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(आभार राजस्थान पत्रिका)

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राजस्थानी कहावतां -

ऊपर थाली नीचै थाली मांय परोसी डेढ सुहाली। बांटण आली तेरा जणीं, हांते थोड़ी हाले घणीं।। दो थाली के बीच में खाने की बहुत सारी सुहाली (मैदे या आंटा से बना हुआ खाने का सामान जो छोटी रोटी नूमा होती है जिसे घी या तेल में तल कर बनाया जाता है) जिसे 13 औरतें खाने वाले को बांटती (भोजन परोसना) है परन्तु खाने वाला ललचाई आंखों से उनको देखते ही रह जाते हैं तब उनमें से एक जन कहता है कि 13 जनी सुहाली लेकर केवल हिल रही है पर देती नहीं है। अर्थात केवल दिखावा है। आडम्बर अधिक है। आंधे री गफ्फी बोळै रो बटको। राम छुटावै तो छुटे, नहीं माथों ई पटको।। आंघे और बहरे आदमी से पिंड छुड़ाना कठिन कार्य है। आगम चौमासै लूंकड़ी, जै नहीं खोदे गेह। तो निहचै ही जांणज्यों, नहीं बरसैलो मेह।। वर्षाकाल के पूर्व लोमड़ी यदि अपनी ‘घुरी’ नहीं खोदे तो निश्चय जानिये कि इस बार वर्षा नहीं होने वाली है। इस्या ही थे अर इस्या ही थारा सग्गा। वां के सर टोपी नै, थाकै झग्गा। संबंधी आपस में एक-दूसरे की इज्जत नहीं उझालते। इसी बात को गांव वाले व्यंग्य करते हुए कहतें हैं कि यदि आप उनकी उतारोगे तो वह भी अपकी इज्जत उतार देगें दोनों के पूरे वस्त्र नहीं है - ‘‘ एक के सर पर टोपी नहीं तो दूसरे ने अंगा नहीं पहना हुआ है।’’ आज म्हारी मंगणी, काल म्हारो ब्याव। टूट गयी अंगड़ी, रह गया ब्याव।। जल्दीबाजी में अति उत्साहित हो कर जो कार्य किया जाता है उसमें कोई न कोई बाधा आनी ही है। कुचां बिना री कामणी, मूंछां बिना जवान। ऐ तीनूं फीका लगै, बिना सुपारी पान।। स्त्री के स्तनों का उभार न हो, मर्दों को मूंछें और पान में सूपारी न होने से उसकी सौंदर्यता नहीं रहती। दियो-लियो आडो आवै। दिया-लिया या अपना व्यवहार ही समय पर काम आता है। धण जाय जिण रो ईमान जाए। जिसका धन चला जाता है उसका ईमान भी चला जाता है। धन-धन माता राबड़ी जाड़ हालै नै जाबड़ी। धन आने के बाद आदमी का शरीर हिलना बन्द कर देता है। इसी बात को व्यंग्य करते हुए लिखा गया है कि राबड़ी खाते वक्त दांत और जबड़ा को को कष्ट नहीं करना पड़ता है। ठाकर गया’र ठग रह्या, रह्या मुलक रा चोर। बै ठुकराण्यां मर गई, नहीं जणती ठाकर ओर।। ठाकुर चले गये ठग रह गये, अब देश में चोरों का वास है। अब वैसी जननी मर चुकी, जो राजपुतों को जन्म देती थी।। कहावत का तात्पर्य समाज की वर्तमान व्यवस्था पर व्यंग्य करना है। जिसमें देश में व्याप्त भ्रष्टाचार की तरफ इशारा करते हुए कहा जा सकता है कि अब देश के लिए कोई कार्य नहीं करता। सब के सब ठग हो चुके हैं जो देश को चारों तरफ को लूटने में लगे हैं। टुकरा दे-दे बछड़ा पाळ्या, सींग हुया जद मारण आया। मां-बाप बच्चों को बहुत दुलार से पालते हैं परन्तु जब वह बच्चा बड़ा हो जाता है तो मां-बाप को सबसे पहले उसी बच्चे की लात खानी पड़ती है। जावै तो बरजुं नहीं, रैवै तो आ ठोड़। हंसां नै सरवर घणा, सरवर हंस करोड़।। जाने वाले को रोकना नहीं चाहिए, वैसे ही ठहरने वाले को जगह देनी चाहिए। जिस प्रकार हंस को बहुत से सरोवर मिलते हैं वैसे ही सरोवर को भी करोड़ों हंस मिल जाते हैं। अर्थात किसी को भी घमण्ड नहीं करना चाहिए। जात मनायां पगै पड़ै, कुजात मनायां सिर चढ़ै। समझदार व्यक्ति को समझाने से वह अपनी गलती को स्वीकार कर लेता है जबकि मूर्ख व्यक्ति लड़ पड़ता है। थारी-म्हारी बणै णीं, थारै बिणा सरै णी। आपकी-हमारी बनती भी नही। है पर एक दूसरे के वैगेर रह भी नहीं सकते।

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