री लारे बिजली चमकी। राणाजी देखिया साफ छिपतां दबतां पगां रैवास सूं आय रिया है। सिरोपाव ओलखियो, जामनगर सूं आयोड़ो जिको।
राणाजी सूं ही रीस रा जाला। आंख सूं देख ले ने ऊभा रेवै ? रीस में आंधा व्हे गिया। गुजर हर समै हाथ में राखता ही ज हा, मेल गुरज कांधा पे सूदा गिया कंवरजी रा रैवास साम्हा।

आगे कंवरजी अर वां री दोई कंवराणियां बैठा भले जीम रिया। बारै डावड़ियां ऊभी। रात रा इण वखत राणाजी ने बेटा, बहूरा चौपाड़ में आता देख, डावड़ियां रा होस उड़ गिया बैठी ही जो भड़ भड़ उभी व्हेगी। ेक जणी दौड़ ने मांयने गी, "अन्नदाता पधारिया।"

कंवरजी जाणियो यो कांई व्हीयो, हाथ री रोटी रो कवो थाली में न्हाक ऊभा व्हे गिया। कंवराणजी री बारे निजर गी। राणाजी हाथ में गुरज लीधां ऊभा, रीस सूं होठ धूज रिया, रौद्र रूप में राणाजी तो।

एक पल में कंवराणीजी जाण गिया, कोई अनर्थ है। झट कंवरजी ने खैंच ने किवाड़ जड़ दीधो। कंवरजी दे टल्ला ने किवाड़ खोलिया, "म्हारा बाप तो ऊभा है नै थां म्हनें मांय ने रोक रियो हो।"
कंवरजी किंवाड़ खोल ने पूरा बारै हीनीं निकलिया जतरे तो राणाजी रा हाथ री गुजर पड़ी, कंवरजी रा माथा पे जो भेजी रा कपास्या निकल गिया। वठे रा वठे रै गिया। राणाजी पाछा फिर गिया।
कंवरजी रे धाभाई, राणाजी ने कियो, "यो अनरथ आप कांई कीधो। कंवरजी जस्यो चारित्रवान आदमी ! कंवरजी रे पराई अस्तरी रो पल्लों नी अड़ियो। वे तो वां ने साक्षात मातेस्वरी मानता। आप वैम कर जो मोटो पाप कीधो इण रो प्रायस्वित आप ने करणो चावे, ्‌स्या सपूत बेटा सूं थां हाथ धोय बैठिया।"
रीस उतरी तो राणाजी ने होस आयो, बिना सोचियां विचारियां यो कांई कर लीधो।
दिन उगतां ही दोई कंवराणिया सती रो वेस बणाय, पति रा सव ले आगे आप व्हे, राणाजी रा गोखढ़ा नीचै आय ऊभी री। "अन्नदाता ने अरज करो, म्हां सवारी में जाय री हां दरसण दे।"
राणाजी तो दुख अर ग्लानि सूं दब गिया, बेटा री सती बहुआं ने मूंडो बतावतां लाज आवे। नीचै सूं सतियां दूजी दांण जोर सूं बोलिया, "म्हां जाय री हां, दरसण देवावो।"
सतियां रो कहियो किण तरै टालै ? आत्म ग्लानि सूं भरियोड़ो राणाजी कनै ही ताव दान हो झट दीवा री कालग ले मूंडा रे चोपड़ ने गोखड़ा सूं मूंडो काढ बोलिया, "ओ कालो मूंडो देखो।"
नीचे सूं एक सती जोर सूं सराप देती बोली "आप निरदोष बेटा ने मारिया। इण गादी पे सात पीढी ताई कोई बाप, बेटा रो मंडो नीं देखे। यो सराप है म्हारो।"
राणाजी ने इण गलती रो सदमो घणो लागियो। राणीजी पे नाराज रैण लाग गिया. अबै वीं राण ीसोची सुलतानसिंघजी रो तो कांटो निकल गियो, अबै राज तो म्हारा बेटा सिरदारसिंघजी रो ही ज है। आज काल नाराज व्हे रिया है जो कठै ही राणाजी फेर कोई रगड़ो नी घाल दे। राणाजी, राणाजी ने जैहर दे मारवा री सोची। पिरोत जी भेला। पिरोतजी ने राणीजी कागद लिख भेजियो, सुलतानसिंघजी ने तो मराय दीधा, अबै आपा ने यो काम करणो। पिरोतजी घणा खरा, सिरदारां सूं दसगत कराय लीधा के राणाजी पछै गादी पे सिरदारसिंघझी ने मानेला। पिरोतजी उण कागदां ने कटारी री पड़दी में मेल दीधा।
दिवाली रो दिन। पिरोतजी मेलों सूं मुजरो करने आया। आय ने कपड़ा उतार रिया, एक छोरी तो कांच लीधां ऊभी, दयालों वां रो नौकर कमरबंधा रा आंटा अधेड़ रियो। पिरोतजी रे पोसाक बड़ व्हे री। मौको देख ने छोरी बोली, "दयालो आज रात की सीख मांगै।"
"कठै जावै ?"

"इण रे सासरे, आज दीवाली है जो आणो लावो ने।"

पिरोतजी रो मन उमंग में बोलिया, "हूँ दीवालिया जावे ? जा, सासरे जा रियो ह, पांच सेर मिठाई री चिट्टी ले जा। आं गाबां सूं सासरे जाय रे ? सासरा वाला कांई कैवेला के यो अस्या सूगलां ग8ाबां सूं पिरोतजी ही हवेली रो आदमी दीवालिया आयो है। हेवली रो नाम लजावे। ले जा, ये म्हारा कपड़ा पैर लै।" यूं कै पिरोतजी आप री कमरबंधो, पागड़ी, अंग रखी यूं री यूं दयाल ने दे दीधा। दयालो मुजरो कर चालवा लागियो।
पिरोतजी जाता दयाला ने हेलो मारियो, "अरे ले, गेला में नार चीतरो मिलेला तो सासरो याद आय जाय। ले या कटारी लेतो जा लारे।" कटारी दयाल ने दीधी, उण री पड़दी में वो राणीजी रो भेजियोड़ो कागद।
दयालो राजी राजीव रवाना व्हीयो। सासरो उदैपुर सूं दो कोस तूर देवालो गाम तो हो ही ज।
सासरे गियो जमांई ने आयो देख, सासरा वालां खातर कीधी। लापसी चावल बणावा लागिया। दयालो यूं ही बैठियो बैठिो कटार ने देख रियो, उण री आंगलियां रे नीचे कागद दबियो। जाणियो कोई जरुरी कागद तो म्हार ेलारे नीं आय गियो है, काढ़ ने बांचियो पढ़े तो साफ सड़यंत्र। राणाजी ने आज जीमण मे ंजहर देवा री पूरी योजना। दयाल रो मूंडो फक व्हे गियो. गजब व्हे गियो. मालकां रे साथे या हरामखोरी. आज राजसिंघ रा प्रताप सूं मेवाड़ हरियो व्हे रियो है। ये नीं रिया तो काले दिल्ली री फौजां एक सातां रो सांस नीं लेवा दे। चाहे जो व्हे राणाजी रा जीव री रक्षा करणी ज।
दयालो तो उठियो साकला वांल कहियो, अबारूं तो आया, अबारूं पाछा जा रियो हो। व्हीयो कांई।
दयालो तो पड़ूतर दीधा बिनां भागियो जो सूधो उदैपुर में जनानी डोढ़ी पै।
डावड़ी ने बुलाय ने कहियो, "राणाजी ने अरज कर के आपने एकलिंग री आण है जो जीमण रे म्हारी अरज सुणियां बिना आंगली अड़ाई तो। पैलां म्हारी वात सुण ने पछै जीमजो।" अर डावड़ी ने कियो, "थनैं एकलिि  ंगजी री अर राणाजी री आण है जो थै यूं री यूं जाय ने अरज कीधी है तो।"
अरज कीधी राणाजी ने अर यूं रीं यूं कीधी। थाल बाजोट पै आयो छको ने राजसिंघ जी ने कोई  यूं कैवे। पण एकलिंग जी री आण जो घलाय दीधी। गुरज उठाी ने खीजिया लगा बारे निकलिया।
दयालो दूरा सूं ही हाथ जोड हेलो पाड़ियो, "आपने एकलिंग जी री आण जो म्हनैं मारियो। पैलां यो कागद पढ़लो। पछै आपरी मरजी व्हे जो करजो।"
कागद पढ़ियो पढ़तां ही राजसिंघजी तो रीस में बावला व्हे गिया, राणी रे ठोकी गुरज री जो पुग गिया ठिकाणे। पुरोहित ने घर सूं बुलाय ने गुरज सूं ठीकाणे राख दीधा।
अबैं कंवर सिरदारसिंघजी ने कबर पड़ी के ये रासा व्हे गिया। वे बेखबर बिलकुल, वां ने असी अमूजणी आई के म्हारे वास्ते ये मोटाृमोटा कुकृत्य। वे तो जहर री पुड़की खाय, यो दूहो लिख सिरहाणए मेल ने सोय गिया।
पाणी पिंड़ तणांह, पिडं जातां पाणी रहे
चीतारसी धणाह, सपनां ज्यूं सरदारसी।

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परतापसी तखतेसरा लारे घटे लंगोट

सर प्रताप, जोधपुर राजाजी तखतसिंघजी रा हा तो छोटा बेटा पण रोब दबाव, हुमक अर प्रतिष्ठा में सारा रईसा सूं आगे हा। जरमन रा पैला जुद्ध में यां घणो नाम अर इज्जत पाई। ये जीवता रिया जतरै जोधपुरा रा राज पै जतरा रांजा राज कीधो, नाम मातर रा रिया, असली राजा तो ये ही ज रिया। जसवन्तसिंघजी सूं लगाय उम्मेदसिंघझी तांई चार पीढ़िया यां रा इसारा माथै चालती री।
जोधपुर राजा रो छोटा भाई होणए सूं उणांने भाईबंट, आपरो हिस्सो देणे रो सुवाल आयो। दूजा रजवाड़ा ज्यूं जोधपुर रा कोई राजा आप रे छोटा भाइयां ने भाईबंट नीं दीधो।
उणां रो यो उसूल रियो "बहादरी सूं जमीन खाट न खावो। आसपास रा दूजा रजवाड़ां री जमीन दाब लो। उण दाबियोड़ी जमीन रो पट्टो म्हां सूं थां ले लो।"
जोधपुर रा चोटा भाइयां हमेसा यूं जमीन खाट न खाधी। पण ्‌बे अंग्रेजां रो राज। सारा रजवाड़ां रा समीडाा तै व्हे गिया। सगलां री अंगरेजां साथे संधि। जोधपुर राजाजी जसवन्तसिंघजी, प्रतापसिंघजी ने कियो, "थां री पांती रो भाईबंट ले लो।"
प्रताप बोलिया, "म्हूं ही ज अस्यो नाजोगो अरकपूत व्हीयो हूँ कांी जो पांती मांगूं ? जमीन ले लूं तो खाट न खावूंला नीं तो कोई भाीबंट नीं लूं।"
प्रतापसिंघजी भाईबंटो नी लीधो। अंगरेजां सूं ईजर जागरी में कढाई। अंगरेज किण ने जागीर देवे वे तो लेवा री फिराक में रैता। पण प्रतापसिंघजी हा जो कढ़ाई। वां जागीर खाटी पण खाधी नी। दो तीन पीढी दूरा में दलपतसिंघजी हा, वाने खोला रो दस्तूर कर ईडर सूंप दीधी।
वे उण जमानां में ही कट्टर सुधारकां में हा अर राज में घणां घणां सुधार कीधा। वे सुधार उण वखत रा आदमियां री निजरां मे खोटा वातां ही। जो लोगां वां माथै भूंडी अर भणी घणी घणी कवितां कीधी। सर प्रताप सारा राजस्थान में सरकार रा नाम शूं प्रसिद्ध हा। यां सरकार की कहाणियां चालै।
सर प्रताप कनै जैतदान जी बारहठ रैता, वां ने सरकार सूं घणो इनाम इकरार पाणे री आसा ही पण कांई मिलियो नीं। जद जेठवा रा दूहा रा ढंगा माथे जेठवा ने संबोधन कर सरकार साम्हो संकेत कर ये दूह कहियो।
डहक्यो डंफर देख, वादल थोथी नीर बिन।
आई हाथ न एक, जल री बूंद न जेठवा।।
दरसण हुवा न देख, भेव बिहूंणो भटकियो।
सूना मिंदर सेव, जनम गमायो जेठवा।।
सरकार प्रताप जो जो नया सुधार करता अर रीतां चलावता, वै बारैठजी भोपालदान जी ने घणी अबखी लागती। वां री वृद्धता अर वीं सूं ही अधक वां रा वृद्ध संस्कार, यां नवी नवीं वातां रो विरोध करवा ने वां ने मजूबर कर देता। कोई नवी वात सुणता वे चिढ़ जाता अर झट एक भूंडो दूवो सरकार रो बणा देता।
वां सैकड़ा दूवा इण तरह रा बणाया घणां दिना ताई तो वां आप रो नियम बणा लीधो के रोज परभाते दरबरा सूं मुजरो करण ने जाता जद सूधा सरकार बैठिया व्हेता उण कमार में वल जाता। भोपालदानजी काणां हा। भूंवारा माथे डोढो हाथ राख आंख मचमचाता पूछता,
"तखतसिंघजी वालो कपूत है के नीं ?"
परतापसिंघझी पाछो कैतो, "हां बैठो हूं, बोलो कांई कैवो हो।"
बारैठजी झट एक वां रो भूंडो दूहो सुणाय देता। सरकार आप री बुराई रा दूवा ने सुण हूंकारो दे देता। जूना जमाना में चारण जाति ने जबान री पूरी आजादी ही। सरकार उण मान्यता ने मानता रिा, अतरातेज मिजाज रा अर शक्तिमान व्हेता थकां ही।
प्रतापसिंघजी रो टोप लगाणो बारैठजी ने खोटो लागियो,
ढाढी मूंछ मुडाय कै कांधे धरियो कोट
परतापसी तखतेसरा , (थारे) लार घटै लंगोट।।

मारवडा राज री पैमाइश होण लागी। बारैठजी ने अबखी लागी, नौकोटी मारवाड़ ने ही यो नपावण लागिया है। म्हां तो मारवाड़ कद ही सुणी न सांभली। ये अपत्ती राजा जमीं गमावण ने जनमिया है। बिना इज्जत रे बरतियां ही या जमीन घमआं दिनां तांई आप रे रेगी। अबै धरती जाती लगी धणियां सूं जुहार कर री है।
मारवाड़ मपतीह, सुणी कदै न सांभली
आप भूत अपतीह, जमीं गमांवण जलमियां।।
बिन इज्जत बरतीह, रही घणा दिन राज रै
धणियां सूं धरतीह, जाती करै जुहारड़ा।
सहर में रुलेट कुत्ता फिरता जां नै मारवा रो हुकम दीधो अर परताप आप ही दो चार कुत्तां नै सूट कीधा। भलां बारैठजी ने किण तरै खटती ? झट जाय तखतसिंघ वाला कपूत ने हेलो मारियो।
गाडा भर मारो  ंगंडक, आड़ा फिर फिर आप
पत्ता कठै उतारसो, (आ) महा चीकणा आप।
सरकार आर्यसमाजी हा। दयानंदजी रा उपदेसां रो वां रे माथे घणो प्रभाव पड़ियो। दयानंदजी ने घणा दिनां जोधपुर में राखिया। आर्य समाज रो जोधपुर में घणो प्रचार व्हीयो। सरकार मरियोड़ा पाछे होण वाला औसर, करियावर वगैरा बंद कराया। बारैठजी कियां चुप रैता ?
मौसर बंध मुरधर किया, अधक बिचारी आप
भूत हुयां भरमै बड़ा, यो पातल रो परताप।
मारवाड़ में मौसर बंध कराय दीधा। इण पातला रा परताप सूं बड़ैरा भूत व्है भटक रिया है।
ऊमरकोट रो इलाको पैला मारावडा में हो। मानसिंघ री वखत में संभलियो नीं जो अंगरेजां रे परो गिया। परतापसिंघजी रे वखतें जोधपुर अर अंगेरजा बीचै सीमाड़ा तै व्ही गया उण में प्रतापसिंघ ऊमरकोट ने अण ऊपजाऊं इलाको देख खैंचताणं नीं कीधी। अंगरेजां रो मान लीधो बारैठजी रे आगे यो पक्को सबूत हो के धमी गमाण ने यो पताल जनमियो है।
आठ कोस रो ऊपलो, अस्सी कोस री ईस
गजब पत्ते गमाय दी, धरती बांध घीस।
जिण जमीन रो आठ कोस रो तो ऊपलो (चौडी) है, अस्सी कोस री जिण री ईस (लांबी) है। अतरी धरती ने इण गजबी प्रतापसिंघ गमाय गजब कर दीधी।
प्रतापसिंघझी रे कोई बिमारी ही, इण सूं कबूतर मार वां खाधा। या पाप देख बारैठजी छाना कियां बैठ रैता ?
पारैवा भोला पंछी, माडैही खाधा मार
जम माथै देसी जरा, तूं किं कैसी सरकार
कबूतर भोला पंछी ने थूं मार ने खाय गियो। जमराज थारे माथा पे मार ने पूछसी, जद उण ने कै जुबाव देसी, सरकार ?
जोधपुर में पैला कचेड़ियां गुलाब सागर तलाब कनैं ही। एकर तलाब भरियो नीं। खाली पड़ियो। सरकार कचेड़ी में गिया। वठे तलाव खाली देख उणां नेसोच वहीयो, बोलिया, "तलाव क्यूं नीं भरियो अबकाले।"
बारैठजी झट बोलिया,
कनै यां रे कचेड़ियां, तिण सूं खाली तलाव
का डेरा कागे करो, का भेजो भांडेलाव।
तलाव भरे कठा सूं ? कनै कचेड़ियां जो है। रात दिन यां कचेडिया में अन्याव अर रिस्वत जो चाले।

इमां कचेड़ियां ने कैतो कागे रा मसाणा कनै भेजो, कै भांंडेलाव के मसांण कनैं। जो यां कचैड़ियां मे काम करणियां ने मसाणां में मिनख बलतो देख न आ तो विचार आवे के "म्हारी एक दिन आ गत व्हेणी है।"

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लखणसेन तिय नींब भंवर लैगो रंग भीनी

जालोर रो किलो, नौकोटी मारवाड़ रा किलां में सिरे। आडावाला रा ऊंचा माथा करियोड़ा डूंगर रे मथारो जालोर रो किलो दीपै। जस्यो कियो वांको वस्या ही बांका भड़ उण में।
कान्हड़दे अर वीरमदे सोनीगरां री वातां कहीजै, ख्यातां लिखीजै, गीत गवीजै। अल्लाउद्दीन बादसा बारा बरसां तांी जालोर रा किला ने घेरियां रियो पण वो अणनमी किलो माथो ऊंचो कीधां अल्लाद्दीन पै हसंतो रियो. अल्लाउद्दी ने पाछो फिरणों पड़ियो। उण किला रा लाड़वा वाला वीरमदे सोनीगरा री सबी, देह री मरोड़, मछर आंखियां रो पाणी देख, अल्लाउद्दीन री सायजादी रीझ गी। उण रो मन हाथ सूं बारे निकल वीरमदे री मूछां री मरोड़ में उलझ गियो।
सायजादी आप रे बाप अल्लाउद्दीन ने केवाय दीधो,
"म्हारो भव भव रो भरतार वीरमदे।"
जुद्ध में कट न पाड़िया वीरमदे रो माथो खोला में ले, कुंवारी सायजादी उण रे साथे सती व्हेगी। उण वीरमदे री बैन वीरमती। वीरमती ब्यावण जोगी व्हीं बाप वर जोवा लागिया। वां विचार कीधो जैसलमेर रावलजी रो आंपारे माथै उपगार ही है, बराबरिया सगा है। उणां रे बाई रो नालेर भेज दां।
रावलजी लाख सी, वीरमती रा नालेर भेजिया। पिरोत नालेर ले जैसलमेर गिया। रावलजी लाखणसी ने खबर लागी जालोर सूं सोनीगरी रो नालेर आयो। वां ने तो खुसिया री जगां सोच लागियो। "अबे सोढीजी नारा ज व्हेला। सोठीजी कैवूं के म्हारे सोनीगीरी रो नालेर आयो।"
रावलजी री राणी ऊमरकोट री सोढी। सोढी री किया में रावलजी पाणी पावै सोढीजी रूप री करूप। डीला में माती। पूरी धाणी रा फेर में आवे जस्यो डील। रावलजी तो सोढीजी रे आगे कांपे। उणामणा मन रावला में गिया। जाय सोढीजी सूं बोलियो, "देखियो, होम करता हाथ बलिया है। जालोर रे कान्हड़दे ने उणां रो खवास जैहर देय रियो। म्हने पड़गी। म्हे ं उणा ने चेताय दीधा। दूध रा पियाला ने होठां रे लगातां वे बच गिया। इण उपकार रो बदलो म्हने यो मिलियो कान्हडदे तो आपरी बेटी सोनीगरी रा नालेर ही म्हारे भेज दीधा।"
या सुणतांही सोढी ताव खाय ने बोली "है के ? थांरी अकल कठै नाठी है। बुढापा में बियाव री हूंस आई है।"
रावल जी हाथा जोडी कीधी "लड़ो मत। नालेर पाछा फेर दूंला।"
सोढी ठंड़ी पड़ी "थारां में तो अकल रो तो नाम ही नीं। नालेर पाछ ामेलिया आछी लागसी कै ? दुनिया में हांसी नी ंव्हे जावेला ?"
"तो थां केवा ज्यूं करुं।"
"नालेर तो झेल लो पछै म्हूं केवूं ज्यूं करजो।"
नालेर झेलिया। अबै परणवां ने लाखणसीजी जालोर चढ़िया। सोढी वांने खराय पाका कीधा। वचन लीधा ज्यूं म्हें तांने कियो ज्यूं रो ज्यूं करजो। लाखणसीजी हाथ पै हाथ दे वचन दीधो। वींद बणिया लाखणसी जालोर रे गोरवां में पूगिया। वीरमदे आपरा हाथी घडोा सिणगार साम्हाय आया। आपसरी में मुजरा जुहार व्हिया। लाखणसी तो अठीने वाठीने झोंक बोलिया,
"सोनगरां रो समैलो घणो पर सोढां री हाड़ नीं व्हे।"
सुणतां ही वीरमदे ने रीस तो आई पण कांई बोलिया नीं। बांह पसाव कर मिलिया। बांह पसाव करतां लाखणसी बोलिया "सोनीगरां री बांह ही आछी पण सोढा री बांह री होड़ नीं।"
वीरमदे रे डील में आग लागगी। आया वींद ने कांई केवे पण मन में सोचियो "वीरमति रा तो भाग फूट गिया। यो रावलजी तो पूरो गधेड़ो है।"
वीरमदे दांत पीस ने रैगिया। लाखणसी तो सोढी जी रा सिखायोड़ा। हरेक मौका पे यूं कैवता जावै।
परणावाने बैठिया। कान्हदड़े बेटी रो हाथ दान दीधो। वीरमती रा हाथ ने लाखणसी रा हाथ में झेलायो। वीरमती रा हाथ में लेता लाखणसी बोलिया, "सोनीगरी रो हाथ ही सखरो पण सोढ़ी रा हाथ री होड़ नीं।"
सुणतां ही वीरमती रे जांणे बिच्छू डंक मारिया। बल न भसम व्हेगी रीस तो असी आई के हाथ छोडाय ऊभी व्हे जावे। पणकांई करै।
फेरा खातां ही लाखणसी तो पाछै जैसलमेर जाणए री सीख मांगी। कान्हदड़े, वीरमदे घमां समझाया पण लाखणसी तो हठ पकड़ लीधी। वे तो सोढीजी के राखियो जतरा ही पांवड़ा भरे वतरा ही आक्खर बोले। नी मानियां। लाखणसी तो पेरा खाय वीरमती ने छोड परा गिया।
बाप भाई सलाह कीधी "आंपां तो उपगार मान बाई ने परणाई। यो तो गधेड़ो निकलियो। बाई रो जमारो ही बिगड़यो। अबै कांई व्हे, परण तो गिया। बाई ने सासरे पूगावां।"
साथै बीस पच्चीस आदमी दे, वीरमती ने रथ में बैठाय सासरे भेजी। वीरमती तो वली लगी। लाखणसी री सकल सूं कांई नाम सूं नफरत व्हेगी।
मंजलां दर मंजला चालता गिया। कोस पचासेक गिया। गैला में एक तलाव आयो। आछी छाया पाणी री जुगत देख ने रुकिया। घडोा बैलां ने पाणी पायो। साथ रा आदमी अमल पाणी करवा लागिया. अठी ने वठी ने हाठ मुंडा धोव  ने  बिखर गिया। वीरमती रथ सूं नीचे उतरी, छोरी ने कहियो, "जा पाणी रो गड़वो बर ला।"
आगे लवा में नींबो राठौड़ आप रा सात बीसी साईना सा साथ सूं सिनान कर लियो।
नींबो कठे ही मोटा सेठ रे धाड़ो न्हांक न आयो। धाड़ा में अत्तरा रा कूंपा ही हाथ लागिा। अत्तरा रा कूंपा ने तलाव रा पाणी में कूढ़ दीधा। पाणी में चमेली, केवड़ा, अरगजा री लपटां आय री। केसर रा रंग सूं पाणी रो रंग बदल गियो।
छोरी रामसागर झलोल पाणी ले आई। सोनीगरी पाणी सूं मूंडो धोवा लागी तो देखो पाणी पे तो तेल रा तरवरा आय रिया। सोनीगरी, छोरी पे रिस कीधी,
"आखियां मींच ना पाणी लाई है ? दीखे नी तेल रा तरवरा आय रिया है।"
"बाईसा पाणी ही अस्यो है। म्हूं कांई करू। वटै तो कोई सिरदार आपना सांइनां रे साथ सिनान कर रियो है। अतर, तेल री धोरां ऊठ री ही। तलाव रो पाणी अस्यो व्हेगियो।"
वीरमती कियो, " जा खबर कर आ। वे सिरदार कुण है।"
छोरी जाय पूछियो कुण है।
नींबा राठौड़ रो एक चाकर बोलियो, "लाखा रो लडाऊ, बड़ो झोंकाऊं सेणां रो सेवरो, दुसमणों री साल, नींबो राठोड़ सिनान कर रियो है।"
छोरी आय वीरमती ने नाम बतायो। वीरमती छोरी ने उलटा पगां फाछी भेजी, जा नींबाजी ने कै, वीरमदे री बैन, वीरमती सोनीगरी थांने बुलावै।
नींबो तो कपड़ पैर, हथियार बांध आय ऊभो।

वीरमती बोली, "म्हूं लाखणसी री परणियोड़ी हूँ। हथलेवा रा दाग लागियो है। नींबा, जदां थां में हीमत व्हे तो म्हनै लेजां थारे लारे।"

"म्हारे आंखियां री पलकां पै थांनै राखूं। हालो कैवता ंही रथ न आगे कीधो. सात बीसी साइनां लारै। रथ ने जावतो देख, साथ रा आदमी लारे भागिया। एक दो आदमी तो कटिया। वीरमती रथ में सूं मूंडो काढ हेलो मारियो."
"था क्यूं मरो ? म्हूं तो म्हारी खुसी सूं लारे जाय री हू। जाय म्हारा बाप ने कैय दीजो, मर जावू पण वी जैसलमेर वाला कनैं नी जावूं।"
साथ रा आदमी पाछा फिर गिया। जाय कान्हड़दे, वीरमदे ने समाचार सुणाया। वीरमदेजी सुणी तो बोलिया,
"बाई चोखो काम कीधो। नींबो बहादुर रजपूत है। म्हारो मोटो सगो है। रावलजी तो गधेड़ो है। बाई रो जमारो खराब व्हेतो।"
वीरमती ने नींबो आपरे घरां ले गियो। घणां मान अर प्यार सूं राखै।
लखण सेन तिय नींब भंवर लैगो रंगभीनीं।
अबै या खबर जैसलमेर पूगी। रावलजी बोलिया,
"म्हारी लुगाई ले गियो उण सूं अठै बैठिया बैठियां ही आंटो लां।"
लुहार ने बुलाय कियो, "एक असोय भालो धड़ दे जिणसूं अठै बैठियो, वठै बैठिया नींबा ने मारूं।"
छः महिना व्हे गिया भालो घड़तां ने। लाखणसी ताकदी कीधी। लुहार री छोरी आय रावलजी ने कियो,
"रावलजी भालो तो त्यार है पण एक सोच है। थां तो हो बूढ़ा, नींबो है जुवान। थां रा हाथ सूं भालो खोस न पाछी थां रे ही ज ठोक दे तो कांई करांला।"
लाखणसी बोलिया, "भली कही। भाला नें भाँग रालो।"
रावलजी बड़ा नाजर व्हे नींबा ने सराप दीधो "म्हारी लुगाई ने थूं ले गियो। नींबला, थारी लुगाई ने सूरज भगवान ले जाजो।"

या कैस लाखणीसी तो सुख सूं रेवा लागिया।

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बड़ा बड़ां री धण गई

चित्तौड़ में राणा कुंभाजी रा भरिया दरबार में राव सत्ता रो बेटो कायलाणा रो ाणी नरबद मोटो निसासो भरियो।
कुंभाजी पूछियो, "थां ने म्हू रै रै नीसास भरतो देखूं जो इण रो कांई कारण ? थां रा जस्या वीर ने मरम रो जरुर कांई दुख है जो नीसास भराव रैवो।"
पैलां तो नरबद टाल गिया पण कुभांजी जोर देर पूछियो।
जुद्ध में घायल पड़िया नरबद री आंखियां ने सांली चांच सूं फोड़ दीाी ही। आपरी फूटी आंखिया में पाणी भरतो नरबद बोलियो,
"घणी पूछे तो बतावमो ही पड़ेला, आप री सबा में बठिया इण सांखला री बेटी सुपियार दे रे साथ म्हारी सगाई बालपणां में ही व्हेगी, पण चूण्डाजी रा अर म्हां राठौड़ां रा झगटा में म्हांरो मंडोवर छूट गियो, बीखो पड़ियो। म्हांरा में बीखो पड़ियो देख इण सांखले, सुपियारदे ने म्हनैं नीं परणआी। उण नै जातारण रा नरसीग सींघल ने परणाय दीाी। वा लाय म्हारा कालजा में सलगती रैवे। उण सूं आंटो नीं लेणी आवे जतरे म्हारे जीवा में ारकार है।"
नरवद फेरो एक मोटो निसासो न्हाकियो।
राणा कुंभाजी सोची, ये निसासा कदै ही मोटो रगड़ो करैला, सींघ र अर राठौड़ां रा माथा काटले। इण झगटा ने मेट या रे राजपी करायदां तो ठीक। या सोच कुंभाजी सांखला ने हुकम दीाो।
"थां रे एक बेटी कुंवारी है जीण ने नरबद ने परणाय दो। आपस में साख कर राजीपो करलो।"
सांखले राजी राजी हुकम माथे चढ़ायो अर नरबद ही मान गियो।
सांखला री छोटी बेटी रो ब्याव मंडियो तो बड़ी बेटी सुपियारदे नी हे ब्याव में बुलावो गिया। उण रो वींद नरसींग नट गियो,
"पीहर नीं भेजूं। नरबद रे साथ सगाई व्हीयोड़ी है जो कठै ही वो देख वात करै तो।"
सुपियारदे घणी मुसकिल सूं नरसींग ने वीं ने पीहर भजेवा ने राजी कीाो। नरसींग राजी व्हीयो पण एक सरती राखी। वीं सुपियारदे सूं सौगन लेवाया के वा नरबद रे मूंडा आगे नीं जावेला। सुपियारदे या बात मान लीाी। सुपियारदे पीहर चाली, लारे रो लारे नरसींग एक नाई ने भेजियो के थूं छांने छांने नींगे राखजे, सुपियारदे नरबद रे मूंडागे जावे के नीं।
नरबद तो घोड़ो तोरण पे आयो, तोरण मार डोढी में आयो, सासु आय आरती कीाी, दूजी साली आय दस्तूर कीाो। अबै नरबद अटक गियो के सुपियारदे आय आसली आरती रो दस्त्रतु करे जद परणावा ने आगे जवाूं नीं तो अठे ही ऊभो हूँ। सारा जमआ ंघणां हैरायन व्हीया, समझायो पण नरबद जिद पकड़़ लीाी।
"सुपियारदे आरती उतारे जद आगे पग दूं।"
बाप आय सुपियारदे ने समझाई, एक छिन रो काम है, आडी डोढी ऊभी रे आरती रो दस्तूर करदे।
सुपियारदे घणी ही नटी, पण सारा जणा कैवा लागिया जद घूंघडो काढ आडी ऊभी रे झट आरती ऊतार पाछी फिरगी।
नरसींग रो भेजियोड़ो नाई लुगाई रा गाबा पैरियां सब देख रियो। वो उणीज वखत जैतारण भागियो जाय नरसींग ने सारा समाचार किया। नरसींग ने घणी रीस आई।
सुपियारदे पीहर सूं आप रे सासरे जैतारण आई। नरसींग तो सुपियारदे री चाबकु सूं चमड़ी उतर लीधी, उण ने दुख देवे जिण री हद नीं, माचा रा पागा रे नीच उण रा हाथ दबाय आज दूजी लुगाई साथै माचा माथे सोवे। हर घड़ी, हर पल सुपियारदे ने घणो ही ज दुख दे। सुपियारदे हाथ जोड़िया माफी मांगी, आप रे निरदोसपणा रा सबूत दीधा। उण कहियो,
"आयो वींद पाछो फिरतो घराणओ बदनाम व्हेतो, म्हें कीधी तो आरती ही ज ही। आरती करणए रो साली रो दस्तूर अर कायोद व्है। उण कायदा सर ही तो म्हें काम कीधो। गलती कांई करी ? कसूर कांई करियो ?"
पण नरसींग ने तो भूंडी सूझ री, रात दिन उठतां बैठतां सुपियारदे ने कैवे "बुला थारा नरबद ने, जा परी उण रे ही ज घरै।"
सुपियारदे में हो तो आखिर रजपूत रो खुन। वां सोची इण तरै रा झूठा तोहमत अर बेइज्जती सहन करणओ तो कायरता है। अन्याव अर जुल्म करवा वालो अतरो दोषी नीं जतरों वां ने बरदास करणियो है। यो घड़ी घड़ी रो कै है तो इण ने कर बताणओ अबै।
एक दिन वीं पलट ने जवाब दीधो, "या चावो तो या ही व्हे जावेला।"
उण दिन सूं सुपियारदे री मार अर दुख चौगणो व्हे गियो, सुपियारदे, नरबद रे समाचार भेजिया, "मरद व्है तो आय ने म्हनै लेजा।"
नरबद ने समाचार मिलिया तो वो आपां सूं बारै व्हे गियो।
"म्हारे कारणए सुपियारदे ने अतरो दुख दे रियो है। वा बिचारी बेकसरू। नरसींग, सुपियारदे ने थोड़ी मार रियो है। ये चाबको तो म्हारा कलाज पै मार रियो है। सुपियारदे कैवाी आय ने म्हनैं ले जा। अबै जाय ने उणा ने नीं लावूं तो डूब मरवा री बात है। मिनखां ने मूंडो बतावा जोगो नीं रैवूंला।"
एक दिन सींघल दूजै गांव में कोई ब्याव री गोठ खावा ने गयोड़ा हा। पाछा सूं नरबद ताता नागरौ बैल्या जोड़ रथ ले न आयो। सुपियारदेतो रथ मे चढ़ नरबद रे लारे गांव बारे निकलगी। आप रा गाबा पैराय एक डावड़ी ने बैठायगी। सींघय आय ने देखे तो सुपियारदे नीं रथ रा पैड़ां री लोक मंडियोड़ी।
डावड़ी बोली "नरबद आय ले गियो बाईसा ने तो।"
कसियोड़ा घोड़ा ज्‌ूं आया ज्यूं रा ज्यूं दौड़िया लारे रा लारे नरबद ने अर सुपियारदे ने पकड़वा।
नरसींग जोरदार जवान हो। उण री आदत ही घोड़ कस, बारै कठै ही जावोत तो घोठडे चढ़ बड़ला री साख पकट लटूं बतो। रानां विचै घोड़ा ने  गाढो पकड़ियां राखतो। नरसींघ बड़ला री साख रे लटूंब हीडो लेतो जो घोड़ो ही लारे रो लारे उण री रान में दबियोड़ो हींडतो।
नरसींग, सुपियारदे ने पकड़वा जावा लागो तो बड़ला री साख रे लटूंबघोड़ा सूधी हींडो लीधो। अतराक में गांव री पणिहारिया ने जावती नरसींग ने घडोा सूदी हींडो लेतो देखियो तो एक जणी बोली।
"खोटा बरताव करियां बड़ां बडां री लुगायां, जो तरसींग जी व्हेता फिरै जां री परी जावै। रानां में घोड़ा हिं़डावमियां नरसींग रे लुगाई चुनो लगायगी। लुगाई ैवे तो आप रा मन सूं रै कोई जबरदस्ती सूं थोड़ी ही रैवे।"
बड़ां बड़ा री धण गई, तरसींघा तरसींघ
रानां तुरी हिंडोलितां, बींदा रा नरसींघ।

सींघलां रे अर राठौड़ां रे झगड़ो व्हीयो। सींघलां ने पाछो खाली हाथां फिरमओ पड़ियो। सुपियारदे ने नरबद घाणां मान सूं आपरे घरै राखी।

ऊपर

सरे सलूणो चून ले, सीस करे बखसीस

पाली ठाकर मुकनसिंघजी, जोधपुर रा प्रधान। सारी मारवाड़ वां री हालायां हालै। अठी ने राज करे राजाजी अजीतसिंघ जी। दोई एक सरीखा जोरदार। भाटा सूं भिड़ियां आग निकले। अजीतसिंघजी मन में यां रा पे नाराज। यां ने चूक करावा री सोची। कोई काम रो नाम ले यां ने जोधपुर बुलाया। पाली सूं रवाना व्हे ये जोधपुर चालिया। पैलो पड़ाव पाली सूं आठ दस कोस माथे दीधो। गाम वाला घा स पाणी री सरबरा कीधी। यां रे साथ वाला बकरा लेवण ने रेवड़ वालां कनै गिया खेत में एक ढाणी बंधियोड़ी । बकरां रो रेवड़ चर रियो। एक लुगाई रेवड़ री रुखाली कर री। मुकनसिंघजी रा आदमियां तो पूछियो न ताछियो दो बकरा पकड़ लीधा। रुखाणी करण वाली लुगाई बरजिया पण े मानवा वाला हा कांई कैणावत है रावला घोड़ा अर बावला सवार।
लुगाई बोली "बकरां रे हाथ मत घालो. धनजी भींवजी बारै गयोड़ा है। आवण वाला है वां ने पूछ ने ले जाओ। नीं तो वे खबर पटक देला।"
"देख लीधा, थारा धनजी भींवजी ने। खबर पटक देला ! जाणे ? पाणी मुकनसिंघजी रा आदमी हां।"
लुगाई रे हाका करतां करतां दोबकरा उठाय लै गिया। धनजी, भींवजी आआ। लुगाई बोली, "भाया, म्हारे ना ना करता, माडाणी आंपणा बकार उठाय पाली ठाकरां रा आदमी ले गिया।"
धनजी अर भींवजी री आंखियां तणगी ।  "आंपणा बाकरांने जबरन उठाय ने ले जावे ? किण रो  मूंडो है जो बकरा खाय ले।"
दोई जणां उलटां पगां पाली ठाकरां रा डेरा आडी न चालिया। धनजी गैलोत अर भींवजी चुंवाण हा। दोई मामा भाणेझ। पाली रा डेरा में जाय वलिया। हाथां मेतो तरवारां काढी लागी। मूंछा भुंवांस सूं अड़ री, मूंछां रा बाल तण तण कर रिया। बकरां रा रेवड में नाहर वलै ज्यूं छाती ताणयां मामा भाणेज सूधा गिया। आगे बकरां ने मार ुम री खाल काढ टांग राखियो। धनजी, भींवजी तो जातां ही टंगियोड़ा बाकरां उतार हाथ में लेय, ज्यूं आया ज्यूं बारै निकल गिया।
कैता गिया "रजपूत रौ माल खाणो सोरो नीं है।"
पाली ठाकरां रे साथ वाला कम सूं कम पचास सिरदार वां ने देख रिया। पम किण री हीमत नीं पड़ी के वां ने रोके के टोके। पाली ठाकर मुकनिसंघझी माला फफेर रिया। वां री निजर आवता थकां दोई मामा भाणेज पे पड़ी। वो रो हाथ माला रा मणाकिया पे हो जठे थम गियो. नाहर चाल सूं आवतां, निसंक व्हे बाकरां ने उतर ने ले जाता उणां ने देखिया। देखियो, वां रे साथा पचासां सिरदार बैठिया वां रो मूंडो देखता रे गिय,ा आगे पांवड़ो नीं उठियो।
माला फेर ऊठ ने मुकनसिंघजी पाधार उणां री ढाली पे गिया। मुकनसिंघ ने आयां देख धनजी भींवजी आंखियाँ में ललकार भरिया आगे पांवडा दीधा। पण मुकनसिंघजी ढाणी में सूधा डोकरी कनै गिया। जाय ुण ने कियो, "म्हूं पाली मुकनसिंंघ हूँ। था सूं एक चीमज मांगण ने आयो हूं। देवेला ?"
मुकनसिंघ ने आप रे घरें में आय देख टोकरी पुलक गी, "म्हारे कनै कांई है पाबजी जो थां ने देवूं।"
"थां रे कनै दो हीरा है जो म्हनें दे। ये दोई जावन रतनां सूं बेसी है। म्हारा भाईयां ज्यूं म्हूं यां ने राखूंला। यां भड़ां ने म्हें दे दे।"

डोकरी कियो, "थां रा ही है बापजी ले जावो।"

धनजी भीवजी ने मुकनसिंघजी आप रे डेरे साथे ले आया। दूजे दिन जोधपुर रो गैलो लीधो। धनजी भींवजी साथे जोधुपर आया। राजाजी अजीतिसंगझी मुकनसिंघजी ने किला में बुलाया। साथ थोड़ा घमआं आदमी ले किले में गिया। धनजी भींवजी लारे किले रा दरवाजा में मुकनिसंघजी रे वरता ही एकदम दरवाजो बंद व्हे गियो ने मुकनसिंघ जी अर वां रा भाई रुघनाथसिंघजी ज वलिया साथ वाला बारै रे गिया। मांयने मुकनसिंघजी री हत्या रो पूरो परबंद कराय राखियो। छिपिया रा परताबसिंघजी अर वां रो सांवठो साथ दोई भायां री चूक दीधी।
मुकनसिंघजी रा साथ वाला दूजा तो बारै सणणाटो खाय ऊभा। धनजी अर भींवजी सोची, आपां रे जीवतां जीव आपां रा मुकनसिंघजी रे साथे या चोट। आपां वां रो लूण खाधो है। ापां ने भरोसो कर अस्या मौका सारू तो वां आप रे कनै राखइया ही ज है। दरवाजो बंद है अबै। कांी करा।
धनजी बोलिया, "देख, दरावाज रा किंवाड़ तो म्हूं तोड़ूं। मांयने जाय यां हत्यारा री खबर थू ले।"
धनजी तो दरवाजा रा किवाड़ ने उछल ने आप रा माथा री भेटा मारी। लोह जड़ियोड़ा मोटा मोटा किवाड़ चरर करता टूट पडिया जां रे लारे धनजी रो माथो ही बिखरियोड़ो टुकड़ा टुकड़ा व्हीयो खिंड गियो।भींवो काल रो औतर व्हीयो मांयने घंसियो। एक पौहत तांई जोधाणां री पोलां जड़ री। गढ़ में रोला लोर मचाय दीधी।
पहर हेक लग पोल, जड़ रही जोधांण री,
गढ में रोल ा रोल भली मचाई भींवड़ा।
गढ री साखी कर, हत्यार परताबसिंघ ने मार मुकनसिंघ अर रुघनाथसिंघ री मौत ने भींवड़े सुधार लीधी।
गढ साखी गहलोत, कर साखी पलत कमध,
मुकन रुधा री मौत, भली सुधारी भींवड़ा।
आजूणी अधरात, महल ज रुनी मुकन री,
पातल री परभात, भली रुवाणी भींवड़ा।
मुकनो पूछै वांत, को पातल आयां कस्या,

सुरगापुर में साथ, भेला मेल्या भींवड़ै।

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अस्वमेघ रो सांग

जैपुर राजाजी जैसिंघजी घमां कोड सूं घमां ग्यान विग्यान सूं अर घमी समझदारी सूं दूरदेसी सूं जैपुर रो सह बसायो। देस विदेस सूं पुर्तगाल तक सूं नकसा मंगाया, देसां देसां रा कारीगरांने बुलाया, पंडत विद्याधरजस्या सिल्प सास्तरी री निगराणी में आंगल आंगल सूत नाप जोख, जैपुर बाजार, गलियां तयार व्ही। जोतिस सास्तर, विग्यान रा घर पुर्ततगाल रा नामी जोतसी Jurvierde Silver  री राय सूं जंतर मंतर बणायो। घमआं घमां नामी काम करियां पछै राजा जेसिंघजी ने अस्मेघ जग करमै री इच्छा वीहं। सारो परबंध कीधो, जग री सारी क्रियां व्हैण लागी। अस्वमेघ जग री मरजाद रेमाफक घोड़ो बारै गयां तो जरुर लड़ाई व्हैला ही ज, अठी ने जोधपर अजीतसिंगझी आंटो खांधा बैठिया है, वठीने भाणेज माधोसिंघजी ने पाटवी बणावा ने उदैपरु खा खाय रियो है, कोई न कोई घोड़ा ने पकड़ैला जररु। इण वास्ते जैपुर सहर रा दरवाजा चारूं कानलां बंद कर जग रो घोड़ो छोड़ देवां। पछे सहर में फिर फिराय घोड़ो पाछो आव जावेला. राड़ झगड़ा रो कोी डर नीं। घोड़ो छोड़ण रो दस्तूर व्हे जावेला। घोड़ा री पूरी वैदिक क्रियावां सूं पूजा कर दरवाजां बद  कर सहर में छोड़ियो। रामचन्द्रजी रा यज्ञ रा घडोा री रक्षा करवाने सेना चाली ज्यूं री ज्यूं इण घोड़ा रे लारे ही जैपुर री सेना चाली। कुद जैसिंघझी पांचूं ही हथियार कस घोड़ा री रक्षार्थ कबाण ने तीर चढायां सेना सजायां लारे लारे चालिया।
जैसिंघजी रे कैन ही ज भांडारेज रा दीपसिंघजी कुंभाणी रैता। वे कनै रैवा वालां में अर मरजीदानां में हा, वां घोड़ा रे लारे रक्षा करने वाली फौजां री अर राजाजी री वीर यात्रा देख सोचियो के यो कांई नाटक ? सहर रा दरवाजा बद अर घोड़ा रे लारे जोधा जिरह बखतर पैरियां। कीसूं जूंझवा ने पधार रिया है ? अस्या जूंझवा वाला है तो दररवाजा खोल घोड़ां नै बारै निकलवा दो, जोधपुर, अदैपुर साम्हो मूंडो करो तो खबर पड़ै यो तो रजपूती अर वीरता रो ऐक तमासो है, सांग है। आप री खुद री हंसी उडावणी है। वांरा मन में कांई आई के ज्यूं ही घोड़ो वां री हवेली रे आगे निकलियो झट घोड़ो पकड़ ने हवेली में घाल दरवाजो बंद कर दी।ो ऊपरे छात पे खढा व्हे गिया।
राजाजी ओ हाल देख एकदांण तो चकराय गिया, पण संभल ने हेलो पाड़ियो,
"साबास, देख लीधी थारी हीमत। थारो नाम व्हे गियो, घोड़ो छोड़ दे।"
"नाम व्हे गियो के नाम डूबेे घोड़ो छोडियां ? आप अस्वमेघ जग रा घडोा ने फेर रिया हो के खेल कर रिया हो ? यूं जगव्हे अर सम्राट री पदवियां मिले ? लोहां में लाला व्हीयां बिना इण दिग्विजै रो सांग व्हे रियो है। आप सेना सजाय घोडा ने आगे क निकलिया होय, या रजपूती ने ललकार है अर म्हैं इण ने मंजूर कीधीं। ससतर उठावो अर घोड़ो छोड़ाय ले जावो।"
आप रा पचीस तीसके साथियां ने लै दीपसिंघ जी वा धमरोल मचाई के घडोो छोड़ने रो क्यूंक मजो आय गियो।

दीपसिंघजी इण जुद्ध में मारिया गिया।

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चांदबाई चाले नीं

उदैपुर रा महाराणा भीसिंघझी रा बड़ा बैन चांदकंवरजी री सगाई जैपुर रा महाराज ्‌रतापसिंगजी सूं व्ही। जैपुर रो नामी हवामहल यां ही प्रतापसिंघजी रो बणायोडो है। ये घमआ ंकविता रा पारख अर कला प्रेमी हा, यां धणीइ कवितां लिखी, यां रा राज में जैपुर री चित्रकला धमी तक्की कीदी।
सगाई व्ही जिण रा थोड़ा दिनां पाछे ही ज भाग री वात के प्रतापसिंघजी रो देहांत व्हे गियो। ये समाचार सुण ही चांदकंवरजी आप री मां जाय कहियो।
"म्हूं तो ाज सूं ही विधवा रीनांईवारां नाम पे म्हारा दिन काटूंला। सगाई व्ही जिण दिन सूं ही म्हीं तो वांरी व्हे गी।"
बात ने पूरी निभाई। चांदकंवर आखी ऊमर प्रतापसिंघझी रा नाम माथे कुंवारा रिया। कुंवारा व्हेता थकां ही वां रो बरताव जैपुर वालां सूं अस्यो हो जांणे परणियोड़ा व्है। जैपुर रा राज घराणां सूं कागद आता जाता रैता। आदमी आता जाता रैता। जैपुर रा राजघराणां में ब्याव सादी व्हेती काम काज व्हेतो तो वे चांदकंवरजी री राय लेता। जैपुर महारा जगतसिंघजी यां ने आप री मां ज्यूं मानता, दूजा मांवां सूं बरताव राखता जस्यो हीं यां सूं राखता। जैपुर रा कजना सूं  यां रे हाथ खरच आवतो। चांदकवंरजी रा हाथ रा लिखियोड़ा घमा मह्तवूर्ण कागद अबारूं ही जैपुर रा आर्काइज डिपार्टमेंट में है।
चांदकंवरजी उदैपुर में रैवता। ये मन रा घमआ फैयाज अर गीर परवर हा। सैकड़ां मिनखां ने पालता। उदैपुर राणाजी यां री घणी इज्जत अर मान राखता।
यां आप रो नाम रो मेवाड़ में सिक्को चलायो। जो यां रा नाम पे चांदौड़ी रिपियो वाज्यो। इण रिपियो में बारह आना व्हेता। आखा मेवाड़ में यो रिपोयो खुब चालतो। इनाम इकरार में तो यो ही रिपियो वापरणी आवतो। संवत् 1980 तक तो इनाम इककार में यो ही ज रिपोय चालतो रियो।
मेवाड़ मं आदीतगिरिरजी नाम रा एक आछा कवि व्ही। एक दांण वे तीरथां जागवा लागियो तो महारा सज्जसिंघजी बां ने गैले खरचा सारूं पांच सौ रिपया बखसवा रो हुकम दीधो। बखसीस चांदौड़ी रिपियो ही जम लितो जो यां रे ही चांदौड़ी रिपियां री ज चिट्टा  व्ही। आदीतगिरिजी सोचियो,
"यो तो घमओ नुकसान रै, बारै जावा ने तो कलदार कराणा पड़ैला, मेवाड़ सूं बारै तो चांदौड़ी चालै नीं। बाटयां चांदौड़ी रा तो बारह आना ही ज हाथ लागैला।"
दूजे दिन दरबार में मजुर करवा ने गया तो मसखरी रो दुहा बणाय बोलिया,
चांदबाई चालै नहीं, दूर सगां रे देस
मन लाग्यो मेवाड़ सूं, हरख्या फिरै हमेस।

दूहो सुण महाराजा सज्जनसिंघजी ने ही हंसमओ आय गियो अर दूजा ही हंसवा लाग गिया। राणाजी उण ज वखत हुकम लिख दीधो के आदितगिरिजी ने पांच सौ मरुपसाही रिपिया ा दे दो। सरुपसाही में सत्तरा आना व्हेता।

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पूगतो जबाब

अंगरेजां रो जमतो राज। रियासतां ने संधि करियां ने घणो वखत नीं व्हीयो। अंगरेज सरकार अर रईसां बीचै घमी घणी वातां तै व्हेणी बाकी। मुगलां रा अदब कायदा में सदियां सूं रहियोड़ा रईस राजनीति री मोटी मोटी वातां सूं ही जियादा तरहीज, कुरूब कादा ने देवा लागिया।
रईसां तरवारां ने तोम म्यांनां मे ं घाल दीधी। अबै अंगरेज सरकार रे लारे कागजी लड़ायां लड़वा लागा। म्हांरी या पदवी, यो लकब, यो संबोधन, यो कुरब, यो कायदो। म्हारा उकीला ंरी या इज्जत, रेजिडेण्ट यूं बैठे, म्हां यूं बैठां। बस ये समस्या रैयगी भूपतियां रे आगे।
एक'र जोधपुर राजाजी तखतसिंघजी ने यां ही जवातां पै चिढ अंगरेज सरकार खलीतो भेजियो उण में लिखी,
"आप बार बार या इज्जत दो वा इज्जत करो। फिजूल की तकरीरें करते हो, मुसलामनों के वगत आपकी इज्जत कहां गई थी, जब उन्हें अपनी बेटियां देते थे।"
तखतसिंघजी पाछो जवाब भेजियो, "साहब बहादर ठीक फरमावे। म्हां बेटियां दीधी, तखत में बेटियां दीधी ही। अबै ही ंम्हां तखत ने देवा ने इनकार कोयनीं। थांरे विलायत रा तखत पै इण वखत महाराणी विक्टोरिया बैठी है या ही ज राजा है। महां परमआवा ने राजी हां। म्हनै फरमावो तो म्हूं जस्यो हूँ जस्यो हाजर हूँ नी तो मोती रा कण जस्या म्हारा जवान जवान बेटा हजार है। मलका महाराणी जीनै पसन्द करे, खुसी सूं ब्याव करदूं।"

लाट साब तो तखसिंघजी रो जवाब पढ़ खिसियान ने रै गिया। जठा पछै कोई रईस ने असी मुगलां री नजीर अंगरेजां कदै ही नी दीधी।

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गालियां की एवज में जागरी

मेड़तियो राठोड़ रूघनाथसिंघ आप रा बाप सूं रुसाय कमाया खावा ने दिल्ली गिया। वठै एक नवाब रे जाय चाकरी लागिया. जां दिनां हाथ में तरवार अर रानां नीचे घोड़ो व्हेणो चावतो। जठै जावतो, रोजी लाग जवाती।
बादसाह साहजहां जां दिनां पंजाब कानी जुद्ध में गियोड़ा। साहजहां रे फौज में वो नबाब ही हो उण री जमीत में रुघनाथसिंघ जुद्ध में सामल। आगे रो दुस्मण जोरदार। जोर री टक्कर व्ही। साही फौज रा पग छूट गिया। फौज पाछी फिरी, साहजहाँ सवार हो उण हाथी पग छोड़िया। बादसाह पाछो फिरियो।
"ये दूजा भाग रिया ै जो तो चोखो। यां रा बाप रो कांी बिगड़ेला। दिल्ली जावेला तो थांरी। थारा हिय क्यूं फूटा है। थूं भाग ने कठै जावे रे हिया फूट।"
साहजहां ये बोल सुणिया तो उण ने चेतो आयो, झट पाछो भागता हाथी ने रोकायो, आप संभलियो, भागती फौज ने संभाली। पाछो पलट ने हमलो बोलियो। बादसाह री जीत व्ही। दूजे दिन बादसाह वजीररां ने हुकम दीधो,
"म्हूं उण आदमी ने देखणो चावूं। जिण असी नाजुक वेला में म्हनें खरी खरी सुणाय म्हारा गुम व्हीयोड़ा होस ने ठिकाणे ले आयो।"
अब उण आदमी री तलास करे तो किण तरै करै ? नाम जांणै नीं, कठा रो कुण ? पतो लगावे तो किण तरै।
साहजहां कियो, "म्हारी आंखियं आगे जो वो सख्स आय जावे तो म्हूं उण ने लाख आदमियाँ में ओलख लूं।"
हुकम निकलियो के जतरा आदमी इण जुद्ध में सामल हा, बच्‌ोच बच्चो बादसाह रे सामने व्हे। एक बाकी नीं रै। बादसाह किला रा कोघड़ा मे बैठ एक आदमी सलाम करता गोखड़ा नीचे व्हे निकलवा लागियो। पीसा टका सूं तग, रुघनाथसिंघ माथा पै दौवड़ रो दुमालो बांदियोड़ा निकलिया। साहजहां ओलख लीधो, हुकम दीधो "इण ने हाजर करो।"
रुघनाथसिंग हाजर व्हीया।
"थै हाथी रा माथै पै कामड़ी री ठोकी।"
रुघनाथसिंघ सलाम कर हँुकारो भरियो, "जांपनाह मारी तो ही।"
"थै म्हनै गालियां काढी ?"
"आलम रा धणी कसूर री माफी, वेला असीज ही म्हूँ आपो भूल गियो।"
बादसाह खुस व्हे बोलियो "वे गालियां यूं री यूं पाछी काढ़ सुणणो चावूं।"
"गरीबपरवर ! वा वेला ही असीज ही, अबै जुबान हालै नीं।"
बादसाह जोर दे हुकम दीधो, "नीं गालियां ने म्हूं फेर सुणणो ावूं वां गालियां ही ज म्राही जीत कराई।"
हुकम रे मुजब, भरिया दरबार ने रुघनाथसिंघ, बादसाह साहजहां ने गालियाँ यूं रीयूं काढी, ललकारते लगे, भाग न जावे कठे है रे हिया फूट।

साहजहां मौका रे ऊपरे निसंकता सूं करी इण चाकरी रे ऊपरे राजी व्है। 112 गांव सूं मांरोट री जागीर रुघनाथसिंघ ने इनायत कीधी।

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कविराज री चाकीर में

करणीदानजी रो जन्म चारण जाति रा कविया गोत में मेवाड़ रा सूलवाड़ा नाम रा गांव में संत 1740 रे आसपास व्हीयो। ये डिगल रा तो महाकवि हा ही ज पण पिंगल, संस्कृत अर ब्रजभासा रा ही विद्वान हा। यां भासावं में यां री पोथियां लिखियोड़ी है। यां रा लिखियोड़ा सुरज प्रकाश ने घमी ख्याति मिलो। इण रा अंस बंगाल री रोयल एसिाटिक सोसायटि छापिया। उण ग्रन्थ रो सार ले य बिड़द सिणगार नाम री पोथी छपी जो जगव्हाली व्ही।
करणीदान जी यां रा जमाना ने प्रचलित जातियां रा ढों ग कर आचरण देख जतोरासो नाम रो गन्रथ लिखियो जिण में समाज रे घमा चूंगटिया भरिया। समाज री आंखिया खुले जसी सबदां री चोट कीधी। पछै एक भला जती साधु रा कैवा सूं उण ग्रन्थ ने आप के हाथ सूं बाल दीधी।
उक्त वखत री राजनीति में ही ये पग राखता हा, दिल्ली, गुजरात, दक्खण में ये घणी दाम राज काज रा काम सूं गिया। जुद्धा मे सामल रिया अर, आंखिया देखिया जुद्दां रो वरणन कीधो।
जैपुर राजाजी अर जोधपुर राजाजी ने पुस्कर में यां फटकारतां लगां मूंडा मूंड दूहो कहियो जो घणो मसहूर है।
जैपुर पत जोधाण पत, दोनूं ही थाप अथाप
कुरम मारियो डीकरो, कमधज मारियो बाप
कविराज करणीदानजी तीजां पे आप रे सासरे जावे। मारवाड़ सू ंआय रिया प्रकृति रो रुंप निरखता, पशुं पंछिया री किलोलां देखतां, नदी नाला लांधता, धरती अर इन्दर रा संजोग रा आणंद रो रलस लेता मारग खड़िया जावे।
कठे ही पपैया पी पी कर रीया, कठे ही मरो बोल रिया, कठे ही हिरम भाग रिया। हरिया हरिया खेतां में हाली, करसा उमंग सूं काम करता तेजो गाय रिया।
करणीदानजी घोड़ा पे सवार, लारे ख़ड़िया में दुबारा री बोतलां। गुटका लेता जावे। वन री सोभा देखा चलिया जाय रिया।
मेंह अर धरती रो, बीज अर बादलां रो बिरछ अर वेलां रो, जल थल रो मिलण देख कवि री कल्पना जागाी। वांरी आंकइयां रे आगे सासरा मं जाय मिलण वाला सुख री कल्पना जीवती व्हे उठी। ुण उमंग में ओसाण नीं रियो के एक दुबारा री बोतल ने फैंक दूजी रो हाट खुल गियो. नसो आवणो ह ीहो। सांठ पड़़गी चोामासा री अन्धार ीरात, गैला री खबर पड़ैं नी। घोड़ो खैर पगडंडी पड़ गियो जो जाय बड़ली गाम में पूंचाया। ठाकारां रे दरवाजा माथ े जाय हेलो पाड़ियो। घोड़ो हींसियो। बड़ली ठाकर लालसिंघजी बारे आय ने दीवो रो उजासो कर ने देखे तो कविराज जी करणीदानजी, 'बिड़दसिणगार' रा रचैता, हाथी पे चढाय जणारी जलब में पैदल जोधपुर राजाजी चालिया, विद्या रा घमंड रो कड़ो पग में  पैरणियां महाकवि ऊभा।
जां कवि रा रचियोड़ा गीतां री राणआ संग्रामसिंघजी धूप खेवाय पूजा कीधी, जां री खरी खरी वातां सुण ने जोधपुर राजाजी अभैंसिघजी नाराज व्हे ने सौगन खादी "मूंडो नीं देखूं करणीदानजी रो।"
ये सौगन सुण ने कणीदान जी मूंछ पे हाथ दीधो, "राजाजी आगे व्हे ने म्हारा कनै नीं आवे तो म्हूं चारण नीं।"
करणीदान जी गुजरात विजै री वा ओज भरियोड़ी कविता रची के अभैसिंघझी सूं तो रियो नीं गियो. आडो न्हाकियोड़ी कनात ने कटार सूं फाड़ करणीदानजी ने छाती सूं लीधा लगाय।
लालसिंघजी देखे तो वे ही ज कविराजजी वां रे बारणै ऊभा। घणा उमंग सूंं बोलिया,
"पधारो, पधारो, छोरा, घोड़ो थाम।"
कविराज जी तो दारू में भींत व्हे रिया। उणा में ओसाण नीं के की सूं बोल रिया है कठे है।
"उतरां नीं, सासरे जाय रियां हां।"
"आप नीचें तो पधारो, थकेलो उतारो। जीमण अरोगो। घोड़ो भीज रियो है।"
"कैय दीधो के सासरे जाय रिया हां। गैलो बता।"
"रात री रात अठे बिराज जावो। काले पधार जाजो। गैलो अबखो है। रात अन्धारी है। तकलीफ पड़ैला।"
"क्यूं रोला करे। चाल गैलो बता। हुक्को भरला।"

चाकर दोड़ियो हुक्को भरवा ने। लालसिंघजी कियो,

"थां रेण दो, आज घरे पधारिया है कविराजजी, यां री चाकरी म्हें ही करण दो।"
ठाकर हुक्को लाया. कविराजजी आंख काढ हुमक दीधो, "ले ले हुक्को हाथ में। व्हे जा घोड़ा रे आगे आगे।"
ठाकर जाण गिया कविरजा जी ओर रंग में है। घोड़ा रे आगे हाथ में हुक्को ले व्हे गिया।
अन्धारी राथ। सम्हलता ठोकरां खाता, खाडाड खाला ने टालता चालिया। ऊपर सूं छांट पड़ै। गैला में कादो व्हेय रियो। घोड़ो एक जगां आखड़ियो।
"सम्हल बाप" ठाकरां रा मूंडा सूं पूरो निकलियो नीं जठा पैली कविराजज रे हाथ में कामड़ी जो दो अर तीन ठाकरां रे मोरां माथे सड़ासड़। "सूंधो नीं ले जावे।"
ठाकर बोलिया नीं मन में हंस घोड़ा री गला री डोर हा ाथ में पकड़ सम्हलता बढिया। नसो तो हो ही। तरंग आई। कविराजजी हुकम दीधो।
"रे जाणे कोयनी। सासेर जाय रिया हां। दूवा दे।"
ठाकर ही झट कान में आंगली दे ऊचो मूंडो कर जांगड़ ज्यूं मौका रा दूवा देण लागिया।
लीलो चढ़िया मद पियां, भालां कर भलकाम।
मदमाती घणा मांण लो, अण चित्यां घर आय।।
लीला कांई ढीलो बहै, देस पयाणो दूर।
पंछ निहारे पदमणई, पनाज जोबन पूर।।
गढ़ ढाहण गोला गलण, हाथां दैण हमल्ल।
मतवाली घणा माणतां, आज्यो सैण अमल्ल।।
"वाह, वाह" कविराजजी वाह वाही देता, दूहा सुणता आधी रात बीतियां गाम मे जाय पुगा।
"जमाईसा पधारियां, जमाईसा पधारिया" सारी खात व्ही। वे तो आपणा रावला में दाखिल व्हीया अर ठाकर मान छाना पोल में जोय सोय गिया। सासर वाला बड़ली ठाकरां ने औलख खातर तवजां, मान मनवार कीधी, आछी भांत सोवाया।
दिन उगि,ो कविराजजी रो नमस उतरिो, रात री खुमारी टूटी। ठंडा पाणी सूं आंखइयां रा छाटणां कर, मेड़ी नीचे आया, देखे तो बड़ली ठाकर लालसिंघझी बैठिया। जै माताजी री व्ही। बाथ में बाथ घाल मिलया।
"कठा सूं पधारवो व्हियो ?"
"आप री चाकरी में रात हाजर व्हियो।"
"है" ! कविराजजी तो जाणे आकास सूं नीचे पड़िया। घमओ पछतावो कीधो, "धन ठाकर सा आपने। आप रा रिण सूं उणरिण कियां व्हूँ चारण रो बेटो हूँ आप रा नाम ने अरम कर देवूं्‌ला। झूटी तारीफ तो नीं पण आप जे वीरता बताय दो। तरवा ले रण खेत में ऊभा व्हे जावो तो आप री वरीता रा गीत देस रा इण खूणां सूं उण खूणां तक गवीजेला।"
थोड़ा वरसां पछे दोई जणां री लालसा पूरी व्ही।
मराठां रे लारे लालसिंघजी रा जुद्ध रो वरमन अस्यो जोर सूं दूहां अर गीतां में कीधो के पढ़ण  वाला कायर रो ही एक दाण तो रुम रुम ऊभो व्हे जावे। सांची लालसिंघजी रा गीत अर दूहा देस रा ई खूंणां सूं वी खूणां तक आज तांई गवीजता रिया।
महादजी सिंधिया अजमेर पे हमलो कीधो ने इस्तमुरारदारां सूं खिराज लेवा लागियोजद लालसिंघ जी इण रो विरोध कर जुद्ध कीधो।
वांरी वीरता रा बखाण में कविराजजी घणां गीत अर दूहा बणाया।
दल उलटया दिखणाद रा, तोपां पाड़िया ताव,
आ बड़ली तो अड़ली भई, बांकी खाग जलाल,
सेघर कबहूं न जावसी, लोहियां सींची लाल।
बांका आकर बोलत,ो चलतो बांकी चाल,
जुड़ियो बंको खग झड़ा, लड़ियो बंको लाल।
कै भज हूं करतार कै, मर हूँ खागां खलां।

सद बातां दो सार, लाखां ही झूठी लालसी।

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