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(आभार राजस्थान पत्रिका)

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लघुकथा

गलती

कांर्इ नाम है थांरो ?

ट्रेफिक पुलिस इंस्पेक्टर अकड़'र पुछयो तो वणी भी अकड़'र जवाब दिदो-

दीपक व्यास।

सीधी सी बात है, जद कोर्इ गलती ही नी ही तो डर किण चीज रो।

हूँ। इंस्पेक्टर नाक पे उतर आया चष्मा ने दुरुस्त कर'र , विणने ऊपर सूं नीचे तक घूरता तका हुंकारो भरयो। फेर बोल्यो-जवानी रो जोष है, जदी'स पुलिस वाळा सूं उळझ रयो है भायो।

            नी सा'ब, म्हूं कणीऊँ नीं उळझरयो हूँ। म्हनें तो पेली ही भगवान बाळ-बाळ बचायो है। म्हारो स्कूटर तो आप भी देखरया हो के किण हालत में पौंच ग्यो।

            सा'ब, वो गाड़ी वाळो एक तो तूफान रे ज्यूं चालरयो हो। और ऊपरे सूं दारु अलग पी राखी ही। यो तो ठीक रयो के म्हारे स्कूटर री स्पीड धीमी ही वरना आज तो म्हारे राम नाम सत्य वेवा मे कइ'ज नी  घटयो हो। म्हूं तो सीधो-सीधो आपणी सार्इड में चालरयो हो। गलती तो गाड़ी वाळा री ही।  वणी आपणी सफार्इ दिदी।

            अच्छा! तो गलती गाड़ी वाळा री ही ? इंसपेक्टर व्यंग रो तीर फैंक्यो

और नी तो कांर्इ सा'ब। म्हारे घरे नानी बेन ने देखवाने छोरा वाळा आया तका है। म्हूं वणारे वास्ते मीठार्इ अ'र नाश्तो ले'र जार्इरयो हो। अबे आप ही देखलो सा'ब म्हारो मूंगाभाव रो संगलो सामान रोड़ पे बिखरयो पड़यो है अ'र वाने गडूरा खार्इरा है।

म्हारे लागी , म्हारो सामान खराब व्यो अ'र सबुं मोटी वात म्हांरे स्कूटर रे नुकसाण पौंच्यो है। इण सब रो हर्जाणों मिलणो तो घणो छेटी रयो उल्टो सारो दोश म्हारे र्इ'स माथे मंड दिदो। और ऊपर सूं आप अ'र आपरा सिपाही लोग भी वणी रर्इसजादा रो र्इ'ज पक्ष लै रया हो। वो झुँझला'र बोल्यो।
थंने ठा है वो रर्इसजादो कुण है ? इंस्पेक्टर पूछयो। फेर सिगरेट रो लम्बो कष खींंच'र धुआँ रा छल्ला उड़ातो खुद र्इ'ज जवाब दिदो- से'र रा एम.एल.ए. रो छोरो है वो।

यो तो म्हूं कदी रो समझग्यो हो सा'ब के वो कणी मोटा बाप री औलाद है। जदी'ज तो दोशी वेता भी आप विण ने छोड़ दिदो अ'र म्हनें पकड़ राख्यो है। वो अक्खड़ स्वर सूं बोल्यो।

इंस्पेक्टर विणरी अकड़ पहचाण ली ही। थोड़ी देर तक वो विणने घूरतो रयो फेर मूँछया रे बंट देवतो बोल्यो-

कुँवारो है के गिरस्थी वाळो ?

षादीषुदा इ'ज हूँ सा'ब।

बाळ-बच्चा कौनी दिखे ?

एक बच्ची भी है , क्यूं ?

तो फेर भेजो ठिकाणे कौनी लागे है ?

बिल्कुल ठिकाणे है जनाब। अकड़ ज्यूं की त्यूं बरकरार ही।

घर-गिरस्थी वाळो है, बाळ-बच्चेदार है अ'र भेजो भी ठिकाणे र्इ'ज है तो फेर क्यूं मुसीबत मोल लै रयो है ? अबके इंस्पेक्टर रो स्वर थोड़ो नरम हो-  चुपचाप माफी मांग अ'र चाळतो बण।

माफी! वो हैरानी सूं बोल्यो- वा किण बात री जनाब ? म्हें करयो कांर्इ है ? जिणरी गलती ही विणने तो आप लोग छोड़ दिदो अ'र म्हने माफी मांगवा री कैरया हो। ओ तो सरासर गलत है सा'ब , गुण्डाराज है।

आप रो तो फर्ज बणे है के म्हारों केस दर्ज करो, म्हारे नुकसान रो हर्जाणों दिलाओ और विण रर्इसजादा ने सबक सिखाओ ताकि वो आज रे केड़े यूु रोड़ माथे आँधी तूफान रे ज्यूं नी उड़े, वांरी आँख्यां खुल जावे अ'र वाने रोड़ माथे चालता म्हा फटफटिया अ'र सार्इकिला वाळा भी नजरया आवां।

इंस्पेक्टर री हँसी छूटगी। वो कने ऊबा कांस्टेबल सूं हँस'र बोल्यो- देख रे मदनसिंह , ओ म्हने सही-गलत समझा रयो है। म्हारो फरज बता रयो है।

देख छोरा, साब ने गुस्सो मत दिला अ'र चुपचाप माफी मांग'र चालतो बण। कांस्टेबल बोल्यो

पण माफी मांगु किण बात री भार्इ ? गलती कांर्इ करीे है म्हे ? जवानी रो खून उबल पड़यो।

अबे देख, ज्यादा बहस-बाजी मती कर और साहब कै दिदो के माफी मांग और चलियो जा। तो मांग माफी अ'र चालतो बण। साहब रो गुस्सो बढ़ ग्यो तो हवालात री हवा खाणी पड़ जावेला।

कांस्टेबल कयो तो वो तुनक'र बोल्यो-

किण जुर्म में ?

जुर्म ! इंस्पेक्टर ठठा'र हँसियो, फेर माथो खुजातो बोल्यो-

थें कांर्इ जुर्म किदो बतादूं ? मदनसिहँ, इणने जरा जिप्सी सूं वा रिवाल्वर तो निकाळ'र दिखाजे, जो अणी थोड़ी देर पेली एम.एल.ए. साहब रा छोरा पे ताणी ही।

विणरे पगा नीचे सूं जमीन खिसकगी। उबळतो खून एकदम बरफ बणग्यो। मुण्डो अस्यो व्हैग्यो मानो फुल्या गुब्बारा में कोर्इ काँटो चुभग्यो अ'र फिस्स करतो संगलो वायरो निकळग्यो व्हे।


मजदुर रो छोरो टोपर अर अफसर रो छारो लोफर

करोड़ो री जागीरदारी'र ऊपर'उं बेटो फौज में अफसर। आका चौखला में ठाकर बावजी री पूछ। हांझ पडता पेली बावजी रावळा बारणे हतार्इ पे आ'र बैठ जावे। आज भी गाँव रा हंगला नाना-मोटा झगड़ा टंटा बावजी री देख-रेख में पंच इ'ज निपटावे, बावजी रो फैसलो अनितम फैसलो, वारी वात भाटा पे पडी रेख, कोर्इ बावजी रो थुंक्यो नी उलांगे। अेर-मेर रा चौवीस कौस तक वांरी इज्जत। छ: मिना पेली'इज लाखा रिप्या खरच करर ठाठ'उं पोती रो ब्याव किदो अ'र पोतो तो पाछला बारा बरसां उं राज्य रा हंगला मेहगां अ'र मान्या तका स्कूल में भ़़णरयो है। ठाकर बावजी मुछया रे वंट देवता नी थाके। पण आज बावजी री मुछया रो वंट ढिलो पड़ग्यो। पोतो बारमी री बोर्ड री परीकसा में फैल जो व्हैग्यां हो। अ'र या भी ठा पड़ी के पाछला दो बरस वो गलत संगत में पड़ ग्यो हो। घर परिवार उं छेटी मोटा स्येर में वो कार्इ करयो हो, किकर रेइरयो हो, आज ठा पड़ी। बन्ना रो ध्यान किताबां में नी दादागीरी में इ'ज हो। बावजी हंगला घरवाला ने हावचेत कर दिदा के या वात घर री घर में इज रेणी छावे नी तो षान धूळा में मल जावेला। आगला साल छोरा पे पूरी निगराणी राखा। अतराक में तो खेत रो हिजारी कन्यों राजी वेवतो आयो अ'र ठाकर बावजी रे पगा में एक थेली मेलतो बोल्यो, अन्नदाता हुकम परसाद अरोगो अ'र आषिश दिरावो। बावजी आपणा दुख ने छिपाता हंसर पूछयो परसाद भी खावा अ'र आषिश भी देवा पण पेली यो तो वता के वात कर्इ है। कन्यों हरक'र बोल्यो- हुकम छोरो डागदरी री परवेष परिकसा में पास व्हैग्यो। हुणता'क ठाकर बावजी री यो हाल जाणेक कणी कटया पे लुण रगड़ दिदो व्है। अणी पेली के व्हे कार्इ बोले कन्यों पाछयो बोलयो हुकम पास व्हैग्यो यो तो घणी हरक री वात है पण हगंला कैरया के टाप आयो, यो काइं व्है। बावजी कार्इ जवाब देता बस मन-मन में इ'ज होचता रया, वाह रे तकदीर मजदूर रो छोरो टापर अ'र अफसर रो छोरो लोफर।


किने मारे मौत किने मारे मौताणो

पौ फाटया पेली मोवन्यो उठ'र गुवाड़ी में आयग्यो। बार्इ अ'र बापु दोर्इ आँगणा में ढोल्या पे गेरी नींद में हुता हा अ'र विणरा दोर्इ टाबर आपरां दादा-दादी रे वचे मचली पे एक दूजा रे गळा में हाथ न्हाक'र नींद निकाळ रया हा। मोवन्या रे आँख्या में आंसू आयग्या। चढोतरा रे दन धापुड़ी रे पीर वाळा विणरे अ'र विणरे घरास्या पाड़ोस्या रे घरा में जो तबाही मचा'र ग्या, वन्डी गवाइ आज तीन दन केड़े भी गवाड़ी में वकरयो टूटो-फूटो सामान देयरयो हो। विण माथे तो चालो धापुड़ी री मौत रो भी इळजाम है पण दूजा मनख तो लार्इ बापड़ा नक्की निरदोस है। फेर वणी भी जाणकर'र तो विने नी मारी ही। डाळो काटवा हारु रुँखड़ा पे चढयो हो के कमर में बंघ्यो कराड़ो जाणे किकर निकळ'र नीचे ऊबी धापुड़ी रे माथा माथे जाय पड़यो अ'र वा ठाम खतम, कोर्इ देखवा वाळो भी तो नी हो। मोवन्या रो जीव कररयो हो के कुळाटा कर'र रोवा ढुके। एक तो घर मूं आको मनख परो ग्यो, दूजो चढोतरा वाळा वांरी आज तक री हंगळी कमार्इ रो सत्यानाष करग्या। अ'र ऊपरुं यो मौताणो। खेत कुड़ो तो पेली ऊँ गेणे पड़यो है। अबे अणी मौताणा रे रिप्या री वैवस्था कठू करे। घर गवाड़ी गेणे मे'ली तो छोड़ार्इ किकर, जो नी छूटी तो भूडा बर्इ-बापू अ'र नाना टाबरा ने ले'र कठे जार्इ। इण समस्या रो विने एक इज उपाय नजर आयरयो हो पण वो करवा री होच'र इज विने ठण्ड चढ़ री ही। आाखिर वणी  एक भरी नजर बर्इ-बापू अ'र दोर्इ बाळका पे न्हाकी अ'र काळजो कड़ो क'र गवाड़ी बारणे निकळ ग्यो। आगली परभात आकी ढाणी में हाको मच ग्यो के खार खादो धापुड़ी रो भर्इ किसन मोवन्या ने  आपणे टेक्टर ऊँ कुचळ मार नाक्यो। और चार घड़ी केड़े, मोवन्या रो डील वन्डी गुवाड़ी में पड़यो हो, बाळक टुकर'टुकर देखरया हा, बर्इ-बापु कुळाटा कररया हा अ'र काको केयरयो हो, उठो रे भाया चढोतरा री त्यारी करो, जतरे मोवन्या रे मायता ने न्याव अ'र बाळका ने मौताणो नी मले दाग नी व्हेला।


मुंगारत

दो देवराणी-जेठाणी घर री गुवाड़ी में बैठी बातां करे। चर्चा रो विषय है मुंगारत। देवराणी पूछयो- कै भाभीसा, आपणे कर्इ लागे या मुंगारत कठे जार्इ'न ढबेला ? जेठाणी बोली- यो तो उगवा वाळो ही जाणे लाड़ी या पछे सरकार। आपणे हामे तो या मुंगारत सुरसा रे बांका रे ज्युं दन दुणी न रात चौगुणी बढ़ती'ज जाय'री है। आज री केणी तो या है के शौक-मौज़ ने तो छेटी-दिदी आपणा जस्या आम लोगा रे रोज़मर्रा री ज़रूरतां भी पूगे नी पड़री।

            हांची केवो आप, आज काल तो आपणी हालत एक ने ढाक्यों ने दूजो उगाड़ो वाळी व्हैरी है । बूढ़ा-वडेरा केवे है के जतरी'क गुदड़ी व्है वतरा र्इ'ज पग लाम्बा करो, पण अठे तो पग लाम्बा करवा री तो छेटी बात है, आक्का दड़ी बण जावा तोर्इ गुदड़ी छोटी पड'री़ है । वर्इ दन हा जदी बेटो कमावा सारू घर बारणा निकलतो जण रे पेला मां-बाप केवता के गेले जावजे गेले आवजे थोड़ो वे तो थोड़ो'र्इ कमावजे, वतो नी म'ली तो कान्दा न लूण-मरच उ'इं रोटी खार्इ लेवा पण इमानदारी राखजे अ'र खोटा करम करे मती । पण आज अणी मुंगारत में तो कान्दा न लूण-मरचा रा भाव भी आसमान चढया बैठा है, तो अबे आदमी कर्इ गेले जावे न कर्इ आवे, कीकर र्इमानदारी सूं कमावा री होचे। हालत तो या है के नागो कर्इ तो धोवे कर्इ निचोड़े । आमदणी पच्ची रिप्पया वदे तो मुंगारत पच्चा रिप्या वद जावे । भाव वदावा री तो जाणे अटे होडा होड़ मचरी है। अबे दूध ने ही लेर्इ'लो सरस वाळा एक लीटर में एक रिप्यो वढ़ायो तो लोकल दूध वाळा दो रिप्या वदार्इ दिदा ।

घी-तेल, खाण्ड-खोपरा, आटो-दाळ न साग-भाजी ही नी हर चीज दन-दन मुंगी व्है'री है। डीजल, पेट्रोल रा दाम बढता पेली किराया-भाड़ा वद जा, स्कूला वाळा तो हर साल फीस बढावा रो ठेको लेर्इ'ज राख्यो है । आज री ताजा हालत तो या है के यो मुंगारत रो बेलगाम घोड़ो आपा आम आदमी ने गचरतो जार्इरो न आगे बढ़तो जार्इरो है अ'र आपणो हाय-हाको हुणवा वालो कोर्इ नी है। काना में तेल न्हाक न बैठी सरकार र्इणपे लगाम कसवा रे बजाय र्इणरो ठिकरो एक-दूजा रे माथे फोड़ री है।


चैत री उजाळी एकम

संवत्सर- चैत माह री उजाळा पखवाड़ा री एकम रे दन विक्रम संवत रे अनुसार नववरस रो प्रारंभ व्है या वात तो लगभग संगळा भारतीय जाणता इ'ज व्है, पण इण रे अलावा भी इण दन रो आपणा षास्त्रा में घणो महत्व है।

स्मृतिसार रे अनुसार
'स च संवत्सर: सभ्यम वसन्त्यरिमन मासादय:'
यानि कि संवत्सर विने केवे जिण में संगळा मास भलीभाँति रेवास करे। इणरो दूजो अरथ बारह मास रो 'काळविषेश' भी व्हे। जिण तरया सूं प्रत्येक मास रा चान्द्रादि तीन भेद व्हे वणी'ज तरया सूं संवत्सर रा भी तीन भेद व्है जो सौर, सावण और चान्द्र केवावे। ज्यौतिश षास्त्र रो मानणों है के चैती एकम रे दन जो वार व्है वोइ'ज वार विण वरस रो राजा व्है-
चैत्रे सितप्रतिपदि यो वारो•र्कोदये स वर्शेष:।
उदय द्वितये पूर्वो नोदययुगले•पि पूर्व: स्यात।।'

तिलक अ'र आरोग्य व्रत- भविश्योतरानुसार इण दन तिलक व्रत भी करयो जावे, । अ'र विश्णुधमाेर्ंतर रे अनुसार इण दण आरोग्य व्रत रो भी विधान है।

नौराता:- नानाषास्त्र पुराणादि रे अनुसार यंू तो एक वरस में चार नौराता आवे ये चैत, आशाढ, आसौज, अ'र माघ मास में मान्या जावे पण आशाढ अ'र माघ रा नौराता गुप्त नौराता केवावे अ'र प्रसिद्धि में मुख्य चैत अ'र आसौज रा नौराता ही मान्या जावे है, याने बासन्ती नौराता में भगवान विश्णु री अ'र षारदीय नौराता में षकित री उपासना री प्रधानता रेवे । आसौजी नौराता देवीभगता रे वास्ते महत्वपूर्ण व्हे अ'र चैती उजाळी एकम सूं नवमी तक रा दन वैश्णवा रे वास्ते विषेश महत्व रा दन व्हे।

यदि कणी वरस में चैत मास अधिक मास व्है तो षास्त्रा रे अनूसार नव संवत्सर दूजा चैत री उजाळी एकम रो मान्यो जावे, अर्थात दषामाता षीतळापूजन इत्यादि तो पहला चैत में मनावे अ'र नवसंवत्सर नौराता, गणगोर आदि दूजे चैत रे उजाळा पखवाड़ा में मानाया जावे।

इण तरह सूं चैत री उजाळी एकम केवल विक्रम संवत रे नुवा बरस रो प्रारंभ इ'ज नी है वरन इण दन रा और भी कर्इ महत्व है। 'उत्सवचनिद्रका' में वर्णन है
प्राप्ते नूतनवत्सरे प्रतिगृहं कुर्याद ध्वजारोपणं
स्नानं मंगलमाचरेद द्विजवरै: साकं सुपूजोत्सवै:।
छेवानां गुरुयोशितां च विभवालंकारवóादिभि:
सम्पूज्यो गणक: फलं च श्रृणुयात तस्माच्च लाभप्रदम।।


शकित पूजा री नौ रातां

नानाशास्त्र पुराणादि रे अनुसार यंू तो एक वरस में चार नौराता आवे ये चैत, आषाढ, आसौज, अ'र माघ मास में मान्या जावे पण आषाढ अ'र माघ रा नौराता गुप्त नौराता केवावे अ'र प्रसिद्धि में मुख्य चैत अ'र आसौज रा नौराता ही मान्या जावे है, याने बासन्ती नौराता में भगवान विश्णु री अ'र शारदीय नौराता में शकित री उपासना री प्रधानता रेवे ।  यदि कणी वरस में चैत मास अधिक मास व्है तो शास्त्रा रे अनूसार नव संवत्सर दूजा चैत री उजाळी एकम रो मान्यो जावे, अर्थात दशामाता शीतळापूजन इत्यादि तो पहला चैत में मनावे अ'र नवसंवत्सर, नौराता, गणगोर आदि दूजे चैत रे उजाळा पखवाड़ा में मानाया जावे। नौराता में देवीपूजा में एकम रे दन केशां रे वास्ते सुगंघ वाळो तेल, बीजदूज रे दन केश बाँधवा रे वास्ते रेशम री डोरी, तीज ने सिंदुर अ'र दरपण, चौथ ने मधुपर्क, तिलक अ'र काजळ, पाँचम ने अंगराग अ'र अलंकार, छठ ने फूल, माळा, वेणी अ'र गजरा आदि समर्पण कर णो चावे , सातम ने ग्रहमध्यपूजा, आठम ने उपवास रे लारे पूजा अ'र नवमी रे दन महापूजा रे लारे कन्यापूजन कर'र नीराजन अ'र विसरजन करवा रो वरणन पुराणा में भणवा में आवे। कन्यापूजा मे दो वरस री कन्या कुमार, तीन वरस री त्रि मुर्तिनी, चार री कल्याणी, पाँच री रोहिणी छ: री काली, सात री चणिडका, आठ री शाम्भवी, नौ री दुर्गा अ'र दस वरस री सुभद्रा मानी जावे। नौराता रे वरत री पूर्णता रे वास्ते कन्यापूजन जरूरी व्या करे। मान्यता है के एक कन्या रे पूजा सूं ऐश्वर्य, दो सूं भोग अ'र मोक्ष, तीन सूं धर्म अर्थ, काम, चार सूं राजपद, पाँच सूं विधा, छ: सूं षटकर्मसिद्धी, सात सूं राज, आठ सूं सम्पदा अ'र नौ कन्या री पूजा सूं हंगळी पृथ्वी रो प्रभूत्व मिल जावे। नौराता एक अस्यो पर्व है जो नर जात ने नारी री मैमा वतावे। नौराता में मनख आका मोहल्ला में कन्यावां हेरता फरे अ'र चार दन केड़े वणी'ज घर में ठा पड़े के घर री बहु रे पेट में कन्या है तो कन्याभ्रूण हत्या  में सहयोग करवा वाळा डाक्टर ने हेरवा दोड़ी पडे। काश वे हमझ जावे के कन्यावां नी जनमेंला तो वां री शकितपूजा री नौराता किकर पूरी वेवेला ?


धरती रो पाणी'ज तो है

'हरयो समंदर गोपीचंदर बोळ म्हारी मछळी कतरो पाणी।' कोर्इ गोड़ा रे हाथ लगावतो तो कोर्इ कमर रे अ'र कोर्इ छाती तक हाथ लेजा'र केवतो के 'अतरो पाणी' पण म्हें हमेषा माथा सूं ऊपरे हाथ लेजा'र केवती के 'अतरो पाणी।' कटे'र्इ भण्यो हो के इण धरती पे हुकी जमीन'ऊँ वतो तो पाणी है सो म्हें योर्इ'ज होचती के इण धरती पे गंज पाणी।

अचांभो तो वद वेतो जद दादीसा हुकम ने छांटो-छांटो पाणी वंचावता देखती। मजाळ जो कोर्इ लोटयो पाणी भी फाळतु खेरू कर दे। म्हने घणी घबरावणी आवती। एक दन तो म्हे केइ'ज दिदो-Þकांर्इ दादीसा हुकम आप आको दन पाणी-पाणी करो हो, आपाणी टयूबवेल में पाणी तोड़या नी टुटीरो। फेर भी आप इण पाणी ने घी रे ज्यूं वापरो हो। आपने ठा भी है के इण धरती रे इगोतर प्रतिषत हिस्सा पे तो पाणी'ज है।Þ

            Þम्हे तो या वात जाणू हूँ बेटा, पण ष्षायद आप या वात नी जाणों हो के इण धरती पे जतरो पाणी है विणमें सूं ष्षून्य दषमलव छ: प्रतिषत भाग इ'ज आपारें वापरवा लायक है। दूजो तो संगलो खारा समंद, हिमनदों अ'र बरफ रे रूप में है। फेर मान भी लां के गंज पाणी है तोर्इ बेटा अणअदअवेर सूं वापरिया तो कुबेर महाराज रो खजाणों भी खुट जा, फेर यो तो धरती रो पाणी इ'ज है।Þ

            बरसा बरस बीत ग्या, या म्हारे बाळपणे री वात है। विण बखत दादीसा हुकम री वात हमज में नी आर्इ ही पण आज जद अणटूट पाणी देवा वाळी टयुबवेल हुखगी, नळ चार दन में एक दाण आवे अ'र जो टेंकर नकावा तो कदी पाणी मोळो आवे तो कदी गुगलो। जों षिकायत करां तो टेंकर वाळो केवे के बार्इसा पाणी है कठे ? गाँव रा आधा सुं वता कुड़ा-वावडि़याँ हुख ग्या। जिण में थोड़ो गणों पाणी है वो भी पाताळा में बोल रयो है। तो दादीसा री वात हमज में आर्इ के अणअदअवेर सूं वापरिया तो कुबेर महाराज रो खजाणों भी खुट जा फेर यो तो धरती रो पाणी इ'ज है।

जळबादळी भाया किकर आवे

सेर ऊँ आयो पोतो घर में वाटर हार्वेस्टींग लगावा री वात किदी तो दादी बोली-बेटा म्हाणे जवानी रा दना में तो मनखा कदी बरखा रो पाणी जमीन में उतारवा रा जतन नी किदा तोर्इ कुड़ा-वावडि़याँ थबोला खाता भरया रेवता। तो पोतो बोल्यो के वो जमानो ताें हाऊ हो। वदी तो चौमासा में वरखा'र्इ जम'र वरसती अ'र आका चौमासा में नाड़ा-खाड़ा भरया रेवता। फेर दादी मुळक'र बोली- वो जमानो हाऊ किकर हो बेटा, वदी भी बारहमास्यो वरस वेतो अ'र येर्इ'ज चौबिस घंटा रा रात दिवस,ऋतुआँ रो चक्र भी योर्इ'ज हो। हाँ मनख दूजा हा, जो प्रकृति री सुनिषिचत व्वस्था रो अनुसरण करता, आज रा मनखा रे ज्यूं आपाणे संकीर्ण हवारत रे वास्ते प्रकृति रो अति दोहन नी करता।

व्हे लोग जळदेवता री कदर करता। विण जमाना में आज री नार्इ घर-घर टयूबवेला नी ही, न ही सरकारी नळ हा। लुगायाँ माथा पे बेवड़ा तोक'र पाणी लावती ही, घर रा आदमी अ'र टाबर टिंगर कुड़े जाय'र दाबड़ा मे या फेर धोरा पे बैठ'र हाँपड़ता हा जो पाणी धोरे-धोरे व्ह'ेर्इ न खेता में पौची जातो नाळी-नाळी व्हे'र्इ न गटर में नी जातो।  गारो लिप्या आँगणा, लाम्बी चौड़ी चरनोटा अ'र हरया-भरया जंगळ रा दन हा, वरखा रो पाणी जमीन पे पड़तो तो आ प्रकृति र्इ'ज विने जमीन में उतार देवती ही।

            प्रकृति री व्यवस्था अपणे-आप में पूरण व्हे। इण रा हंगळा काम एक सुनिषिचत व्यवस्था रे अंर्तगत व्हे है। आज रा मिनख प्रकृति रो अंधाधुंध दोहन कर'र इण री व्यवस्था ने तोड़ रया है जिणरे कारण प्रकृति रो संतुलन डगमगार्इ रयो है अ'र परिणामत कठे'र्इ बाढ़ा आयरी तो कठे'र्इ अकाळ पड़ रयो है।

 

            नवो जमानो, नवी रीत, वऊ-लाडि़याँ रे कठे'र्इ गारा में पग नी भरावे जस्या आँगणा, चरणोटा पे कालोनियाँ बसगी, हरया-भरया जंगळ रेगिस्तान बण ग्या। वन वना वरखा कठे? जाणता विणता मिनख आपणे पगे खुद कराड़ी ठोक'र रेगिस्तान में ऊबा जळ बादळी री वाट जोवे। वरखा तो घर आया मेहमान रे ज्यूं वे अ'र आपा मेहमान वठेइ'ज जावां जठे आपाणे हुआवणों लागे अ'र जठा रा लोग आपारी अ'र आपारे दिदी भेंट री कदर करें। जो जळ री कदर नी क'रो तो जळ बादळी भाया किकर आवेळा।

पाणी पराणी रे पराण'ऊँ वत्तो

ज्यूं ही नळ आवे, नानाबासा गेडि़यो ले'र पौ रे कनै बैठ जावे, मजाळ जो पौ भरया पेली कोर्इ लोटयो पाणी पौ रे नळ'ऊँ भर ले। आका पाड़ा में दो सरकारी नळ, एक ढंांडा रे पाणी री पौ भरवा हारूं अ'र दूजो मनखा रे पीवा रो पाणी भरवा हारूं। चार दन में एक दाण पाणी आवे अ'र तीस घरा वच्चे एक नळ। दो बेवड़ा'ऊँ वत्तो पाणी कणी घरे हाथे नी लागे। लुगाया हाथ जोड़ती के बासा एक बेवड़ो पौ रा नळ'ऊँ भरवा दो, पण बासा यो के'र नट जाता के थां तो हेण्डपम्प अ'र कुड़ा'ऊँ भर लावो, पण बापड़ा हाँर-चांपा री पौ खाली रेर्इ जावे तो वे कठे जाय'र मुण्डो मा'रे।

एक वगत हो जद इण गांव में गंज पाणी हो। करसाण साल री दोर्इ फसळा भरपूर लेता हा। तळाव अर तळार्इ बारह ही मिना भरया रेवता। गांव री हंगळी पौवा हाँरा-चांपा रे वास्ते थबोला खाती भरी रेवती। रोज दो-तीन घण्टा सरकारी नळ पाणी देवता। म्ंहू म्हारी आख्या'ऊँ देख्यो हो इण पोै रे भरया पछे वना टूटी रा नळ'ऊँ पाणी वेवतो रेवतो अ'र फोजदार साहब री  हवेलीऊँ लेर मोटा कुड़ा तक री हेरी में काचा-कीच मच्यो रेवतो

म्हूं जद परण'र आर्इ इण गांव में यूं पाणी री बरबादी देख'र गणो जीव बाळती। जो पाणी वंचावा री बात करती तो हंगळा मारी हँसी उड़ावता अ'र केवता के इण गांव में तो इन्दरदेव री किरपा है, थांणे पियर ज्यंू पाणी रो काळ कोनी है अठे। पण पाछला तीन बरस'ऊँ तो जाणे इन्दरदेव इण गांव'ऊँ  रूठ ही ग्या। 

आज भी हमेस रे ज्यंू नळ आता ही नानाबासा पौ रे कनै बैठ ग्या, जेठ री तपती दोपेरी, सूरजनारायण एकदम माथा पे हा। गरमी रे कारण अचाणचक नानाबासा माथो पकड'र एक आनी लूढ़कग्या अ'र वांरे मुण्ंडे झाग आर्इग्या। वांरा घराळा वांने तोक'र घरे ले जायरा हा अर पाणी भरती लुगाया वांं पे एक नजर न्हाक'र पाछी पाणी भरवा लागगी, के नळ परा जार्इ तो पाणी वना कांइ क'रा। पाणी पराणी रे पराण'ऊँ वत्तो व्हैग्यो। एक जणी तो दौड'़र पौ रा नळ  नीचे भी बेवड़ो मांड दीदो।


आखिर पिसणों तो मने इज है।

रामबाबू ने होच में डुब्या देख'र सा'ब पूछयो Þकै वात है रामबाबू आज फेर किण होच में?' 'अबे कर्इ वताऊँ सा'ब म्हाणी जिणगी तो होच-होच में इ'ज वीत जाणी है। आजकाला समाचारा में हुणवा अ'र भणवा में आर्इ रयो है के सरकार प्राइवेट स्कूलां में गरीब अ'र पिछड़ा तबका रे वास्ते 25 फीसदी आरक्षण कराणो चायरी है।' तो काय हो ग्यो भार्इ। चालो अणी बहाणे गरीब अ'र पिछड़ा तबका रे लोगा रो भी आपणा बाळका ने आछया अंग्रेजी स्कूल में भणावा रो मौको मल जार्इ। 'वो तो हंगळो ठीक है सा'ब पण गरीब व्हे के आम मध्यम वर्गिय आखिर वे यो क्यूं चावे है के वांरा बाळक प्राइवेट स्कूल में भणे, अणिज वास्ते नी के यो हंगळा जाणे है के प्राइवेट स्कूलां रो षैक्षणिक स्तर सरकारी स्कूलां ऊँ बेहतर है। अ'र या वात सरकार ऊँ भी छानी नी है। प्राइवेट स्कूलां में 25 फीसदी आरक्षण देवा'र सरकार गरीब अ'र पिछड़ा तबका रो कतरोक भलो कर लेर्इ। अणीऊं बढि़या तो यो इ'ज वेतो के सरकार आपणो योइज समय,श्रम अ'र पीसो सरकारी स्कूलां रो षैक्षणिक स्तर सुधारवा में करती तो वणा में भणवा वाळा 100 ही फीसदी बाळका रो तो भलो व्है जातो अ'र लारे-लारे म्हारे जस्या मध्यम वर्गिय भी लोग कम खरचा में आपणा बाळका रे वास्ते सरकारी स्कूलां में आछी भणार्इ पार्इ लेतो। म्हने तो घणो होच यो लाग रयो है सा'ब के पेलाऊँ म्हारी आधी ऊं वत्ती तनख्वाह बाळका रे भणार्इ में इ'ज जायरी है। अबे प्राइवेट स्कूल प्रषासक या मांग करया है के 25 फीसदी सीटा आरक्षित करया पछे सरकार जो अनुदान देर्इ वणीऊं वांरो खरचो पूरो पड़ सके इण वास्ते सरकार वाने फिस बढ़ावा री भी अनुमति दे। ऊपर ऊँ 25 फीसदी सीटा आरक्षित व्या पछे वची तकी सिमित सीटा वास्ते भी नवां ए डमिषन में ये स्कूलां वाळा मनमान्यो डोनेषन लेर्इ। आप जस्या सा'ब लोगा रे तो कर्इ फरक नी प'ड़ी भले ही फिस वदो के डोनेषन। आखिर हर दाण री तरह पिसणो म्हनें इज है, म्हें मध्यम वर्ग रो जो हूँ।


भगवान करे सकोरा दन फरे

रेल ज्यूं ही मावली टेसण पे आ'र उबी व्ही, म्हे आवाज हुणी- रबड़ी लेलो, मावली री फेमस रबड़ी लेलो। रबड़ी रो नाम हुणता'ज मुण्डा में पाणी आयग्यो। घणा वरस पछे रेल ऊ मावली आवा रो जोग बैठयो। पण जदी बी अणी टेसण सूं गुजरता अटारी रबड़ी खाणो कदी नी भूलता। गारा रा कोरा सकोरा रे माय परोसी मीठी-मीठी रबड़ी रे साथे मिळी-घुळी माटी री सौंधी महक जाणे आज भी नथुना मे बसरी है।
पण वो जमानो दूजो हो जद ये सकोरा नज़र आवता हा। गराहक खावता-पिवता अ'र फैंक'र फोड़ देवता, उपयोग रे पछे माटी री चीज पाछी माटी में मिल जाती। न पर्यावरण ने नुकसाण पौंचतो अ'र नी ही प्रदूशण फैलतो। और तो और अणा सकोरा ने बणावा सूं कर्इ घरा ने रोजी-रोटी भी मिळती ही। पण अबे वे वाता कठे? आज तो अणा सकोरा री जग्या प्लास्टीक री डिस्पोजेबल गिलासा लेइ लिदी।
अेकला राजस्थान में इज नज़र न्हाका तोर्इ आँकड़ा केवे के प्रदेष में प्रति बरस साढे तीन सौ-पोणे चार सौ रे लगाबगा डिस्पोजेबल सामग्री रो उपयोग व्हे जिण में गिलासा, कटोरियाँ अ'र चम्मच आदि व्हे।
डिस्पोजेबल सामग्री रे उपयोग सूं सड़का नाळियाँ अ'र सिवरेज लार्इणा अवरूद्ध व्हैजा, गंदगी वदे, माचर, माख्याँ पनपे अ'र बीमारियाँ फैले। प्लास्टीक सूं बणी ये डिस्पोजेबल सामग्री न तो सड़'र खाद बणे अ'र न गळ'र मिटटी में मले बस या मिटटी मे दब'र मिटटी री उर्वरा षकित घटावे अ'र बरखा रा पाणी ने जमीन में उतरवा में बाधक बणे।
ब्याव षादी अ'र उत्सवा रे दना में तो सिथति और बी खतरनाक रूप लेर्इ लेवे। कर्इ दाण इण बचिया खाध पदारथा ने खावा रे हवारत में जिनावर याने इ'ज चबा-चबा खाय जावे जो वांरे वास्ते जावलेवा सिद्ध व्हेवे। और तो और अणी डिस्पोजेबल सामग्री में भरया गरम खाध पदारथ मानविय स्वास्थ्य रे वास्ते भी घणा हानिकारक है।

अबे तो भगवान इ'ज रखवाळो है अ'र वो इ'ज जाणे के माटी री सौंधी महक भरया सकोरा रा दन पाछा फरेला के वे भूली-बिसरी याद इ'ज बण'र रेय जावेला।

ताकि वणी रेे सुख अ'र समृद्धि

तैवारां रो आपारां जीवन में घणो महत्व है। भारतीय जीवन सुं अगर तैवारां नं न्यारा कर दां तो यूं ला'गी जाणे शरीर उं आत्मा ने न्यारी कर दीदी व्हे। दिवाळी रो तैवार सुख अ'र समृद्धि रो तैवार व्हे सुख अ'र समृद्धि रे वना जीवन रो कर्इ मजो नी है। आज धनतेरस है, भगवान धनवन्तरी री जयंति। समुंद्रमंथन रे दौरान अणी'ज दन भगवान धनवन्तरी अमृत कळश ले'र प्रकट व्या हा। आपां सुख अ'र समृद्धि री वात कर रया हा अ'र जीवन रो सबउ मोटो सुख व्हे नीरोगी काया जो स्वास्थ्य रा देव भगवान धनवन्तरी रा आषिस उं इ'ज संभव है। स्कन्दपुराण रे अनुसार आज रे दन रा दीपदान रो घणो महत्व है। घनमेरस रे दन हंज्या वैळा रा  तेल रा दिवा ने प्रज्वलित कर'र गंधादि उ वणीरी पूजा करे फेर विने घर रा मुख्य दरवाजा पे अपाज री ढंगळी पे रख दे अ'र ध्यान राखे कि वो दिवो रात भर बळतो रेवे। अणी'उ वरस भर घर में समृद्धि रेर्इ अ'र अणी'ज दन हंज्या वैळा रा आपांरी इच्छानुसार पांच, सात, नौ, ग्यारह गारा रा दिवा तेल उं भर'र कणी थाळी या परात में रख दे दक्षिण दिशा री ओर मुण्डो राख'र वाने प्रज्वलित करे पछे वणा री गंधादि उं पूजा करे और 'मृत्युना दण्डपाशाभ्यां कालेन श्यामया सह। त्रयोदश्यां दीपदानात सूर्यज: प्रीयतां मम।।' अणी मंत्र रो जाप कर'र दीपदान करे तो यमराज प्रसन्न व्हे अ'र अकाळ मृत्यु टळे न वरस भर घर में स्वास्थ्य लाभ रेवे। घनतेरस रे आगले दन चौदस ने अलग-अलग पुराणा में अलग नाम उं मान्यता है। बहुसम्मत उ इने रूपचौदस माने अ'र इण दन परभाते पौ फाटया रो उठ'र अबटन आदि लगा'र स्नान करवा रो अ'र लुगाया रे सौळा ही सिणगार करवा रो महत्व है। अणी'ज दन ने लिंगपुराण रे अनुसार नरकचौदस रे नाम उं भी जाणे है, नरकचौदस री हंज्यावळी रा पूरब रीे ओर मुण्डो क'र चार बाती रो दिवो करणे चावे। दिवाळी री हंज्या एक तेल रो दिवो घर रा दक्षिण पूरबी कोणा में रखणो भी धणो शुभ माने। एक दिवो कोठार में अ'र एक घर रे डेळी पे आकी रात बळणो चावे।

तरकल्यो घर डुबायो

एक डोकरी ही , महान मुंजी ,चामड़ो जावे तो जावे दामड़ो नी जावा दे। बेटो परदेस में नौकरी करे न घर में गंज दोजो-वाजो पण नी तो छाटो दूध धी खूद खावे अ'र नी कदी पोता-पोती अ'र बऊ ने खवावे। एक दाण गाँव री हंगली डोकरीयाँ देवदर्शन जावा री सलाह किदी पण डोकरी रो मन में के पाछे बऊ घी-दुध उपाड़ी देर्इ तो। फेर घर में जतरो घी हो हंगलो वेचीन खाली डाबा बहू ने पकडा'र बोली- म्हे आऊ जतरे ये दोर्इ डाबा घी ऊ भर न राखजे। बहू बापड़ी दरपी के दोर्इ डाबा नी भरया तो हऊजी आइन कलेश करी। वा दन रात ढांडा-चापा री देखभाल में लागी रे। हेलो-हेलो वांटो दे टेम ऊं टेम चारो पाणी दे के ढांडा हाजा मांदा व्है जार्इ या भूखा रेइ तो दूध कम देर्इ अ'र घी कम आर्इ फेर दोर्इ डाबा कीकर भरी। हऊजी आया तो देखे वऊ दो नी चार डाबा भर राख्या। डोकरी तो राजी व्हैगी के म्हारी वऊ तो म्हारा ऊं हुस्यार।
            चार छे मिना निकल्या के डोकरी रो पाछो मन व्यो तिरथा जावा रो। वऊ पे तो भरोसो वेइज ग्यो हो ,चार ही धाम री यात्रा में निेकलगी। वऊ पेला रे ज्यू इज ढांडा री देखभाल करे न घी-दूध अवेरे। एक दन घी में तरकल्यो पड़ी ग्यो वऊ होच्यो मुंगाभाव रो घी है तरकल्या ने यु फैकी देऊ तो वगाड़ो वेर्इ। वणी तरकल्या ने चाटी लिदो के बऊ चमकी अरे थारी किना घी अस्यो हवाद लागे जदिस मनख मुंगो मले तोर्इ खावे। एक आंगली भरी'न फेर चाटयो मन नी भरयो तो दुजी आंगली फेर चाटी छोरा-छोरी ने भी चखायो। अबे तो वणाने घी रो हवाद आइग्यो। फेर एक दन दूध भी चाखीन देख्यो दही भी खादो। घी-दूध दही ऊं वणवा वाला रधिण भी वणाणो सिख्यो। अबे तो वऊ रो आधो वतो टेम रसौड़ा में निकले न आधो टेम हेला घी दूध रो भारी जिमण जिम'र ऊंघवा में। ढांडा चांपा आधा दूर भुखा तरया खुंटे बंध्या रे। दूध कम पड़ग्यो ,घी भी कम निकले अ'र जतरोक वे विने भी खाइ-खुवाइन पूरो कर दे। हवाद रो नशो हऊजी री दरपणी पे भारी पड़ग्यो। डोकरी पाछाी आर्इ के- गालियाँ बकवा लागी। वऊ निचे गाबड़ी कर'र धीरेक बोली-म्हे कार्इ करू- तरकल्यो घर डुबायो।


जद वेती ठण्ड पामणी

मेड़ी रे पछवाड़े नीमड़ा रे रूँखड़ा माथे करवल करता चिड़ा-चिड़कलियाँ रे शोर सूं दिन ऊगा पेली ही, पौ फाटया रा अचाणचक म्हारी नींद ऊचटगी। परभात री नींद घणी सुहाणी लागे, जिवड़ो चावे के दिन ऊगेर्इ'ज नी अ'र आपा सुतार्इ'ज रेवा। पण यो भी कदी व्है सके है ? सूरजनारायण रो रथ कदेर्इ'ज नी रुके अ'र आपा संगला भी विण रे साथे, दिन ऊगा सूं ले'र आतमणे तक घणचक्कर बणियाँ घूमतार्इ'ज रा। खिड़की बंद करवा रे सारू म्हूँ उठ'र खिड़की रे कने जाय'र उबी व्ही जो बाणे सूं ठण्डी हवा रो एक झोंको आयो अ'र आका डील मे कँपकँपी छूटगी जद अहसास व्यो के अब ठण्ड पामणी व्हैगी है।

            म्हने अठारह बरस पेली रा वे दिन याद आयग्या , जद म्हारी उमर यार्इ'ज कोर्इ दस बरस रे लगाबगे री वेला। र्इज मेड़ी रे माय म्हूं सुवती ही , अ'र सियाला री परभात में रजार्इ में दबक'र सोवणो घणो सुहाणो लागतो हो, पण अणी'ज तरया पौ फाटता इर्'ज नीमड़ा रे माथे पँखेरूआ रो करवल गूँजवा लाग जातो अ'र नींद ऊचट जाती। घणी रीस आवती , पँखेरूआ पे भी अ'र नीमड़ा ने लगा'ण वाळा पे भी। पौ फाटया री उड़ी नींद दिन ऊगता-ऊगता पाछी लाग जाती जो तावड़ो चढया तार्इ नी उचटती। अ'र फेर नीचे चौक सूं दादीसा रो हलकारो सुणिजतो-

            बार्इसा , दार्इजा में दावडि़याँ देवा रो जमानो कौनी रयो है जो आप पौढया रेवो अ'र दावडि़यो घर रो काम कर लेर्इ। अबार सूं आदत नी पटकी तो सासरे में  माँ-बाप ने कौळे ऊबा राखो।     म्हारो बाळमन सोचतो के जो म्हूँ सासरा में मोड़ी ऊ'ठूं या काम-काज नी क'रूं तो माँ-बाप कि'कर अतरा दूर सूं आ'र कौळे ऊबा व्है जा'र्इ ?

            विण दिना रे सियाळा री घणी ओळियु आवे , जद संगलो काम तावड़े बैठ'र करता , साँझ वेतार्इ अलाव, सिगड़ी या फेर चूल्हा रे कने बैठ'र तप तापता। रेण-सेण रे साथे खाण-पाण भी बदल जातो।    विण दिना ज्यूं ही ठण्ड पामणी वेती , घरा-घरा में चपड़ो गजक ,बाळका रे सारू तल्ली अ'र मूंग रा लाडू , मुडियारे रे उड़द रा अ'र बुढा-वडेरा रे सारू अजमा सूंठू रा लाडू बण जाता हा। रसोड़ा रो मेन्यू भी बदल जातो। दाल-ढोकळा, घाट-घूघरी, कुळथ-बाटी, मक्की री रोटी अ'र उड़द री दाल , कढ़ी अ'र तल्ली रा तेल सूं चुपडया पान्या , हर दूजे तीजे दिन बणतार्इ'ज रेवता हा।

            ठण्ड सूं ठिठूरता-ठिठूरता परभात री धोक देवण सारू दातासा अ'र दादीसा रे ओवरा रे माय जातार्इ'ज सियाळा री खुराक सूंठ अ'र अजमा,नेगड री सौंधी सुगंध नाक सूं टकराती। खुद रा मूंग रा लाडुआँ ने तो चार दिना मेंर्इ'ज खतम कर देवता अ'र जद दादीसा अजमा सूंठ रा लाडू में सूं पतासा जतरो सो टूकड़ो तोड़'र परसाद री नार्इ हथेळी पे धरता तो म्हें संगला भार्इ-बेण सोचता के आपा कद डोकरा वेेवां ला अ'र आपाणे सारू भी अजमा-सूंठ रा लाडू बणेंला जिणने आपा जीव भर'न खावां ला।

     समय बीततो ग्यो। विकास अ'र आधुनिकता री दौड़ मे संगळो पाछे छूटतो ग्यो। आज कठे वे दिन ? अबे रा लोगा ने तो मीठा लाडू खावा सूं डार्इबिटिज वेर्इ जावे , घणो घी खावो तो ब्लडप्रेशर बढ़ जावे , हार्डअटेक आर्इ जावे। जो एक टेम मक्की री रोटी अ'र दाल ढोकळा खार्इ लो तो पेट खराब वेर्इ जावे।तावड़े सूं सनबर्न रो डर , अलाव अ'र चूल्हा रा धुआँ सूं एलर्जी होवे। से'र रा कुकड़खाना जस्या घरा रे माय रेवण वाला लोग तावड़ा रा एक कतरा ने भी तरस ग्या। आज सियाळा री परभात में विण लोगा री नींद पौ फाटया रा चिड़ा-चिड़कलियाँ रे करवल सूं नी , बलिक दिन चढया घड़ी रे अलार्म सूं या फेर सड़क पे दौड़ती मोटर गाडि़याँ री चीं चकल्ल सूं जागे है।

            आज तो कोट,जेकेट अ'र शाल स्वेटर सूं लखदक लोगा ने देख'र इर्'ज ठण्ड री आगमण रो अहसास वे, वरना तो पतोर्इ'ज कौनी चाले के कद ठण्ड पामणी व्ही अ'र कद व्हीर वेगी ?


 

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